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पद्य

पितर हमारे
कविता

पितर हमारे

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** पितृ पक्ष में सारे पितर हमारे आशीषों संग धरा पर हैं पधारे स्वागत है मन -प्राण व आत्मा से उनके प्रेम से हृदय हमने हैं सँवारे शुभ्र स्नेह व आशीषों से भरे हम जीते हैं उनकी स्मृतियों के सहारे प्रतिदान उनके‌ दान का है असंभव भाव-सुमन अर्पित, फल्गु के किनारे उनके बताये आदर्शों पर चलकर हम बनायें उन्हें, सदा ही परम सुखारे। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा "हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित, मु...
करवा चौथ
कविता

करवा चौथ

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** भूख नहीं लगती है स्त्री को, करवाचौथ निभाने में, चाहे कितनी देर लगा ले चाँद आज नज़र आने में, उम्र बड़ी होगी या नही ये तो किसी को पता नहीं, आशा है प्यार बढ़ ही जायेगा यूँ त्याग दिखाने में।। आज जी भर संवरती, सोलह श्रृंगार करती है, सज के सुर्ख जोड़े में चाँद का दीदार करती है, उपहार मिले या ना मिले उसे कोई परवाह नहीं, पति की चाहत मिले, इसी का इंतजार करती है। तुम्हारा नाम अपनाती है उसका मान बन जाना तुम, जहाँ पर पा सके सुकूं ऐसा विश्राम बन जाना तुम, परीक्षा प्रेम की दे देगी चुनेगी जंगलों के काँटे भी, पत्नी गर सीता बन जाती है तो राम बन जाना तुम।। परिचय - सोनल मंजू श्री ओमर निवासी : राजकोट (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
चेहरा भाव
दोहा

चेहरा भाव

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मानो कहकर सोचना, दे जाता अवसाद। जो सोचकर कहे सदा, मनमोहक हो नाद।। चेहरा भाव जानिए, अंतर्मन की चाल। कलम समझ तो अनवरत, भाषा मालामाल।। हाव_भाव गुण देन से, जीवन कुछ आसान। दोहरापन छिपा कहीं, कर लेते पहचान।। मुख से प्रकट कुछ करे, मन में रखे दुराव। भिन्न रूप अति सहजता, दिखता है स्वभाव।। पढ़कर भाषा अंग की, माना होती जीत। बचना हो जब गैर से, उसकी है ये रीत।। रिश्तों संग कटुता कभी, देती जब आभास। सहज ढंग परखो इन्हें, सुखद रहे आवास।। विभिन्न अर्थ नकारते, अपनी जिद की टेक। सदाचार ही खो गया, जो बन सकता नेक।। साफ झलकते भाव की, परख शक्ति ही शान। शब्द चयन आधार से, मृदु कुटिल पहचान।। गुण अवगुण दोनों रहें, जग मानव का सार। सहनशील हरदम नहीं, अवश्य करो विचार।। परख अनोखी चाहतें, संभव रहे बचाव। हर पहलू के रूप दो, गलत ...
उपजाऊ रेत
गीत

उपजाऊ रेत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कविता के गाँव हुई, उपजाऊ रेत। लहकने लगे हैं अब, छंदों के खेत। शब्दों के सागर से, चुन-चुन के रत्न। सजा रहा आँगन को, धैर्य का प्रयत्न। पढ़ें गीत सोहर के, चिंतन अनिकेत।। लहकने लगे हैं अब, छंदों के खेत।।१ बाल रहे द्वार दीप, प्रमुदित अनुप्रास। संधि करे नैनों से, चपल सब समास। शिल्प कथ्य साध रहा, व्याकरणिक प्रेत।। लहकने लगे हैं अब छंदों के खेत।।२ लगे रंग रोगन में, सधे अलंकार। लीप रहे भाषा की, खुरदुर दीवार। रसिक व्यंजना परसे, नौरस समवेत।। लहकने लगे हैं अब छंदों के खेत।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के सा...
मतलब के रिश्ते-नाते है
कविता

मतलब के रिश्ते-नाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** धन दौलत तक माँ बाप से नाता है सबल होते ही तोड़े सब से नाता है अंत मे सब छोड़कर चले जाते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है दौलत हो तो सब के रिश्तेदार है गरीब का कब कहाँ कोई यार है गरीबो से लोग रिश्ते भी छुपाते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है अपना-अपना सब को कहते है पर पीड़ा अपने तक ही रहते है वक्त पड़े कोई साथ नहीं आते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है लोग आते है और लोग जाते है जग मे निज-निज धर्म निभाते है कितने लोग जीवन मे ऐसे आते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा रूचि : काव्य लेखन, ...
दर्ज ना हो …
कविता

दर्ज ना हो …

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** फाड़ दो सब चिट्ठियाँ, कॉपी, किताबें, दर्ज ना हो देश का अभिमान जिसमें। काट दो इतिहास से वे पेज सारे, दर्ज ना हो वीरता - बलिदान जिसमें। खून के बदले मिला हमको तिरंगा, मत समझना मुफ़्त की सौगात है ये- तोड़ दो गद्दार के हर बाजुओं को, दर्ज ना हो हिंद - हिंदुस्तान जिसमें।। परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
सागर गहरा कितना क्या है
ग़ज़ल

सागर गहरा कितना क्या है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सागर गहरा कितना क्या है। मछुआरों ने ही समझा है। तेज हवा, लहरों से लड़ना, पतवारों की जीवटता है। गिर-उठकर चलना कश्ती ने, तूफानों से ही सीखा है। भाप बने या बर्फ वही जल, जाकर सागर में गिरना है। सूरज - अग्नि से बनकर भी, धरती का जल से रिश्ता है। मंथन के दौरान जो चाहा, सब कुछ सागर से निकला है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
अयोध्या
गीत

अयोध्या

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** देखो इन्तजार खत्म हुआ, अयोध्या मे मंदिर तैयार हुआ। भव्य मंदिर हे रामलला का, सुन्दर सुशील मनमोहक कला का रामलला अति सुन्दर लगते। सीता भी सयानी लगती। आगया देखो शुभ मुहूर्त आज। "जम्मूद्वीपे भारत खंडे आर्यार्वर्ते भारतवर्षे, एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की , यह जन्मभूमि है परम पूज्य श्री राम की"। मगन हुये सब संत समाज, रामलला बिराजेगे आज। सुंदर तोरण द्वार सजे है, रांगोली हर घर द्वार सजेगी। पंक्तिबद्ध श्रृंखला दीपों की, जगमग-जगमग अयोध्या नगरी आज। कंचन बरस रहा मेघो से, श्वेत अश्व सुंदर है सजे हैं, घोड़ा बग्गी भी तैयार। चले अयोध्याधाम हे आज। रामलाल का भव्य मंदिर हे तैयार। जय श्री राम जय श्रीराम, जय-जय श्री अयोध्या जी धाम। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य...
सहनशक्ति का पर्याय लहर
कविता

सहनशक्ति का पर्याय लहर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों टकराती हो कूल से जानती हो ना तुम्हें लौटना होगा पुनः पवन के थपेड़े खाने के लिए तुम लहर हो, नारी हो सहन शक्ति का पर्याय बनो। तड़ाग के स्थिर जल में तुम्हें बहना नहीं टकराकर पुनः लौटना है प्रत्यागमन कर पवन के साथ अटखेलिया करते समय बीतता है बीच-तड़ाग के बीच में ही तड़ाग तुम्हें छोड़ देगा कूल के लिए। तुम जानती नहीं, ना समझ पाती हो पवन, पानी का वार्तालाप जो स्वयं के सुख के लिए तड़ाग के सौंदर्य के लिए तुम्हें टकराने के लिएं कूल तक भेजते हैं। दूर बहुत दूर से तुम्हें छटपटाता देख उल्लासित हो पवन, पानी मिलकर तुम्हें धकेलते है अपनी सुंदरता के लिए प्रकृति प्रेमी को उल्लसितकरने के लिए उसे गुनगुनाने, कलम चलाने को बाध्य करते हैं ताकि साहित्य नया रचा जा सके जो जन् मानस में स्फुरण भर सके।। ...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर, दक्षिण ,पूरब, पश्चिम, एक सभी का नारा 'हिन्दी' भारत में जनमन की 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। सर्व-प्राचीना-संस्कृत-जननी भगिनी जिसकी सब भारत भाषा दर-दर की बोली 'शिशु-सरल' निर्मल जिसकी मातृ अभिलाषा इन बोली, उपभाषा में बसता प्राण हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। माँ की लोरी, पिता का गान गिनती, पहाड़ा,अक्षर-ज्ञान कविता, कहानी और विज्ञान विकसित-सोच-समझ-अनुमान मातृभाषा में ही अपने- पलता संस्कार हमारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। अंग्रेजी, फ्रेंच, इटाली, जर्मन रूसी, चीनी, कोरियाई, बर्मन हित्ती, ग्रीक, युनानी, रोमन अल्बानी, तुर्की, फारसी, अर्बन होंगी बहुत सी भाषाएँ पर हिन्दी सबसे मधुरा-प्यारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। ब्रज, बुन्देली, कौरवी...
यादें
कविता

यादें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ज़ख्म हरे होने में देर नहीं लगती यादों को कूरेदोगे तों अश्क निकल आएंगे यादों का सैलाब पीछा नहीं छोड़ता है तुम से कारवां कारवां से सैलाब बन जाओ, यादों को जश्न सा मनाओ यारों बीत गया सो रित गया आगे बढ़ो नये आयाम थामो। जेहनं में जिंदगी के फलसफे लिखे हैं l इन फलसफो का इतिहास बनाओं यारों।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी...
गाँधी जी का रूप निराला
कविता

गाँधी जी का रूप निराला

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गाँधी जी का रूप निराला, गमछा लकडी चश्मा काला। शान्ति से क्रान्ति तुम करते, सविनय, दाण्डी, अग्रेंजो तुम भारत छोड़। राष्ट्र पिता भारत के तुम हो, पक्के देश भक्त भी तुम हो, अग्रेंजो की ठठरी बारी, विदेशी कपडो की होली बारी, पहुँचाया सबको निजधाम, भारत माता की जय-जय कार। कितने जुल्म सहे लोगो ने। कितने अत्याचार सहे लोगो ने, हार ना मानी जीते हे आप। विश्व गुरु फिर बनेगा आप। जय हिंद जय भारत। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता लेखन...
हम डूब जाएं पानी में
कविता

हम डूब जाएं पानी में

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** (२०१२,२०१३ दामिनी घटनाओं से आहत) देश डूब जाए पानी में तब न होगा रेप, न होंगी हत्याएँ न ही क़त्ल की चर्चा होगी, न ही डाके की घटना होगी। किंतनी गुड़िया आहत होंगी, कितनी देंगी क़ुर्बानी कितनी कलियाँ मुरझाएँगीं, कितने जीवन होंगे पानी पानी। कितनी गुड़िया चीख़ेंगीं, कितनी गुडियां तड़पेंगीं कितनी गुड़िया क़ुरबान चढ़ेंगी, प्रतीक्षा प्रलय की अगवानी में। देश डूब जाए पानी में। न गुड़िया घायल होंगीं, न गुड़िया को ग्लानि होगी न उसकी सिसकी गूँजेंगीं, न भारत की अस्मत पानी होगी गुडियां बच भी जाएँ तो क्या, घायल की गति घायल ही जाने उसके मन में क्रंदन होगा, आग लगे अब पानी में। देश डूब जाए अब पानी में। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्त...
खुश्क तबियत
ग़ज़ल

खुश्क तबियत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुश्क तबियत हरी नहीं मिलती। और फिर रसभरी नहीं मिलती।।१।। लोग कहते कि चाँदनी देखो, चाँदनी साँवरी नहीं मिलती।।२।। नाज़ नखरे हजार होते हैं, रूपसी बावरी नहीं मिलती।।३।‌। नाज़नीनों को भटकते देखा, आप सी सहचरी नहीं मिलती।।४।। हूर तक को उतार लेता पर, आप जैसी परी नहीं मिलती।।५।। इश्क नमकीन हुस्न मीठा है, प्रीति भी चरपरी नहीं मिलती।।६।। "प्राण" की प्यास आखिरी होगी, ज़िन्दगी दूसरी नहीं मिलती।।७।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
बेचारा आवारा
कविता

बेचारा आवारा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** थक कर बैठ गया हूँ थोड़े विराम के लिए मगर सोच मत लेना कि मैं जीवन से हार गया हूँ। बदलते रहते हैं जीवन के पड़ाव मगर सोच मत लेना मैं दूसरों के सहारे हो गया हूँ। बदलते हुए जमाने के साथ थोड़ा बदल सा गया हूँ मगर सोच मत लेना कि अब मैं आवारा हो गया। गुमसुम सा रहता हूँ गुमनाम लोगों के बीच मगर सोच मत लेना कि अब मैं बेचारा हो गया। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
निरोगी इंसान
कविता

निरोगी इंसान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पंछियों का कोलाहल दुबके इंसान घरों में मुंडेर पर बोलता कौआ अब मेहमान नही आता संकेत लग रहे हो जैसे मानों भ्रम जाल में हो फंसे। नही बंधे झूले सावन में पेड़ों पर उन्मुक्त जीवन बंधन हुआ अलग-अलग हुए अनमने से विचार बाहर जाने से पहले मन में उपजे भय से विचार। क्योंकि स्वस्थ्य धरा निरोगी इंसान बनना और बनाना इंसानों के हाथों में तो है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में ले...
लक्ष्मी का अवतार राधिका
स्तुति

लक्ष्मी का अवतार राधिका

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी का अवतार राधिका, बरसाने में आई। विष्णु स्वयं, अवतार कृष्ण हैं, गोकुल बजे वधाई। राधा बिना,कृष्ण आधा है, राधा ही कान्हा है। कान्हा बिना,अधूरी राधा, राधा बिन कान्हा है। राधा-माधव, युगल मनोहर, झाँकी सुंदर, प्यारी। करती हैं निर्मूल दुखों को, श्री वृषभानु दुलारी। हैं बड़भाग, राधिका रानी, कृष्ण बने अनुगामी। तीन लोक आधीन आपके, बारंबार नमामि। लीला मधुर,राधिका जी की, अविरल गंगा धारा। सुखद छटा, राधा-मोहन की, मनमोहन अति प्यारा। चरण शरण जो रहे युगल की, पाप, ताप मिट जाते। जनम-मरण के भव बंधन से, सब छुटकारा पाते। विष्णु रूप में जन्मे कान्हा, लक्ष्मी रूप में राधा। युगल रूप जो दर्शन करता, हट जाती है बाधा। देह रुप हैं कृष्ण कन्हाई, बनी आत्मा राधा। कृष्ण अधूरे हैं राधा बिन, बिन कान्हा के रा...
गांधी व स्वच्छता
कविता

गांधी व स्वच्छता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** देश के हर कोने में, जागरूकता में जारी स्वच्छता का वृहत अभियान गाँधीजी के जन्मदिन पर, तूल पकड़ रहा जोरो पर देशभर के हर कोने कोने में स्वच्छता का वृहत अभियान देशवासियों ने हर जगह बढ़ा दिया स्वच्छता का मान सन्मान, स्वच्छता की कमी न रखने का किया जा रहा है, गांव से शहर तक देशभर की जनता में ऐलान जारी है जारी रखो स्वच्छता का यह वृहत अभियान गाँधी जी स्वयं स्वच्छता में बढ़चढ़कर खुद समर्पित रहकर किये योगदान देशवासियो ने अब समझ लिया गाँधी जी ने बताया चलाया स्वच्छता का कितना आवश्यक है काम स्वच्छता का यह वृहत अभियान चपरासी से अधिकारी जुड़कर सफल बना रहा है झाड़ू पकड़कर देशव्यापी स्वच्छता का सफल स्वच्छता का यह वृहत अभियान गाँधी जी के जन्मदिनपर हर गली मोहल्ले में चलता है यह अभियान जोरो पर जुटते है हर तबके के ल...
तुझमें है काबिलियत
कविता

तुझमें है काबिलियत

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** नापना हो डगर तुझे, लांघ जाना हो पर्वत। मुश्किलों से ना घबराना, आ जाए कोई आफत।। राह में तेरे रोड़े अटकाए, बाधाएं अनगिन टकराए। साहस कभी ना खोना तुम, आ जाए कोई मुसीबत।। दोगले भी मिलेंगे राहों में, आदमी की परख कर लेना। पग नापना फूँक-फूँक कर, चाहे कोई दे तुम्हें नसीहत।। रौंदे जाते यहां ईमान-धरम, सत्य का पैर जमाए रखना। पहचान भीड़ में बना जाना, तुझमें ही है इंसानियत।। मुकाबला जरा डटकर करना, बन जाना अभिमन्यू तुम। तोड़ जाना चक्रव्यूह,कौरवों का, है तुझमें ही काबिलियत।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हमारा लोकतंत्र
कविता

हमारा लोकतंत्र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिम्मत, ताक़त, शौर्य विहँसते, तीन रंग हर्षाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म -अभिनंदन है।। सत्य,प्रेम और सद्भावों के, बादलतो नित छाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्र हमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। ज्ञान और विज्ञान की गाथा, हमने अंतरिक्ष जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। कला और साहित्य प्रगतिके, पैमाने तो भाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदितहैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था, रक्षा, सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। गंगा-जमुनी तहज़ीबें हैं, विश्व गुरू कहलाये हैं। सम्प्रभु हम, जनतंत्रहमारा, जन-जन तो मुस्काये हैं।। जीव...
नवनिर्माण
गीत

नवनिर्माण

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बीती बातें भूले हम सब, आओ नवनिर्माण करें। नवल रचें इतिहास पुनः अब , जन-जन का कल्याण करें।। रहे मीत सच्चाई के हम , झूठों से मुख मोड़ चलें। निश्छलता हो प्रेम सुधा रस , भेद-भाव को छोड़ चलें।। सबक सिखा कर जयचंदो को, हर दुख का परित्राण करें। बने तिरंगे के हम रक्षक, शत्रु भाव का अंत रहे। शीश झुका दे हर रिपु का हम, हर ऋतु देख वसंत रहे।। देश भक्ति की रहे भावना, न्योछावर हम प्राण करें। नैतिकता की राह चलें हम, भौतिकता का त्याग रहे। मानवता की कर लें सेवा, दुखियों से अनुराग रहे।। अंतस बीज प्रेम के बोएँ, पाठन वेद -पुराण करें। राम -राज्य धरती पर लाएँ, अपनों का विश्वास बनें। तोड़ बेड़ियाँ अब सारी हम, भारत माँ की आस बनें ।। रूढिवाद को दूर भगाकर, हम कुरीति निर्वाण करें। परिचय :- मीना भट्ट "स...
मानवता
कविता

मानवता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक संपूर्ण मानवीय गुण है मानवता, जिसमें भरा होता है, सौहार्द, बंधुत्व, समता और समानता, इसमें समाहित रहता है सद्भाव, प्रेम, सदाचारिता और सद्चरित्र, यहीं भाव होता है मानव में पवित्र, सुख समृद्धि एवं शांति से जीवन हो परिपूर्ण, मानवता के लिए ये विचार महत्वपूर्ण, इसमें मानवीय जीवन निरर्थक और उद्देश्यहीन नहीं, जो है सर्वथा उपयुक्त व सही, लोकमंगल की भावना तथा उत्कृष्ट विचार, ये सब मानवता के परिवार, भौतिकता से ऊपर है आदर्शों का स्थान, सिर्फ अपने सुख की चाह नहीं छुपा इसमें सबका मान सम्मान। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
बेरंग होते रंग
कविता

बेरंग होते रंग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंदमुक्त रचना सच, कितना कठिन, दूभर होता है एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना उससे भी कठिन औरों को समझाना ज़िन्दगी के हर रंग में एकरस हो जाना नदी सी यात्रा कर सागर में समा जाना जन्म से तो मिलता प्यारा गुलाबी रंग असमानी रंग आने से धुंधलाने लगता अधिकारों पे कर्तव्य हावी होने लगते भूल जाती है गुड़िया हक़ का प्यार वार देती भय्यू पर सारा लाड़ दुलार लाल रंग की चूनर ओढ़े जाए पियाघर कड़छुल बन जाती दाल हिलाने को वार त्योहार पर ही ओढ़ती चुनरिया फ़िर बरसों सन्दूक में ही रखी रहती समा जाता लाल रंग काल के ग्रास में वह सोचती है सबके लिए दिल से ही ख़याल रखती सभी का हर तरह से फ़िर फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा बस और बस उसी के सिर पर आख़िर व सारे वो सुहाने रंग बदरंग होते जाते पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके स...
द्वयक्षरीय रचना
कविता

द्वयक्षरीय रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे हरिहरी ! राहु रारी है, रह-रह हरा रहा है राह। हीरे राही हार रहे हैं , हेरो हार हरो हुर्राह।। हाहा हीही हूहू हेहे, होहो हूँह हो रही रार। रो - रो रहा हरे हर राही, राहें हेर - हेर हर हार।। अर्थात - हे विष्णु भगवान ! राहु बड़ा ही झगड़ालू है, वह रह - रह कर हर रास्ते में सबको सता रहा है। इसलिए इस रार में होने वाली हार को देखो और उसको हरो अर्थात हार से बचाओ, क्योंकि जीवन पथ पर चलने वाले हीरे जैसे हर राहगीर को यह हार बहुत ही कष्ट कारी हो गई है। चारों ओर हा-हा ही-ही हू-हू हे-हे हो-हो हूँ-हूँ की त्राहि-त्राहि मची हुई है। हे हरि ! हर राह का हर राहगीर अपनी हार देख - देख कर बुरी तरह रो रहा है। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि म...
तो उपकार हमारा होता …
कविता

तो उपकार हमारा होता …

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ हम कहते, कुछ तुम सुनती, कितना सरल सहारा होता... प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। तीसो दिन जो साथ कभी था, अब इक-दिन भी पास न आए, कहाँ गया वह निष्ठुर होकर, कहाँ भाग्य ने खेल दिखाए, कभी-कभी जो दर्शन होता, तो संसार हमारा होता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। जब से मुझसे दूर हुई तुम, मैं एकांत से निकल न पाया, तेरे दर्शन को उर तरसे, मन व्याकुल होकर बौराया, संग व्यतीत की याद न आती, तो भी गुजर हमारा होता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। सावन-बरसा, कजरी आयी, तुमको कब मेरी सुधि आयी हम तो जरे-बरे भादौ में, तुझे क्वार की बात न भायी, चौमासे की बूंँद बिसारी, तन-मन जाए प्यासा-रोता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। कतकी-पूनो,...