छतरी
संजय वर्मा "दॄष्टि"
मनावर (धार)
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आज आँख भर आईं
पिता की जब याद आई
बारिश की बूंदों ने
दरवाजे के पीछे टंगी
पिता की छतरी की
याद दिलाई.
संभाल कर रखी थी माँ ने
छतरी
नए जमाने के रेन कोट में
बेचारी छतरी की क्या बिसात.
मगर ये यादों के दर्द को
वो ही महसूस कर सकता
जिनके पिता अब नही है
बेजान छतरी बोल नही सकती
यादों में सम्मलित होकर
आंखों से आँसू छलकाने का
दम जरूर रखती है
जीवन की आपाधापी से
परे हटकर दो पल
अपनो को जरा याद कर देखे
क्योकि ये बेजान बाते नही है
यकीन ना होतो फोटो एलबम
के पन्ने उलट कर देखे
आंखों से आँसू ना झलकें
तो दुनिया और रिश्तों से
विश्वास उठ ही जाएगा
इसलिये अपनो की यादें
औऱ उनकी चीजो को
संभाल कर रखें
ये ही जीवन मे
उनके न होने पर
उनके होने का अहसास
ता उम्र तक कराती रहेगी
जैसे पिता की छतरी.
परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि"
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि...