ऐसा क्यों, कब तक…???
धैर्यशील येवले
इंदौर (म.प्र.)
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मैं देख रहा हूँ
युगों से
कभी तुम पत्थर की शिला
बन जाती हो
तो कभी देकर अग्निपरीक्षा
धरती में समा जाती हो
कभी काट दी जाती है
तुम्हारी गर्दन
तो कभी अंगभंग की
शिकार हो जाती हो।
कभी भरी सभा में
अपमानित की जाती हो
तो कभी स्वार्थ वश
हर ली जाती हो।
कभी सधवा हो कर भी
विधवा सा जीवन जीती हो
तो कभी वरदान को
श्राप सा झेल जाती हो।
कभी बनती हो खिलौना
लम्पटों का
तो कभी स्वाभिमान के लिए
जलती चिता पर बैठ जाती हो।
कभी कुचल कर जला
दिया जाता है तुझे
तो कभी गर्भ में ही
मार दी जाती हो।
कब तक बनी रहोगी
विनीता
क्यो नही करती हो
तुम, प्रश्न
अहल्या, सिया, रेणुका
मीनाक्षी, द्रौपदी, अम्बिका
उर्मिला, कुंती, उर्वशी
पद्मिनी, वामा।
ऐसा क्यों, कब तक?
ऐसा क्यों, कब तक?
कितने सुंदर रूप है
तुम्हारे
माँ, बहन, बेटी
पत्नी, सखी।
फिर भी तुम
स्त्री, होने का दंड पाती हो।
परिच...