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कविता

चंद्रशेखर आज़ाद
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चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ... आजाद । पिता का नाम ... स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्... भारत मां की जय... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली...आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा ...उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो...तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर ...आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद... आज़ादी के गीत ही गाता था।। परिचय :- प...
स्वाभिमान मरते देखा
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स्वाभिमान मरते देखा

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** इस दुनिया लोगों को हमनें, पीठ पीछे बुराई बकते देखा। ना जाने कैसा दौर आ गया, जहाँ विश्वास भी ढहते देखा। खुद की दुःख का परवाह नही, दुसरो की सुख से जलते देखा। यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा, और स्वाभिमान को मरते देखा। यहाँ खुशियों के हकदार सभी, पर दुःख में कोई साथ नही। पैसों की बात है हर जगह, और प्रेम की बात कही नहीं। इस मीठे मन में हमने, बुरे ख्वाब ख्याल को पलते देखा, यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा, और स्वाभिमान को मरते देखा। पूरी दुनिया जीत जाएंगे, हम अपने संस्कार से। और जीता हुआ भी हार जाएंगे, बस थोड़ी सी अहंकार से। जिसने की छोटी सी चूक, हमने उसको हाथ मलते देखा, यहाँ अभिमान को बढ़ते देखा, और स्वाभिमान को मरते देखा। परिचय :- विशाल कुमार महतो निवासी : राजापुर (गोपालगंज) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
ताना-बाना
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ताना-बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो-जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
माँ
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माँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न...
रश्मियाँ भोर की
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रश्मियाँ भोर की

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है सभी को साथ वो रश्मियाँ भोर की लोगों की चहल-पहल दिखने लगी है सड़क पर साथ चमकती ये रश्मियाँ भोर की कार्य शुरू होने लगे घरों के और जाने लगे दफ्तर, स्कूल को बच्चे सभी जीवन संघर्ष होनें लगा दिन भर की दिनचर्या लेकर साथ रश्मियाँ भोर की ये तो राज गहरा है जिन्दगी में दिनकर, आदित्य, रवि और इस धरती का सखि उजाला देकर अंधकार भू-माता संग लोगों की है हरती ये रश्मियाँ भोर की अस्त भी होते हैं सूर्य देव शाम को दूसरी भोर में उदय होने के लिए हे इंसा ताकि संसारिक बुने सपने, उठ सकें देखने को हँसती रश्मियाँ भोर की चलती है जीवन की डोर कुदरती सुंदरता से भी जो लुभाती है मन को ओस की बूँदें पत्तियों पर पड़ी खिलने लगतीं हैं देखकर रश्मियाँ भोर की परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं य...
बंद दीवारो मै
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बंद दीवारो मै

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** बंद दीवारो मै इश्क सवाल करने लगा हजारो बंदीशे बाद भी सवाल करने लगा छु कर हमें वो खामोश कदमो चल दिये हे बीना सोचे वो हमसे बवाल करने लगा लौट के फिर आएगे इक दिन वो यहां पर तन्हाई के आलम मे वो मलाल करने लगा हमने तो बे इंतहां उन पर यकीं किया, मगर मुहब्बत के नाम पर वो हलाल करने लगा यकीं कोई करता नही सुनाएं किस्से किसको हमारा तो हाल हर कोई बे हाल करने लगा कैद भी किया है हमें तो कच्चे धागे से साहब सच मानोगे यारो हर कोई सवाल करने लगा इश्क के सफ़र मे ऐसी जोफ वो दे गए मोहन यकीनन खुदा भी अब तो कमाल करने लगा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
नहीं मिला
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नहीं मिला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जो कुछ खोया मैं ने यहां दुबारा नहीं मिला थी तलाश जिसकी वो किनारा नहीं मिला‌। लौट आता मैं भी किसी मौसम की तरह मुझे तुम्हारी ओर से कोई इशारा नहीं मिला। टूटा,बिखरा और बिखरकर निखरा मैं अकेले जरूरत थी मुझे तब तेरा सहारा नहीं मिला। मेहमान बनकर आए दुख,दर्द जीवन में मेरे, पर खुशियों को ढूढ़े घर हमारा नहीं मिला। स्याह रातों में सिसकियों का साथ मिला उमंग भरे जो मन में वो सितारा नहीं मिला। चीखती हैं अजीब खामोशियां रह-रह के मुझमें मुझे कोई मुझ सा नसीब का मारा नहीं मिला। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दू...
नारी तुम नारायणी
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नारी तुम नारायणी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नारी तुम नारायणी हो हे दयामूर्ति हे आत्मशक्ति हे यशाकीर्ति तुम सदाचारिणी हो नारी तुम नारायणी हो तुम देती संबल फैलाकर आंचल पल पल हर पल तुम दुखहारिणी हो नारी तुम नारायणी हो ममता की मूरत भगवान सी सूरत गहना है अस्मत तुम ज्ञानदायनी हो नारी तुम नारायणी हो तुममें है वो साहस करते हैं आभास देवता भी अनायास तुम दुर्गनाशिनी हो नारी तुम नारायणी हो लेना है लड़कर चाहे हँस कर चाहे रो कर जिसकी तुम अधिकारिणी हो नारी तुम नारायणी हो परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी...
समाज की धुरी
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समाज की धुरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह झुकती है हरदम झुकती है कहीं कचरा विनती कहीं गोबर व टोरती कहीं लकड़ी छिलती कहीं लकड़ी उठाती कहीं घन चलाती कहीं शिशु पीठ पर बांध थी वह झुकती है तो सभी उसे और झुकाने अवसर ढूंढते हैं वह झुकती है क्योंकि वह नारी है उसे संज्ञा अबला की है वह अक्सर दिखती आंखों में आंसू लिए आंचल में शिशू ढाके सिर पर बोझ लिए वह जाती दिखाई देती है खेतों नदियों किनारे पगडंडी पर शराबियों से खुद को बचाती वह झुकती है झूला झूलते टोकनी उठाते उपले थापती वह झुकती कमान कि तरह ऊपर उठ पुनः तार-तार होने के लिए पुनः धरा पर जाने की हिम्मत जुटाने के लिए वह है झुकती है समाज परिवार के लिए क्योंकि वह जानती है वह झुकेगी तो परिवार समाज झुकेगा सुदृढ बनेगा कहीं सहारा कंधे का कहीं लकड़ी का कहीं चौखट पर चंडी बनकर खड़ी मैंने उसे देखा है आंखों में डर लिए अपने आप को छुपाते हुए दीवार दी...
निर्गुण सृजन
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निर्गुण सृजन

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पीत पल्लव की बारी है, नव कोपल प्रस्फुटन जारी है। सृष्टि का सृजन करके फिर, ये प्रकृति कब हारी है। जीवन की जीवन से देखो, जंग निराली है....... माटी का जो घट खाली है, मनोराग-संचयन भारी है। कर्मो का अर्जन करके फिर, माटी से सतत मिलन जारी है। जीवन की देखो जीवन से, जंग निराली है....... वसन तो इसका तन बना है, प्राण जब दीपक की बाती है। नौ द्वार के राजमहल में फिर, प्रियतम-प्रभु आत्मा से यारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ जब तक ये घट तेल भरा है, तब तक दीपशिखा जली है। कर्म प्रारब्ध पूरन हुए फिर, प्राण बिना ये घट खाली है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ काया को तो आत्मा ही प्यारी है, हरि-मिलन अंतिम तैयारी है। जब भान हो इस बात का फिर, वही अनुभूति तो चमत्कारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है......... परिचय :...
वक्त की बात क्या करें कोई
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वक्त की बात क्या करें कोई

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** वक्त की बात क्या करें कोई फिर वही बात क्या करें कोई हम तो अपने सनम की बाहों में फिर नरम हाथ क्या करें कोई खुद को खोना तुझको पाना है । फिर तेरा साथ क्या करें कोई मुंतशिर इस तरह हुए अरमा फिर नए ख्वाब क्या करें कोई "अनु" अपनी वफा की राहों में। बेवफा रात क्या करें कोई। परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
टेसू के फूल
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टेसू के फूल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** होले-होले फैल रहीं, जंगल की आग, खिल रहे पलाश, सुबह हो या शाम, बौराये आम, चुप है चमेली, मौन अमलतास, होले-होले फैल, रहीं है आग। फूल आफताब, सुर्ख सा गुलाब, कैद है खुशबू, जहान बदहवास, रूप कचनार, अकेली रतनार, प्रियतम के दिन, प्रियतम के पास, खिले टेसू मौन, चुप चमेली अमलतास। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प...
हिन्दी तेरी शब्दों की मिठास
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हिन्दी तेरी शब्दों की मिठास

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** पढ़ना, लिखना, सुनना तुझको ये विश्वास हमारी हैं, गीत, गजल में तुझे ही गाऊँ अब ये प्रयास हमारी हैं जो अल्फाज़ो में जान भरे वो एक आस तुम्हारी हैं, हे हिन्दी तेरे शब्दों की वो मिठास कितनी प्यारी हैं । वो मिठास कितनी प्यारी हैं ।। इस जग में बोल-चाल की भाषाए तो अनेक हैं, कोई सुना, कोई समझा, कोई कहा एक से एक हैं, न जाने क्या खाश बात है तेरी ही एक भाषा में तुहि अच्छी, तूही सुंदर, और तुही सबसे नेक है । तुझको ही हम समझते रहे, ये अभ्यास हमारी है, हे हिन्दी तेरे शब्दों की वो मिठास कितनी प्यारी हैं । वो मिठास कितनी प्यारी हैं ।। क्या कहु इस हिन्दी को ये हिन्दी बहुत महान है, मातृ भाषा, राष्ट्र भाषा, और भारत की शान है । ये प्यारी और हमारी हिन्दी हम सबकी तो जान हैं, इस हिन्दी के उपकार हम सबको मिली पहचान हैं। तुहि एक ऐसी भाषा है, जिससे हर आस हमारी है...
मिट्टी मेरे गांव की
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मिट्टी मेरे गांव की

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** युगों युगों से रही बोलती, भाषा जो सद्भाव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। खेतों में हरियाली वसुधा, का श्रृंगार कराती है। एक पड़ोसन दूजे के घर, मठ्ठा लेने जाती है। भाईचारा सिखलातीं हैं, गलियां मेरे गांव की । जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। यहाँ सूर्य भी पहले आकर, उजियाला फैलाता है। और पिता के नाम से हर इक, घर को जाना जाता है । आती यादें, चोर सिपाही, कागज वाली नांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। गाँव में किशनू के आने को, ईश्वर भी ललचाते हैं। राम, श्याम, घनश्याम यहाँ, नामों में सबके आते हैं। चारों धामों से बड़कर है, मिट्टी माँ के पांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। परिचय : किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती ...
एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे
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एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** आँखों मे कब तक वो नज़ारे छुपाओगे आँखों ओर पलको को कब तक रुलाओगे, नज़ारो को देख आखों को आंसुओ में कब तक भिगाओगे, एक दिन दोनो नज़ारे देख थक कर रूठ जाएगी अगर आखों में यू ही नज़ारे लिए बैठोगे तो एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे।। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
क्या करोगे जानकर
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क्या करोगे जानकर

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** क्या करोगे जानकर मेरे बारे में। समझ नहीं पाओगे। इसीलिए तुम अपनी सुनाओ। अपने जीत का कोई गीत गुनगुनाओ। मेरे हृदय के छाले देख घबराओ मत, वो तो अपनों ने दिए हैं, वो ही तो हार हैं मेरे गले का। नहीं , मत लगाओ मोल इस हार का तुम इतने बड़े सौदागर नहीं। नहीं समझ पाओगे इनकी कीमत क्योंकि अभी समय और रिश्तों की चक्की में, तुम पिसे नहीं , नफरतों के सील-बट्टों से तुम घिसे नहीं। ये रिश्ते ना, बड़े अजीब होते। दूर के ढोल जैसे सुहावने से प्रतीत होते हैं। पर जब उतरो इस सागर में, तब सच्चाई दिखती है। उसमें तैरती गंद को देख बड़ी तकलीफ़ होती है। मृगतृष्णा हैं सारे भ्रम के हैं बादल ये कारे। बस स्वार्थ तक ही सीमित, होते कई रिश्ते हमारे। इसीलिए मत पूछो मुझसे कुछ भी अंदर तक जला है दिल फूट पिघलेगा। सुनाओ अभी अपनी कहानी क्योंकि अभी कोरा है रिश्ता, यहीं से अभी समय...
बसंत
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बसंत

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** समझो दुःखों का अंत पढो़ नव जीवन का मंत्र आ गया आनंद रुपी पवन छा गया श्रृंगार का सृजन जब बसंत छा जाये तुम आओ द्वार हमारे मैं दरवाजा खोलूँ हर बन्धन को छोडूँ तुम कुर्सी को खिसकाकर तकिये को तनिक टिकाकर बैठो हर चिंता छोड़े आलस को तन पर ओढ़े मैं भी सटकर यूँ बैठूँ गृहकाज की चिंता छोडूँ खिड़की को खोल सलीके लूँ मस्त पवन के झोंके हो चाय की प्याली रखी यादों की भाप उड़े यूं तुम याद करो तरुणाई हो मेरे साथ पुरवाई पीले फ़ूलों की आभा है प्यार तुम्हारा जागा तुम हौले से मुस्काओ बसंत के दूत बन जाओ न जागे तीव्र भावना हो केवल प्यारी भावना तुम समझो और मैं समझूँ कैसा है बसंत का आना तुम हम बनकर रह जाओ हम तुम बनकर रह जायें तुम मन का बसंत सम्भालो मैं तन का बसंत सम्भालूँ घर की दीवारें बोलें मन के दरवाजे खोंले अनुभव की सर्द हवाऐं बसंत के रंग नहायें तुम हम...
वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम
कविता

वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** रक्त चूसक पोथियों की वादियों में। सोच करती संक्रमित उन व्याधियों में। भ्रांतियों का नव हिमालय चढ़ रहे हम।।१ रक्त में उन्माद का विष घोलता जो। पत्थरों के कान में सच बोलता जो।। पाठ्य पुस्तक द्वेष की ही पढ़ रहे हम।।२ लोकतंत्री बैल को डाली नकेलें। हाशिये पर पीटते गुरु और चेलें।। फिर पुरातन पंथ पर ही बढ़ रहे हम।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ...
हस्ती
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हस्ती

ममता रथ रायपुर ******************** ये सच है कि मेरी कोई हस्ती नही है पर जो भी है वह कागज़ की कश्ती नही है जिसे कोई बहा दे बरसाती नाले में या फेंक दे कोई कूड़े दान में मेरी हस्ती कोई मिट्टी की मूरत भी नहीं जिसे कुछ दिनो तक पूज कर फिर पानी मे पवाहित कर दिया जाए मेरी हस्ती किसी के हाथ की कठपुतली भी नहीं जिसे जो चाहे अपने ही इशारे पर नचाते रहे और अंत मे डोर को कस दे सच तो ये है कि मै जो हूँ मुझे वैसा ही स्वीकारा जाए और उसे प्यार और विश्वास से सीचा जाए हाँ तभी होगा मुझे गर्व अपनी प्यारी सी हस्ती पर परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाश...
प्रेम पथ
कविता

प्रेम पथ

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** प्रेम मार्ग अति कठिन, चलना होता मुश्किल, जब तक राह नहीं चले, लगती है झिलमिल, जब चल पड़ते राह पर, कठिन हो तिल तिल, खुशी और गम मिले, मंजिल जब जाये मिल। हीर-रांझा चले राह पर, अंतिम मौत ही पाई, सोहनी और महिवाल ने, प्रेम पथ ही निभाई, कभी-कभी इस मार्ग में, मिले बड़ी कठिनाई, कभी-कभी इस राह में, ,चलकर नाम कमाई। प्रेम पथ कांटों भरा होता, चलना संभल संभल, प्रेम पथ पर चलकर ही, प्रेमी दूर जाता निकल, प्रेम पथ एक दरिया हो, कितने हो चुके विफल, प्रेमी दर्द में चलते रहते, अंत में होते हैं सफल। प्रेम मार्ग पर जब चले थे, शीरी और फरियाद, प्रेम बात जब चलती है, उनको करते सब याद, प्रेमी युगल आगे बढ़ता नहीं करता वो फरियाद, प्रेम पथ पर सफल रहा, जग करता उनको याद। प्रेम पथ एक सागर है, कितनों ने नैया उतारा है, कुछ उतर गये कुछ डूबे, कितने जन पछताए हैं, कि...
जिंदगी का ताना बाना
कविता

जिंदगी का ताना बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
इश्क ही वो इश्क ही क्या
कविता

इश्क ही वो इश्क ही क्या

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें जीवन की ना रुसवाईया हो, ना उसमें दर्द भरी तनहाईयाँ हो, और ना नयनों मे आँशु की बरसात हो, और ना उसमें तड़प हो ना गरज हो, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या , जिसमें सातों जन्मों-जन्मों का स्वप्न ना हो, जिसमें खुशियों की अंबार ना हो, जिसमें तारों को तोड़कर लाने जैसी स्वप्न ना हो, जिसमें रात को दिन और दिन को रात ना लगे, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें बिन दर्द का दर्द ना हो, जिसमें बिन नींद का चैन ना हो, जिसमें बिन रोग का रोगी ना हो, जिसमें जाति-धर्म मिट ना जाएँ, तो वो फिर इश्क ही क्या है ! इश्क मे अंधापन होना चाहिए, ना जाति ना धर्म सिर्फ प्रेम का भूत हो, जिसमें ना जिस्म की लालसा हो, ना कुछ लेने का लोभ-लालच, सिर्फ निस्वार्थ प्रेम की चाह हो, असली इश्क तो वही है जो ...
इश्क की सुबह कब होगी
कविता

इश्क की सुबह कब होगी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** इश्क की सुबह कब होगी जाने, वो रात कब होगी गुजर रही है ये धीरे धीरे ढा रही है वो गज़ब होगी रास्तो की नही मंज़िले है जो मर्जी रब की होगी बात तुम चाहो वही हो वह रात यहां तब होगी तेरे वादो से लिपटा हूॅ मै वो बाते यहा सब होगी कुछ तुम्हारी कुछ हमारी यहा अपनी अदब होगी जमाना देखेगा मोहन को इश्क मे बात अजब होगी परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
नारी की वेदना… नदी से
कविता

नारी की वेदना… नदी से

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** सरिता सी सर-सर बहती हो, जाने कितनी वेदना सहती हो, जब सागर से जा मिलती हो। तब नारी की उपमा बनती हो।। सुख-दुःख भी तुझमे सारा है, जीवन की तु परिभाषा है, हर नारी की तुम आशा हो। सुख-दुःख जीवन का साया है।। नारी ममता की धारा है, तीनो पक्षो को लेकर जब चलती है, सात पुस्तो का नाम रोशन करती है। हे, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी, कुलंकषा, अपगा तुमसे मेरी ये विनती है, जीवन की धार नदी करदो, सागर से जाकर मिल जाऊं। साहिल में जाकर लग जाऊं।। ये झील सी आँखों में लेकर पीड़ा, मीरा की वेदना बन जाऊं, गिरधर गोपाला मैं गाऊ। नदियाँ हूँ सागर से मिल जाऊं।। तेरे प्यार के रंग में रंग जाऊं।।। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर...
बेइंतेहा मोहब्बत
कविता

बेइंतेहा मोहब्बत

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** दिल है मेरा तुम्हारे लिए ही बेकरार दिल को मेरे सिर्फ तुम्हारा है इंतज़ार। नहीं कटते हैं पल-पल दिन और रात करा दो एक बार तुम अपना दीदार। कर बैठे हैं तुमसे ही हम बेइंतेहा प्यार अब कैसे यकीं दिलाऊं तुम को यार। सिर चढ़के बोल रहा मुझमे तेरा खुमार जनम-जनम के लिए चाहिए तेरा प्यार। आगोश में समेटो श्वेतल को जाने बहार करूंगी टूटकर मोहब्बत तुमसे बेशुमार। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...