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पद्य

जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अगर जिंदगी है तो मुश्किलें आती रहेंगी, अगर आगे बढ़ना है तो मुश्किलें आती रहेंगी... जैसे नदियां बहती जाती है, पर्वतों को काटकर, जैसे सूरज निकलता है रोज, अंधेरे को मिटाकर।। जैसे चंदा बढ़ता पूनम को, अमावस को पारकर, वैसे ही मन्ज़िल को पाना है, तो मुश्किलों को हराकर।। हार कर यूं बैठ जाना किसी समस्या का हल नहीं, ऐसे मुश्किलों से घबराना, जिंदगी का मक़सद नही।। थककर बैठने वालों को मंजिल कहा मिलती है, और कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती है।। अगर जिंदगी है तो मुश्किलें तो आती ही रहेंगी, तू मुश्किलों का सामना कर, और कर्म पथ पर बढ़ता चल, बढ़ता चल।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी...
आँसू
कविता

आँसू

ममता रथ रायपुर ******************** बड़े मासूम से होते है आँसू मेरे दोस्त दिखते है मोतियो से पर पानी से होते है दुख हो या सुख, भावनाओं के रूप मे बहते है कह जाते है वो भी जो बातें अनकहे होते है जीवन के सूनेपन मे ये दोस्त बन जाते है आँखों से ये पतझड़ के पत्तों के तरह गिरते है आँसू की बरखा मे जो भीगते है वही जीवन का मधुर गीत सीख पाते है बहुत तकलीफ देते है वो जख्म जो बिना कसूर के मिलते है परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
आत्म चिंतन सूत्र
कविता

आत्म चिंतन सूत्र

संजय जैन मुंबई ******************** चार रोटी हजम कर लेते हो तो। किसी की चार बातें भी हजम करना सीखो। कह गये कड़वे शब्दो पर मौन रहकर विचार करो। और समय का इंतजार करो उन्हें अपनी की करनी का फल इसी भव में मिल जायेगा। इसलिए अपनी शक्ति को यू ही बर्बाद मत करो।। अमीरी दिलसे होती है धन से नहीं। सुखकी प्राप्ति दान से होती है धन संग्रह से नहीं। पाप की नींव पर पुण्य का महल खड़ा नहीं होता है। इसलिए धर्म को चुने और परिग्रह से बचे।। कोई भी संकट मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं। हारा वही, जो संकट से लड़ा नहीं। इसलिए अपने कर्म पर यकीन करो। और वेबजह की चिंता करना तुम छोड़ दो।। धन से सुविधायें तो जुटाई जा सकती हैं। किंतु आत्म सुख सन्तोष नहीं। क्योंकि साम्राज्य की अपेक्षा सम्यग्दर्शन अधिक मूल्यवान है। इसे प्राप्त करने की अपने जीवन में कोशिश करो।। जितने की आवश्यकता है उतने का उपयोग करे। बाकी का उन्हें दे जिन्हें ...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है! ऐसा हर घर वो खाल...
मुश्किल राहें
कविता

मुश्किल राहें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मुश्किल राहे लग रही, आज बनी हालात, कहीं किसान आंदोलन, चलती दर्द बारात, नहीं पता किस मोड़ पर, ले जाएंगी ये राहें, बैर भाव सब त्याग दो, देश फैला रहा बांहें। मुश्किल राहें लग रही, युवा खड़ा है दोराहे, उल्टी सीधी बातें करे, होकर खड़ा चौराहे, युवा वर्ग के चेहरे पर, चिंता की लकीरें है, चलना चाहिए तेज गति, चलता धीरे-धीरे है। मुश्किल राहें आज हैं, रोजगार है बदहाल, चपड़ासी की नौकरी, लाखों बजा रहे ताल, बेरोजगारी, भुखमरी, दे रही जमकर दुहाई, आज गर बदहाल है, भविष्य का क्या हाल। मुश्किल राहें लग रही, भविष्य की इंसान, छोटी उम्र में जा रही, देखो जान पर जान, फास्ट फूड और मांसाहार, बना खास खाना, दूध, दही, घी,मक्खन, किसी ने न पहचाना। मुश्किल राहें लग रही, निर्धन जन संसार, नंगे भूखे मर रहे, उनको दो रोटी से प्यार, गरीब गरीब बन रहा, नहीं दे रहा है...
नूतन वर्ष
कविता

नूतन वर्ष

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बिखेरीं रश्मियां रवि ने, करो स्वागत सभी मिलकर। उषा की लालिमा सा तेज, बिखराओ कहे दिनकर।। अमावस निशि स्याह चाहे, चांद पूनम उजाला है। अटल हैं यह समझ लो तुम, प्रकृति का क्रम निराला है।। ना होता चाहने से कुछ, अथक श्रम तो जरूरी है। सफलता फिर कदम चूमे, हर एक अभिलाष पूरी है।। करो तुम कर्म अपना बस, नहीं चिंता करो फल की। समय खुद पथ-प्रदर्शक है, न यह चर्चा किसी बल की।। करो आगाज वर्ष नूतन, विचारों के नए किसलय। नयी सुर तान छेड़ो फिर, रखो गतिमान जीवन लय।। जा बेटा है तुझे सलाम।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
बेवजह रोने की वजह बता
ग़ज़ल

बेवजह रोने की वजह बता

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बेवजह रोने की वजह बता मत छुपा घुटन बता बता जुल्म सहता ही चला गया कोई है जो इसकी खता बता वो जिया सिर्फ तेरी आस में वादा पूरा किया तूने बता बता नाजुक होती है यकीन की डोर तुझ पर किया यकीन खता बता किसी से इतना न खेलिए जनाब मौत पूछने लगे उसका पता बता टूट टूट के बिखरा, धैर्यशील, वो पूछे क्या बचा है बता बता परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
मन का गीत
कविता

मन का गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** दृश्य सुहाने देख-देखकर, राहों में ही अटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। मन पर निर्भर हैं अच्छे फल, मन से सब कुछ संभव है। मन से होती महा विजय है, मन से सुख है वैभव है। जीवन की सब गतिविधियों में, मन निर्णायक घटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। कभी इधर है कभी उधर यह, रहता है बेचैन सदा। आवारा बन घूमा करता, तन में रहता यदा-कदा। धरती से नभ तक हर पल ही, विचलित होकर सटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। मनमानी करता अक्सर मन, कभी नहीं मेरी सुनता। अपनी ही धुन में रहता है, जाने क्या-क्या है बुनता। पता नहीं क्या भाव सँजोए, मन चंचल नित मटक रहा। असमंजस में मेरा मन, गंतव्यों से भटक रहा। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
बसंत
कविता

बसंत

ममता रथ रायपुर ******************** नव जीवन का उपहार है बसंत भंवरे और कलियों की पुकार है बसंत धरती सजी है सरसों की पीली चादर ओढ़कर प्रकृति का यही श्रृंगार है बसंत कोयल की आवाज गूँज रही है वन में उसे सुन मन मे उठी झंकार है बसंत चारों ओर आम बौराया हुआ है महुआ की मादकता का नाम है बसंत परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
मैं सुगन्ध हूँ
गीत

मैं सुगन्ध हूँ

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** मैं सुगन्ध के झोंके जैसा, महक रहा हूँ गुलशन में। बसा हुआ हूँ मैं पुष्पों में, खिलती कलियों के मन में।। कैसे आया मैं फूलों में इसका मुझको ज्ञान नहीं, महकाता केवल दुनियाँ को और न जाता ध्यान कहीं, मैं बचपन के भीतर चहकूँ दहकूँ उफने यौवन में।.... भोर हुए नवजीवन पाता साँझ ढले मुरझाता हूँ, झरता है जब पुष्प डाल से कहाँ किधर खो जाता हूँ, रंगों से क्या लेना मुझको देना सीखा जीवन में।..... मेरे रूप हजारों महकें विदुर गुणी इन्सानों में, नहीं भूलकर रह पाता हूँ हैवानों शैतानों में, पाँखुरियों में घर है मेरा नहीं मिलूंगा कंचन में।.... मुझसे प्यार करो तो आओ अपना मुझे बना लेना, थोड़ी देकर जगह मुझे तुम अपने हृदय बसा देना, महका दूंगा अंतर्मन को गंध उठे ज्यों चन्दन में।... परिचय :-महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं ...
दरदर का बना दिया जिसको
ग़ज़ल

दरदर का बना दिया जिसको

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दरदर का बना दिया जिसको, बेघर वो मजा चखाएगा। धरने पर बैठा अब तक जो, हलधर वो मजा चखाएगा।। सर्दी की ठिठुरन से खेला, मौसम का कहर बहुत झेला। टप-टप टपका जो दर्दों का, छप्पर वो मजा चखाएगा।। खुरदरे वक्त के पत्थर ने, नादानो धार जिसे दी है। मिलते ही मौका देखोगे, खंजर वो मजा चखाएगा।। तूफान समेटे रहता है, मत खेलो गहरे दिल से तुम। उफना तो मातम पसरेगा, सागर वो मजा चखाएगा।। बच्चों की खुशियों के आगे, हर बाधा बोनी होती है। जो शपथ उठाई है उसका, हर अक्षर मजा चखाएगा।। जिद की सत्ता ने सड़कों पे, इतिहास लिखा खूँ से अक्सर। घायल दिल को जो चीरगया, नश्तर वो मजा चखाएगा।। अभिमान नहीं अच्छा होता, उड़ने वालों ना भूलो ये। पगड़ी जब जूतों में होगी, मंजर वो मजा चखाएगा।। कमजर्फ जिसे तुमने समझा, पर काट अपाहिज कर डाला। "अनंत" देखना तुम्हें कभी, बेपर वो मजा चखाएगा।...
माँ की दुआएं
ग़ज़ल

माँ की दुआएं

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** घर से सफर करने निकलना हो। माँ को जहन में रख निकला करो। विघ्न कभी ना आएंगे जिंदगी में। माँ की दुआएं ले विदा हुआ करो।। किस्मत से अगर माँ हम को है नसीब। सोते उठते माँ की जियारत किया करो।। माँ को धन-दौलत की नहीं है तलब। माँ खुश है, माँ को माँ कह पुकारा करो। जन्नत खुद-बा-खुद माँ के कदमों में है। ये मौका "नाचीज" कभी छोड़ा ना करो।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी मे...
जब हमारे नज़र आ गए
ग़ज़ल

जब हमारे नज़र आ गए

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जब हमारे नज़र आ गए। हम उधर से इधर आ गए। चोंकना उनका वाज़िब है, हम यहाँ बेख़बर आ गए। आसमाँ को भी झुकना पड़ा, जब इरादों को पर आ गए। फूल खिलते रहे राह में, हाथ में वो हुनर आ गए। एक आहट मिली गाँव की, हम शहर छोड़कर आ गए। राह तो दिख रही थी मगर, मन में डर इस क़दर आ गए। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
मन होता है चंचल
ग़ज़ल

मन होता है चंचल

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मन होता है चंचल अतः लगाम ज़रूरी है मधा से लो काम सुखद परिणाम ज़रूरी है दास मलूक की बातें छोड़ो मानो मेरी बात जीवन चलता रहे निरंतर काम ज़रूरी है नहीं रही सच्चाई मेहनत निष्ठा प्रासंगिक चरण पादुका पूजो तामो झाम ज़रूरी है धन दौलत हासिल करिए पर ये भी ध्यान रहे जीवन में कुछ काम मगर निष्काम ज़रूरी है क़ायम रहे विवेक हमेशा जीवन कठिन डगर जी भर करो प्रयास अभीष्ट अंजाम ज़रूरी है धर्म अर्थ औ काम नही बस लक्ष्य ज़िंदगी के हर विकृति से मोक्ष हेतु संग्राम ज़रूरी है तन तो तन है याद रहें ये पत्थर या स्पात नहीं नि:शेषण से बचने को विश्राम ज़रूरी है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता,...
रस्सियों पर झूमता नट यह बजट
गीतिका

रस्सियों पर झूमता नट यह बजट

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** रस्सियों पर झूमता नट यह बजट। बस टटोले वोट के तट यह बजट।।१ आम जन को है नहीं राहत कहीं, बस लगाता जेब पर कट यह बजट।।२ आय को करने कृषक की दोगुनी, खेत को ही कर गया चट यह बजट।।३ मात्र वेतन भोगियों के पेट पर, मारता है जोर से बट यह बजट।।४ बोझ लादे आमजन के पीठ पर, भर रहा धनवान के घट यह बजट।।५ फाड़ कर आंदोलनों की कापियाँ, कुर्सियों का लिख रहा हट यह बजट।।६ पक गए हैं खंजरों के खेत जो, दर्द की अब सुगबुगाहट यह बजट।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...
बेरहम दुनिया
कविता

बेरहम दुनिया

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दिल के ज़ख्म बड़े ही गहरे निकले सबकी तरह तुम भी गूँगे बहरे निकले। तुम ही तो थे गवाह मेरी बेगुनाही के तुम्हारी ज़ुबाँ पे सौ-सौ पहरे निकले। तुमपे किया निसार दिल-ओ-जाँ कभी तुमने दिये जो घाव हमेशा हरे निकले। इसीलिए ठहरा हुआ हूँ बेरहम दुनिया में वालिदैन के कुछ ख्वाब सुनहरे निकले। किरदार निभा रहे लोग यहाँ रंगमंच पे तन्हाई में आंख से कंठ तक भरे निकले। सीने में छिपाए बैठे हैं वो भी दर्द हजारों दुनिया की नज़रों में जो मसख़रे निकले। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक स...
बाल श्रम
कविता

बाल श्रम

सपना दिल्ली ******************** आओ मिलकर हम सब सुंदर भारत का निर्माण करें.... किसी बच्चे का दामन न छूटे अपने बचपन से रोंदे न कोई उसके सपनों को बाल श्रम के घन से कोई छीने न इनसे इनका भोलापन फिर न कोई छोटू मज़बूर हो दुकान पर दिन रात काम करता दिखे.... कड़कड़ाती ठंड में काँपते हाथों से लोगों को चाय बाँटता मिले .... ...ऐसी ही कहानी लक्ष्मी की भी होगी गुड्डों से खेलने की उम्र में दूसरों के यहाँ झाड़ू- पोंछा करना होता होगा दिल उसका भी पसीजता होगा.. ज़रा ज़रा सी बात पर रोज़ मार वह खाती होगी.... ..चन्दू की भी यही कहानी होगी पढ़ने लिखने की बजाए सड़कों पे पेन, किताब बेचता फिरेगा यक़ीनन मन उसका भी करता होगा वह भी कागज़ पर कुछ अपनी मन की लिखे.... ....पर भूखा ज़िस्म लिखना भूल काम पर फिर लग जाता होगा। आओ सब संकल्प करें अब संकल्प करें मिटायें देश से बाल श्रम को थामकर इनका हाथ इनका सहारा हम बनें... देश में ऐसा म...
किसान
कविता

किसान

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** भूमि पुत्र के छालों से सजे हाथ देख लेते। कृषि बिल से पूर्व कूछ कृषक से पूछ लेते। जन्म मां ने दिया पोषण अन्नदाता ने किया, कुलिस कर्म उस हलधर को पहचान लेते। रोती जिसकी खुशियां सूदखोर की चौखट पर, सदियों से मौन सह रहा संताप उसे जान लेते। गरीबी, भूखमरी, कष्ट-कसक ही परिजन, वेदना अंतहीन श्रमरत हलवाह देख लेते। कंटकाकीर्ण पथ पर बेचता आशाओं को, तन हड्डियों की गठरी कृषिजीवी जान लेते। तलाश करता सुकुन धरा चीरकर जो, कर्म के रथ पर आरूढ़ हो आह! सह लेते। अच्छे दिन की आस में बनाकर सरकार तुम्हारी, महाजन की बही में अंगुठा गिरवी रख देते। श्रमसाधक चित्रकार जो सबकी जिंदगी का, अन्नदाता धरती का रखवाला पहचान लेते। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
सखी मन तरसे
कविता

सखी मन तरसे

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आयी-आयी बसंत बयांर, जिया में कैसे रंग बरसे मेरे पिया गये परदेश, सखीरी मेरा मन तरसे। सरसों बढ़ती अरहर बढ़ती, गढ़ती नयी कहानी, बाँट जोवते हो गयी उमर सयानी, टूट गये संयम के फूल, मन पुलके तन हरसे। सखीरी मेरा मन तरसे। बौर फूलते गैदां हस्ते, महुआं भी मदमाये, कौन जतन हो सखी हमारे, पिया लौट घर आये, दीप आंस के बुझे कहीं न सिसक उठी इस डर से। सखीरी मन तरसे। ऐरी सखी न पिया हमारे, दहकन लगें पलाश, पगलाई धरती लगती है, बौराया आकाश, चातक जैसी अकुलाहट है, बुझ पाये अमृत से। सखीरी मेरा मन तरसे। बसंती रंग बरसे। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता...
गाँवों में जाकर देखो
कविता

गाँवों में जाकर देखो

संजय जैन मुंबई ******************** सोच बदलो गाँव बदलो अब चलो गाँव में। तभी हम गांवों को खुशाल बना पाएंगे। और नया हिंदुस्तान हम मिलकर बनाएंगे। और गांवों का इतिहास एक बार फिरसे दोहरायेंगे। गांवों की मिट्टी का कोई जवाब नहीं है। पैरो में लगती है तो चलने की शक्ति आती है। माथे पर लगाओं तो मातृभूमि बुलाती है। और दर्द अपना हमें रो रो कर सुनती है।। जितनी भी नदियाँ बहती जब तक वो गांवों में। तब तक उनका जल शीतल शुध्द रहता है। जैसे ही शहरो से जोड़ती है काया उनकी बदल जाती है। और शहर गांवों की सोच इसमें भी दिख जाती है।। शहर में सिर्फ मकान है पर आत्मीयता नहीं। गाँवो में मिट्टी के मकान है पर आत्मीयता का भंडार है। खुद के लिए जीना है तो शहर में रहो। समाज परिवार के साथ जीना है तो गाँवो में बसो।। देखना अगर है स्नेह प्यार और आत्मीयता को तो। किसी अंजान से गाँव में आज भी जाकर देखो। फर्क तुम्हें दिख जायेगा ...
आम बजट २०२१
कविता

आम बजट २०२१

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लोक-लुभावन वादे जिसमें दाना, चारा नहीं, यह आम बजट तो आमजन का प्यारा नहीं। बजट के गजट का दिमागी बुखार तो उतरा, अन्नदाता के सिर का बोझ तुमने उतारा नहीं। छोड़ कर शीशमहल झुग्गियों में आओ साहब कोई दिन तुमने ऐसा अभी तक गुजारा नहीं। दुखों का सारा तूफान झेल रहा आम आदमी, वरना आंखों से बहती यूं ही अश्क धारा नहीं। जिनकी वेतन लाखों में उनको सारी सुविधाएं मध्यमवर्ग के लिए सोचा और विचारा नहीं। इस्तेमाल किया करते हो आम आदमी का, आम आदमी बर्फ जैसा होता है अंगारा नहीं। गरीबों की रोटियां छीन रहे डंके की चोट पे, खुदा होगा वो किसी और का हमारा नहीं।। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाश...
आहिस्ता-आहिस्ता
कविता

आहिस्ता-आहिस्ता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** आहिस्ता-आहिस्ता पास आईयें आहिस्ता-आहिस्ता ही दूर जाईयें !! अपनी ही गलतियों का दंड भुगतले दूसरों के गुनाहों का प्रायश्चित कीजियें फिर से अनुभव के पहाड़े पढ़ियें फिर से कुछ नयी गलतियां कीजियें समझदारी का घमंड पाल लिजियें !! तू दूर चला गया कि मैं दूर हो गया इतना भर जोड़- -बाकी कर लीजियें हल न हो सकने वाला गणित हल कीजियें निर्लिप्त अलिप्त सी जिंदगी जी लीजियें !! विकृति की परिधि में आकृति के खेल कीजियें आदमी के इंसानियत की कीमत लगा लीजियें परछाई से आसक्ति का मोल चुका दीजियें जीवित रहने का शोक मना लीजियें मृत्यु का तो उत्सव ही मना लीजियें !! मैं ठहर जाता हूँ, आप भी ठहर जाइयें आती जाती साँसों का मूल्य गिन लीजियें किस के लिए क्या बचा, कितना बचा? अब तो इसका हिसाब कर लीजियें बाद में ही आगे का सफर कीजियें !! आहिस्ता-आहिस्ता पास आईयें आहिस्ता-आहिस्ता...
सच्चा साथी
कविता

सच्चा साथी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** प्रभु, पत्नी, सखा और मित्र, कहलाते हैं ये रिश्ते पवित्र, सच्चा साथी, इनको कहेंगे, पल पल अपने साथ रहेंगे। नहीं धन दौलत मिले चाहे, नहीं भैंस, घोड़ा और हाथी, सुख जरूर मिलता है जब, जीवन में मिले सच्चा साथी। बड़े बड़े धोखा दे देते जब, पड़ जाएगा छोटा सा काम, सच्चा साथी पास जब आये, हो सकता है जगत में नाम। जिनका भला लाख करोगे, वो वक्त पड़े तो बने दुश्मन, सारी नेकी पल में भूल जा, बेशक अर्पण कर दे तन मन। सोच समझकर कदम बढ़ाए, जगत में मिलेंगे अल्प अपने, जब विश्वास काम बनने का, चूर-चूर हो जाए सारे सपने। पहला साथी पत्नी कहलाती, सुख सपनों में वहीं मदमाती, पास रहती दुख-दर्द मिटाती, जीवन को पावन कर जाती। सबसे बड़ा सुख कहलाता, पति पत्नी को दुख बतलाता, वो दुखों में भी पति हर्षाती, ऐसे में सच्चा साथी कहाती। सखा व साथी मिले कभी, मन प्रफुल्लित ...
मोहब्बत के पुराने वक्त
कविता

मोहब्बत के पुराने वक्त

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** तुम्हारे साथ बिताए हुये हर वक्त का आज भी मुझे ख्याल आता है। क्या अपने होठों पर, मेरे होठों का आज भी तुम्हें स्वाद आता है? तुम्हारा गुलाबी सुर्ख होंठ और घन केशपास आज भी दिल में घर कर जाता है। क्या मेरा बेमतलब और बेवजह बातें करना आज भी तुम्हें मोहब्बत सिखाता है? मुझे ख्याल तुम्हारा हर नखड़ा, हर झिझक, हर ज़िद, हर रूठा हुआ चेहरा याद आता है। क्या पहले जैसा मेरा प्यार और मुझ पर तुम्हारा हक, ना मिलना आज भी तुम्हें तड़पाता है? परिचय :- आदर्श उपाध्याय निवासी : भवानीपुर उमरी, अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
उठ जाओ मेरे हिंदुस्तानी भाई
कविता

उठ जाओ मेरे हिंदुस्तानी भाई

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** उठ जाओ मेरे हिंदुस्तानी भाई देश की हालत कैसी हो आई अन्न दाता जो कहलाते हो मेरे हवा कैसी चली, नही हे पूर्वाई हिज़ाब मे कोई ओर खडा है क्यों पाल रहे अपनी ढीटाई अपने देश से क्यू कर रहे गद्दारी कब लेले ये सरकार अंगडाई तुम भी अपने जख़्म देने वाले भी, आकर बहकावे मे जाल बिछाई तिरंगे से खिलवाड करा कर यारो दुश्मन कोई ओर वो खाए मलाई हर मौसम मे तुम राजा हो भाई फिर से बजा दो खूशी की शहनाई जब जब किसान देश का जगा है कहूँ ओर हे बिजलिया गरजाई हर मौसम के तुम राजा हो "मोहन" फिर से बजे खूशी की शहनाई परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...