काबुल में कहर
डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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राजनीति नहीं आती हमको एक बात कह देते हैं।
ठीक नहीं है आरजकता क्यों कर वो सह लेते हैं।
कदम डिगे सत्ता के कैसे, कुछ भी तो न कर पाये।
साफ़-साफ़ ऐसा दिखता लौट के बुद्धू घर आये।
डाल दिये हथियार आपने बिना लड़े ही हार गये।
संकट में आवाम फंसी वो दुबिधा में क्यों डाल गये।
पाक परस्ती, होकर जनता, पता नहीं क्या पायेगी।
अफगानी है कौम निराली कैसे क्या कर पायेगी?
याद आज इंदिरा की आई, नाकों चने चबा देती।
गनी बेचारे नहीं भागते जनता संबल पा जाती।
दोष क्या है मासूमों का, अस्मत क़िस्मत खो बैठे।
बहुत बुरे हैं अमरीकन, जो विष बोकर हैं घर बैठे?
तालिवान के दस्तों को, यदि दुनिया ने रोका होता।
संयुक्त राष्ट्र हिम्मत करते कभी नहीं धोखा होता।
भयभीत लगे सारी दुनिया, आतंकी हमले जारी हैं।
बिजू का गुस्सा केवल ये, आतंकी सब पर भारी हैं।
पर...
























