हक़ीक़तनामा
डॉ. वासिफ़ काज़ी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कैसा दुनियादारी का बाज़ार सजा कर रक्खा है।
मौत का, गरीब की मज़ाक बना कर रक्खा है।।
जो रहा करते थे....... ख़्वाबों की अंजुमन में।
उन्हें हक़ीक़त का आईना दिखा कर रक्खा है।।
हम मरीज़ ए इश्क़ हैं, .....ये अब पता चला है।
हमने हक़ीमों को भी घर पर बुला कर रक्खा है।।
उनको मिले ख़ुशियाँ, ......चैन ओ सुकूं जहाँ में।
इसलिये ग़मों को अपने अब तक सुला कर रक्खा है।।
"काज़ी" उनकी मुस्कान बहुत महंगी है इसलिये।
उन्होंने तबस्सुम को भी लबों पर दबा कर रक्खा है।।
परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर"
निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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