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पद्य

मेरे सतगुरु
कविता

मेरे सतगुरु

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कौन जाने मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन जाने। कौन तारे मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन तारे। कौन संभाले मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन संभाले। कौन समझे मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन समझे। कौन सँवारे मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन सँवारे। कौन ज्ञान चक्षु दें मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन दें। कौन भव पार करें मेरे सतगुरू तुम बिन मुझ कौन पार करें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
सावन का सुहावना झूला
कविता

सावन का सुहावना झूला

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आता है सावन जब, मल्हार गीतों से गूंजती बहार सावन की हरी भरी हरियाली में, गूंजे गीतों की बहार ।।१।। सावन के सुरीले गीतों की मस्ती में, आंनद की बहार नवविवाहित सजती श्रावण में, करती सोलह श्रृंगार ।।२।। भगवान कृष्ण और राधा का सजता, सावन में दरबार श्रद्धालुओं की लंबी लंबी लग जाती, मंदिरों में कतार ।।३।। ब्रज में बुरा सेवन की परंपरा, दामाद आने की बहार सावन में ससुराल वाले, दामाद का करते इंतजार ।।४।। सावन में ठाकुरजी की आकर्षित लगती, सुंदर पोशाक दौड़े दौड़े आते भक्त, पहनाते बेबाकमनमोहक पोशाक।।५।। ब्रज रस में सावन का सुहावना, सुंदरता से सजा झूला कृष्ण राधा की युगल जोड़ी में, मधुरतम लगता झूला ।।६।। सावन में संस्कृतिसाहित्य की समृद्ध, नजर आती कला जिधर देखो सुनहरी छटा में सुंदर, ब्रज का सावन मेला ।।७।। चौरासीक...
सतगुरु चालीसा
चौपाई

सतगुरु चालीसा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** -: दोहा :- गुरुवर की कर वंदना, नित्य झुकाऊँ माथ। गुरुवर विनती आप से,रखना सिर पर हाथ।। -: चौपाई :- सतगुरु का जो वंदन करते। ज्ञान ज्योति निज जीवन भरते।।१ गुरू ज्ञान का तोड़ नहीं है। इससे सुंदर जोड़ नहीं है।।२ गुरु वंदन का शुभ दिन आया। सकल जगत का उर हर्षाया।।३ गुरु चरनन में खुशियाँ बसतीं। सुरभित जीवन नदियाँ रसतीं।।४ गुरु दरिया में आप नहाओ। जीवन अपना स्वच्छ बनाओ।।५ गुरुवर जीवन साज सजाते। ठोंक- पीटकर ठोस बनाते।।६ पाठ पढ़ाते मर्यादा का। भाव मिटाते हर बाधा का।।७ गुरू कृपा सब पर बरसाते। समय-समय पर गले लगाते।।८ गुरुवर जीवन मर्म बताते। नव जीवन की राह दिखाते।।९ साहस शिक्षा गुरुवर देते। जीवन नैया जिससे खेते।।१० गुरू शिष्य का निर्मल नाता। जीवन को है सहज बनाता।।११ भेद-भाव नहिं गुरु ह...
बंद हैं संवेदना की सीपियाँ
गीतिका

बंद हैं संवेदना की सीपियाँ

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोपना सौहार्द के कुछ बीज प्यारे, बस बबूलों की बची हैं पीढ़ियाँ अब।। नागफनियों - से हुए सब धर्मधारी। विष बुझी है हाथ में जिनके कटारी।। लिख रहे कानून की वे कंडिकाएँ, काटते जो न्याय के पथ की फरारी।। रेत में चट्टान-सा साहस गला है। बंद हैं संवेदना की सीपियाँ अब।। कोसती दुर्भाग्य को ही भूख आदी। खा रही आश्वासनों की दी प्रसादी।। जनसुरक्षा का जिसे अधिकार सौंपा, खून से लगती सनी वह श्वेत खादी।। पीटती है ढोल जो कल्याणकारी, कटघरे में जा खड़ी वे नीतियाँ अब।। दिन ब दिन बढ़ती दलाली की अटारी। त्रस्त होरी के चढ़ी सिर तक उधारी।। सेवकों के द्वार पर की फूलझड़ियाँ, कर रही रंगीनियों से खूब यारी।। जोड़ती जो इस धरा को आसमाँ से, ध्वस्त सारी हो गयी हैं सीढ़ियाँ अब।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रद...
किताबें कुछ कहती हैं
कविता

किताबें कुछ कहती हैं

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** कुछ कागज के पत्तों पर सूखी शाख की कलम जब चलती है कुछ अनकही भूली बिसरी कहानियों की यादें लिखती हैं कुछ अल्फाजों में अतीत की दासतां फिर इनमें रहती है जुबां जो हमको सुना न सकें वो सब किताबें कहती हैं संगीत सजा साजों में मधुर लहर स्वरों में बसती है सरस्वती विराजित हो वाणी में शब्दों से गजल बजती है तान और लय का संगम सरगम बन के पन्नों से ये बहती है बोल जो किसी के सिखा न सके वो सब किताबें कहती हैं शिक्षित हो प्राणी गुरुओं की वाणी शिलालेख सा ये लिखती हैं ज्ञानी और अज्ञानी शिक्षा की जब राह चले आईने सी ये दिखती हैं हुई अनमोल नहीं इनका कोई मोल ज्ञान गंगा सी ये बहती हैं ज्ञान जो कैद कोई रख न सके वो सब किताबें कहती हैं बढ़ चले कदम सफलता मिले हरदम राहें पढ़ कर ही मिलती है ज्ञान मिले विज्ञान मिले जीवन का संज्...
बचपन की नाव
कविता

बचपन की नाव

सौ. निशा बुधे झा "निशामन" जयपुर (राजस्थान) ******************** मेरी कश्ती आज फिर से तैयार है। बारिश में सामान को तैयार हैं।। सारे शहर में बारिश के शौकीन हैं। बस बंद हैं, तो वह स्कूल।। जहाँ बच्चों के शौक हैं। वह रास्ता, वह गलियाँ।। वह तेरा चौबारा। वह गांव की पक डंडी।। जिस ओर मुझे मेरी कश्ती मिलती है। बाकी मेरी छोटी सी कश्ती हैं।। बह कर किनारे पर। तो कभी भँवर में डूब न जाय।। मुझे डर था, पर वो तो निडर हैं। बहफैक्ट वो, अपना रास्ता कर।। आज वो कश्ती फिर से गाड़ी का मन है। क्योंकि वक्ता जो रुक गया.. एक बार फिर से मुकर देखने का मन है। बचपन को लेकर चलना का मन है।। परिचय :- सौ. निशा बुधे झा "निशामन" पति : श्री अमन झा पिता : श्री मधुकर दी बुधे जन्म स्थान : इंदौर जन्म तिथि : १३ मार्च १९७७ निवासी : जयपुर (राजस्थान) शिक्षा : बी. ए. इंदौर/...
वृक्ष
कविता

वृक्ष

 राम राज सिंह उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ******************** कभी-कभी यह देख मुझे, बस यूँ ही हिल जाता है। प्रेम-सुधा पूरित हँसकर, नेह अमित बरसाता है।। स्वागत की अद्भुत सुविधा बस झुक जाने की एक विधा दानी दधीचि सा पुण्य प्राण उद्देश्य एक जगती का त्राण मान-भान से प्रथक सजग जग-जीवन को सर्साता है। ताप, शीत या वृष्टि सघन न कभी हारता उसका मन ज़रा, जन्म या अन्तकाम सेवा जीवन का एक नाम पीड़ा पाकर भी पावन पर-सुख पर मुसकाता है। विकट धैर्य से प्रकट सरल विनयशील वैभव का बल पीता प्रतिदिन काल-कूट क्षिति का प्रिय अवधूत-पूत जीवाश्म नहीं जीवन रस जीवन-हित जल जाता है। परिचय :  राम राज सिंह निवासी : उन्नाव (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : शाखा प्रबंधक (पंजाब नैशनल बैंक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
सावन
कविता

सावन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश को निहारते मोर सोच रहे, बादल भी इतने वाले हो गए बिन बुलाए बरते नहीं शायद बादल को कड़कड़ाती बिजली चमकती होगी सौतन की तरह। बादल का दिल पत्थर का नहीं होता प्रेम जागृति होता है आकर्षक सुंदर, धरती के लिए धरती पर आने को तरसते बादल तभी तो सावन में पानी का प्रेम-संदेश प्रेमी रहे रिमझिम फ़ुहारों से। धरती का रोम -रोम, संदेश संदेश हरियाली बन उठती है मोर अपने घोड़े को फैलाकर स्वागत है नाचने बाघ बादल चले जाते हैं बेवफाई करके छोड़ो जाओ हरित सावन में पानी की यादें धरती पर प्रेम संदेश के रूप में। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभि...
कहा गया रिश्तों से प्रेम
कविता

कहा गया रिश्तों से प्रेम

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** कहा गया रिश्तों से प्रेम आजकल रिश्तों से प्रेम कही खो गया है। प्रेम से बिछड़े एक जमाना हो गया है। ******** आजकल बनते हैं पैसे से रिश्ते यदि आप धनवान है तो सब बनायेंगे आपसे रिश्ते। ******* सगा गरीब रिश्तेदार भी किसी को नहीं सुहाता है। अमीर हो कोई दूर का रिश्तेदार वह सबको भाता हैं। ******* आजकल प्रेम की जगह पैसे ने ले ली है। दुनियां ने अब पतन की राह ले ली है। ******* गरीब रिश्तेदारों से लोग मुंह फेर लेते है। और धनवान रिश्तेदार को चारों तरफ से घेर लेते है। ******** हर रिश्ते में प्रेम बनकर रखिए पैसों से रिश्ते को दूर रखिए। ******** आजकल हर रिश्ते मतलब से चलते है अगर काम निकल गया तो ******** बिना प्रेम के रिश्ते स्थाई नहीं होते ऐसे रिश्ते है पानी के बुलबुले जैसे होते । ******** ह...
वो एक पवित्र आत्मा है
कविता

वो एक पवित्र आत्मा है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इस से अद्भुत पल और क्या हो सकते हैं, दिल की गहराइयों के साथ, अपने पालतू सहचर के साथ प्यार से घिरे रहना ! इन शांत क्षणों में कोई शर्त नहीं कोई निर्णय नहीं केवल एक पवित्रता और विश्वास का आभास! वो विश्वास जो कभी डगमगाता नहीं वो ऐसा साथी जो बदले में कुछ मांगता नहीं! वो ऐसा साथी जो हमे सब्र की परिभाषा सिखाता है, सिर्फ, प्यार बांटना जानता है ! उससे बंधी स्नेह की डोर कभी कमजोर नहीं पड़ती, वो रिश्तों में ठहराव जानता है, हमसे हमारी पहचान कराता है, वो इंसान से कहीं कई गुना अनमोल है, क्योंकि वो एक "जानवर" है, वो पवित्र आत्मा है !! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोम...
अनूठा व्यक्तित्व
कविता

अनूठा व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जो देखना चाहते हैं मेरी तबाही का मंजर उनको बता दूं मैं सर्वदा बहने वाला हूं पर तुम शाश्वत न रहने वाले हो। जो देखना चाहते हैं मेरी आंखों में आंसू उनको बता दूँ मैं इस आब-ए-चश्म में डूब कर ही तैरना सीखा है। जो देखना चाहते हैं गम-ए-हयात में मुझे डूबता हुआ उनको बता दूँ इसी समुद्र में विजय की नौका पर हर मंजिल फ़तह करना सीखा है। जो देखना चाहते हैं मुझे दूसरों के आगे नत हुआ उनको बता दूँ माँ काली के आगे सिर झुका कर ही सिर उठाकर जीना सीखा है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
प्रेरणा
गीत

प्रेरणा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेरणा माता पिता हैं, प्रेरणा गुरुवर हमारे। प्रेरणा माँ शारदे हैं, प्रेरणा बनते दुलारे।। प्रेरणा अनुराग देते, पेड़ पौधे ये निराले। पुष्प मोहक रँग बिरंगे, नित्य मन भरते उजाले।। झूमते मधुकर चमन में, यह प्रभाती खूब भाती। स्वप्न देखें हम मनोहर, साँझ सिंदूरी सजाती।। चाँद सूरज रोशनी दें, प्रेरणा देते सितारे। प्रेरणा संगीत बनती, ताल सरगम की कहानी। कोकिला की तान मीठी, मूक पीड़ा की निशानी। बह रही निस्वार्थ कल-कल, प्रेरणा देती ‌नदी है। मर्म जानो मित्र ज्ञानी, प्रेरणा देती सदी है।। प्रेरणा चहुँओर बसती, यह धरा कण -कण पुकारे। थरथराते होंठ प्रियतम, सावनी मनुहार करते। फिर सृजन विस्तार होता, तूलिका में रंग भरते।। घट विचारों से भरा है, लेखनी कविवर उठाओ। श्वेत पृष्ठों पर लिखो तुम, प्रीति उर मे...
मुझे तुम भूल जाना …
कविता

मुझे तुम भूल जाना …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* साथ देखा था कभी जो एक तारा आज भी अपनी डगर का वो सहारा आज भी हैं देखते हम तुम उसे पर है हमारे बीच गहरी अश्रु-धारा नाव चिर जर्जर नहीं पतवार कर में किस तरह फिर हो तुम्हारे पास आना। भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना! सोच लेना पंथ भूला एक राही लख तुम्हारे हाथ में लख की सुराही एक मधु की बूँद पाने के लिए बस रुक गया था भूल जीवन की दिशा ही आज फिर पथ ने पुकारा जा रहा वह कौन जाने अब कहाँ पर हो ठिकाना। भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना! चाहता है कौन अपना स्वप्न टूटे? चाहता है कौन पथ का साथ छूटे? रूप की अठखेलियाँ किसको न भातीं? चाहता है कौन मन का मीत रूठे? छूटता है साथ सपने टूटते पर क्योंकि दुश्मन प्रेमियों का है ज़माना। भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना! यदि कभी हम फिर मिले जीवन-डगर पर मैं लिए आँसू, लिए तुम ...
वीर अभिमन्यु
कविता

वीर अभिमन्यु

साक्षी लोधी नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) ******************** शकुनि ने चल दी, अनेतिक चाल आज केसे भी करके, बंदी बने गर धर्मराज हार पांडवों की, हो सुनिश्चित जाएगी सिंहासन दुरियोधन को , मिल जायेगी यहां चक्रवियू, गुरु द्रोण ने रच दिया अर्जुन को भेज, कुरुक्षेत्र से बाहर दिया पांडवो में घोर चिंता छा गई ये भयानक आज बिपदा आ गई व्यूह भेदन अर्जुन को केवल आता यहां पूछते हैं युधिष्ठिर आज अर्जुन हे कहां इतने में अभिमन्यु भी रण में आ गया पांडवों में आश बनकर छा गया मुझे दो आज्ञा में जाऊ युद्ध करने कुटिल नीति शत्रुओं की शुद्ध करने बोले युधिष्ठिर तुम अभी नादान बालक उस और भारी महारथी हैं व्यूह चालक हठ तुम्हारी व्यर्थ है ये छोड़ दो रथ को अपने पीछे तरफ को मोड़ दो अब लिखने का समय आ गया, अपनी अमर कहानी लोट गया जो समर छोड़ तो, फिर धिक्कार जबानी आज अपने रक्त से इतिहास लिखकर आऊंगा मार...
अन्नदाता
आंचलिक बोली, कविता

अन्नदाता

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता नांगर, बईला धरे तुतारी खेत खार जेकर संग वाली ! उठथ बिहनिया जावत खेत, भूख पियास हरागे चेत !! धरती ल लागिस पियास, सुन गोहार आइस आगास ! टरर-टरर मेचका नरियाय मोर, पपिहा, कोयल गावय !! गड़-गड़-गड़-गड़ बादर गरजे झर-झर-झर पानी बरसे ! हरियर-हरियर धरती होगे, तरिया डबरी लबालब होंगे !! खेत जोत के बोइस धान, धरती दाई के राखिस मान ! रेगड़ा टूटत मेहनत करथे घाम पियास सबो ल सहिथे !! जावय खेत किसनहा बेटा, धरे चतवार निकालय लेटा ! खेत जोत के फसल उगावत हरियर धरती के गुनगावत !! बन बुटा के निदाई करथे, गाय गरु ले फसल ल बचाथे ! जम्मो झन के भूख मिटाथे अन्नदाता वो हर कहलाथे !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित...
मूर्ख और धूर्त
कविता

मूर्ख और धूर्त

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखो-देखो न गौर से आंखें उनकी सुर्ख है, एक मूर्ख, मूर्ख है और दो मूर्ख भी मूर्ख है, हालात में न आये सुधार, आ जाये जब मूर्खों की बाढ़, इधर भी मूर्ख उधर भी मूर्ख, कई राजनीति के युवा तुर्क, देशद्रोही सिखाए देशप्रेम, मवाली, गुंडों की चिंता में रहते पूछते ये कुशलक्षेम, तनाव खूब बढ़ाते हैं, भोला खुद को बताते हैं, भावनाओं से खेलना खेल नहीं, दंगे फसाद के खेलों में न समझो रखते तालमेल नहीं, जनता पीछे-पीछे फिर भागेगी, न जागा कभी न जागेगी, आस्था को भड़कायेंगे, जलती जनता को ये जलाएंगे, है जमी हुई जो भाईचारा, उकसाकर उसे पिघलायेंगे, नफरतों का फिर आएगा बाढ़, गुस्से से होगा फिर ताड़मताड़, न मानो इन्हें सीधा साधा नहीं मानोगे ये तो धूर्त है, एक मूर्ख, मूर्ख है और दो मूर्ख भी मूर्ख है। परिचय :- ...
घातनिपाती शिवस्तुति
श्लोक

घातनिपाती शिवस्तुति

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हर श्रद्धावान को अपने परिवार पर अथवा स्वयं पर आने वाली विपदा व आई हुई विपदा को दूर करने के लिए हर दिन घातनिपाती शिवस्तुति के इन १२ श्लोकों का पाठ अवश्य करना चाहिए। न बन सके तो हर सोमवार को इसका पाठ करें। सावन के महीने में तो इनकी फलश्रुति और भी अधिक महत्वपूर्ण है। जय नन्दीश नदीश निधीश्वर नीर निशीश नटीश प्रभो। चिर चण्डीश फणीश शशीधर शीश शिरीश शिखीश प्रभो।। प्रिय पिण्डीश पतीशपतीश्वर वीर यतीश व्रतीश प्रभो। मम संघातनिपात हराहर घातकपातक प्राण प्रभो।।१।। नव नीतीश क्षितीश सतीश्वर धीर सतीश सतीश प्रभो। कलि कालीश कलीश कवीश्वर कीश करीश कटीश प्रभो।। पद पाणीश परीश कपीश्वर ईश घटीश गतीश प्रभो। हर संघातनिपात हराहर घातकपातक प्राण प्रभो।।२।। जय मौलीश मनीष मतीश्वर मूल मुनीश महीश प्रभो। जय गौरीश गिरीश गतीश्वर ही...
विकराल काल महाकाल
स्तुति

विकराल काल महाकाल

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गंगधार अति विशाल, विकराल काल महाकाल, हिमाच्छादित पर्वत विशाल, कैलाश में है उनका वास, ॐ नाद ॐ ब्रह्म ॐकार धुन स्वर, देव दानव यक्ष किन्नर पुकारते महाकाल, महादेव-महादेव गुंजे है स्वर अपार, वही तो है महाकाल-महाकाल-महाकाल। भृकुटी है तनी विशाल, रौद्र रूप चन्द्रभाल, त्रिनेत्र है विकराल, दिगंबर वेश, मुण्डमाल, शेषनाग है विशाल, भस्म अंग त्रिशूल हाथ, वही तो है महाकाल महाकाल-महाकाल परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरो...
बरसते मेघों की पुकार
कविता

बरसते मेघों की पुकार

चेतना सिंह प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** बरस रहे हैं मेघ, तड़प रही हूँ मैं, भीगनें को दिल चाहता है, रोक न पाऊँगी ख़ुद को, तुमसे मिलने जी करता है। आकर देखो अपने द्वार पर, बागों में मोर नाच रहा, पक्षियों का कलरव हो रहा, रोक न पाओगे ख़ुद को, मुझसे मिलने को मन करेगा। आनेवाला है सावन, अभी से धानी चुनरिया ओढ़कर, पलकें बिछा के रखी हूँ, आना होगा तुम्हें, न कोई अब बहाना चलेगा। मेरा हाल सुनकर, मेरे प्रियतम! रोक न पाओगे ख़ूद को, बरस रहे हैं मेघ गरज रहा है बादल। परिचय :- चेतना सिंह प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
शिक्षा हर कहां जात हे
आंचलिक बोली, कविता

शिक्षा हर कहां जात हे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता जेती जाथव तेती बस ऐके ठन गोठ गोठियावत पाठशाला ह तो खुल गे संगवारी हो फेर लईका मन के पढ़े लिखे बर कापी-पुस्तक हर नई आवत हे ये सब ल देख कवि ल ईही जनावत हे लागथे अईसे की देस ह शिक्षा के दम नई चलय, ये बात ह थोरकिन सही होय कस लागत हे निशा दारू अऊ भांग म सबे झन बोहावत हे जेला देख के लईका मन ल अपन भविष्य के चिंता हर सतावत हे धीरे - धीरे शिक्षा के डोरी हर अब सरहा पेरा डोरी होय कस लागत हे तेकरे सेती लईका मन के भविष्य हर नदियां के धारे-धार कस बोहावत हे फेर हमर राज पाठ के सियान म ल ईही म अडबर मजा आवत हे तेखरे सेती पाठशाला म ताला अऊ मधुशाला ल किसम-किसम के जिनिस ले सजावत हे जेखर आंखी म करिया पटृटी बंधाएं ओहा शिक्षा के महिमा ल का जान ही थोरकुन ज्ञान ल पाय रतीस त भविष्य बर सोचतीस घलो ईहे तो अधुरा ...
लागी लगन …
भजन

लागी लगन …

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मन मीत मेरे मन भावन की लागी लगन शरण तेरी आवन की मन मीत …. ये दुनियाँ है गहरा सागर भर न सका कोई पूरी गागर जीवन पथ की इन उलझन में मिली छाँव किसे सावन की मन मीत …. बन्दे जितने भेजे जगत् में देकर अपनी वाणी सबने अपने मन मत से तेरी महिमा बखानी मतभेदों की इस दुनिया में भटक रहा है प्राणी तेरी रचना तू ही जाने कौन विधि तुझे पावन की मन मीत …. झूठी है ये जगत् की माया नैनों ने अब तक मुझे भरमाया परिणति है ये तेरी कृपा की मन चाहत हरि गुण गावन की मन मीत…. परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ शिक्षा : एम.कॉम, एल.एल.बी. निवासी : उज्जैन (मध्य प्रदेश) रुचि : आपकी बचपन में व्यायाम शाला में व्यायाम, क्षिप्रा नदी में तैराकी और शिक्षा अध्ययन के साथ कविता, गीत, नाटक लेखन मंचन आदि में ग...
पसंद हैं मुझे भी कुछ खास
कविता

पसंद हैं मुझे भी कुछ खास

सौ. निशा बुधे झा "निशामन" जयपुर (राजस्थान) ******************** किसी क्या 'फर्क' पड़ता है। क्या! पसंद हैं मुझे खास। बोलना पसंद है। पर चुप रहती आजकल। सोचती हूँ सह जाऊँ दर्द वो जमाने के, पर क्या? करू वो भी तो अपने हैं खास पसंद में शामिल है। आज नदी, पर्वत, मंद-मंद हवा ये सब बेचेन है। शोर बस मेरा 'मौन' हैं! लिख देती हूँ। कलम में भी तो आवाज़ हैं। हलचल! अब कुछ कम है। अब यहीं 'मुझे पसंद है। चारों ओर से आ रहीं कुछ अनकही बातें, जो न मैने कहीं और न उसने सुनी वो बातें। फिर फिर! क्यों गरज रहें अपवादों के सायें ये भी क्या? सही बात है। पसंद हैं अपनी फिर क्यों! होती इसी बात पर रोज तकरार हैं। परिचय :- सौ. निशा बुधे झा "निशामन" पति : श्री अमन झा पिता : श्री मधुकर दी बुधे जन्म स्थान : इंदौर जन्म तिथि : १३ मार्च १९७७ निवासी : जयपुर (राजस्थान) ...
बीते पल
कविता

बीते पल

निकिता तिवारी हलद्वानी (उत्तराखंड) ******************** बीते पल याद करने में बेचेन हो उठती हूँ सुख और दुख दोनों से गुजरती हूँ सुख ये कि भाग्यवान होंगी जो उस खुशी के पलों में शामिल थी पर उस खुशी से भी ज़्यादा दुखी तब जब खुशी की बात पर सोचती की मैंने यह क्यों नहीं किया? ठोड़ा समय और क्यों नहीं बीताया? अन्त अफशोश करती क्योंकि पता है मुझें वह समय मेरे लिए दुबारा लौटकर नहीं आएगा परिचय :-  निकिता तिवारी निवासी : जयपुर बीसा, मोटाहल्दू, हलद्वानी (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
सपने में स्वप्न देखती हूँ
कविता

सपने में स्वप्न देखती हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सपने में स्वप्न देखती हूँ, एक दृश्य जिसमें पीड़ा, घुटन और विरक्ति, कहीं कहीं उन्माद है, गहरी खामोशी है ! मैं मेरे विचारों से टकरा रही हूँ ! सपने में जो भी साथ दे, मैं खुद को उसका आभारी समझूँगी, सपनों का विचारों का द्वंद बढ़ता जा रहा है, फिर भी मैं भयभीत नहीं हूँ, हारी नहीं हूँ ! किसी प्रकाश की चाहत है, मुझे खोने का, टूटने डर नहीं है ! अचानक सपने में उम्मीद की किरन से भर उठती हूँ, एक प्रार्थना के शब्द कानो में फुसफुसा रहे है, क्यूँ स्वयं के अस्तित्व को गले लगाना मोह में उलझना, अचानक जाग जाती हूँ, पुनः विचारों में उलझ जाती हूँ, स्वयं से प्रश्न पूछती हूँ, ये स्वप्न था या कोई दुःस्वप्न क्या है ये स्वयं का अस्तित्व, क्या है मोह?? स्वप्न अधूरा है, या अर्थ? सोच को दृढ़ ...
चंपा का फूल
कविता

चंपा का फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चंपा के फूल जैसी काया तुम्हारी मन को आकर्षित कर देती जब खिल जाती हो चंपा की तरह भोरे .तितलियों के संग जब भेजा हो सुगंध का सन्देश वातावरण हो जाता है सुगंधित और मन हो जाता मंत्र मुग्ध। जब सँवारती हो चंपा के फूलो से अपना तन जुड़े में, माला में और आभूषण में लगता है स्वर्ग से कोई अप्सरा उतरी हो धरा पर। उपवन की सुंदरता बढ़ती जब खिले हो चंपा के फूल लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर लगे हो चन्दन की टीके सुंदरता इसी को कहते बोल उठता हूँ - प्रिये तुम चंपा का फूल हो। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...