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पद्य

आने की आहट का डर
कविता

आने की आहट का डर

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब डॉ. ने गर्भवती महिला को बताया कि आने वाला शिशु एक लड़की है, तब बेटे की चाह रखने वाली माँ का चेहरा उतर गया और वह उदास हो गई। इसका शिशु पर क्या असर पड़ा होगा? सुनिए उसकी व्यथा कथा... हे माँ! मेरे आने की आहट से तू उदास हो गई! क्या हो गया तुझे? तू किन ख्यालों में खो गई? अभी तो एक अनकही कहानी हूँ मैं, तुम दोनों के प्यार की निशानी हूँ मैं । सोचा था कि मैं तुम्हारी तमन्ना की तान हूँ ममता से भरी तुम्हारी लोरी का गान हूँ। पर तुम्हारी उदासी ने मुझे आहत किया है, रूढिवादिता का मेरे दिल पर आघात किया है। मैं तो तुम्हारी माँ बनने की पूर्ण हुई अर्जी हूँ, स्वयं तो कुछ नहीं मैं, ईश्वर की मर्जी हूँ। पर माँ अब ऐसा लगता है कि तेरी कोख भी मेरे लिए पराई है, लोग तो क्या कहेंगे तूने तो खुद ही पूछ लिया मुझसे कि तू इ...
रग-रग के लहू से लिख्खी है
ग़ज़ल

रग-रग के लहू से लिख्खी है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** रग-रग के लहू से लिख्खी है हम अपनी कहानी क्यों बेचें। हर लफ़्ज़ अमानत है उनकी वो अहद-ए-जवानी क्यों बेचें।। ये गीत ही तो बस अपने हैं हमको जो किसी ने बक्से हैं। तुम दाम लगाने आए हो हम उनकी निशानी क्यों बेचें।। फ़नकार को जो कुछ देकर खुद नोटों से तिजोरी भरते हैं। हम ऐसे दलालों के हाथों वो याद पुरानी क्यों बेचें।। लफ़्ज़ो में पिरोयी हैं यादें जो जान से हमको प्यारी हैं। क़ीमत ही नहीं जिनकी कोई घड़ियां वो सुहानी क्यों बेचें।। शोहरत के लिए बिकने से तो गुमनाम निज़ाम अच्छा यारों। बेबाक क़लम है अपनी ये हम इसकी रवानी क्यों बेचें। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
कुण्डलियाँ छंद
कुण्डलियाँ, छंद

कुण्डलियाँ छंद

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** कुण्डलियाँ/दिठौना १ लगा दिठौना माँ मुझे, ले जातीं बाजार। और दिलातीं हैं वहाँ, चुनरी गोटेदार।। चुनरी गोटेदार, खिलातीं रबड़ी हलुवा। ललचाते हैं देख, मुरारी मोटू कलुवा।। बोलीं वह पुचकार, खरीदो एक खिलौना। माता का यह लाड़, सहेजूँ लगा दिठौना।। २ लगा दिठौना देख कर, करते सब उपहास। बोल रहे हैं सब मुझे, मत आना तुम पास।। मत आना तुम पास, न कोई रंगत गोरी। मोटा- सा है गात, सभी करते बरजोरी।। सुन कर मेरी बात, उतारें माँ धड़कौना। लिया बलैयाँ खूब, दुबारा लगा दिठौना।। कुण्डलियाँ/पैसा ३ पैसे दो अम्मा मुझे, जाऊँगी बाजार। लेने गुड़िया के लिये, लहँगा गोटेदार।। लहँगा गोटेदार, सितारे सलमा वाला। चुनरी होगी लाल, गले की लूँगी माला।। गजरा लाऊँ श्वेत, सजेगी चोटी ऐसे। जैसे चंदा रात, मुझे दो अम्मा पैसे।। ४ पैसे के बल पर बसे, बेटी का संसार। आँखों में सपने लिये, बाप खड़ा लाचार।। बा...
रक्कासा
कविता

रक्कासा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** सजी है महफ़िल कोठे पर इश्क़ के प्यासे हुस्न के दीवाने जमा हो रहे कोठे पर। भूख से तड़पते दवा के लिए रोते अपने मासूम के लिए माँ नीलाम हो गई कोठे पर। आँसुओं में डूबे घुँघरू बजना करते है शुरू होशमंदो की उलटबाँसी में ममता फँसी है बेबसी में दूध रोटी के सवाल पर रक्कासा नाच रही कोठे पर। बहते आँसुओं को अदा समझ वाह वाही कर रहे नासमझ चिल्ला रहे सिक्के उछाल कर पड़ रहे चांटे गुरबत के गाल पर रक्कासा नाच रही कोठे पर। सितार सिसक रही तबले पर उदासी छा रही हारमोनियम रो रही बिखरे पड़े है फूल मोगरे के कुचले हुए जमीन पर रक्कासा नाच रही कोठे पर। उजाले के पीछे कौंन देखे अंधेरा जरूरतों ने जिंदगी को आ घेरा जिंदगी तेरा हर फैसला कबूल मत रो याद कर के अपनी भूल मैंने जीना सिख लिया है आंसू पीना सिख लिया है चमकते जो किरदार उजाले में वही चेहरे चले आते है स्याह रात में यहाँ...
कुछ पूछना है तुझसे
कविता

कुछ पूछना है तुझसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कुछ पूछना है तुझसे मां, कितने ही कष्ट उठाये हैं, मुझको जो जन्म दिया है, वो दर्द दिल में छुपाये हैं। कुछ पूछना है तुझसे मां, कैसे मुझको दिया सहारा, खुशी भुला डाली अपनी, बस तुझको मैं लगा प्यारा। कुछ पूछना है तुझसे मां, कैसे वे उपकार उतारूंगा, हजारों जन्म ले लेकर के, बस तेरा ऋण उतारूंगा। कुछ पूछना है तुझसे मां, एक बार मुझे दर्शन देना, मुझको तुम यूं छोड़ गई, मुझे भी अपने साथ लेना। कुछ पूछना तुझ से तात, कैसे पालपोष पढ़ाया है, दिनरात एक कर कमाया, वो राज तुमने छुपाया है। कुछ पूछना तुझसे पिता, कितनी देर तुम सोते थे, मेरे कष्टों को देख देख, तुम घुट घुटकर रोते थे। क्यों छोड़ गये मुझे पिता, बस तुझसे यही पूछता है, जैसे बचपन में रूठा था, एक बार वैसे रूठता हूं। कुछ पूछना तुझसे भाई, तुमने भी राह दिखाई है, कभी अपने संग रखा है, कभी भूख मेर...
पीड़ा की हांडी
गीत

पीड़ा की हांडी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** उबल रही पीड़ा की हांडी, घर के कोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।। फटी हुई किस्मत की पत्तल, पर चावल पसरे। दाल मित्रता करके जल से, दिखलाती नखरे।। नमक मिर्च ने हाथ बटाया, जादू टोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।१ चिन्ता के उपलों ने धुआँ, ठूँस दिया घर में। रोगी चूल्हा खाँस खाँस कर, दुबका बिस्तर में।। घात लगाकर बैठा है घुन, स्वर्ण भगोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।२ सुख की सँकरी पगडंडी पर, है भव के बंधन। दूध दही घी से तर पत्थर, घर भूखें नंदन।। सुख मिलता ढोंगी संतों को, दुखड़े बोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में ।।३ माल मुफ़्त का खा पघराये, कुर्सी एसी में। हम तो अपनी जान लुटाते, सस्ते देशी में।। 'जीवन' उल्टा सुख दोनों का, मन भर सोने में। मिला दर्द का हिस्सा ...
करते जो खुद पर विश्वास
कविता

करते जो खुद पर विश्वास

सपना दिल्ली ******************** करते जो खुद पर विश्वास रचते वे  ही नया इतिहास... बिना फल की इच्छा करे कर्मों पे हो अटल विश्वास धरती ही नहीं अंबर छू लेने का जिनके मन में  बुलंद अहसास रचते वे ही नया इतिहास... छोड़ उम्मीद दूसरों से रखते खुद पर अटल विश्वास नहीं रुकते किसी के कहने पर डराता नहीं उन्हें कोई उपहास कर अपने पर विश्वास राह में मिलें चाहे फूल चाहे कांटे बिना रुके बिना थके लक्ष्य पथ पर बस आगे ही बढ़ने की बात रचते वे ही नया इतिहास..... देख दूसरों को संकट में सहारा जो उनका बनते भूखा रहकर खुद भूख दूसरों की मिटाते खुद से पहले देश की चिंता बताते मातृ भूमि की रक्षा करने को जो रहते हर दम तत्पर ख़ास रचते वे ही नया इतिहास.... लालच नहीं जिनके मन में कुछ भी झोपडी़ में रहकर भी महल समान सुख का जीवन बीताते कर्मों पर कर विश्वास जो अडिग रहे उनका ही फैला प्रकाश रचते वे ही नया इतिहास...। परिचय :- सप...
वो पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े
कविता

वो पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े

अलका जैन (इंदौर) ******************** वो पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े जिन्हें हम सितोलिया पुकारते उन सात पत्थर की कीमत अनमोल जब मुल्याकं किया बुढ़ापे में आदमी ने वो महफ़िल जो बेमक़सद सजती रही मेरी आपकी हमारी चोखट पे आये दिन जिन महफ़िलो में फजीते रहते थे खाने के जिन महफ़िलो में लिबास को तवज्जो नहीं वो शुद्ध यारी दोस्ती की महफ़िल अनमोल याद आते हैं वो दिन अनमोल यारी दोस्ती यार के एक आवाज पर जान देने की आरजू वो सिगरेट के छोटे छोटे खश खींचना चुपके वो दारु पीने की जुगाड करना चुपके चुपके वो हसीना को बेवजह घूरना फिरके कसना वो बेफिक्री जाने किधर गुम गई जिंदगी से वो पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े सितोलिया जिंदगी तेरा कही ख़तम अब मृत्यु बुला रही है सितोलिया परिचय :- इंदौर निवासी अलका जैन की शिक्षा बी.एससी. है, शायरी के लिए आप गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हैं और मालवा रत्न अवार्ड से नवाजी गईं हैं, फर...
यक्षप्रश्न गहरे हैं
कविता

यक्षप्रश्न गहरे हैं

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** तेरे नैनों की भाषा को अब तक कोई समझ न पाया, डूब गया हूँ जबसे मैंने इनके तट पर पाँव धरे हैं।। मौन मुखर होने को आतुर सौ संसृतियों के उद्भव का, परिलक्षित स्वरूप होता हर एक असम्भव का, सम्भव का; जाने क्या काला जादू है इनमें, जिसे देखकर अबतक जाने कितने चाव अधूरे इनकी पाँखों में ठहरे हैं।। सागर सी गहरी आँखों में आसमान की ललक जगी है, सपनों के मूंँगे-मोती से अपनों की हर पलक पगी है: कितनी मनुहारें इनके तट पर आकर डेरा डाले हैं, अवचेतन मन के फिर भी जाने कितने कठोर पहरे हैं।। पछुआ के झंझावातों ने पीछे कितनी बार धकेला, पुरवाई ने दिये निमंत्रण देखा जितनी बार अकेला; अमराई की छाँह न सोची, दोपहरी का घाम न देखा, प्रेम पियासे पागलपन के देखा यक्षप्रश्न गहरे हैं।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली ...
सुन बापू .. तेरे देश में
कविता

सुन बापू .. तेरे देश में

शिवांकित तिवारी "शिवा" सतना मध्य प्रदेश ******************** सुन बापू .. तेरे देश में, आम आदमी आम नहीं हैं, ईश्वर,अल्लाह, राम नहीं हैं, सत्य,अहिंसा कहीं नहीं है, नियत हमारी सही नहीं है, बेटी हमरी सेफ नहीं है, नेता कहते रेप नहीं है, ठगते है ढोंगी जनता को, बाबाओं के भेष में, सुन बापू .. तेरे देश में, रोज़गार का नाम नहीं है, फसलों का भी दाम नहीं है, करने वाले लाखों है पर, मिलता उनको काम नहीं है, अंग्रेज़ी में बात कर रहे है, हिन्दी का अब ध्यान नहीं है, भाई - भाई करे लड़ाई, अब तो ईर्ष्या द्वेष में, सुन बापू .. तेरे देश में, अपराधी को जेल नहीं है, अपराधों पर नकेल नहीं है, नोचा,खरोंचा और जलाया, बेटी है कोई खेल नहीं है, गांधी जी के तीनों बन्दर, का आपस में मेल नहीं है, ख़ून चूस जनता का नेता, करते है ऐश विदेश में, सुन बापू .. तेरे देश में, जीवन में रफ़्तार नहीं है, अपनों में भी प्यार नहीं है, मरन...
मैं एक पौधा हूं
कविता

मैं एक पौधा हूं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ खाद उर्वरक की कमी से गुजरा हूँ मरूभूमि की खजूर सा लंबा शरीर वाला मतवाला हूँ ताड़ सा शब्द ब्रह्म का नशा देने वाला हूँ अगर मेरे नशा को पीकर कोई बनता मतवाला हो कल्पना की महानद मे गोता लगाने वाला हो आ जाए मेरे पास मैं वह परम तत्व देने वाला हूँ अप्प दीपो भव का वैराग्य देने वाला हूँ किसी बुद्ध की खोज में बेसहारा हूँ बोधि वृक्ष मैं बन पाऊं ऐसी मेरी कामनाएं है भावनाएं हैं मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ पूनम की सर्द रात्रि में सत्य देने वाला हूँ शांति सौभाग्य का छाहँ देने वाला हूँ हर दिलो में है दुखों के गागर भरे मैं पी रहा हूं ग़मों के प्याले ने धीरे धीरे शून्य से उतर कर आ रही है सुजाता पुनः अमृत रूपी खीर की थाली लिए धीरे-धीरे परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण ...
पुस्तकें
कविता

पुस्तकें

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** जीवन का आदर्श, जीने का अंदाज, बच्चों में नव निर्माण, आदमी को इंसान, आदाब जिंदगी के सिखाती है पुस्तकें। राह दिखाती भूले को, तकदीर बनाती भटके की, लक्ष्य प्राप्ति तक पहुंचाती है पुस्तकें। गुणों का भंडार चरित्र का निर्माण , संस्कारों की खान, सद्गुणों का आधार, लाभ ही लाभ प्रदान करती है पुस्तकें। गमों को भुलाती, खुशियों को बढ़ाती जीत की हार की आज की कल की, कहानियां प्यार की होती है पुस्तकें। वाणी की मिठास, कवियों व संतो की जान, अनुभव से आभास, चंचल मन को शांत, सबसे अच्छा दोस्त होती है पुस्तकें। भाषा का ज्ञान ,कुछ नया ख्वाब, प्रेरणा का स्रोत, एकांत का साथी, मनोरंजन का आनंद करवाती है पुस्तकें। मैं हूं पुस्तक, किसी का सवाल, किसी का जवाब, ज्ञान का भंडार, ज्योति का पुंज, भवसागर से पार करवाती है पुस्तकें। परिचय : सुनीता पंचारिया शिक्षिका ...
वतन महान के लिए
कविता

वतन महान के लिए

रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) ******************** हैं सभी समान एक ज्ञानवान के लिए। मानता सदैव ईश के विधान के लिए। वक्त की पुकार है कि भेदभाव भूलकर, भारतीय एक हों वतन महान के लिए। कौन व्यक्ति है सही कृतित्व देखिए सदा, एक वोट खास है सही रुझान के लिए। राष्ट्र के हितार्थ अब कदम बढ़ें रुकें नहीं, शंखनाद कीजिए नये विहान के लिए। सोचिए कि देशद्रोह-रोग क्यों पनप रहा, खोजिए उपाय रुग्णता निदान के लिए। हौसले बढ़े रहें भले दुरूह मार्ग हों, कष्ट भी सहें अनेक कीर्तिमान के लिए। आन-बान-शान का हमें सदैव ध्यान हो, 'रवि' करें सदैव श्रेष्ठ कार्य मान के लिए। परिचय :- रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' निवासी : कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) * २००५ से सक्रिय लेखन। * २०१० से फेसबुक पर विभिन्न साहित्यिक मंचों पर प्रतिदिन लेखन। * विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित। * लगभग १० साझा संकलनों में ...
समर्पण
कविता

समर्पण

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ भवानी तेरी पुत्री, मान तेरा बढ़ायेगी। भाल सिंदूर चढ़ाकर के, शत्रु का संहार करेगी। आज किया सुहाग समर्पित, करूँ कल आत्मज अर्पित। कर्तव्य कर्म से हो मन हर्षित, श्रद्धा, निष्ठा हो द्विगुणित। कर के कंगन से अस्त्र बनाकर, ध्वस्त करूँ आतंक के घर। तेरे मान के बलिदानों पर, समर्थशील सबला बनकर। तुझे रक्त तिलक करुँ । तेरा ही प्रतिबिम्ब बनूँ। आततायी का मरण करुँ। सर्वस्व तुझे समर्पित करूँ। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा समिति कि सामाजिक कार्यकर्ता एवं श्री अरविन्द सोसायटी कि सदस्य व श्री अरविन्द समग्र शिक्षा अनुसन्धान केंद्र के अन्तर्गत नव विहान शिक्षा अकादमी कि पूर्व संचालिका। रूचि : अध्ययन, सृजन, श्र...
जय जवान! जय किसान!
कविता

जय जवान! जय किसान!

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** जय हिंदुस्तान! जय किसान, आप हो भारतवर्ष की शान। आबाद रहे सदा देश हिंदुस्तान, हरा-भरा रहे सदा खेत-खलिहान। किसान को कर्ज लेने की नौबत न आये कभी, सुखी, खुशहाल व सम्पन्न किसान हो जाये सभी। किसानों को समय से सही कीमत में बीज व खाद मिले, जिससे खेतों में समय से बोकर किसान का चेहरा खिले। लहराती फसलों को देख हर किसान खुशी से झूम उठे, बदहाली व भूखमरी से हमेशा-हमेशा के लिए पीछा छुटे। देश किसानों के लिए ऐसी कृषि विकास की योजना लाये, जिससे किसान की हालत अच्छी हो एवं आय बढ़ जाये। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
भारत के पूत
कविता

भारत के पूत

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बहुत सो चुका मत लेटा रह आँखे मूंदे भीतर बाहर से ललकार रहा शत्रु तुझे मृत्यु खड़ी है द्वार पर। मृत्यु का तांडव होना जब निश्चित है कायर बन मृत्यु का वरण कर माँ की कोख क्यो करना चाहता है कलंकित चल शत्रु पर वार कर। उठ खड़ा हो ले शमशीर हाथों में दे कर अपना लहू कर रक्षा मातृभूमि की गायेगी तेरी शौर्य गाथाएँ जनता हिन्दुस्थान की लिख नया इतिहास अरिहंत अरि का अंत कर। लड़ ऐसा जैसे लड़े थे वीर गोविंद, शिवा और प्रताप गीदड़ की मौत मरने से अच्छा है, लड़ मरे केसरी की भांति रणभूमि पर। तू अकेला नही सम्पूर्ण राष्ट्र तेरे साथ है याद कर अपने इतिहास को इतिहास कायरों का नही लिखा जाता है, लिखा जाता है विरो का, रणबांकुरों का लाल बाल और पाल का होती है माताएं धन्य अपने लालो पर। तू भूल रहा लड़ी थी तेरी माँ तुझे अपनी पीठ पर बांधे झांसी में, रोक न पाए थे, शत्रु के परकोटे ...
ज़िंदगी…”एक मधुशाला”
कविता

ज़िंदगी…”एक मधुशाला”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चकाचौंध हैं मदिरालय में, बरपाते हंगामा हमप्याला, खींचतान पैमानों का ज़ोर, बिखर रही हैं जीवन हाला, बन साकी वो भटक रहा हैं, ख़ातिर औरो खुद को भूला, भर-भर मधुघट हैं पिला रहा, पर कम ना होती तृषा हाला... छलक रहे पैमानें फिर क्यू, रिक्त रहा है उसका प्याला? बज़्म भरी हैं रिंदों से पर, हैं तन्हा क्यू वो मतवाला? घुट घुट सब पी रहे पर, बुझती नही उर की ज्वाला, और और का शोर चहु ओर, रहा प्यासा क्यू फिर मतवाला? मन्दिर भटका मस्जिद छाना, कहलाया तब भी पीने वाला, लाख जतन किये समझाने को, उतरीं नही पर मन से हाला, उफ़न रही जीवन वारुणी, पर अब शेष रहा ना कुछ पीने को, ज्ञान सुरा के दो घुट लू चख मैं, मिल जाये कही "निर्मल" मधुशाला... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : ...
मेरी दीवानगी
कविता

मेरी दीवानगी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** मेरी दीवानगी हद से परे गुजरने लगी है प्यार तुझसे दीवार किसी की गिरने लगी है चलते गये उन राहो पर जहां महक तेरी हे देखा रकीबो के राहें अब फिसलने लगी है मेरे ख़्वाब मे आना मुमकिन नही ओर का शब होते -होते नींदे मेरी सिमटने लगी है मै भी सूरत तेरी देख कर इतराने लगा सामने तेरे आइने की चमक मिटने लगी है मै खामोश था तो क्या हो गया अब आसमां से सूरत पर बिजली पड़ने लगी है हर शाम मेरी सिन्दूरी बने साथ "मोहन" प्यार की वो बरसात अब बरसने लगी है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच...
किसान
कविता

किसान

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** दुनियाँ का जो पेट भरता। वो सच्चा सेवक किसान है।। सरदी-गरमी को जो सहता। वो भारत का किसान है।। उसकी मेहनत रंग लाती। जब खेत मे होता धान है।। बिजली-पानी की कमी से। हताश हो जाता किसान है।। कभी सुका कभी ओला। मुश्किल मे रह्ता किसान है।। कष्ट सह-सह श्रम करता। सच्चा देश भक्त किसान है।। कर्ज तले जब दब जाता। खुद भूखा सोता किसान है।। पुरे मिलते नही फसल के दाम। मजबूरन संघर्ष करता किसान।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
किसानों के हमदर्द
कविता

किसानों के हमदर्द

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। हम जय जवान जय किसान कहेंगे शान से। आते हैं हम भी हलधरों के खानदान से।। प्यारे हैं सभी आप हमें अपनी जान से। परखेगें मगर अपने ही चश्मे से ज्ञान से।। कबत क कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। कीचड़ से निकालेंगे करो मत उधम, सुनो। खेती परंपरा की नहीं रखती दम, सुनो।। मत रोको रास्तों को नहीं हम भी कम सुनो। कानून को हाथों में न लो बन अधम सुनो।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। तुम टूट चुके क्या करोगे और बिखर कर। रोते रहे कम कीमतों को ले इधर-उधर।। खेती नहीं है लाभ का धंधा चलो शहर। पक्के मकान देंगे तुम्हें चैन उम्र भर।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। ...
संबल देते रहो।
कविता

संबल देते रहो।

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मुझे तुम धैर्य बंधाते रहो, जुगनुओं की तरह ही सही, रौशनी हमको देते रहो। हम कठिन मार्ग पर चल सके, ऐसा विश्वास देते रहो। ये तो माना तूफान हैं, पंथ मे लाख व्यवथान है, पैर ठहरे न इनके लिये, तीव्र गति इनको देते रहो। ये अंधेरा घना हो रहा, पलक मूंदे ये जग सोता रहा, पल रूकेगा न इनके लिये चेतना इनको देते रहो। ये हवा तो विषेली हुई, बूँद भी तो नशीली हुई, प्राण घातक है इनके लिये आस्था इनको देते रहो। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान स...
देश प्रेमी पथिक
कविता

देश प्रेमी पथिक

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम पथिक हूं अच्छे दिल का, प्रेम राह पर चलता हूं। कांटो की परवाह नहीं है, नहीं किसी से डरता हूं। तेरा सच्चा प्रेमी हूं मैं, तुम पर मैं तो मरता हूं। सारी दुनिया से लड़ने की, हिम्मत मैं तो रखता हूं। प्रेम पथिक हूं देश प्रेम का, प्रेम देश से करता हूं। मातृभूमि भारत का अपने, हर पल सेवा करता हूं। मानवता का पाठ पढ़ाता, गीत देश का गाता हूं। प्रेम कहानी मैं भारत का, सबको खूब सुनाता हूं। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन्म : १० जनवरी १९८८ सम्प्रति : शिक्षक- स्पर्श राजकीय बालिका इंटर कालेज गोरखपुर, लेखक, कवि। निवासी : नौसढ़, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा
ग़ज़ल

क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा। वो हवाओं की तरह छुप के गुज़र जाएगा। फूल की तरहाँ रहेगा अगर जहाँ में वो, हाथ लगते ही यहाँ पल में बिखर जाएगा। ये शरारत है सभी उसकी की गई लेकिन, इसका इल्ज़ाम किसी और के सर जाएगा। रास आ जायेगी जब फिर से हर खुशी उसको, तब से दिल उसका सभी ग़म से उभर जाएगा। जितनी यादों को बसा रखा है उसने दिल में, उनका चेहरा उसकी आँखों मे उतर जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
किसान
कविता

किसान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। जब बंजर धरती पे, अपनी मेहनत के हल से लकीरें खींच जाता है। हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। कभी स्थितियों से कभी परिस्थितियों से, दो-दो हाथ कर जाता है। वो पालता है, पेट सबके। खुद आधा पेट भर के, मुनाफाखोरी के आगे, हाथ-पैर जोड़ता रह जाता है। हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। जो जीवन को जीवन देता है। सबको अपनी मेहनत से ऊचाईयां देता है। उसकी महानता को, अगर समझें होते। कर्ज में डूबे किसान, फांसी पर यूं न चढ़ें होते।। आज अनशन लेकर, सड़कों पर क्यों खड़े होते। दीजिए सम्मान, उसे......जिस का हकदार है। वह धरा पर, जीवन धरा का प्राण है। डॉक्टर, इंजीनियर .....बनने से पहले, जीवन देने वाला है। अमृत सदृश रोटी हर रोज देने वाला है।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
आरक्षण और नहीं
कविता

आरक्षण और नहीं

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "आरक्षण और नहीं" से मैं सहमत नहीं! आरक्षण होना ही चाहिए मांँ की कोख में... कन्या-भ्रूण का! ताकि बीमार मानसिकता के लोग स्खलित ना कर दे उसे वहां से! सरसियों से खींच उसका सर धड़ से विच्छिन्न कर फेंक ना दें कूड़ेदान में!! कैंचियों से काट उसका अंग-प्रत्यंग बड़ी निर्ममता से गिरा न दे... अवांछित कचरे के डब्बे में!!! हर एक माँ-बाप और दादी-दादा बुआ चाची नानी के मन-मस्तिष्क में भली-भांँति बिठा दो यह बात कि सृष्टि वाहिनी कन्या का जन्म परम कल्याणकारी है! घर समाज राष्ट्र और जगती के लिए!! आरक्षण होना ही चाहिए कन्या शिशु के जन्म का! परम पावन आह्लादित मनसे: जननी कन्या का आह्वान करो! उसके प्रादुर्भाव का स्वागत करो!! दोनों बाहें पसार हर्षित नयन!!! आरक्षण होना ही चाहिए कन्या के राजकुमारों से लालन-पालन का... मांँ-बाप की यथाशक्ति! उसकी समुचित शिक्षा-दीक्षा क...