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पिता

उषाकिरण निर्मलकर
करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़)

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बरगद की विशाल शाखाओं जैसी,
अपनी बाँहे फैलाए।
ख़ड़े रहकर धूप और छाँव में,
हर मौसम की मार झेल जाये।।
कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है।

कठोर भाव, पर अव्यक्त प्रेम का आसन।
सख्ती से चलनें वाला परिवार का अनुशासन।।
संबल, शक्ति, संस्कारों की मूर्ति।
परिवार के सभी इच्छाओं की पूर्ति।।
कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है।

बिन कहे जो बच्चों का अरमान भांप ले।
बाँहे फैलाये तो सारा आसमान नाप ले।।
थरथराते, काँपते, नन्हे पँखों को।
उड़ान का हौसला देनें वाला।।
कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है।

न जानें अपने अंदर कितनें मर्म छुपाये।
दिल में आह हो, तो भी मुस्कुराये।।
अपनी ख्वाहिशों की चिता से,
घर को रौशन करनें वाला।
कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है।

ईश्वर की अद्भुत रचना,
जो ईश्वर का ही रुप लगता है।
गढ़ता है जो अपनें बच्चे को,
संस्कार,विचार, व्यवहार देकर।
कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है।

परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर
निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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