स्मृतिया
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सुरेश चंद्र भंडारी
धार म.प्र.
आओ याद करे कुछ यादें खट्टी मीठी सी
मनमौजी रीती इठलाती अलबेली जैसी।।
जो तन मन जीवन अंतर्मन महकाती है,
चुपके से कानो में कुछ कह जाती है।।
यादें जब निकल चली गलियारों में,
खिला हुआ बचपन चौतरफा राहो में।
यादगार पल मिल जाते भावनाओ में,
हकीकत गुजर जाती है उलाहनों में।।
ये समय तो हरपल चलता रहता है
उषा और संध्या में तो उगता ढलता है।
मन भी तो पंख लगाकर उड़ जाता है,
जो कुछ यूं ही पल दर पल छलता है।।
वक्त जो बीत गया फिर नहीं आएगा,
अतित तो स्मृतियों में ही रह जायेगा।
मुड़कर देखोगे जब पीछे कह जायेगा।
हाँ मन तो तब व्याकुल हो पछतायेगा।।
हम स्मृतियों में यूँ क्यों खो जाते है,
वर्तमान पर यूँ क्यों सिसक जाते है।
भाग्य भरोसे यूँ क्यों स्वयं को भूल जाते है।
प्रबल पुरुषार्थ पर यूँ क्यों रोते जाते है।।
स्मृति के स्वर्णिम पल आंखे खोलो देखो,
करो अंगीकार सुखद सलोने वर्त...