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ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती

दीपक्रांति पांडेय
(रीवा मध्य प्रदेश)

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१)
आंधियों को चीरकर बढ़ना है तुझको।
नित नया इतिहास फिर गढ़ना है तुझको।।
आग के दरिया को कब किसने रोका है।
पाषाण हैं रहें कठिन चढ़ना है तुझको।।

२)
ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती।
ना हीं कोई में विश्व का, विधान जानती।।
माता-पिता हीं ऐसे हैं, मेरे इस जहान में।
जिनको हूं पूजती, और भगवान जानती।।

३)
अपने आँगन का, मान होती हैं।
वो पिता का, ग़ुमान होती हैं।।
ये जहाँ को, ख़ुदा कि नेमत हैं।
बेटी गौरव का, गान होती हैं।।

४)
आज के दिन मैं उसके साथ थी।।
हाथों में थामें उसका हाथ थी।।
दूर जाते देख उसे मैं रोई बहुत।
जाने उसमें ऐसी क्या बात थी।।

५)
घर की बेटियाँ, लाख मुसीबत ढ़ोतीं हैं।
चेहरा हंसता और निगाहें रोती हैं।।
करें तरक्की लाख भले दुनियां में ये।
घर की मुर्गी दाल बराबर होती है।।

परिचय :- दीपक्रांति पांडेय
निवासी : रीवा मध्य प्रदेश


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