हम जानवर बेजुबान नहीं हैं
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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हम जानवर बेजुबान नहीं हैं,
पर इंसानो की नीयत से अंजान है
हमे मरता छोड़ देते
ये तो हैवान है, ना जाने क्या है!
हमे घर लाते,
खूब लाड प्यार दिखाते
जब हम बूढे और लाचार हो जाते
हमको अंजाने रास्तो
पर मरने को छोड़ जाते
हम कुछ समझ ही नहीं पाते
ठगे से रह जाते !
अपना अपना त्यौहार मनाते
खुश होते खुशियां बांटते
मग़र ना जाने क्यूँ
हमारी बलि चढ़ाते
जंगलों में हमारा
शिकार करते
हमारे बच्चों को
अनाथ कर जाते
खुद के स्वाद के लिए
हमको हलाल करते
ये कौन सा और
कैसा त्यौहार मनाते
हम कुछ समझ नहीं पाते !
हम में से किसी
को माता मानते
पूजा अर्चना करते
उसी के सहारे अपना
परिवार चलाते
उसके दुधमुंहे बच्चों
का दूध खुद पी जाते
जब वो बूढी और
लाचार हो जाती
तब कसाई के हाथों में
कटने को सौप देते
इंसानी स्वार...