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पद्य

जीवन और परिवार
कविता

जीवन और परिवार

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जीवन को समृद्ध करने के लिए, जब परिवारिक इकाई, समाज ने बनाई। फिर क्यों ........??? आज के परिवेश में, घर बना कर, परिवार बनाकर। जिंदगी बस, अपने-अपने, कमरे तक ही समाई।। जबकि जिंदगी को, समृद्ध करने के लिए, जब हम और आपने, परिवारिक इकाई, समाज के विकास के लिए बनाई। क्यों हमने ......सोचा नहीं। हर आने वाली, पीढ़ी पर ही, गलती-दर-गलती ठहराई। परिवार तो बना लिए, लेकिन एक-दूसरे के सम्मान पर, जब सवाल ही उठा दिए। कुछ ने अपने फायदा के लिए, परिवार में, राजनीतिक दल बना लिए। एक छत के नीचे, एक- दूसरे से मुंह-चिढ़ा रहे। शायद आज........ इसलिए वक्त ने सब के, मुंह पर मास्क चढ़ा दिए।। जिंदगी इतनी बिखरी, ना घर -घर के, न घाट के रहे। अब भी वक्त है ....…!!!!!!!! संभल जाएं। घर जीवन की इकाई है। खुशियों के साथ, मुस्करा कर, इसे अपनाएं। घर -परिवार नाम के नहीं। इ...
व्यथा
कविता

व्यथा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** व्यथा उन शिल्पियों की जिनके खून पसीने से सिंचित है। माँ भारती का कण कण निःठुर है यह कोरोना काल। रो रो कर बेहाल है यह लाल छोटे छोटे बच्चे अबला नारी। निकल रहे है टोली में करवा बनता जा रहा है। रास्तो पर दम तोड़ते भी जा रहे है घटनाओ,दुर्घटनाओं में। न पॉकेट में है पैसा न खाने को कुछ है। अब रो रहा है यह कलम का सिपाही भी । हाय यह कैसी विवस्ता है दुखो की अंत हीन दास्ता है। यह हमारी व्यवस्थाओं पर एक भयानक प्रहार है। समझना होगा उन नियंताओ को जो सत्ता के शिखर पर है। अपने प्रदेश के मृत उद्योगों को पुनरः जीवित करना होगा। माँ भारती के इस लाल के पलायन को अब रोकना होगा। एक नया रोजगार परक नियम बनाना होगा। उधोग धंधो का जाल फैलाना होगा। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंद...
जीवन का हर एक लम्हा
कविता

जीवन का हर एक लम्हा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जीवन का हर एक लम्हा, दूर कितना इतना तनहा। गुम हुई आवाज़ दिल की, खो गया है साज़ मन का। दूर कुहुकती कोयल का स्वर, घावों को तो सहलाता। पर हौले से रिसता अम्बर, जाने क्या बूँदों से कह जाता। और छलक उठती हैं आँखें, अक्स बिखर जाता दरपन का। गुम हुई आवाज़ दिल की, खो गया है साज़ मन का। सब यादें सीने में हैं चुप, मत उनको आवाज़ लगाओ। खुश हूँ अपनी खामोशी में, रह रह मत नूपुर खनकाओ। अब सुनता और बुनता हूँ, संगीत उदासी की धड़कन का। निष्ठा से प्रेम समर्पण का, खुशियों से अपनी अनबन का। जीवन का हर एक लम्हा, दूर कितना इतना तनहा। गुम हुई आवाज़ दिल की, खो गया है साज़ मन का। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही...
चल गम को कहीं छोड़ आते हैं
कविता

चल गम को कहीं छोड़ आते हैं

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** चल गम को कहीं छोड़ आते हैं, उन खुशियों को फिर मोड लाते हैं। जो हो गया उसे भूल जाते हैं, चल फिर एक नई उम्मीद जगाते हैं। तू भटक गया था अपनी मंजिल से, चल उस मंजिल पर वापस जाते हैं चल गम को कहीं छोड़ आते हैं, उन खुशियों को फिर मोड लाते हैं। तेरी तकदीर तेरे हाथों में है, चल अपनी तकदीर की लकीरे अपने आप लगाते हैं। चल गम को कहीं छोड़ आते हैं, उन खुशियों को फिर मोड़ लाते हैं। . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक...
मुक्ति शब्द
मुक्तक

मुक्ति शब्द

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
तुझसे बेहतर पाया
कविता

तुझसे बेहतर पाया

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** अब है तुझसे कोई आस नही तेरे खातिर व्रत-उपवास नही! कड़वाहट भर दी तूने रिश्ते में पहले जैसी रही मिठास नही! स्वयं से ज्यादा तुझको चाहा, था तुझसा कोई भी खास नही! सच कहता था सच कहता हूँ, मैं करता कभी बकवास नही! कब क्यूँ किसको खोया है तुमने, शायद तुझे अभी आभास नहीं! मिला सबक तुझसे, मुझे अच्छा, धोखा गैर ही देते हैं खास नही! खोके तुझे तुझसे बेहतर पाया हूँ, है तुझको शायद एहसास नही!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी...
लॉकडाउन
कविता

लॉकडाउन

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=v4wPeqvbsdw   लॉकडाउन लॉकडॉउन शहरवासियों लगा है लॉक डाउन सावधान सावधान देशवासियों हो जाओ लॉक डाउन हल्के में ना कोरोना को लो शहरवासियों घर से ना निकलो बेफिकर रायपुर वासियों एक एक से होके ये सबको करता है बीमार सावधान .... मुंह पे लगाके मास्क बाहर निकलना है साबुन से हाथ बार बार हमको धोना है संकट की घड़ी टालने अब हो जाओ तैयार सावधान ... एक चीन ही क्या काम था दुश्मनी भंजाने को ऊपर से ये जमाती हैं पीड़ित बढाने को। इंसानियत को भूल के बैठा है ये इंसान सावधान .... छतीसगढ में मातम ज्यादा नहीं हुआ औरों की अपेक्षा हमने कम ही है खोया तो क्यूं निकल के जिंदगी को कर रहे बर्बाद सावधान .... छत्तीसगढ़ तो किस्मत से था बड़ा धनी भूपेश जी के जैसा पाया मुख्यमंत्री महामारी के खिलाफ किया जंग ए एलान सावधान साव...
कहती है धरती सुनो
कविता

कहती है धरती सुनो

डॉ. भवानी प्रधान रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** कहती है धरती सुनो बहुत कुछ बदल दिया घर बंदी ने प्रकृति के रंग निखर आये पेड़ों के पत्तों का रंग भी कुछ ज्यादा ही गहरा हुआ फूलों की रौनक बढ़ गई शुद्ध हो गई हवा भी सदियों बाद आसमान का नीलापन निखर आया बढ़ गई तारों की चमक चाँद भी मुस्कुराने लगा कहती है धरती सुनो वर्षों बाद शहरों में कोयल की कुक सुनाई दे रही कहीं हंसों के जोड़े लौट आये सड़कों पर कहीं हिरणों के झुंड दिख रहे पर्यावरण ने स्वच्छता शुद्धता का रंग ओढ़ लिया निर्मल हुईं नदियाँ मुस्कुराते बह रहीं घाट किनारे अठखेलियाँ करती मछलीयाँ दिख रही कहती है धरती सुनो जंगल हो या समुन्दर सहज रूप को जाना यह सुन्दर सुखद बदलाव सहअस्तित्व का दे रही सीख हमें . परिचय :- डॉ. भवानी प्रधान जन्म : २४ फरवरी महासमुंद (छ.ग.) पिता : श्री गौतम भोई माता : श्रीमती बिलासिनी भोई पति : श्री शेषदेव प्रधा...
आसारे क़यामत
कविता

आसारे क़यामत

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** जुल्म बढ़ेगा ईमान में ख़यानत आएगी, तभी तो दुनिया में कयामत आएगी। जुबानों में कड़वाहट लहजों में सख्ती, बेईमानों में बहुत दिखावत आएगी। खुशियों के दीप बुझाने वाले पैदा होंगे, पढ़े-लिखो में भी ज़हालत आएगी। जो रब खफा होगा तो बदलेगी सूरत, खामोश लहजों में भी बगावत आएगी। जुल्म बढ़ेगा, गरीबों, बेजुबानों पर, इन्सानों के लहजे में अदावत आएगी। सरियत से बेहतर, है नहीं कानून कोई, रस्ते में मेरे हर रोज सियासत आएगी। कांटे भी चुभते हैं अक्सर गुलाबों को, कातिल बना के बीच में अदालत आएगी। शाहरुख़ दागदार है गिरेबा अपना भी, शर्मसार होगी इंसानियत ऐसी दिखावत आएगी। . परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ...
नर्स
कविता

नर्स

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** वर्षो से देखा सबने, सुदंर सफेद परिधानों से सज्जित, सदा अपने अधरो पर लिये, मधुर मुस्कान, वो तरूणाई । सदा सेवाओ में तत्पर रहती, जो किसी ने आवाज लगाई। सीस्टर कहा किसी ने, तो कहा किसी ने नर्स, कोई कहता नर्स बाई, वात्सल्य, सेवा, त्याग की, मूरत, सदा करती हैं सब कि भलाई। जो रक्त देख के रहे निडर, जन्म, मृत्यु देख न कभी हो घबराई। मां सी ममता उड़ेल, जन्म से, रोते बच्चों की बन जाती आई। मन, मे प्रेम, कोमलता, दया के, भाव लिये सदा ही वो मुस्कुराई। प्रेम दिया किसी ने तो किसी ने, उसका कही अपमान भी किया। पर अपनी सेवा में कोई कमी न रख, हर मरीज को ठीक कर, मुस्कुराई हर मरीज के मर्ज से रिश्ता जोड़, वो मीठे से सुईया चुभाती हैं। कभी प्यार से तो कभी डांट के, वो कड़वी दवा भी खिलाती हैं। जिसका दिल है दयावान, सेवा भाव से सदा सबकी सेवा करती आई है, अपने दर्द को...
तेज हवा का झोंका
कविता

तेज हवा का झोंका

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मोम के जैसा मन है उसका गर्म हवा के झोंके से पिघल गया होगा बड़ी चंचल थी कड़कती बिजली ओं की तरह तेज बारिश ने किसी के घर पर गिरा दिया होगा कभी वक्त के हाथों फिसल गया होगा नादान दिल ही तो है किसी और का हो गया होगा समंदर नहीं है नदी ही तो है किसी और नदी में समा गया होगा कब तक चलता वो कांटे भरे रास्तों पर कोई मखमली रास्ता मिल गया होगा बारिश के बाद सतरंगी जीवन उसका किसी इंद्रधनुष्य सा आसमान में समा गया होगा कोई तेज हवा का झोंका आ गया होगा हमसे दूर उड़ाकर ले गया होगा मोम के जैसा मन है उसका गर्म हवा के झोंके से पिघल गया होगा।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्...
अभिलाषा मन की
कविता

अभिलाषा मन की

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम बनो परछाई मेरी, संग चले हम उम्र भर, या आईना ए रूह बनो, निहारु तुमको उम्र भर. श्याम घन, घटा ना होना, उमड़ घुमड़ कभी हैं आती, बन समीर निर्विघ्न तू बहना, साँसों में बसना उम्र भर.... कुमुद कमलनी सी खिलना, महकेगा जर्रा जर्रा, बन पाखी कलरव तुम करना, चहकेगा जर्रा जर्रा. बदली धुंध सा ना होना, नैन भृमित करती है जो, बन वाचाल सरिता तू बहना, खिल उठेगा जर्रा जर्रा... श्रद्धा हो कामायनी की तुम, महकी ग़ालिब ए नज्म भी या छलकी खय्याम ए रूबाई, बन साकी, बहकी मधुशाला भी. तुलसी की रतना ना होना, बने जोगी, पर अब जोग कहा, बन ख्याल, उर चली आना, ले कलम, गुने गीत "निर्मल" भी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्र...
याद आती है, मां
कविता

याद आती है, मां

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** मुझे बहुत याद आती है, मां खूब स्नेह लुटाती गिले में सोकर हमें सूखे में सुलाती, कभी सामने ना दिखो तो बड़ी बेचैन हो जाती है, मां कितने भी बड़े हो जाएं बच्चे फिर भी बच्चों के लिए चिंतित रहती है, मां कुछ सामान लेने कुछ रुपया लेकर भेजती बाहर बार-बार टोकरती बेटा पैसा गिरा मत देना संभल कर जाना, आपको पता है वह समझता है, फिर भी इसमें मां का एक मासूम भाव झलकता है। दूसरी ओर बच्चा चिढ़कर बोलता है, अरे मां अब मैं बड़ा हो गया हूं, मां फटकार लगाकर कहती है, पता है कितना बड़ा हो गया है, कल ही तुझे कपड़े लाने के लिए पैसे दिए थे और तू चॉकलेट खाकर आ गया। प्यार दिखाने का अलग-अलग भाव है, मां का मां को वर्णन करना कठिन है, मां मुझे तुम जैसा बनना है, मुझे समंदर में से थोड़ी सी बूंद दे दो, आज मैं भी इस दोराहे पर खड़ी हूं। बस आज मां बनने में फर्क इतना है, ब...
पलायन का दर्द
कविता

पलायन का दर्द

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** पलायन का दर्द बड़ा दुखदायी होता है, कहर बरपाता है आसमान, रोम रोम रोता है। आंसू पसीने के रूप में बह निकलते है, छाले पैरों के फुटकर ये कह निकलते है।। लॉक डाऊन अच्छा है निर्णय देश के लिए, भूख मजबूरी है, किन्तु काफी नही विद्वेष के लिए।। लेकर बच्चों, बोझा निकल पड़े राहों पर, नही इल्जाम किसी नेता, बंदोबस्त, सरकारों पर।। नही तोड़ा कोई कानून, न कोई कांच तोड़ा है, ना ही पत्थरों से डॉक्टरों पुलिस का सर फोड़ा है।। मजबूरी है, लाचार है, पर देश के लिए जीते है, ये देश के बेटे है साहब, हर संकट हंसकर झेलते है।। सुनी पुकार जो जनसेवकों ने तो बसें चलने लगी, ट्रेन महानगरो से बीहड़ों की और दौड़ने लगी। राजनीति हो रही इस बेबसी पर भी, कोई मौका भेड़िए छोड़ना नही चाहते है। कोरोना फैलाने वालों को संरक्षण, बस सत्ता को कोसना चाहते है।। गरीब के आंसुओं का मोल किया, य...
धैर्य
कविता

धैर्य

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** दुखः आवे सह लिया, बुद्धिमान का काम, ज्यों धरती सहती सभी, मेह शीत या घाम। विचलित करता है नहीं, जलनिधि को तूफान, शान्ति भंग करते नहीं, दुखः मे पुरूष महान। किसी परिस्थिति में कभी, मन संतुलन गंवाय, धैर्य न खोते विपंति में, महा पुरूष समुदाय। सब छूटे छोड़ दे, किन्तु न धर्य विचार, छोड़े कभी न विपंति में, ईश्वर का आधार। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindira...
अजीब दुनिया
कविता

अजीब दुनिया

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बड़ी अजीब दुनिया है....तेरी समझ नहीं पाता हूँ। बन के धर्मात्मा, गीता उपदेश सुनाती हैं। भीतर से, अपने मतलब को, पूरा करने के लिए, शकुनि की तरह, चालबाजियों की, विसात सजाती हैं। दूसरे ही पल, बुरा नहीं करना, लम्बा भाषण दे जाती है। फिर कानों में, कानों से, कितनी बातें कह जाती है। झूठ और सच को बड़ी, सफाई से तराश लाती है। सच सुन नही पाती। झूठ के पुलिंदे उठा लाती है। फिर अपने पापों को, छुपाने के लिए गंगा नहा आती है। कितने नाटकीय सोपानों को, एक साथ कर जाती है। बुरा जमाना आ गया। यह राग तो गाती हैं। अपने भीतर के जहर को, कहाँ निकाल पाती है। प्रेम की बातें तो करती है। प्रेम से खाली ही रह जाती है। कितनी सुंदर दुनियाँ बनाई तूने। क्या अहसास छीन लिए...... जब लोगों से दुनियां सजाई तूने।। यह दुनियां तेरी...... कितने चेहरे लिए जीयें जाती है। बदल जात...
मजदुर
कविता

मजदुर

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** ब्रह्म मुहूर्त में नींद से जागता है। चिलचिलाती धूप में भी कर्म करता रहता है। घड़ी भर आराम की उसे नहीं परवाह। वह तो मंदिरों के आकार गढ़ता है। ईंट और पत्थरों में जूझता है। बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं को बनाता है। उसे नहीं होती कभी अपनी परवाह। वह तो मस्ज़िद और गिरजाघर बनाता है। मेहनत कर खून पसीना बहाता है। रूखी सूखी खाकर तुरंत तृप्त हो जाता है। सुख से हंसने की उसे कहां परवाह । वह तो पत्थर में भी झरने बहाता है। धूप, बारिश, ठंड में कहां ठहरता है। खेतों की लहराती फसलों में झूमता है। अपनी काया की उसे कहां परवाह। वह तो मिट्टी में सोना और चांदी उगाता है।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), माल...
मां बस मां ही होती है
गीत

मां बस मां ही होती है

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** मेरे संग संग हमेशा ही दुआएं मां की होती हैं। वो मेरी राह से कांटे हटाकर फ़ूल बोती है। वो देती है हमें जीवन स्वयं के अंश को देकर। वो दुनिया में हमें लाती है कितने कष्ट सह सह कर। समेटे प्यार आंचल में वो ममता ही लुटाती है। जहां रोशन बनाती है वह तिल तिल दीप सा जलकर। हमारी जिंदगी में वह सपन के बीज बोती है। स्वयं शोलों पर चलकर प्यार की फसलें उगाती है। वो एक एक जोड़कर तिनका सुहाना घर सजाती है। बलायें दूर हो जाती फकत उसकी दुआओं से, अभावों से भरी दुनिया को जन्नत सा बनाती है। कोई वैसा नहीं होता, मां बस मां ही होती है। सदा मां की नज़र में प्रेम की रसधार बहती है। लुटा कर चैन हमको वो दुखों का भार सहती है। सदा उसका ह्रदय बच्चों के खातिर ही धड़कता है, वह बच्चों के लिए जीवन भी अपना वार सकती है। मैं हंसता हूं वो हंसती ह...
आज़ादी की कीमत
कविता

आज़ादी की कीमत

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** आजादी की कीमत कों क्या खूब चुकाया वीरों नें। सीने पर गोली खाई थी भारत माँ के रणधीरो नें॥ क्रांति दूत ऊन फ़ौलादो नें ऐसी आग लगाई थी। भारत के कोने-कोने से निकल स्वतंत्रता आई थी॥ कतरा-कतरा रक्त बहा कर भारत माँ के चरणों में। उनकों देकर सीख गए वो जो बंटें हुए थे वर्णों में॥ झूल गए फाँसी पर किन्तु कभी कदम ना डोले थे। मरते-मरते बाँके प्यारे वो वन्दे मातरम बोले थे॥ नत मस्तक होकर हम उनकों नित - नित शीश झुकाते हैं। आजादी की कीमत पर जो अपनें शीश चढ़ाते हैं॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई...
चने का झाड़
हास्य

चने का झाड़

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित-अनायास ही तनिक-अधिक उन्नति पाकर मनः स्थिति में उपजित परोक्ष निर्मूल अभिमान को।   मैं चने का झाड़ हूँ नहीं कोई ताड़ हूँ। बावजूद इसके मेरी घनघोर छाया क्योंकि फैली दुनिया में बेपनाह माया हर किसी को सुलभ कराता भरपूर 'लाड़ हूँ' मैं 'चने का झाड़' हूँ। कुछ तो उपलब्धि पाता है, यूँ ही नहीं हर कोई मुझमें बैठ अन्य को धता बताता है । "चढ़ गए चने के झाड़ में" ये तंज मुस्कुराकर झेल जाता है। मिली ज़रा सी शोहरत इज्ज़त दौलत तब उसका ना कोई अपना ना ख़ूनी ना जिगरी रिश्ता काम आता है। सिर्फ़ एक 'चने का झाड़' ही तो दुलरता है। ऐंसा मैं नहीं मानता पर दुनियां में ही तो कहा जाता है। ज़नाब, तब तो कंधे पर बैठाकर घुमाने वाले, मां-बाप भी छूट जाते हैं। (व्यंग्य का तड़का) मेरी मजबूत टहनियों में लटककर ही तो आदमी और मजबूती पाते हैं। उत्तरोत्तर उन्नति की मिसाल हूँ, ब...
शब्द कलश
कविता

शब्द कलश

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द कलश भी रिक्त हुए है, भावों की गंगा बहती है। हृदय कुंज के झुरमुट में मां, अमराई सी रहती है। शब्द अनूठा अनुपम ऐसा, परमेश्वर ने उपहार दिया। जहां स्वयं न पहुंचे भगवन, सृष्टि को आधार दिया। ममता पर जो लिखना चाहा, कलम भला कब थमती है। हृदय कुंज के झुरमुट में मां, अमराई सी रहती है। सहकर पीड़ा भारी जो, जीवन का पुष्प खिलाती है। जाग जाग कर रातों में जो, लोरी मधुर सुनाती है। पूजाघर में जलते दीपक सी, जो घर को आलोकित करती है। तुलसी दल सी पावन है जो मन को सुरभित करती है। क्या लिख जाऊं क्या छोड़ूं मै, मंथन की लहरे चलती है। हृदय कुंज के झुरमुट में मां, अमराई सी रहती है। जीवन के तपते रेगिस्तानों में आंचल की ठंडी छाह मिली। कठिन डगर पर कैसे गिरती, मुझको मां की बांह मिली। मंजिल मंजिल पार करूं मैं, शूल स्वयं ही हट जाते है। जब मेरे गालों पर आकर, ...
शब्द करे सलाम
कविता

शब्द करे सलाम

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** अन्तर्मन से बहिर्गमन को.... आतुर हैं शब्द.... हर शब्द में है उमंग, झलक रही दिव्य तरंग। दिल से निकला हर शब्द, उन योद्धाओं को करे सलाम.... कोरोना के विरुद्ध जो लड़ रहे लाम। लगा अपनी जान की बाजी.... पीड़ितों की जान बचाई। ईश्वर तुल्य बन गए डाॅक्टर.... देवी स्वरुपा नर्सें कहलाईं.... अविस्मरणीय योगदान पुलिस कर्मियों का.... जिन्होंने सौहार्द पूर्ण सहायता पहुंचाई। समाजसेवियों का देख उत्साह.... हुई प्रशस्त मानवता की राह। जन-जन के सहयोग के आगे, कोरोना भी सरपट भागे अंतर्मन से प्रस्फुटित हर शब्द का.... सबको है संदेश, नर सेवा- नारायण सेवा, मिटे क्लेश, मिले समृद्धि का मेवा। इसीलिए शब्द बारम्बार, कोरोना के विरुद्ध ...., लड़ने वालों को करे सलाम।।   परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाच...
मां
कविता

मां

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** जन्नत की खुशियों की चाहत रखते रखते, भूल गए कि हमारी जन्नत हमारी मां थी। जीवन के आपा धापी में दौड़ते दौड़ते, यह नहीं समझ पाए कि आखिर मां क्या थी। तुम रखती थी कलेजे से लगाकर मुझे, बिना सौदा किए प्यार बरसाती थी तुम मुझे। बहुत रुला लिया ए जिंदगी तूने, मां की आंखों से ओझल क्या हुए थे। परवाह करने वाले की कमी नहीं थी राहों में, मतलब के फ़रिश्ते थे जैसे नाग लिपटते बाहों में। तेरे हर दुआ कबूल हो जाती शायद, मेरे तकदीर को चुनौती देती हो तुम शायद। क्यों भुल जाते है तेरे अहसानों को, जिंदगी के सफलता के पीछे के तेरे अफसानों को। शर्म क्यों आती यह कहने में, हम मां के साथ रहते है यह जताने में। तेरे आंचल की छांव पर पल बढ़कर खड़ा हुं, खड़ा हूं मां, बस तेरे बिना लड़खड़ा जाता हूं। खुद गीले में सो कर तूने गरमाहट दी थी, मेरी हर मुश्किल तूने आसान की थी। रह रह कर आ...
आख़िर ऐसा क्यों करते हो
कविता

आख़िर ऐसा क्यों करते हो

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** परहित से दूरी रखते हो ईर्ष्या नफ़रत में जलते हों भूल गए जीवन का आशय आख़िर ऐसा क्यों करते हों? मेहनत पर जिसके पलते हो छल उनके ही संग करते हो ईश्वर का भी भय न तुमको पर पीड़ा पर तुम हंसते हो? मज़हब को मत नशा बनाओ ख़ुद को ख़ुद इंसान बनाओ मर्म बिना समझे जीवन का आपस में लड़ते मरते हो? अहंकार का रोग बढ़ा है लोगों के सिर भूत चढ़ा है अहं खा गया लंका नगरी क्या उससे शिक्षा लेते हो? किश्ती को मँझधार डुबोना दिल मे तीखे शूल चुभोना ग़म देना फ़ितरत में तेरे पर ख़ुद को 'साहिल' कहते हो . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशि...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कोंन आएगा, आखों मे समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखावो जरा चल संकू मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं ........................... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पायेगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलाओं जरा देख संकू मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .............................. जान जाएगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलावों जरा देख संकू मै भी खुशियों को आखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने...