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पद्य

बारह पूनम जानिये
दोहा

बारह पूनम जानिये

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* हनुमत प्रगटे चैत में, बुद्ध बैसाख जान। जेठ कबिरा अवतरे, अषाढ़ व्यास महान।।१ सावन में राखी बंधे, भादों तर्पण दान। शरद पूर्णिमा क्वार की, वाल्मीक भगवान।।२ कार्तिक नानक जानिये, अगहन दत्त सुजान। पौष कहो शाकंभरी, माघ रैदास आन।।३ फागुन में होली जले, नाश बुराई जान। बारह पूनम जानिये, हिन्दी महिना ज्ञान।।४ परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लि...
इंद्रधनुष की छटा निराली
कविता

इंद्रधनुष की छटा निराली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** आया है बरसा का मौसम, हरियाली छाई है। प्रकृति मनोहर लगती प्यारी, सबके मन भाई है। धूप निकलती, वर्षा होती, इंद्रधनुष तब बनता। सूर्य रश्मियाँ जब बिखेरता, तब प्रकाश है छनता। शुरू बैगनी रँग से होकर, लाल रंग तक जाता। शेष बचे हिस्से में देखो, रँग प्रत्येक समाता। सातों रँग आपस में मिलकर, प्यारा धनुष बनाते। बालक, युवा, वृद्धजन इसको, देख देख हर्षाते। इंद्रधनुष की छटा निराली, सब को मोहित करती। सतरंगी यह दृश्य मनोहर, अनुपम छटा उभरती। यह अनुपम उपहार प्रकृति का, मानव बना न पाया। बारिश के मौसम में अद्भुत, एक नजारा छाया। कभी-कभी घर के पिछवाड़े, इंद्रधनुष बन जाता। लगता वह नयनाभिराम है, रंग बिरंगा छाता। जब भी बनता आसमान में, लगता बड़ा सुहाना। बच्चे गा-गा कर कहते हैं, मेरे घर आ जाना। परिचय...
एक बार फ़िर से पापा के लिए
कविता

एक बार फ़िर से पापा के लिए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बार फ़िर से पापा के लिए नन्हीं गुड़िया बन जाऊँ चाह मुझे फ़िर एक बार बन जाऊँ सात साल की वह नन्हीं गुड़िया घर आँगन में खूब फिरू नाचती पैरों में पायल रुनझुन छनकाऊँ छोटा लाल बस्ता बगल दबाए सखियों संग पढने को जाऊँ सुनाऊँ पहाड़े मटक मटक कर बाल गीत भी सारे मैं गुनगुनाऊँ सावन में झूला पीपल पर डालूँ संजा गीत मौज में गाकर सुनाऊँ राखी भैया के हाथ में बाँधूँ मैं गुलाबी चूनर ओढ़कर इतराऊँ मैं मम्मा जैसी मीठी लोरी गाकर छोटे भैया को प्यार से सुलाऊँ मैं पापा थके जब आते ऑफिस से कड़क गरम चाय पिलाऊँ मैं गुड्डा गुड्डी खेलते सीख ही जाऊँ गोल गोल रोटी बनाना माँ जैसी घर बाहर के सारे काम मैं करके राजा बेटी बनकर तारीफ़ पाऊँ कुश्ती कराटे लड़कों वाले मैं सीखूँ बाइक पापा की भी चला पाऊँ मैं माँ जब भी चिंता में हो गमगीन भैया को ...
पिता
कविता

पिता

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** पिता पालक है, जनक है पुत्र का सहारा है, सर्जक है। पिता निर्माणक है, साधक है पुत्र के लिए मार्गदर्शक है। पिता पथ है, आधारशिला है पुत्र के लिए, कवच किला है। इसका साया जिसे मिला है वही फूल की तरह खिला है। पिता तरु है, शीतल छाँव है पुत्र का नही कोई अभाव है। पिता मन की भाषा भाव है पुत्र पिता का आविर्भाव है। पिता पुत्र के लिए पतवार है पिता पुत्र का, पालनहार है। पिता पुत्र का सर्जनहार है पिता पुत्र का घर संसार है। पिता ही तो भाग्यविधाता है पिता पुत्र का अटूट नाता है। पिता घर को स्वर्ग बनाता है पिता पूत को सपूत बनाता है। पिता मंजिल को दिखाता है पिता ही चलना सिखाता है। पिता अपना धर्म निभाता है पिता पुत्र को कर्मठ बनाता है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्य...
नायक शुभ परिवार का
दोहा

नायक शुभ परिवार का

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुखद निलय की मूल है, पिता धूप में छाँव। नायक शुभ परिवार का, दृढ़ ग्रहस्थ दे पाँव।।(१) नित्य दिवस निशि कर्म कर, पोषक पालनहार। उदर तृप्त परिवार का, प्रमुदित शुभ घर द्वार।। (२) अति कठोर उर आवरण, अंत मृदुल संसार। कठिन परिश्रम से पिता, सुत भविष्य दे तार।। (३) मूक हृदय मधु भाव रख, कर्म करे दिन-रात। विपदा में सुत ढाल बन, प्रलय काल दे मात।।(४) थाम ऊँगली प्रति कदम, साथ चले वो पंथ। उनके काँधे बैठकर, देखे उत्सव ग्रंथ।।(५) पिता डाँट कड़वी लगे, करती औषध कर्म। बुरी आदतें त्यागनें, कुशल निभाए धर्म।।(६) कर्मठता से सींचकर, नींव बनाए दक्ष। यश वैभव सुविधा सभी, पिता प्रदायक वृक्ष।। (७) शीर्ष पिता साया रहे, सकल स्वप्न साकार। खुशियों के विस्तार से, मिटे तमस कटु खार।।(८) रिश्तें सब अपने लगे, पिता रहे जब साथ।...
मेरे प्यारे पापा
कविता

मेरे प्यारे पापा

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** एक अनंत अंतहीन यात्रा पर निकले छोड़ गए पूरा संसार। माँ की आँखे हे अश्रूपूरित, भैया करें गुहार। पापा तुम बिन पग कैसे रखूँ, जीवन नैय्या बहुत कठिन। स्मृतियों में हे चित्र अंकित, पर वास्तविकता में कहीं नहीं। पग-पग जिसने होसला बढ़ाया, दी हरदम ही सींख। आँखे मेरी हरदम भीगी, करती रहती एक ही मनुहार। जो होते तुम पापा, यूँ ना बिखरता माँ का संसार। कदम कदम मुझको ज़रूरत अब कौन करायेगा नैय्या पार। जीवन की राह बहुत कठिन इन संघर्षों में कौन थामेगा मेरा हाथ। करती रहती थी शैतानी, बात कभी भी ना मानी। अब बहुत याद आते हो पापा, अब किसको बोलूँ में पापा, लौट के आ जाओ ना पापा। पापा तुम हो गए छोड़ के अपना संसार, जीवन जैसे थम ही गया है, नहीं होता अब रक्त संचार। मन बहुत व्यथित है, करुणा करता बारमबार। पापा ही तो सब कुछ थे, पापा ही थे ...
काव्यमय सार
कविता

काव्यमय सार

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मर्दों में मर्दानी थी वो झांसी वाली रानी थी नाम मणिकर्णिका था मनु बेटी वो कहलाती थी भाले कटार खिलौने थे संग नाना के वो खेली थी सबकी ही लाडली थी वो झाँसी वाली रानी थी वीर मनु महलों में आई लक्ष्मी गंगाधर राव बनी विधान विधि का था कैसा सूनी रानी की मांग हुई वो ना थी अबला नारी वो झाँसी वाली रानी थी ऐसे में फिरंगी आ पहुँचे डलहौज़ी वॉकर व स्मिथ व्यापारी बन पासे फ़ेंके भारत में धाक जमा बैठे हड़प नीति भी काम न आई वो झाँसी वाली रानी थी रानी नाना व साथियों ने बिगुल युद्ध का था बजाया छक्के छूटे फिरंगियों के रणभूमि में दम दिखलाया रणचंडी का रूप धारती वो झाँसी वाली रानी थी काना मंदरा सखियाँ लेकर दोनों हाथों तलवारें चली स्वामिभक्त घायल घोड़े ने रानी को अलविदा कहा घावों की परवाह किसे थी वो झाँसी वाली रानी थी...
अग्निपथ
कविता

अग्निपथ

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। देश के रक्षक बनेंगे, स्वप्न हैं दिल में संजोए। फिर क्यों ऐसी अग्नि भड़की, क्यों ये नफरत बीज बोए।। अग्निपथ के मार्ग में, बाधक बनें ये बाल क्यों हैं। अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। रो रही माॅ भारती अब, कह रही ऑचल पसारे। मेरी रक्षा कब करोगे, जब हो तू खुद से हीं हारे।। अपने हीं लोगों पर चल, तलवार होता लाल क्यों है। अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। रो पड़ी है कलम मेरी, लिखते हुए इस वेदना को। क्यों सुलाए हैं ये मेरे, वीर अपनी चेतना को।। आनन्द तेरे देश में, ये आ रहा भूचाल क्यों है। अग्नि का तांड...
पिता ही भगवान हैं
कविता

पिता ही भगवान हैं

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** वो बच्चे बहुत ही खुशनसीब हैं। जिनके सर पर पिता का साया है। वो बच्चे बहुत सौभाग्यशाली हैं। जिसने पिता के प्यार को पाया है। पिता हैं तो बच्चे को कोई गम नही। पिता हैं तो पुत्र नवाब से कम नही। पिता खुशियों से ही भरा सागर हैं। पिता आशीषों का महासागर हैं। पिता पुत्र के लिए ही अभिमान हैं। पिता पुत्र के लिए स्वाभिमान हैं। पिता पुत्र के लिए ही भगवान हैं। पिता पुत्र के लिए बड़ा वरदान हैं। पिता में पुत्र के लिए, अपनापन है। पिता बिना, पुत्र का जीवन सूनापन है। पिता बिना, पुत्र का सुना बचपन है। पिता पुत्र का प्रेरक, मार्गदर्शक है। पिता से ही पुत्र का जीवन सार्थक है। पिता ही सब कुछ हैं, अभिभावक है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
जीवन का यह गीत निराला
कविता

जीवन का यह गीत निराला

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खोया क्या पाया ! जीवन यह अमूल्य पाया कभी छाँव है कभी धूप जीवन पथ पर परिवर्तन आया। कभी पवन चलती है सर-सर कभी मंद हिलकोरों के संग-संग घन की उन घनघोर घटाओं के तट चम -चम बिजली चमक रही नभ पर पवन तरंगनी उन्मादों के स्वर से जीवन का यह गीत निराला।। पवन वेग आवेगों से अवनि पर लाती है घन से किसानों की अब सफल साधना लहराती अमृत की बरखा वसुधा नवल -धवल यह मिट्टी कूप सरोवर बावली जल परिपूरित हरित खेत खलिहानों का जीवन का यह गीत निराला।। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७ शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य पिता : रामविशाल कुशवाहा पति : सत्य प्रकाश कुशवाहा निवासी : मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
खुला बोरबेल
आंचलिक बोली

खुला बोरबेल

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** (छत्तीसगढ़ी) पिये बर पानी खोदे हन गढ़्ढा पानी तो नई मिलीच छोड़ देहेन गढ्डा काबर भूलगें बंद करे ला वो गढ्डा कतको जीव ह मर जाथे गिरके ओ गढ्डा म काबर तै नई जानेच रे मानुष ना समझें काकरो दुःख दर्द ला जीहा हे साँप,मेचका आऊं राहुल कस सिरदर्द बंगे कतको माई बाप बर कतको के होगे घर द्वार सुना छोड़ो ना कभी ऐसन गढ्डा काकरो जीवन हा तमाशा बन जाथे फस के ये गढ्डा म बुलाए ला पड़ जाथे सेना रक्षक ल जेहा बन जाथे मीडिया बर ताजा खबर पढ़ले सुनले देखले वहीच खबर नेता मन राजनीतिक खेलत हे बैठ के घर म मोबाइल ले बोलत हे करत हे आम इंसान बचाए ला कोशिश नेता मन वाह वाही कमावत हे करेला पढ़ते प्रार्थना प्रभु ले जीवन बर सुनथे दर्द प्रभु हर जीवन के खातिर। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : ...
झूठी यारी
कविता

झूठी यारी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मोहब्बत न सही नफरत ही किया करो, खुशी न सही गम ही दिया करो, दिल से न सही दिमाग से ही सोच लिया करो, अपनापन न सही परायपन ही दिखा दिया करो, मुस्कान न सही गम के आंसू ही दे दिया करो, बातचीत न सही खामोशी का आलम ही मेरे नाम कर दिया करो परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
हमसफर
कविता

हमसफर

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मैं अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑, तुम्हे देख कर एक कवल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तेरी मांथे की बिंदी, सलामत रहें तेरी हाथों की मेहदी । सलामत रहें तेरी प्यारी सी मुस्कान, सलामत रहें तेरी दिल की धड़कन ।। तुम्हारी यादों का हर पल लिख रहां हूॅ॑, मैं अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तेरी काजल की लकीर, सलामत रहें तेरी खुबसुरत स तस्वीर । सलामत रहें तेरी होठों की लाली, सलामत रहें तेरी कानों की बाली ।। फूलों में कमल लिख रहां हूॅ॑, मै अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तुम्हारी तकदीर, बरसे धरती पे जैसें अम्बर से नीर । सलामत रहें तुम्हारी हर मंजिल, बस यही दुआं देता है मेरा दिल ।। सुबह-शाम का पल-पल लिख रहां हूॅ॑, मैं अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तेरी हर सुबह-...
आईना
कविता

आईना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिंदगी की हकीकत दिखाती हैं आईना। पल-पल बदलती जीवन सिखलाती आईना।। आईना के प्रतिबिम्ब से बदलती हैं जिंदगी। आईना सा पाक,निष्पक्ष हो हमारी जिंदगीII हकीकत से वास्ता कराती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना II१II आईना वही रहता है, चेहरे बदलते है I समय की हर जख्म दिखाती है आईना II कभी हंसाती, तो कभी रुलाती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना।।२।। हकीकत का अक्स दिखती है आईना । बदलते परिवेश मे बदलना सीखाती है आईना।। ये सच है, झूठ नही बोलता आईना- २ जिंदगी की ...................आईना ।।३।। मानव को मानवता का बोध कराती है आईना। कर्तव्य परायणता का बोध कराती है आईना।। मानव मे देवत्व जागाती है आईना- २ जिंदगी की ................आईना ।।४।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मा...
शीतल किया
कविता

शीतल किया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखो बदल छा रहे बरसने के लिए। बदल गरजने लगे सतर्क करने ले लिए। मेघ मलारह गाने लगे अब वर्षा के लिए। भूमि जो प्यासी है पानी के लिए।। आस लगाये पानी की बैठे नदी तलाब और जमीन। कब होगी अब वर्षा बतला दो इंद्रदेव तुम। जैसे ही गिरती है बूंदे पानी की। सेन्धी सेन्धी खूशबू आने लगती है।। चारों तरफ छाने लगी हरियाली और ठंडक। पेड़ पौधे फूल पत्तीयां सब खिल उठे। गाँव शहर का भी माहौल बदल गया। अमल कमल से चेहरे सब के खिल उठे।। एक पानी की बूंद से क्या क्या देखो बदला। बिन पानी के जैसे कितने वो शून्य थे। पानी की बूंदों ने कितनो का जीवन बदला। गर्मी से देखो सबको शीतल शीतल कर दिया।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी मे...
धरती का बढ़ता तापमान
कविता

धरती का बढ़ता तापमान

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राजस्थान) ******************** तवे सी जलती है धरती बढ़ रहा तापमान है। इंसान ने मतलबपरस्ती में काटे वृक्ष अनेक हैं।। भूमंडलीकरण के कारण पृथ्वी गर्म हो रही है। ग्लेशियर पिघल रहे व चट्टाने खिसक रही है।। हरियाली धरती की खत्म होती जा रही दोस्तों। वन संपदा जल सम्पदा सारी खत्म हो रही है।। जंगली जीव जंतु अब गिनती के ही दिखते हैं। पक्षियों की प्रजातियां लुप्त होती जा रही है।। खग कलरव अब सुनाई नही देता आसपास। बागों में कोयल व चिड़ियों की चहचहाहट।। मोर का नृत्य करना दादुर के बोलने के स्वर। अब कहीं कहीं सुनाई देता है बाग बगीचो में।। धरती के बढ़ते तापमान का कारण औधोगिकरण। बढ़ते वाहन प्रदूषण पेड़ों का लगातार कम होना।। हरियाली के स्थान पर बंजर भूमि के ऊसर मैदान। सूखे दरख्तों की संख्या बढ़ते जाना वर्षा कम होना।। वातावरण में जहरीली गैसों क...
ग़मज़दा क्यूँ है
ग़ज़ल

ग़मज़दा क्यूँ है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। हम समझते हैं जिसे जानेज़िगर, जानेमन मन का दुश्मन वही बना क्यूँ है। हजारों ख्वाहिशें कुर्बान हैं जिस पर मेरी जान करके भी बुत बना क्यूँ है। जख़्म देता है जो दिल को मेरे तड़पा के दिल का मालिक वही बना क्यूँ है। मैंने अश्कों को बड़ी मुश्किलों से रोका है फिर भी दिल उसका तलबग़ार बना क्यूँ है। दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
संत कबीर
कविता

संत कबीर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सधुक्खड़ी़ थी भाषा उनकी, थी उनकी कविता गंभीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। हुआ अवतरण जब काशी में, स्वप्न हुआ कोई साकार। सुखी हुआ उनका पालन कर, नीरू-नीमा का परिवार। हुई कुटी सुखप्रद दोनों की, दर्शन करने उमड़ी भीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। वही लिखा जो देखा जग में, पढ़कर विस्मित है संसार। महामना की सोच-समझ का, जन-जन माने नित आभार। सबद-रमैनी में, साखी में, व्यक्त हुई है उनकी पीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। परंपराओं को झकझोरा, आडंबर पर साधा वार। कहा "मनुज हैं एक जगत के, एक सभी का है करतार।" "लहू सभी का एक धरा पर, गोरे, काले, दीन, अमीर।" महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५...
वो मज़ा कहां ..
कविता

वो मज़ा कहां ..

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** इस शहरी परिपाटी में उस माटी सा मज़ा कहांॽ गैस पर सिकी रोटियों में कंडो की बाटी सा मजा कहांॽ "कहां मजा है उन गांव के कच्चे कच्चे रास्तों का इन चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर वो पगडंडी सा मज़ा कहां कहां मज़ा है यहां वो नारंगी कुल्फी खाने में, यहां गर्मियों में वैसा वो लस्सी की हांडी सा मज़ा कहां उन पेड़ों की धूप-छांव सा इन इमारतों में मज़ा कहां वहां के मंदिर-मस्जिद यहां इबादतो में मज़ा कहांॽ "कहां मजा है यहां वैसी शरारतें करने में यहां के लोगों में वैसी चुलबुली आदतों सा मज़ कहांॽ गाय के बछड़े केसर को चूमने सा मजा कहांॽ फ़सल निकलने के बाद काले खेतों में घूमने सा मज़ कहांॽ "कहां मजा है बहती नदी में यहां पैदल-पैदल चलने का, मस्त हवा में रोज़ रात को आंगन में घूमने का मज़ा कहांॽ इस शहरी परिपाटी में उस ...
चांदनी
कविता

चांदनी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांदी सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी शायद इसी को तो कहते दरवाजे बंद हो तो लग जाता चंद्रग्रहण लोग कहाँ समझते चांदनी का महत्व करवा चौथ शरद पूर्णिमा तीज, ईद चाँदनी बिना अधूरे वैसे तुम भी हो रातों में चाँद की चाँदनी का खिलने का इंतजार फूल भी करते जैसे उपासक करते तुम्हारे चौखट पर खड़े रहने का इंतजार ही कुछ ऐसा जो चांदनी की रोशनी में कर देगा मदहोश। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न ...
समर्पण
कविता

समर्पण

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** थी कोमलांगी बन कर आइ प्रेम की अभिमूरत सींचा पूरे घर को बड़े प्रेम से मेने हृदयपटल पर वास तुम्हारा अब क्या मांगू रब से छूटा मायका, छूटे सपने तेरे साथ चले जब छोड़ कर हम अपने पग पग प्रीत निभाऊँ में प्रेम की अविरल धार बहाऊँ में निस्वार्थ भाव से साथ निभाऊ करूँ ना कामना कुछ भी संग में तेरे खुश हो जाऊँ संग में तेरे दुःख मनाऊँ भूल गई अपने को में तो जबसे तेरे रंग में रंगी पिया कदम कदम पर दी क़ुर्बानी बात तेरी हरदम मानी कितनो को नाराज़ किया साथ तेरा जब से किया निश्छल हे प्रेम मेरा आगे ही बढ़ती जाऊँगी प्रेम की अमृत वर्षा से घर अपना स्वर्ग बनाऊँगी पग-पग राह में तेरे पुष्प बिछाऊँ में काँटों से कँटीली भरे जहान में धंसती जाऊँ में भूल गई सपने अपने भूल गई खुद को ही में तुझको अपने में ही एकाकार किया प्रेम में बाती बन कर म...
भेड़िये
कविता

भेड़िये

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हवसी भेड़िये कहीं बाहर नहीं हमारे अंदर हमारे आस पास ही रहते है। कभी हमारे गंदे विचारों में, कभी हमारी गंदी निगाहों में। कभी हमारी गंदी सोच में ताकते रहता है वो ओरों की बहू बेटियों को। कभी-कभी अपनी सोच से लाचार होकर ये भेड़िये नोचते है अपनी ही बहू बेटियों को भी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
राह कब तन्हा रही है।
ग़ज़ल

राह कब तन्हा रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ रही है , जा रही है। राह कब तन्हा रही है। रास्तों के सिलसिले सब, जिंदगी समझा रही है। जब दिलों की गाँठ उलझें, इक हँसी सुलझा रही है। बैठकर कोयल शज़र पर, तान ऊँची गा रही है। जीत उसकी जब ख़ुशी भी, हार को अपना रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
नारी तू नारायणी
कविता

नारी तू नारायणी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तूफा हो कितने जीवन मे सब सह लेती हो असहय वेदना सह नव सृजन कर देती हो जीवन भर सब पर केवल प्यार लुटाती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो कैसे हो सफर? हर सफर हंस कर लेती हो नया अंदाज दे सफर आसान कर देती हो जीवन के पड़ाव सहजता से अपना लेती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नवसृजन के कर्ता और खुद ही साक्षी भी नवविधान तुमसे ही, तुम ही कामाक्षी भी जाने कितने रूप मे जग कल्याण कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नारी तू नारायणी, तूझसे ही हर नार तू चम्पा, तू चमेली, तू ही है कचनार बागो को सुमन से सुवासित कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो किन-२ रूपों मे पूजन करू समझ नहीं आता है तेरा हर रूप प्रकृति सा सबका भाग्य विधाता है हर रूप मे तूम तो, जीवन का वर देती हो बदले मे कभी कुछ भी...
दर्शन से धन्य हुये
गीत, भजन

दर्शन से धन्य हुये

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** विधा : गीत भजन तर्ज : तेरे इश्क का मुझे पर हुआ... गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य। गुरु विद्या सागर के दर्शन से हम।। जिसे भी मिले दर्शन विद्या गुरु के। मानव जीवन उनका सफल हो गया। कलयुग में भी देखो सतयुग जैसे मुनिवर। चलते फिरते तीर्थंकर कहते लोग उन्हें।। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब धन्य हो गये।। चारों दिशाओं में ऐसे मुनिवर। बहुत कम हमें देखने को मिले। त्याग और तपस्या की वो एक मिसाल है। साक्षात जैसे वो सबके भगवान है।। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य।। मुझे जैसे ही मिला गुरुवर का आशीर्वाद। मानों आत्मा में मेरे कमल खिल गया। ना अपनी रही सुध तब और न कुछ और दिखा। बस...