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पद्य

नवतपा
कविता

नवतपा

लागि नवतपा जिन्हा ते आगी सूरज बरसाय रहे प्राणी पंछी की कहे कौन बिरवा बिरछा तक सुखाय रहे का कही हालु या बिजुरी का भूतवा कसि खम्भा दिखाय रहे आँखि तरेरी रही बैहर तमन ते जगती अकुलाय रहै का कही फलाने या समयआ जीवन पै कइसन संकट छाय रहे ऊ बैठि ओसारी मा भुनकय लरिका गरमी म बिलबिलाए रहे निनचव घर मा न चैन परे भितरे बाइबे कै दुपहरि बिताय रहे लागि नवतपा जिन्हा ते आगी सूरज बरसाय रहे शब्दार्थ नवतपा - मृगशिरा जिन्हा -जी दिन से ओसारी - बरामदा . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
तंबाकू से जिंदगी
कविता

तंबाकू से जिंदगी

तंबाकू से जिंदगी बचाएं जिंदगी तंबाकू की हवा में मत उड़ाएं। आज जिसे पी रहे .......??? एक नशे..... एक उन्माद में, ऐसा ना हो यह जिंदगी पी जाएं। जिंदगी तंबाकू की हवा में मत उड़ाएं। जिंदगी के एहसास को, लंबी-लंबी सांसो में जी जाएं। ऐसी सांस तंबाकू के साथ ना लें। जिससे जिंदगी काले धुएं में खो जाएं। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) भाव ह्रदय के पन्नों पर उतार प्रीत की पाती भेजी है आज शब्द नहीं हैं दिल के जज़्बात कुछ अनकहे से हैं अल्फाज़ "तुम क्या जानो तुम बिन दिन बीतें ना बीतें रतियां रहा शेष ना इक भी दिन रोए बिन रही हों अखियाँ हारी मैं तारे भी गिन-गिन करें ठिठौली सब सखियाँ राह तकूँ मैं हर पल-छिन होंगी फिर से मीठी बतियाँ" अश्रुपूरित से नेत्रों का भार सँभाले नहीं सँभलता आज टकटकी लगाए बैठी मैं द्वार ले पुनर्मिलन की अब आस . परिचय :- किरण बाला पिता - श्री हेम राज पति - ठाकुर अशोक कुमार सिंह निवासी - ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) शिक्षा - बी. एफ. ए., एम. ए. (पेंटिंग) यू जी सी (नेट) व्यवसाय - टी. जी. टी. फाईन आर्ट्स (राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मौली जागरण चण्डीगढ़) प्रकाशित पुस्तकें - ३ साँझा काव्य संग्रह प्रकाशित और ३ प्रकाशाधीन सम्मान ...
क्या लिखूं
कविता

क्या लिखूं

तुम्हें जीवन की आस लिखूं, या जीवन का प्रकाश लिखूं चंचल मन की अभिलाषा, या अधर की प्यास लिखूं,। हृदय के होते स्पंदन में, तुम्हें प्रेम प्रतीक लिखूं। चंचल चितवन या हकीकत, या ख्वाबों में प्रेमरूप लिखूं। तुम मेरी देह में बसते हो, अपने हृदय के श्वासो में लिखूं। मेरे नैनो के बसते ख्वाब का, या मधुरिम एहसास लिखूं। हृदय के भावों में समाहित, तेरे प्रेम का गुणगान लिखूं। तुमको मन मंदिर में बसाकर, तेरा हर एक एहसास लिखूं। तेरी मेरी जुडीं भावना, उस पर मैं प्रेम गीत लिखूं मन स्वर्णिम स्मृतियों को, रक्त से अपने छंद लिखूं। तुम्हे मीत या प्रीत लिखूं, या अपने दिल का गीत लिखूं तुम्हे ख्वाब या तुम्हे हकीकत, या मधुरिम एहसास लिखूं। नेहदेव का रिश्ता अनोखा, या पार्थ की मैं नेह लिखूं। मनमंदिर की श्रद्धा से, तुम्हें प्रीत का पार्थ लिखूं। तुम्हें वेदना का पतझर या, तुम्हें मिलन की आस लिखूं तुम्हें प्रेम की अभिलाषा सा, ख...
जीवन साकार करो
कविता

जीवन साकार करो

मनु जन्म मिला क्यों, आज थोड़ा तुम विचार करो। जागो गहरी नींद से, मीठे सपनों में ना खराब करो। कीचड़ में कमल खिलता, वैसे ही तुम खिला करो। दूर भगाकर दुष्कर्म को, तुम मानवता से प्यार करो। काम कर निष्काम, तुम कर्म पथ आगे बढ़ा करो। मान अपना कर्तव्य, हर काम को बस किया करो। बीत रहा है समय यह, खुद भी थोड़ा विस्तार करो। धन दौलत चकाचौंध में, तुम इतना ना बहका करो। भूल भुलैया है यह जीवन, गलती ना बारंबार करो। चार दिनों की चांदनी में, जीवन ना तुम बेकार करो। सत्कर्मो की नाव बना, जीवन नैया तुम पार करो। मन आए विकारों को, गुणी जनों संग बैठ दूर करो। मनु जीवन सौभाग्य मिला, थोड़ा तुम विचार करो। तेरी मेरी कर, अनमोल जीवन अपना ना व्यर्थ करो। कहती वीणा, प्रभु श्रेष्ठ रचना जीवन सार्थक करो। बहुत कम बची सांसे, सोच समझ कर खर्च करो। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव "रागिनी" वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक ...
मैं हूं भी, नहीं भी
कविता

मैं हूं भी, नहीं भी

मैं हूं पर कहां? यह मेरा नाम है। जिस ओहदे से जाना जाऊं वह मेरा काम है। संबंधों में बिखरा है वह मेरा अस्तित्व है। खुद को जानने ढूंढ बना वह जीवन स्पंदन है। मेरी शिक्षा, परवरिश, आयु शरीर में मुझे समझने का जरिया है। पंचतत्व से बना उसी में विलीन होकर माटी का पुनर्निर्माण किया। मुझे जानने की अनंत यात्रा में मैं हूं भी नहीं भी हूं। दिखता है वह मैं नहीं हूं जो नहीं दिखता वह मैं हूं। मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन भी नहीं हूं। सिर्फ मैं ही मैं हूं हर जगह चराचर जगत में। जीवन की अनंत यात्रा में मैं हूं भी नहीं भी हूं। . परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
प्रेम की पाती
कविता

प्रेम की पाती

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) पुरुष के अलग-अलग भाव इस कविता के माध्यम से। पिता जब लौटे दफ्तर से छोड़ चिंता की पोटली घर आंगन में आतें हैं, जैसे ही दस्तक किया प्रवेश द्वार को बस बट गई वहीं से प्रेम प्रीत की पाती।१ छोड़ हाथ मा का दौड़ कर पिता की गोद में चढ़ गए हैं बच्चे, प्रीत का पहला कदम हंसी उल्लास से मन मोहित कर देता है।२ वह जाकर सीधा बैठा बड़ों की छत्रछाया में, चिंतामय आवाज में बोली आने में देर हुई कब से देख रही थी घड़ी को। ममता की छांव में सारे दर्द मिट जाते हैं। ३ लो झट से आई चाय का प्याला लिए, बैठ गए सब साथ-साथ रंग जमा है माहौल बना है, लगा है जैसे बरसों बाद मिले हैं।.४ यह त्रिवेणी के संगम जैसा लगता है, बस बार-बार इसमें गोते लगाऊं सारे दुख दर्द मिट जाए, इतना पवित्र है यह संगम।५ ऐसी प्रेम की पाती मुझे बहुत भावे है २ . ...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

चलती फिरती काया की उड़ान है जिंदगी एक कुरुक्षेत्र है जिंदगी कभी वक्त के थपेड़ों में डूबती उत्तराआती नाव सी जिंदगी साहिल की तलाश में भटकती हुई जिंदगी कभी फूलों की गुलजार बाग सी महकती जिंदगी कभी पतझड़ में पेड़ की टूट सी खड़ी जिंदगी कैलेंडर की तारीखों सी बदलती हर पल जिंदगी सपनों का महल खड़ी करती जिंदगी टूटते सपनों का दंश झेलती जिंदगी बहुत बेमिसाल है जिंदगी कभी हाथों में ठहरती नहीं जिंदगी आंखों में सुनहरे पल की आस लिए जिंदगी जीवन के खट्टे मीठे लम्हों से भरी जिंदगी हर पल एक नया अनुभव देती जिंदगी . परिचय :- लखन लाल यदु अभिभाषक जन्मतिथि : ७.८.१९५८ निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
वेदना
कविता

वेदना

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** टूटे अरमानो का जबाब कौन देगा? जो बिखरचुका उस दिल के, टुकडो का हिसाब कोन देगा? ख्वाबो के हसीन नजारो के, बिखरने का हिसाब कौन देगा? पल पल जो अश्क बहाये.. उन अश्को कााहिसाब कोन देगा? जो भूल गयी गिनते गिनते रातो को... उन तारो का हिसाब कौन देगा? चाद भी रोया था जब मेरे साथ साथ उस कृन्दन का जबाब कौन देगा? होठोपे कभी जो आ न सकी.. उन मुस्कानो का जबाब कौन देगा? कौन देगा कौन देगा? कौन देगा कौन देगा? . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
दूर मुझसे न जा
ग़ज़ल

दूर मुझसे न जा

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन दूर मुझसे न जा वरना मर जाऊँगा। धीरे-धीरे सही मैं सुधर जाऊँगा।। बाद मरने के भी मैं रहूंगा तेरा। चर्चा होगी यही जिस डगर जाऊँगा।। मेरा दिल आईना है न तोड़ो इसे। गर ये टूटा तो फिर मैं बिखर जाऊँगा।। नाम मेरा भी है पर बुरा ही सही। कुछ न कुछ तो कभी अच्छा कर जाऊँगा।। मेरी फितरत में है लड़ना सच के लिए। तू डराएगा तो क्या मैं डर जाऊँगा।। झूठी दुनिया में दिल देखो लगता नहीं। छोड़ अब ये महल अपने घर जाऊँगा।। मौत सच है यहाँ बाकी धोका निज़ाम। सच ही कहना है कह के गुज़र जाऊँगा।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने...
तकदीर
ग़ज़ल

तकदीर

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** नज़रे इनायत हो तो तकदीर संवर जायेगी आँखों के आईने में ये सूरत निखर जायेगी इक दफा जो दूर से तू पुकार ले मुझको जिस्म से फना होती रूह भी ठहर जायेगी इस तरह से न देख शोख नजरों से मुझको मेरी सांसो की चलती रफ्तार सुधर जायेगी कभी तो पेश आ गुलों की तरह मेरे हमनवा संग तेरे खारों की चुभन भी ईश्क़ कर जायेगी जब भी रिश्तों का ताना बाना खुल जायेगा घर के आँगन में फिर उदासी भर जायेगी इन्तजार में तेरे खुद को काँधे पे लिये बैठी हूँ इश्क के इस अंजाम से मौत भी डर जायेगी दिल पर लगी हुई चोट भी यकीनन गहरी है तसव्वुर से तेरे "मधु" लम्हा लम्हा भर जायेगी . परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
ये वक़्त गुजर जाएगा
कविता

ये वक़्त गुजर जाएगा

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** उदास ना हो ये मुसाफिर के धीरे-धीरे सब सवंर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा। सुख-दुःख तो मेहमान है, आते और जाते रहेंगे। हँसते रहना तुम सदा, रुलाने वाले रुलाते रहेंगे। कर मेहनत हासिल हो मंजिल चेहरे का रंग निखर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा। खुश रहना तू हर घड़ी, दुःख से बहुत ही दूर है तू कर परख पहचान अपनी, हीरे से बढ़ कोहिनूर हैं तू भूल जा इन गुजरे पल को, आने वाला कल बेहतर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा। करके मेहनत इस जग में, ऊँचा नाम कामना तूम चेहरे पे खुशियां हो और मेहनत की रोटी खाना तुम अच्छे कर्म करोगे तब चेहरे का रंग निखर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा।   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी क...
भारत की ललकार
कविता

भारत की ललकार

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** खून खौलता रणवीरों का, आँख दिखाना बंद करो। सबा करोड़ भारतीय हैं हम, जयचंदों तुम डरा करो। बाँसठ वाला देश नहीं है, बच्चा बच्चा राणा है। अवसर पाते मिट जायेंगे, प्रण हम सबने पाला है। खुद में तू महामारी है, चौतरफ़ा है घिरा हुआ। श्वान सरीखे भौंकों मत, मन से तू है मरा हुआ। पिल्ला भी तो भौंक रहा है, भूख उसे अधमरा किये है। दुनिया भर के चाट कटोरे, मुँह वो अपना सड़ा किये है। सिय के पीहर वालो तुम, भूल गए उपकारों को। रामचंद्र की शक्ति को, और धनुष बाण प्रहारों को। शिव की कृपा नमो की ताक़त भूल नहीं तुम पाओगे। जब भी संकट तुम पर आये, हर जगह हमीं को पाओगे। बिजू की ललकार यही है, नव भारत से डरा करो। बदल चुका है देश हमारा, नहीं बखेड़ा खड़ा करो।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की ...
मोहे देखन दे
गीत

मोहे देखन दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मोहे देखन दे असीघाट को गए छोड़ गोस्वामी जी, जाने गए वो किधर ढूंढे सबकी नजर, मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे पहली बार श्री कबीर दास जी ने काशी (लहर तालाब) में लिया अवतार हो... ऐकश्र्वरवादी विश्व में फैले ऐसा किया विचार हो... ईश्वर एक है दूजा न कोए जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... दुसरी बार श्री तुलसीदास जी ने जग में अवतार हो... सपना जो स्वामी जी का था उसको किया साकार हो... रामचरितमानस सबके सनमुख आये जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... तीसरी बार श्री घासीदास जी ने जग में लिया अवतार हो... सर्वधर्म - समभाव विश्व में फैला ऐसा किया प्रचार हो जाना सब संसार मोहे देखन दे गुरु महिमा देखन दे...   परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी ...
सूखती घास
कविता

सूखती घास

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** अरे! ओ घमंड़ी बादल। तू हो तो न गया पागल। सब लगाएं तेरी आस। देखो ये सूखती घास।। तू सबसे निराला है तेरा वर्ण काला है जीवन का रत्न खास। देखो ये सूखती घास।। मेघ जलद घन तेरे नाम बिन तेरे बने न कोई काम तेरी अनुपस्थिति सबको अहसास। देखो ये सूखती घास।। बहुत बरसे तो अतिवृष्टि कम बरसे तो अनावृष्टि दोनों से होता विनाश। ये देखो सूखती घास।। जोर जोर से गरजता है फिर भी नहीं बरसता है लोगों का टूटता विश्वास। देखो ये सूखती घास।। महीना जब आता है सावन का लगता बहुत मनभावन का साजन नही सजनी के पास। देखो ये सूखती घास।। सबको तू तरसाता है बहुत कम जल बरसाता है मिटती नही इससे प्यास। देखो ये सूखती घास।। जब सावन ही जाए सूखा कैसे रहें कोई प्यासा और भूखा करने लगे लोग प्रवास। देखो ये सूखती घास।। जिस जिस ने बीज बोएं बाद में पछताएं और रोएं फसलो का होता हृास। देखो ये ...
वह यादें
कविता

वह यादें

दीपाली शुक्ला कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वह यादें....... ठहरी हुई है रफ़्तार आज सामने वाली सड़क में, पर वह तो मुझे उन गहराइयों से मिलने बुलाती है, वह यादें समंदर से बनी है या समन्दर यादों से पता नहीं, उथल पुथल तो इसलिए मची है कि वह जरिया किसे बनाती है कभी तहरीर की नाव मुझे मंज़िलों तक पहुंचाती है, तो कभी तस्वीरों की उड़ान सीधे वहां छोड़ जाती है, कभी पतंगों के धागे के साथ चढ़ जाती हूँ, तो कभी आंसुओं की धार में ही दूर बह जाती हूँ, कभी धुल भरी साईकल स्कूल छोड़ने जाती है, कभी मिटटी की खुश्बू कागज के नाव बनाती है, कभी वो गुड़िया उन गर्मियों में ले जाती है, तो कभी गर्मियाँ उन खिलौनों की बात बताती है, कभी पुरानी किताब के अन्दर से दुनिया पाती हूँ, कभी उसके भीतर सालों बिताकर घंटों में लौट आती हूँ, कभी उन यादों को मुझ जैसा पाती हूँ, तो कभी उसका जादुई ताज पहन कायनात से खो जाती हूँ...
मैं ही मैं हूं
कविता

मैं ही मैं हूं

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** मैं महान हूं मुझे समझना होगा तुम्हें अपने अभिमान को परे रख मेरी हर बात सुनो तुम तुम क्या हो? मेरे आगे तुम्हारी कोई अस्तित्व नहीं मेरे आगे मेरी धन-वैभव-संपदा को देखो तुम्हारे पास भी होगा सबकुछ किन्तु मेरे जितना नहीं इन प्रसाधन की गुणवत्ता और मात्रा तुमसे कहीं अधिक है मेरे संसाधन आलौकिक है इन्हें साष्टांग प्रणाम करो मेरा घर, घर नहीं एक महल है तुम्हारे पास भी होगा किन्तु मेरे जितना भव्य नहीं तुम्हारी राय का कोई मुल्य नहीं तुम्हारी में कभी नहीं सुनूंगा मेरा ज्ञान सर्वज्ञ है तुम जानते ही कितना हो? तुम्हारा ज्ञान शुन्य है मेरे आगे मेरी महत्ता सार्वभौमिक है तुम नगण्य हो तुम शून्य हो और मैं अनंत मेरी संतान ही संसार का कल्याण करेगी क्योंकी वो मेरा अंश है इसलिए वो भी महान है उसका किसी से कोई मुकाबला नहीं वो सर्वशक्तिमान है मेरी तरह वह भी प्रार्थनीय...
जिंदगी की जद्दोजहद
ग़ज़ल

जिंदगी की जद्दोजहद

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** अभी तो जिंदगी की सुबह हुई ही है। फिर क्यों मै बहुत दूर नजर आया। अभी तो मुश्किलों से पीछा छूटा ही था। फिर सामने कोरोना नजर आया। वतन से मुहब्बत की थी या पलायन का अफसोस। मुझे हर मजदूर घर लौटता नज़र आया। दुनिया इमारतों की तरफ देखती रही। मुझे उसके पांव का छाला नज़र आया। जिदंगी डर है, मायूसी है, संघर्ष है, वीरानी है। पहली बार हर इंसान बेबस नज़र आया। माफ़ कर सकता है तो कर दे मुझ। मै खुदगर्ज हूं ये अब नज़र आया। तू ना लौटा तो क्या होगा मेरा ? मै इस बोझ से दबता नज़र आया। मै तेरी सुरक्षा की हर कोशिश करूंगा। बहुत देर से सही पर अब नज़र आया। भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। यही सोचकर वो शहर वापस आया।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका ...
गुरु वंदना
गीत

गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** गुरु तो ईश्वर का साकार रूप होता है अंधाररुपी जीवन में प्रकाश पुंज होता है! गुरु की वाणी में रहती छिपी प्रखर ज्ञान, प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी! गुरु की कृपा मात्र से यह नश्वर जीवन अमर शाश्वत बन जाता! इस अलौकिक जीवन की यात्रा- अति-सरल सुगम बन जाता! गुरु अंदर की-दिव्यता को- जगा कर इस जीवन पथ को आलोकित कर जाता! निज पशुता को भगाकर दिव्य चेतना लाता मनुज मात्र के लिए उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता! सदियों से है गुरु कृपा की अनेकों दिव्य कहानी! महामूर्ख कालीदास सदृश एक दिन 'महाकवि' बन जाता! महान योद्धा अशोक सम्राट बौद्ध भिक्षुक बन जाता! 'आर्यभट्ट' ब्रह्मांड के ज्ञाता कोई 'कणाद' सदृश्य अनु ज्ञाता बन जाता! कोई चाणक्य कृपा को पाकर महान सम्राट बन जाता! मैं मूरख भी निश-दिन गुरु वंदना गाता! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम...
फिर आगोश में तुमको मिलेगी
कविता

फिर आगोश में तुमको मिलेगी

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** धुआँ-धुआँ हर तरफ धुआँ, किस ग़म ने यूँ तुम्हें छुआ। अंधियारे में सिमट गये तुम, नशे की सोहबत बना धुआँ। मत डूबो स्याह समंदर में, बस टूट गया दिल इसी बहाने। प्रखर रश्मियाँ आ बैठी हैं, शिविर तिमिर का दूर हटाने। इस धुयें की गर्त को अब तो नकारो, धूप फिर आगोश में तुमको मिलेगी। भले ना पथ अनुकूल मिले, पर आशा के तो फूल खिलें। धूल धूसरित स्वेद लपेटे, अब कितने भी शूल मिलें। ये सफ़र ऐसा कि जिसमें, खुद का चलना बड़ा जरूरी। अपने पास ही तो जाना है, खुद से ही कम करना दूरी। तुम भी थोड़ा इसी पंथ की बाट निहारो, धूप फिर आगोश में तुमको मिलेगी। यह अनुभूति बड़ी अनूठी, यूँ ही पास नहीं आयेगी। पहले ये तुम्हें छकायेगी, कदम-कदम अजमायेगी। वीतराग करने को प्रेरित अंतर्मन अनल जलायेगी। फिर देगी वह अपनी प्रतीति, और तुमको गले लगायेगी। तुम मन से तो उसका नाम पुकारो, धूप फ...
अपने हुए पराये
कविता

अपने हुए पराये

डॉ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) ********************** जी भर के देख भी ना पाये प्यार की इन्तहा क्या सुनाये रहे मझधार साहिल ना पाये नाखुदा ने खूब याराने निभाये तूफ़ान दिल में इतने दबाये जलजले बने अपने हमसाये चले साथ कभी मिल न पाये तासीर दो किनारों सी लाये सितम गैरों के क्या बताये जब अपने हुए हैं सब पराये .... . परिचय :-  डाँ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' जन्म : २० अप्रैल माता : श्रीमिती रामदुलारी विश्वकर्मा पिता : श्री रामकिशोर विश्वकर्मा निवासी : आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) शिक्षा : ऑनर्स डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (एक वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा) बी. एड., एम. ए.(भूगोल), एम. फिल. (नगरीय भूगोल), पी-एच. डी.(कृषि भूगोल)। प्रकाशन : राष्ट्रीय एवं अंतरास्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं एवं पुस्तको में शोध-पत्रों का प्रकाशन, जनसंदेश समाचार पत्र मध्यप्रदेश, दैनिक भास्कर , ...
चल मेरे साथी
कविता

चल मेरे साथी

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चल मेरे साथी, दुनिया की सैर करते है, मोहब्बत की इस दुनिया में मिटाते सारे बैर चलते हैं, नवजीवन के एहसासों में, विश्वबन्धुत्व को पसारने अपने पैर देते हैं ।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते है....... शाहजहां ने जैसा ताजमहल बनाया, अपनी मोहब्बत दीवारों पर लिखवाया , कुछ ऐसा ही हम करने चलते है , जीवन के महल में संगमरमर रूपी भाईचारा साथ लेकर चलते हैं।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते हैं... चलो देखे सुंदरवन , पशु पक्षी के निरव रुदन, इंसान नहीं तो जानवर से ही कुछ सीख लेने चलते है मधुर मिठास हो इस जीवन में, बीज ऐसा अंकुरित करते चलते है।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते हैं.... देखते है विशाल हिमालय को, अपने गर्भ में कईयों जीवन पालता है, काले, भयंकर मेघ के आगे छाती ताने खड़ा रहता है, दुनिया को कहता सीख मुझसे सभी परिस्थितियों में खड़...
अपनी जड़ें खोदते हैं
कविता

अपनी जड़ें खोदते हैं

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित- अंधी पश्चात्य संस्कृति के अश्व पर आरूढ़ भारतीय परिवेश को। है वर्तमान की यही वेदना मानव से मानवता दूर हुई। अनुभव में दृष्टिभूत यही की आज सभ्यता ढेर हुई।। कल संम्पत्ति थे मात पिता उनकी सेवा ही प्यारी। और आज दे रहा बेटा है अपने ही पता की सुपारी।। पतियों से ज्यादा बाॅयफ्रेण्ड अब पत्नी जी को भाते हैं। पत्नी की साड़ी से अच्छी गर्लफेण्ड के वस्त्र लुभाते हैं।। बस कुछ पैसों का आ जाना घर में कुत्ते पल जाना है। कुछ बुरा तो नहीं पर इसपर काहेका उतराना है? इस फोरव्हिलर की दुनिया में साइकल का कहां ठिकाना है? भूले भक्ति अरु दान पुण्य तीरथ में खूब उड़ाना है।। रोगों से छुब्ध देह किंतु मौजों में समय बिताना है। असमय मृत्यु की ओर बढ़े पर चुभता पूर्व जमाना है।। पैदल चलने वाला तो अपनी किस्मत को गरियाता है! क्योंकि मित्रों और सखियों से वह व्यंग्य बाण ह...
मैं और हम
कविता

मैं और हम

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं अहम् को अपनाता है और हम अहम् को धिक्कारता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं अपनेपन में जीवन चाहता है और हम अपनापन में जीवन देखता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं संकीर्णता में सोचता है और हम व्यापकता की ओर बढ़ता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं स्वयं के लिए जीना चाहता है और हम अपनों के लिए जीवन मांगता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं को जानने वाला कोई नहीं रहता और हम में पूरा जगत् समा सकता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं स्वयं से बंधे रहना चाहता है और हम सबके संग बसना चाहता है। . परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
वक़्त
कविता

वक़्त

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** जीवन में सच्चाइयों दिखलाता है वक़्त। दुःखों में भी सुखों का और सुखों में भी दु:खों का अर्थ समझाता है वक़्त।। वक़्त की कोई सीमा नहीं होती। कोई आये या जाये उसे किसी की परवाह नहीं होती।। वो तो अपने आप में ही एक पहेली हैं। जान जाओ तो ठीक है वरना सबकी सहेली हैं।। वक़्त इंसान को यह सिखलाता हैं। अपना काम वक़्त पर कर लो, बाद में तू क्यों पछताता हैं।। वक़्त और कुदरत का तो पुराना नाता हैं। दोनों कब आये, कब गये कौन जान पाया हैं।। वक़्त पर अभी तक कोई पाबंदी नहीं लगा पाया हैं। जीसने भी यह कोशिश की है उसने अपनी मुश्किलों को बुलाया हैं।। परिचय :- आकाश कल्याण सिंह प्रजापति निवासी : मोडासा, जिला अरवल्ली, (गुजरात) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...