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पद्य

राम का चरित्र
कविता

राम का चरित्र

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** राम राम से सुबह, राम से ही शाम है, राम से बड़ा जग में, राम का नाम है। माता पिता की आज्ञा से, राजपाठत्याग दिया, रघुकुल की रीत निभाई वन जाना स्वीकार किया, धर्म की रक्षा की, अहिल्या का उद्धार किया, अहंकारी रावण को, युद्ध में परास्त किया, तो दशरथ के राम, पुरुषों में महान है। राम-राम से सुबह, राम से ही शाम है । हनुमान के दिल में, धड़कन की हर श्वास में निर्धन की कुटिया में, केवट के विश्वास में, शबरी के जूठे फल में, दर्द के एहसास में, धरती के ज़र्रे ज़र्रे में, राम हैं आकाश में तुलसीदास के नायकको, बारंबार प्रणाम है। राम -राम से सुबह, राम से ही शाम हैं। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाजश शास्त्र, बी टी आई. व्यवसाय - शासकीय शिक्षक सन्...
अपना रूप
कविता

अपना रूप

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** बहुत भली अनोखी लेकिन नार हूँ तीखी छुरी की तीखी तीखी धार हूँ दिखती बहुत सीधी परंतु खार हूँ सभ्यता, संस्कृति और संस्कार हूँ माँ बाप के दिल का टुकड़ा प्यार हूँ कभी ना किया उनको शरमसार हूँ सच्चाई की बहुत बड़ी बीमार हूँ तभी तो सच्चाई की तलबगार हूँ झूठों की ठगी से ना खाई मार हूँ झूठ का ना करती कोई प्रचार हूँ अहंकारों की सबसे बड़ी हार हूँ बहती कई सरिता समुद्र की धार हूँ . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे...
ऐसी नौबत क्यों आई है
कविता

ऐसी नौबत क्यों आई है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** प्राणों को हरने आई है! शव से भू भरने आई है! उपचारों की हंसी उड़ाती, संक्रामक है, दुखदाई है!' कोविड-१९ कहलाई है! कहाँ नहीं है, किधर नहीं है? जा पंहुचेगी जिधर नहीं है! सावधान रहना है सबको, हो सकती है अगर नहीं है! बीमारी जग में छाई है! इटली में आतंक मचा है! नहीं देश ईरान बचा है! फ्रांस और स्पेन हैं पीड़ित, अमेरिका तक जा पंहुचा है! ध्वजा मृत्यु ने फहराई है! "भीड़भाड़ से बचकर रहना!" सच है प्रशासकों का कहना! संयम, नियम, स्वछता हितकर, मरने से अच्छा है सहना! साथ मनुज के परछाई है! महा रोग ने किया प्रसार! दिशा-दिशा है हाहाकार! विस्मित है सारा संसार, घर-घर जन-जन करें विचार! ऐसी नौबत क्यों आई है? . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़...
विश्व के महामारी
छंद

विश्व के महामारी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** शिव बंदना (वार्णिक छंद) नगर मा महेश के महामारी विकसित बासी नरनारि बहुतए भयभीत हैं। छिकरत खहरात हहरात मरि जात कौनो बैद अब तक ऐसे नहीं जीत है। भूमिचोर भूमिपाल भूलि गए हाल-चाल देश मा तेज से बढ़ गए पाप रीत हैं। महादेव भोरेनाथ भवत भवानीनाथ तेरो हि सहारो सब जंग जग जीत है। ____ २._____ ठाकुर महेश जहां गनपति- सेनापति हाल बेहाल नहि होत ओह शहर की। भूतनाथ दीनानाथ गौरीनाथ जहां बसे मारन कि शक्ति छिन जाति है जहर की लोकरीति राखि-नाथ महामारी दूर करौ नष्ट करो रोग सिन्धु पापनी ठहर की। आए दिन एक-एक जाए रहे यमपुरी बीज ही को नष्ट करो प्रभु ऐसो फर की। ____३._____ उमा जुके भरतार हर-तार देश कष्ट मंगल के दाता दास देशबासी तेरो हैं। बढत-दुखारि बाल-वृध्द परेशान सब गिरिनाथ गौरीनाथ हम सब चेरो हैं। घर को कंगाल कर मालिक करेगा क्या हे भूमिप...
आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घने जंगलों कलकल कर बहते झरनों पक्षियों का कलरव शेर की दहाड़ इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं सोचता था अपने खेतों के लिए खलियानों के लिए अपने मकानों के लिए मुझे गर्व था अपनी शक्ति पर बुद्धि पर अपने सामर्थ्य पर। धराशाई किये गगनचुंबी वृक्ष अगणित घोंसले टूटे होंगे, मेरा मकान बनाने के लिए, इसके बारे में मैंने कभी सोचा न था। सुनहरी गेंहू की बालियों के लिए मोती से मक्के के लिए लहकती सरसो के लिए कितने पीपल, पलाश कितने बरगद, अमलताश खो दिए इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं इठलाया हाथी दांत का कंगन पहन मैं इठलाया कस्तूरी की सुगंध से मैं इठलाया बघनखा देख मेरे इठलाने की क़ीमत कितने प्राणों ने चुकाई इसके बारे में मैंने सोचा न था। सूखती नदिया जंगलों के नाम पर कुछ कटीली झाड़ियां चूहे ,मच्छर, विषाणुओं की फौज और धूल भरी आँधिया इनके बारे में मैंने सो...
मुस्कराते रहो
कविता

मुस्कराते रहो

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** करो योग घर में, मुस्कराते रहो। सुबह शाम पोछा लगाते रहो। कामवाली को कह दो आना नहीं। वेतन पूरा मिलेगा....बहाना नहीं। न्यूज़ पेपर को...बासा करके पढ़ो। न नुस्ख़े बताओ...न कहानी गढ़ो। हवन कर, धुंआ से... हवा शुद्ध हो। अब करोना के संमुख बड़ा युद्ध हो। नमो को सुनो....और पालन करो। घरों में रहो.... और तनिक न डरो।   परिचय :-डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak।com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंद...
बेघरों की बेबसी व कोरोना की त्रासदी
कविता

बेघरों की बेबसी व कोरोना की त्रासदी

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** नन्हा मुन्ना पापा से कहता है। अपना आशियाना किधर हैं? पापा हौसला दे कहता, बेटा ये आ गया उधर.. उधर हैं। शीघ्र दो कदम बढा़ता उधर हैं। फिर पुछता पापा, शायद कहता है! भूख लगी है पापा, अब ओर कितना दूर हैं? पर पापा निःशब्द हैं, कैसे कहे? कि अभी कोसो दूर है। सोचता हूँ कब उसकी भूख शांत होगी? इन मासूमों को प्यास भी लगी होगी। कैसे बसेरा होगा? घनघोर अँधियारी रातें भी होगी। यूँ चलते कब? आशियाने की दूरी पार होगी । वो क्या जाने? ये कोरोना त्रासदी हैं। हम भारत देश की आबादी हैं या इस देश के मिट्टी की गरीबी हैं। चलता डगर-डगर पर कोई नहीं कहता, ये अपना करीबी हैं। तब विद्रोही कहता हैं, क्या ये भारत देश की मज़बूरी थीं ? जो सत्तर सालों से पडी़ दीवारों के परिधानों में। साहित्य-शास्त्रों में, विश्वगुरु के परिवेशों में। राजनीतिक खिलाडि़यों की फु...
हम बच्चे
कविता

हम बच्चे

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पूछ रहे हैं बच्चे बड़ों से आज एक गंभीर सवाल, हमें चुप रहने को कहते हो और खुद मचाते हो बवाल। हम चलाते हैं हथियार खिलौने का और तुम चलाते हो असली बंदूक, क्या बेकसूरों की मौत से नहीं पंहुचता है कभी तुम्हें दुःख ? साफ कर रहे हो जंगल के जंगल पेड़-पौधों को काट'-काटकर, प्रकृति को भी कर दिये हजार टुकड़े इस धरती को बांट-बांटकर। तुमसे अच्छे हम बच्चे हैं नहीं करते हैं कोई भेद-भाव, तुम तो जाति धर्म के नाम पर करते हो दिन रात कांव-कांव। छोटी छोटी गलतियों पर तुम बड़े हमेशा डांटते हो ? पर तुम्हारी कितनी बड़ी गलती है इंसान से इंसान को जो बांटते हो ! अल्लाह खुदा भगवान क्या है हम बच्चे कुछ भी नहीं जानते, पर धर्म के नाम पर खून खराबा हम इसे सही नहीं मानते। दुःख हमें तब होता है बहुत जब तुम बड़े हमे भटकाते हो, अपने मनसूबे को अंजाम देने तुम हमें मानव बम...
एक डायन
कविता

एक डायन

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** एक डायन घूम रही है घर में रहा करो। कोरोना है नाम उसका, उससे डरा करो। बात करो कोई से, छेटी रहा करो। जब भी बाहर जाना हो, मुंह को ढका करो। हाथ धोने का नियम पक्का रखा करो। घर में बने जो खाना, जीकर छका करो। नीम हकीम सरीके तुम ना बका करो। समझदार जो बोले उनकी सुना करो। . परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के प्रति जन जागरण। वैज्ञानिक चेतना बढ़ाना। लेखन विधा ~ कविता, गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, नाटक, आलेख आदि। छात्रों में सामान्य ज्ञान और पर्यावरण चेतना का प्रसार। ...
नहीं तुमने न हमने ही
छंद

नहीं तुमने न हमने ही

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधाता छंद - मापनी १४-१४ मात्रा, ७-७ मात्रा पर यति नहीं तुमने न हमने ही, कभी भी है इसे देखा। वायरस चीज क्या होता, देखा है या अनदेखा।। जानकर इसे क्या करना, मगर इससे नहीं डरना। तुम निकलो न अभी बाहर, भटक रहा है कोरोना। घरों पर अभी तुम रहलो, थोड़ा और कष्ट सहलो। विनती करता भारत है, लोगों आज तुम सबसे। रहलो बन्द अभी थोड़ा, कहता भारत है हमसे।। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
विश्व से कर दो दूर कोरोना
कविता

विश्व से कर दो दूर कोरोना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** विश्व से कर दो दूर कोरोना इतना घातक हुआ संक्रमण, चहुँदिश मानवता का क्रंदन। जन-जन तक अब पहुँच चुका, दूषित विष अणु का संवर्धन। मन बुद्धि संग हैं दंभ से घायल, वायु, पृथ्वी, आकाश, अनल, जल। हमने प्रकृति संग खूब किये छल, कब तक वह रह पाती निश्चल। सीना धरती का चीर ही डाला, बिना नियंत्रण खनिज निकाला। धवल गगन को करके काला, प्राणवायु में भर दी ज्वाला। लज्जा तज दी तोड़ दी माला, थाम लिया मदिरा का प्याला। सुरा-सुन्दरी, जीव निवाला, हमने जाने क्या-क्या कर डाला। सहनशक्ति की भी सीमा है, भले प्रकृति सबकी माँ है। यह विष अणु माँ की माया है, दयादात्रि बस प्रकृति माँ है। अंतर्मन से उद्बोध हुआ है, अब हमको भी बोध हुआ है। कभी न होगी हमसे गलती, हमें बहुत विक्षोभ हुआ है। आत्मग्लानि से भीग उठे हम, निर्दोषों की जान तो लो ना। क्षमा करो माँ ! क्षमा ...
कोरोना से जंग जीतेंगे
कविता, हायकू

कोरोना से जंग जीतेंगे

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** मुझसे मित्र ने पूछा ? कैसे हो आप..? और क्या चल रहा है ? मैंने कहा बहुत बढ़िया खूब खाना आराम योग टी वी मोबाइल और फॉग सभी चल रहा है। बच्चों बेटे-बहुओं के बीच आराम, कोई टेंशन नही पूर्ण विश्राम। लॉक डाउन की बयार चल रही है, दरवाज़े बन्द है, और बहुएं केरम खेल रही है। खिड़की और दरवाज़े बन्द है, बेटों के मोबाइल की आवाज़ मन्द है। आज उपवास है चाय पी ली चिप्स पपीता खा लिया, चुकंदर का ज्यूस पा लिया, थोड़ा सा घूम लिया। सुबह और शाम ! आराम ही आराम। घर मे रहो सुरक्षित हो। विषाणु से युद्ध जीवन होगा शुद्ध अब याद आ रहे है बुद्ध। जान है तो जहां है कोरोना आज महान है। जंग हम ही जीतेंगे मोदी जी का फरमान है। परिचय :-  डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद" सहायक शिक्षक (शासकीय) शिक्षा - एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी.  निवास - इंदौ...
हूँ एक मेहमान
कविता

हूँ एक मेहमान

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। क्या तेरा क्या मेरा जग में कैसी जग की माया। है तकदीर मेरी कुछ ऐसी मानव जन्म है पाया। रुके कभी ना थकें कभी हम आये ना थकान... हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। घर मे जो कुछ आया है किसी की किस्मत का। पैसा कभी पचता नही है अगर वो रिश्वत का। अपनी मधुर वाणी से खुदकी बनाओ पहचान... हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाएंगे। अच्छे कर्म की वजह से ही आप पूछे जाएंगे। करते चलो भला सभी का बनोगे महान... हूँ किरायेदार मेरा खुदका नही मकान। पता है मैं इस दुनिया मे हूँ एक मेहमान। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में...
बदलती जिंदगी
कविता

बदलती जिंदगी

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी भागते भागते जो गुजर जाया करती थी कब सुबह, कब रातें हुआ करती थी... जिंदगी की गाड़ी, इस रफ्तार से चलती थी कि तरस जाते थे, एक पल सुकून के लिये... माँगते थे दुआ कि, काश मिल जाये कुछ पल की शांति जब दूर हो दुनिया से, और कोई सम्पर्क भी न हो, बस मैं, मैं और मेरी तन्हाई हो... लेकिन इस कदर कबूल की, खुदा ने दुआ ये मेरी कि सबकुछ मिला भी तो एक भय के साये में, ये तन्हाई भी अब अच्छी नही लगती हर पल डर की छाया बनी रहती है। अब हर पल , पल पल ये महसूस होता है कि शांति कहि भी नहीं है मिलता सबकुछ है सबको जिंदगी में लेकिन उस पर हमारा कोई, बस नही होता... होता सबकुछ उस की मर्जी से ही है, हमे तो बस उसको ही कबूलना होता है।। उसको ही कबूलना होता है... परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आप...
गागर में सागर
कविता

गागर में सागर

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** गागर में सागर भरने की चाहत हमने पाली है घर में भूँजी भांग नहीं हाथ भी अपना ख़ाली है है इतना विश्वास हमें कि मंज़िल पाँव तले होगी दृष्टि हमारी अर्जुन सदृश ख़ुद से क़समें खा ली है ख़ौफ़ का मंजर चौतरफ़ा है मानवता भी ख़तरे में हर गल्ली हर चौराहे पर दिखता यहाँ मवाली है रहे सिलसिला कर्म का जारी मुट्ठी में मंज़िल होगी भाग्य भरोसे बैठे रहना यह सोच मुंगेरी वाली है सिंहासन मिल जाए तो भी कभी ग़ुरूर नहीं करना भस्म हो गई रावण नगरी बात लाख टके वाली है ‘साहिल’ . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य संग्रह सम्...
रे सुन मानव
कविता

रे सुन मानव

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - करुण, रौद्र विषय - कोरोना त्रासदी के कारण भाव - जीवों पर दया विश्व का कल्याण। https://www.youtube.com/watch?v=gKb0mJfS-dU रे सुन मानव! तू ही तो अपनी निहित गति का कारक है। कल जीवों पर था जुल्म किया अब स्वयं स्वयं का मारक है। यह अथक दण्ड जो भोग रहा तू ही उसका अवतारक है। रे सुन मानव! तू ही तो अपनी निहित गति का कारक है। बनने की ख़ातिर शेर, ढेर अब गिरी जमी पर शाख तेरी। एक अदने ना दिखने वाले ने समझाई औकाद तेरी। अभी तलक अपनी ग़लती को तूने ना स्वीकार किया। चल बता जीव को स्वाद हेतु हनने किसने अधिकार दिया? तू देने हरि को दोष चला, ख़ुद में ख़ुद ही निर्दोष चला। तब अपने दोष गिनायेगा जब स्वयं भी मारा जाएगा? सुन लाख चौरासी योनि में सबको जीवन अधिकार सुलभ। जब-जब भूलोगे यह नेकी तब-तब भुगतोगे कष्ट अलभ। मछली मुर्गे को छोड़ चला चमगादड़ मूर्ख तू खा...
ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती
मुक्तक

ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** १) आंधियों को चीरकर बढ़ना है तुझको। नित नया इतिहास फिर गढ़ना है तुझको।। आग के दरिया को कब किसने रोका है। पाषाण हैं रहें कठिन चढ़ना है तुझको।। २) ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती। ना हीं कोई में विश्व का, विधान जानती।। माता-पिता हीं ऐसे हैं, मेरे इस जहान में। जिनको हूं पूजती, और भगवान जानती।। ३) अपने आँगन का, मान होती हैं। वो पिता का, ग़ुमान होती हैं।। ये जहाँ को, ख़ुदा कि नेमत हैं। बेटी गौरव का, गान होती हैं।। ४) आज के दिन मैं उसके साथ थी।। हाथों में थामें उसका हाथ थी।। दूर जाते देख उसे मैं रोई बहुत। जाने उसमें ऐसी क्या बात थी।। ५) घर की बेटियाँ, लाख मुसीबत ढ़ोतीं हैं। चेहरा हंसता और निगाहें रोती हैं।। करें तरक्की लाख भले दुनियां में ये। घर की मुर्गी दाल बराबर होती है।। परिचय :- दीपक्रांति पांडेय निवासी : रीवा मध्य प्रदे...
धर्म युद्ध
कविता

धर्म युद्ध

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** धर्म युद्ध फिर से लड़ना होगा मानव मात्र को मुक्ति दिलाना। फिर नई त्रृचा को गढ़ना होगा अनासक्त कर्म विधान को हृदय पटल पर लाना होगा। मां भारती के सुपुत्रों को जीवन संग्राम में भिड़ना होगा। अजय बने फिर मां भारती इसे विश्व पटल पर लाना होगा। अंधे बहरे जो बने मनुज है उस धृतराष्ट्र को मरना होगा। सत्य असत्य की परिभाषा को मूर्ख मती तुझे बतलाना होगा। दुस्साहस और भोगवाद को शीघ्र मटिया मेट करना होगा। हिमालय की तुंग शिखर से सिंघनाद फिर करना होगा। बन अर्जुन तू उठा गानडीव धर्म युद्ध फिर लड़ना होगा। महिषासुर की मर्दन हेतु नवदुर्गा को आना होगा। खोए हुए अपने वैभव प्राप्ति हेतु राजा सूरथ सदृश तुझे बनना होगा। अनाचार मिटाने हेतु तुझे श्री परशुराम फिर बनना होगा। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - प...
प्रकृति प्रकोप
कविता

प्रकृति प्रकोप

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** सृष्टि निर्मात्री, प्रलयंकारी प्रकृति। इसमें ही बननी-बिगड़ती हमारी आकृति। फिर भी प्रकृति दोहन करती हमारी मनोवृत्ति। विनाशकाले होती हमारी प्रज्ञा विकृति।। भूल गये हम प्रकृति पूजा। कर्मकृत्य, पाखण्डवृत्ति का ढो़ंग दूजा। मौत खडी़ द्वार पर, ये कोरोना अजूबा। ताली-थाली बजाने का क्या है? तुम्हारा मंसूबा। सम्भल जा मेरे यार, घर में जा, सो जा।। प्रकृति प्रकोप कोरोना कहर में, मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों की सूनी पडी़ दहलीजे सारी। गीता, कुरान, बाईबिल जाली। जैविक जंग लड़ रही दुनिया सारी। प्रकृति तेरी माया निराली। जग-जनता को कर दी न्यारी न्यारी।। पशु-परिन्दों को आजाद कर कैद कर दी जग-जनता सारी।। परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
चन्द सांस लिए
कविता

चन्द सांस लिए

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (म.प्र.) ******************** ईश्वर तू क्यूँ है नाराज हमसे, क्यूँ मंदिर के दरवाजे बंद आज किये... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... बारिश की बूंदों से बता रहा, तू भी रोता है, बंद आँख किये... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... कर दे क्षमा तू दोष हमारा, कसूर जो हमने दिन-रात किये... सर पर रख दे हाथ हमारे हम बालक, तू पित-मात-प्रिये... तू प्रेम बहुत करता है हमसे, फिर क्यूँ ऐसे हालात किये... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... पत्ता नहीं हिलता बिन चाह से तेरी, तूने ही हमें दिन रात दिए... तेरा दिया जीवन तुझको अर्पण, यूँ घूँट-घूँट न जहर दिन रात पीयें... जीये कैसे तेरी कृति, बतलादे तू, चन्द सांस लिए... परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पाद...
हे परमपिता
कविता

हे परमपिता

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** हे परमपिता परमात्मा। आपसे है प्रार्थना।। दूर करो सब संकट। सुखी करो हर जीवात्मा।। कोरोना वायरस का। करो खात्मा।। ताकि सुखी रहे। सब जीवात्मा।। जो जन। सेवा में लगे हैं।। उन्हें शक्ति प्रदान करो। जो परमात्मा में। विलीन हो गए हैं।। उन्हें मुक्ति प्रदान करो। असहाय। गरीब और भूखे।। इंसानों को। अन्नजल प्रदान करो।। दवाई खोज निकालो।। कोरोना वायरस की। इसका इलाज करो।। संक्रमित लोगों को। दो जीवन दान। और जो स्वस्थ हैं।। उन्हें अभयदान। प्रदान करो।। संकट में है। सारी दुनिया।। प्राणी मात्र का। संकट हरो।। जो लोग। अपना घर -बार छोड़कर।। जा रहे हैं। सड़क पर दौड़ कर।। उन्हें सद्बुद्धि। प्रदान करो।। जो निवेदन। कर रहे हैं।। प्रधानमंत्री जी। उनके निवेदन का। सम्मान करो।। अपनी गलती से। मत लो दूसरों की जान।। और स्वयं भी। मत बेमौत मारो।। पूरे विश्व पर। म...
करोना करोना करोना
कविता

करोना करोना करोना

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** हां तुम करोना हो हां तुम करोना हो हां हां तुम ही करोना हो मेरे देश का नहीं किसी और देश का सपना सुंदर सलोना हो हम तो वैदिक सनातन संस्कृति मर्यादा के पक्षधर हैं पूजा इबादत भजन कीर्तन मंत्र में अग्रसर हैं और तुम विदेशी माहौल में पलने वाले खतरनाक विषधर नमूना हो हम हाथ जोड़ शीश झुका कर दूर से ही करते हैं अभिनंदन नहीं करते हाथ मिला कर एक दूजे के गालो का चुंबन तुम जान से खेलने वाले एक कातिल खिलौना हो हमारे जमीन पर चांद सूरज सर्दी गर्मी वर्षा सभी तशरीफ लाते हैं घर-घर नित्य धूप दीप नैवेद्य लोहबान जलाए जाते हैं तुम सर्दी ठंडी में पनपने वाले जिव एक घिनौना हो चैन ओ सुकून नहीं मौत के नींद में सुलाने वाले बिछोना हो हां तुम करोना हो हां तुम करोना हो परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्ती...
कांपे मेरा हिया
कविता

कांपे मेरा हिया

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** मेरे पिया हैं दूर प्रदेश, फैल रहा कोरोना वायरस संपूर्ण देश। थर-थर कांपे मेरा हिया, लागे न कहीं मेरा जिया। हो गयी है उनसे मेरी अनबन, बजा न सकती मोबाइल घंटी टनटन, जा रे कागा , कहना उनसे मेरी बात किसी से मत मिलाए हाथ। साबुन से धो बारम्बार हाथ रखें साफ, भारतीय परंपरा का सर्वत्र करें जाप, गुनगुने पानी का करें सेवन, निषेधात्मक उपाय अपना रहे चेतन। अपने सिर ले न अधिक कार्य भार, मुझे है उनसे प्यार बेशुमार।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@g...
दूर सुदूर
कविता

दूर सुदूर

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** दूर सुदूर आकाश के उस छोर को ताकता, या कहे शून्य निहारता मैं, हा मैं साथ होगा भी कौन, मैं तो है ही, शाश्वत अकेला, नितांत अकेला। एक भ्रम होता है, हम, होने का वही बुनता है, भ्रमजाल मायाजाल मै, उलझता है उलझता जाता है, महसूस करता है अपने, चहु और, अपने जागती आंखे दिखती है सपने। खो जाता है, मै, भूल कर मै। दौड़ता है, कस्तूरी मृग सा मरुस्थल में। दौड़ खत्म नही होती, भ्रम सिर्फ भ्रम समय, शिकारी सा बाट जोहता, दिखाई नही देता। और जब तक मैं ये जान जाता मृगतृष्णा, शून्य से ताकता समय त्रुटि नही करता। वो जनता है, वो शिकारी है और हैं सामने शिकार। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर...
प्रलय या महामारी
कविता

प्रलय या महामारी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** धन वैभव और प्रचुर सम्पदा के स्वामी थे। राजा मनु के राज्य कई, वो निष्कामी थे। रानी सतरूपा, प्रियपुत्रों की थी किलकारी। भूमंडल के मालिक, थे जनता के हितकारी। प्रलय हुई बचा नहीं पाए, सब कुछ छूट गया था। ख़त्म हो गया राज्य समूचा, पल में डूब गया था। रानी सतरूपा के संग, कदम हिमालय ओर चले। संभल न पाये बाहुबली, प्रकृति कोप से गये छले। जीवन फ़िर से प्रारंभ हुआ था, पीढ़ी दर पीढ़ी तक। हम पहुँच गये हैं शायद आधुनिकता की सीढ़ी तक। असहाय हुई पूरी दुनिया, जब दुष्ट करोना ललकारे। गुरु द्रोण नहीं, भीष्म नहीं,,,,,,कौन इसे अब संहारे? अमरीका इटली घबड़ाये, चीन गले तक भरा हुआ। ईरान अकड़ को खो बैठा, रूस फ्रांस भी डरा हुआ। युगपुरुष नमो की सीख यही, धैर्य धरा पर हो जाये। चैन टूटने लगे रोग की, जो जहाँ वहीं पर रुक जाये आधा पेट मिले भोजन, महामारी को हम भगा सकें विश...