Friday, May 2राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

मेरी दुनिया हो तुम
कविता

मेरी दुनिया हो तुम

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** तुम्हारे हर एक दर्द की दवा हो गई हूँ मैं तुम्हारे लिए फूल, शोला, शबनम हो गई हूँ मैं हर पल हूँ तुम्हारी ही हमसाया बनकर के मैं अलग होने की सोचते ही तनहा हो गई हूँ मैं! तुम बिन कैसे पल पल गुजरते हैं मुझसे पूछो तुमने भर लिया बाहों में कि पूरी हो गई हूँ मैं! तुम मेरी दुनिया मेरे संसार हो मेरे सनम एक तुम्हारी मोहब्बत में फना हो गई हूँ मैं! बुरे दौर में भी साथ निभाया मेरा मेरे हमदम तुम में खोई हूँ इतना खुद से रुसवा हो गई हूँ मैं! परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
ज़िंदगी…”एक दीप तेरे दर रख आया”
कविता

ज़िंदगी…”एक दीप तेरे दर रख आया”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन प्रीत माटी को गूंथ, प्रेम रंग से दिया रँगा, मिलन आस की बाती धर, चाहत से था रहा भीगा... गढ़ रहा हूं प्रेमदीप को, अरमानो के नीर से, उलझनों की अमा मिटाने, रौशन करता पीर से... सह तपन तू रोक रहा है, परवाने को मिटने से, आह उपजती एक साथ ही, नादा अंग सामने से... कर उजाला तम से लड़ता तू, वास्ते औरो जलता आया, तले तेरे भी उजियारा हो, बन दीप तेरे दर जल आया... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
भोला आदमी
कविता

भोला आदमी

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** आदमी तू बड़ा भोला है बात बोले बड़बोला है अच्छाई-बुड़ाई में भेद न जाने आदमी तू बड़ा भोला है। न जाने तू सच्चाई बस कहे उसकी सुनायी गफलत में पड़ता जाता है आदमी तू बड़ा भोला है। नियम की धज्जी उड़ती सरेआम माँ-बेटियाँ बदनाम होती सरेआम फिर भी लड़ता ये नाकाम शायद कभी तो सुने ये हैवान आदमी तू बड़ा भोला है। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraks...
धरोहर
कविता

धरोहर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हम सबके लिए हमारे बुजुर्ग धरोहर की तरह हैं, जिस तरह हम सब रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को सम्मान देते आ रहे हैं ठीक उसी तरह बुजुर्गों का भी सम्मान बना रहना चाहिए। मगर यह विडंबना ही है कि आज हमारे बुजुर्ग उपेक्षित, असहाय से होते जा रहे हैं, हमारी कारस्तानियों से निराश भी हो रहे हैं। मगर हम भूल रहे हैं कल हम भी उसी कतार की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे हैं। अब समय है संभल जाइए बुजुर्गों की उपेक्षा, निरादर करने से अपने आपको बचाइए। बुजुर्ग हमारे लिए वटवृक्ष सरीखे छाँव ही है, उनकी छाँव को हम अपना सौभाग्य समझें, उनकी सेवा के मौके को अपना अहोभाग्य समझें। सबके भाग्य में ये सुख लिखा नहीं होता, किस्मत वाला होता है वो जिसको बुजुर्गों की छाँव में रहने का सौभाग्य मिलता। हम सबको इस धरोहर को हर पल बचाने का प्रयास करना चाहिए, बुज...
कयामत की रात
कविता

कयामत की रात

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** कयामत तक न भूलेगी, वो क़यामत की रात। दिल को कँपाती, डराती हुई वो तूफानी सी रात। कैसे गिर पड़ा था, आंधी से वो बूढ़ा पीपल, बिजली के तारों में, उलझा हुआ था बेतल। दिल की धड़कन को बढ़ाती हुई डराती सी वो रात। कयामत तक नहीं भूलेगी, वो क़यामत की रात, दिल को कँपाती, डराती हुई, वो तूफानी सी रात। देखा गुस्से से गरजता, पानी में सुलगता वो बादल हर इक शे से टकराता हो कोई भटकता पागल एक अनजान डर को डराती , घबराती सी वो रात कयामत तक नहीं भूलेगी, वो क़यामत की रात। दिल को कँपाती, डराती हुई, वो तूफानी सी रात। हाय वो धोखे से जाना, अचानक यूँ उसका, लौटकर वापस फिर कभी ना आना उसका, लूटकर जैसे मुझ को जाती हुई फरेबी सी वो रात कयामत तक नहीं भूलेगी, वो क़यामत की रात। दिल को कँपाती, डराती हुई, वो तूफ़ानी सी रात। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्...
बस इतनी सी है जिंदगानी
कविता

बस इतनी सी है जिंदगानी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** कभी हँसते गाते मौजों की रवानी कभी दर्द समेटे दिल और आँखो में पानी कभी सुकून तो कभी बैचेनी कभी मन गंभीर तो कभी शैतानी बस इतनी सी है जिंदगानी तैयार हर पल एक नया किस्सा कभी सुख तो कभी दुख का हिस्सा कठिन डगर पर कठिन संघर्ष मंजिल पाने पर अथाह हर्ष जीवन जीने की आपाधापी कभी ईमानदार तो कभी बनते पापी निभाने मे तत्पर अलग-अलग किरदार हैसियत बस इत्ती सी जैसे कोई किरायेदार कुछ वक्त का है बसेरा साँस है जब तक तेरा मेरा चिरनिद्रा लेते ही जग अँधेरा समय के आगे नहीं चलती कोई भी मनमानी जो आज है वो बन जाएगा कल एक कहानी रह जाएगी बस यादों की निशानी बस इतनी सी है जिंदगानी परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर...
ज़िंदगी…”तू रुक, वक्त को जाने दो!”
कविता

ज़िंदगी…”तू रुक, वक्त को जाने दो!”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दरिया-ए-वक्त पर जोर नहीं, वो बहता अपनी रवानी में, अच्छी हो या बुरी सोहब्ते, ना बिसराता कभी गुमानी में, तू ही थम जा! दम भर रुक जा! वो तो बंधा उसूलों से, हैं चार प्रहर,बस तेरे वास्ते, ना गुम हो किसी कहानी में... लम्हा लम्हा दरक रहा हैं, जलती बुझती यादों के संग, रुक रुक कर कहती हैं साँसे, पल छिन जी ले मेरे संग, लहर बड़ी हैं उठती गिरतीं, ना जाने कब किस ओर बहे, कल की फिर कल को कर लेंगे,आज तू बह जा मेरे संग... चलते चलते आ निकले दूर, मंजिल का फिर भी पता नही, तकते तकते शमा गुम हुईं,परछाई का कही कोई पता नही, चलने ही चलने में राहे , पता नही कब कहा गुम हुई, मन भर जी ले, उर की सुन ले, कल क्या होगा पता नही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कवि...
कार्तिक पूर्णिमा
कविता

कार्तिक पूर्णिमा

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** कार्तिक पूर्णिमा स्नान का दिन है भाई, चलकर अयोध्या सरजू नदी में लो डूबकी लगाई। व्यक्ति के जीवन का सब पाप धुल जाय, जो लेगा पवित्र नदी गंगा में नहाय। कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के नाम से भी प्रसिद्ध है भाई, वाणारसी में आज ही गंगा घाट पर देव दीपावली जाय मनाई। शाम के समय दीपक जलाकर गंगा जी में प्रवाहित किया जाये, देश-विदेश के लोगों का मन गंगा घाट की मनमोहक दृश्य लुभाये। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाये, आज के ही दिन भगवान भोलेनाथ से त्रिपुरासुर का अन्त हुआ भाये। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में जो नहाये, उसके जीवन सम्पूर्ण पाप व कष्ट दूर हो जाये। आज ही के दिन सिख धर्म के गुरु नानक देव का जन्म मनाया जाये, इनके जन्म दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में भी जाना जाये। सिख धर्म के लोग गुरु ना...
परमात्मा
कविता

परमात्मा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** खुद को जाना नही दुसरो को जानेगा भरम में जी रहा है सच कब मानेगा। घर से कभी निकला नही लौटने की बात करता है, दरवाजे पर दे रहा दस्तक वहम में जिया करता है। उत्तर तुझे पता है क्यो प्रश्न करता है, ढोंगियों के जाल में फसने को करता है। जो माया रचता है वो भीतर ही बैठा है, तू सोया ही कब था जो उठ कर बैठा है। याद रखो या भूलो कोई फर्क नही होगा अवचेतन की चेतना में तमस नही होगा । सर्वत्र तुझे देख रहा हूँ मुझसे कुछ छुपा नही रोम रोम में बसने वाले मेरी नजरो से तू छुपा नही। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिं...
मेरा वजूद
कविता

मेरा वजूद

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** किन्नरों की भावनाओ को ध्यान में रखकर लिखी गई रचना :- मेरा होना किसी को भाता नहीं सभ्य समाज में, मैं समाता नहीं। जन्म से धिक्कार, कोई अपनाता नहीं सभ्य समाज से मेरा कोई नाता नहीं। सिर्फ हँसी के लिए बना हूँ दर्द पीने के लिए बना हूँ तालियाँ मेरे नसीब में नहीं ताली बजाने के लिए बना हूँ। पेट भरने के लिए मेरी झोली फैली रहती सबकी मुरादें मेरी झोली में सिक्कों संग गिरती रहती अपने तन से नफरत कैसे करूँ बस, खुद मन ही मन धीर धरूँ आँसू को मुस्कान के पीछे धरूँ उसने भेजा धरती पर, कबूल करूँ। तन अधूरा मन अधूरा, ना कुछ मुझमें भी पूरा लेकिन स्त्री का श्रृंगार कर, करूँ कुछ मन का पूरा। कोई नहीं दे सकता मुझे जो रह गया मुझमें अधूरा विनती यही कि दुआ लेते रहना, हो ख्वाब तुम्हारा पूरा। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहान...
व्योम के बादल
कविता

व्योम के बादल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** व्योम के बादल बहा ले, नीर तू, देख धरती रो रही है। रो रही सारी दिशाऐं, ज्वार सागर में उठा है, रो रही जग की हवाऐं। व्योम के बादल बटा, ले पीर तू। रो रहे पाषाण जिन पर, खेलते निर्झर बहे है, रात दिन सरवर रहे हैं। व्योम के बादल हटाले, नीर तू। रो रहा मेरा हर्दय है, रो रहे है नैन मेरे। जल रही ज्वाला विरह की जल रहे सुख चैन मेरे। व्योम के बादल बंधा दे, धीर तू। व्योम के बादल बहा ले, नीर तू। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहि...
व्हाट्सएप मैसेज नहीं कोई खत भेज दो मेरे पते पर
कविता

व्हाट्सएप मैसेज नहीं कोई खत भेज दो मेरे पते पर

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** पता नहीं चल पाता है, संदेश आकर जाता है, कई कई दिन पढ़ते ना, नहीं इनसे कोई नाता है। पुराने वक्त का खत था, आकर मन हर्षाता था, गमी और खुशी सारी, एक झलक कहता था। खत जब आता था घर, डाकिया चल आता था, जोर से दरवाजे पर बोल, खत हमको दे जाता था। आस पास पता लगता, इनके कोई चिट्ठी आई, खुशी भरी खबर मिले, सारे मोहल्ले खुशी मनाई। गम भरा खत होता था, सबको पता लग जाता, पढ़कर वो समाचार ही, गम हमें बहुत सताता। अब क्या मोबाइल चले, दिनभर करे आंखें खराब, लगता चेहरा मानव का, जैसे पी रखी हो शराब। इंसान रखता मोबाइल है, सोचता अपने को महान, ये चीजें कभी ना बनाती, इंसान की कोई पहचान। पुरानी विचारधारा बनी, मोबाइल नहीं खत रूप, खत संदेश दे मन खुशी, खत संदेश होता अनूप। करते थे इंतजार दिनरात, आयेगा कोई शुभ संदेश, अच्छा संदेश जब मिले, इच्छा ना रहती थी शेष। ...
बेटियां
कविता

बेटियां

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अपने गांव का दिखे या ख़बर हो खुश होती है बेटियां बिदाई के समय रुलाती है बेटियां मोबाइल बेटी का आता पूरे घर को नजदीक कर देती बेटियां भाई के रिजल्ट सुनकर ससुराल में मिठाई बटवा देती बेटियां घर आंगन के गुड्डे गुड़ियों को छोड़ बहुत दूर जा बसती बेटियाँ घर मे बेटियों का टूटता खिलौना डर होता आने पर डाँटेगी बेटियां नन्ही चिड़िया सी उड़कर ससुराल में बना लेती बसेरा बेटियां त्यौहार पर नही आ पाने से रिश्तो को रुला देती बेटियां मोबाइल पर दुःख की बातें कभी नही बताती बेटियां मायके-ससुराल को तराजू के पलवो में रिश्ते तोलती बेटियां बेटियों से मिलकर आने पर हिम्मत आजाती खुशियां नाच गा उठती बातें सुनाती नए रिश्तों के घर आंगन को ऐसी होती है प्यारी सी लाडली बेटियां माता- पिता की ता उम्र फिक्र करती बेटियां बेटी की याद आने पर आँसू छलकाती अंखिया परिचय :- संजय वर्...
टूटते गठबंधन और निदान
कविता

टूटते गठबंधन और निदान

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** चौपाल नहीं रही, ना रहे चबूतरे, आपसी खीज ने सब तोड़ डाला। ग़लतफ़हमियो से भरे रिश्तों ने, एकांतता की और मुँह मोड़ डाला। क्या बात करें गठबंधन की हम, इसने भी एकता को निचोड़ डाला। नये रिश्तों की बेहूदी चाह में, लोगों ने पुराना घर फोड़ डाला। गलतफहमियां होती है रिश्तों में, माफ़ करना सुधारना भी जरूरी है। इंसान जो ठहरे हम सब साहब, आपस में सराहना भी जरूरी है। वहम जो है ये फ़क़त मन का मेल है, मेल को जड़ से मिटाना भी जरूरी है। गौर से देखें अनदेखे ना करें रिश्ते, जीवन में रिस्ते निभाना भी जरुरी है। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जान जरूरी-जहान भी जरूरी
कविता

जान जरूरी-जहान भी जरूरी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मानव रूप में जनमे युग के विशाल योग से कर्मों कीआहुति मरने कोरोना अकाल रोग से दिल दौलत दुनिया का तालमेल जरूरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुन्दर जहान जरूरी है। धरा पर संवादी मौसम हमें आगाज़ कराता कई ढंगों से जीवन-यापन आभास कराता आन जरूरी है, दिल का अरमान जरूरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुंदर जहान जरूरी है। अनजाने स्वभाववश, कभी मार्ग दिखलाता किसी मोड़ पे संयोगवश घटना याद दिलाता दान जरूरी है, सेवा अवदान बहुत जरुरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुंदर जहान जरूरी है। कर्म भाग्य चाल से शीर्ष स्थान मिल जाता राष्ट्रप्रेम हितैषी जग में महामानव कहलाता उसका मान जरूरी है यथा सम्मान जरूरी है ये जान बड़ी जरूरी, सुंदर जहान जरूरी है। साहित्यकार इस जगत में, कई रंगों को झेले सूरज चांद गगन धरा, राष्ट्रीय कलम से खेले राष्ट्रगान जरूरी है, उसका गुणगान जरूरी है। ये जान बड़ी जरूरी, सुं...
संविधान दिवस
कविता

संविधान दिवस

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** कानून दिवस की बहुत बधाई, आप सभी को देता हूं। संविधान तैयार हुआ, मैं श्रेय भीम को देता हूं। संविधान निर्माता बाबा, भीम राव बतलाता हूं। दुनिया गौरव भीमराव को, श्रद्धा पुष्प चढ़ाता हूं। कानून दिवस 26 नवंबर, मिलकर खूब मनाता हूं। बाबा साहब भीमराव को, अपना शीश झुकाता हूं। रक्षा करना संविधान का, आवाह्न करता हूं। लोकतंत्र की रक्षा करना, यही निवेदन करता हूं। संविधान का पालन करिए, पढ़िए, सभी बताता हूं। संविधान घर-घर में रखिए, सबको यह समझाता हूं। संविधान का ज्ञान रखें सब, अच्छी बात बताता हूं। भ्रष्टाचार तभी मिटेगा, सबको यही पढ़ाता हूं। शिक्षित हो, संगठित बनो, संदेश भीम का देता हूं। संगठित बनो, संघर्ष करो, मैं ज्ञान सभी को देता हूं। बाबा साहब भीम की बातें, सभी से करता रहता हूं। संविधान की बातों को, सबको बतलाता रहता हूं। परिचय :- ...
आस्तीन के साँप
कविता

आस्तीन के साँप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आजकल के इन साँपो को पहचानना बड़ा मुश्किल है, कौन आस्तीन का साँप है कब डस लेगा जानना और मुश्किल है। वैसे तो आजकल हमारे इर्द गिर्द ऐसे जहरीले साँपों का हर समय डेरा है, हमारा ही शुभचिंतक बन कौन कब डस लेगा अहसास कर पाने में सब विफल हैं, क्योंकि ऐसे आस्तीन के बहुतेरे साँप हमारे तो बड़े शुभचिंतक हैं। किसको कैसे पहचानें प्रश्न कठिन है, डसे जाने के बाद समझ में आने का ही क्या मतलब है? देखने में भोले भाले आपके लिए जान की बाजी भी लगाने को तैयार हैं, मौके की तलाश में वो कुछ भी करने को तैयार हैं। बस एक मौके का ही उन्हें इंतज़ार है, इधर मौका मिला नहीं कि बस ! डसकर फुर्र हो जायेंगे कोई नहीं एतबार है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीव...
उड़ान
कविता

उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता बेटी की आँखों में देखता सपने, कल्पनाएँ अन्तरिक्ष में उड़ानों के पंख संजोता सपनों में। मन ही मन बातें करता बुदबुदाता मेरी बेटी का ध्यान रखना जानता हूँ अन्तरिक्ष में मानव नहीं होते इसलिए हेवानियत का प्रश्न नहीं उठता। पिता हूँ फिक्र है मुझे बड़ी हो चुकी बेटी की छट जाते है, जब भ्रम के बादल तब दूर से सुनाई देती है भीड़ भरी दुनिया में उत्पीडन की आवाजें उन्हें रोकने का बीड़ा उठाती बेटी की आक्रोशित आँखे। देती चीखों के उन्मूलन का देखता हूँ विस्मित नज़रों से फिर से संजोये सपनो को बेटी की आँखों में उडान उत्पीडन से निपटने की होंसलो, कल्पनाओ के साथ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...
मोक्षमार्ग का पथ
कविता

मोक्षमार्ग का पथ

संजय जैन मुंबई ******************** ज्ञान धर्म की तरफ मेरा ध्यान बड़ता जा रहा है। जीवन का सच्चा अर्थ हमे समझ आ रहा है। बिना धर्म के मुक्तिपथ हमें मिल नहीं सकता। इसलिए हर कोई धर्म से जोड़ता जा रहा है।। जब से तुम आये हो इस संसार में। तब से लेकर अबतक तुमने किया क्या है। जरा सोचो समझो और करो विचार। तभी जिंदगी के सच को तुम पहचान पाओगें।। जब भी तुम करो तीनलोक के नाथ के दर्शन। तो स्वंय को देखो तुम नाथ के अंदर। तो तुम्हें जीवन का सच्चा पथ मिल पायेगा। और मोक्षगति का मार्ग तुम्हें निश्चित ही मिल जायेगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं ...
बिटिया का जन्म
कविता

बिटिया का जन्म

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** दिन था चौबीस मार्च जब मेरी बेटी दुनिया में आयी डाक्टर, नर्स ने कहा बधाई हो बधाई लक्ष्मी है आयी ! बिटिया का चेहरा देख मैं अपनी प्रसव वेदना बिसराई बिटिया को नर्स ने हल्की थपकी देकर धीरे से रुलाई! सुन आवाज दादा-दादी नाना-नानी की आंखे भर आयी अपने चाचा, बुआ, मामी-मामा की नन्ही परी है आयी! नटखट चुलबुली शैतानी करके सबके मन को लुभाई पापा ने देखा लाडो का चेहरा, चेहरे में मुस्कान थी छाई! मीठी बातों का खजाना और प्रश्नों का भंडार है लायी छुन-छुन करती उसकी पायलिया सबका मन हर्षाई! जब भी थोड़ी सी डांटू मैं तो सहमी और घबराई मैं कभी भी रोऊं तो मेरे आसूं पोंछने पलक मेरी है आयी! परिचय :- श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी- अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
श्रद्धांजली
कविता

श्रद्धांजली

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** दुनिया आपसे सीखेगी, बिटिया को शेर बनाया है। प्रभु दयाल जी मेरा नमन, निब्बान अपने पाया है। बेटा से कम नहीं है बेटी, सिद्ध आपने कर डाला। माया बहन सा बेटी पाकर, आयरन लेडी बना जा डाला। प्रभु दयाल जी आपकी बेटी, नाम आपका चमकाया। यूपी का मुख्यमंत्री बन कर, लोहा अपना मनवाया। अपराधी थरथर कांप रहे थे, प्रभु जी आपकी बिटिया से। माया जैसा निडर बने सब, अर्ज मेरा सब बिटिया से। प्रभु दयाल जी आप हमारे हैं, देश की गौरव गाथा में, शत शत बार नमन आपको, अश्रु भरा है आंखों में। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन्म : १० जनवरी १९८८ सम्प्रति : शिक्षक- स्पर्श राजकीय बालिका इंटर कालेज गोरखपुर, लेखक, कवि। निवासी : नौसढ़, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
ज़िंदगी…बिखरी सी
कविता

ज़िंदगी…बिखरी सी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी बंदगी हैं तेरे ही वास्ते, चाहें हमने तुझसे कहा नही, उस सजदे में बस तू ही था, जिसे तूने कभी नवाजा नही... मेरी ज़िंदगी का हर इक सफा, तेरे रंग से हैं सजा हुआ, ये बात कुछ हैं अलग मगर, कभीं तूने उसको छुआ नही... हैं चिराग़-ए-ज़िंदगी जल रहे, अरमा हुए हैं धुँआ धुँआ, बहकी हवाओं से कह दो जरा, अभी घर हुआ रौशन नही... ये बहार-ए-गुलशन और् ये गुल, मेरे वास्ते थी नही कभी, वो खिला भी तो हैं उस दरख़्त,आंधियों में रहा जो थमा नही... तोहमत लगी हैं ये हम पे कि, कभी आसमा को नही छुआ, परवाज मन कि हैं जाने क्या, थे पंख जिसको नसीब नही... हर बात तूने ही थी कही, हर बार दिल ने तेरी ही सुनी, अब मन की तू भी ले सुन जरा, रहें ख़ुद से कोई गिला नही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर,...
एक सलाम फौजी के नाम
कविता

एक सलाम फौजी के नाम

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** एक दिन मेरी फौजी से मुलाकात हुई, और फिर हमारे बीच ऐसी बात हुई। बीवी का वचन भी जिसे याद नहीं, परिवार से मिलने की फरियाद नहीं। माँ की ममता का अक्सर गम होता है, और बेटी से मिलना बड़ा कम होता है। चाहे फौलादी शरीर बनाले फिर भी, कैसे बयान करें खून के आँसू रोते हैं। एक तुम्हें माँ का आँचल नसीब हो, इसलिए हम मौत की गोद में सोते हैं। भारत माँ को अपनी माँ बनाकर, हम हर जवान को भाई कहते हैं। जाती और धर्म का भेदभाव नहीं, हम हिन्दुस्तान में रहते हैं। परवाह नहीं है हमें अब कुछ भी, हम इस भारत माँ के बेटे हैं। शहीद भी बन गए तो क्या हुआ, आज शान से तिरंगे में लेटे हैं l दिवाली में भी जो गोली खाकर, हर पल खून की होली खेलते हैं। गर्व हमे हैं ऐसे शहीदों की मिट्टी पर, एक सलाम हर सैनिक के नाम करते हैं। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा श...
जंगल वाली सोच
कविता

जंगल वाली सोच

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** हुआ पाशविक हृदय आचरण, मनुज रहा अब नोच। इस मिट्टी में उग आई है, जंगल वाली सोच।। आसमान में नाच रहा है, प्रजातंत्र कनकौआ। डोर थमी है जिन हाथों में, बाँटा उसने पौआ।। नव विहान का सौदा करके, सौंप गया निम्लोच। उग आई है इस मिट्टी में...... (१) रोज मुनादी करते टी वी, माॅडल से इठलाकर। हवा आजकल बाँट रही है, खुश्बू घर-घर जाकर।। लगे शिकंजे जगह- जगह पर, मांग रहे उत्कोच। इस मिट्टी में उग आई है...... (२) हार भूख से डाल दिये हैं, अस्त्र सभी होरी ने। तृप्त कर दिया है जन गण को, केवल मुँहजोरी ने।। घाट-घाट का पानी पीता, है जिसकी अप्रोच।। इस मिट्टी में उग आई है..... (३) अपने मंडल के सूरज ने, बना लिया परकोटा। झूठ-मूंठ के बाँट उजाले, मोटा माल खसोटा।। आशा लेकर नव 'जीवन' की, पुश्त हुई सब पोच। इस मिट्टी में उग आई है..... (४) निम्लोच- सूर्यास्त पोच- निक...
इंसानियत
कविता

इंसानियत

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सब रिश्तो से ऊँचा हैं एक रिश्ता जिसकी पहचान है मानवता हर रिश्ते के अस्तित्व में जरूरी है इंसानियत अन्यथा, स्वार्थ के अंधेपन में हावी है हैवानियत स्वनिर्मित कायदे कानून के लिए देते हैं नामी रिश्तो के ओहदे का वास्ता अंधविश्वासी बन नियमों की पालना के लिए औरत ही औरत की शत्रु बन भूल जाती इंसानियत का रास्ता कुछ पाने की लालसा में तो खूब हो रहा दान धर्म परंतु अपनो के प्रति भेदभाव, अहंकार की भावना बड़े पद की आड में छोटो को दे प्रताड़ना नैतिक अनैतिक नजर अंदाज कर भूला रहे मानव धर्म हर घर में नाम है और नामो के साथ है पद परंतु इंसानियत के आगे सबका लगता है तुच्छ कद चाहे कितने ही संस्कारो का ओढ लो आवरण मानव है अगर तो मानवीय हो आचरण संबंध निभाने मे नहीं होगी जटिलता जब हर दिल में बसेगी मानवता परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सू...