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कविता

इस नये साल में
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इस नये साल में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** विद्यार्थी बिना शिक्षा न हो भिखारी बिना भिक्षा न हो। कोई युवा बेरोजगार न हो पल-पल होते भ्रष्टाचार न हो। नारी पर कोई अत्याचार न हो जिससे वो असहाय लाचार न हो। मंहगाई की बिल्कुल मार न हो जिसका कोई जिम्मेदार न हो। बिजली बिल अतिभार न हो किसान बेचारा लचार न हो। कोई भी घर बिना टीन न हो संपेरा बिना बीन न हो। डाक्टर बिना आला न हो माली बिना माला न हो। घर बिना ताला न हो दामाद बिना साला न हो। मुर्गी बिना अंडा न हो टीचर बिना डंडा न हो। मछली बिना पानी न हो राजा बिना रानी न हो। भोजन बिना तेल न हो यात्री बिना रेल न‌‌ हो । आटा बिना चोकर न हो सर्कस बिना जोकर न हो। सब्जी बिना नमक न हो वर्तन बिना चमक न हो। टीवी बिना पिक्चर न हो कोहली बिना सिक्सर न हो। गाड़ी बिना तेल न हो टंकी बिना पेट्...
बदल दिया है साल
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बदल दिया है साल

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** अहंकार था वर्षों को वह, दिन से बहुत बड़े हैं। सोच नहीं सकते थे, पल पल के बल साल खड़े है। टूटा अहंकार टुकड़ों में, कर डाला बेहाल। पल-पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। बहुत लाड़ली बनी जनवरी, सबसे मिली बधाई। और फरवरी प्यार भरी थी, दिल से दिल मिलवायी। मार्च और अप्रैल तो निकली, होली के रंग डाल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। बहुत क्रोध में मई जून थी, गर्म हवा ले आयी। रिमझिम बारिश लेकर आई, सबसे मधुर जुलाई। खेतों खलिहानों में पानी भर, अगस्त किया बेहाल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। अम्बर स्वच्छ सितंबर करके, शीत हवा ले आया। अक्टूबर और नवंबर ने, दीवाली दीप जलाया। कटा दिसंबर इंतजार में, कब आये नया साल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। परिचय : किशनू झा "तूफ...
लो बीता है फिर एक साल
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लो बीता है फिर एक साल

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया। हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया। अच्छी बुरी खबर सदा मीडिया ने सभी को दिया होगा। अपने हृदय स्वभाव मुताबिक शौक से ही लिया होगा। दंगल विवाद राजनीति का नया द्वार खुलता होगा। सनातन राह पे आने से, लाखों हृदय टूटा होगा। पांच सौ वर्ष बहस उपरांत, भव्य राम धाम सजाया। सम्मान मार्ग देख किसी ने, बहुतों को ही ललचाया। लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया। हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया। विवाद तनातनी मारकाट किस्से नित्य ही पढ़ा सुना। धर्मजाति हत्या जिहादकथा, का मनमाना रूप चुना। विदेश नेतृत्व लाजवाब, देश लोग ने खूब धुना। कहीं उपलब्धि जानदार पर बहुतों ने किया अनसुना। चुनाव अखाड़े में पटकनी करतब रोचक दिखलाया। दिखता जहां योजना वर्चस्व, मसखरी ठिठोली छ...
सत्य के पैर नहीं होते
कविता

सत्य के पैर नहीं होते

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ईश्वर सत्य, सत्य ही ईश्वर ईश्वर का अर्थ जो न हो नश्वर सत्य अडिग खड़ा रहता है उसे छुपाया जा सकता हैं नहीं भगाया जा सकता है सत्य के पैर नहीं होते। मृत्यु हो या मानव पर्वत धरती या सागर ग्रह नक्षत्रों का मंडल इन्हें डिगाया नहिं जा सकता है सत्य के पैर नहीं होते। पाताल अटल है नीचे ऊपर छाया है अंबर दसों दिशाएं अचल खड़ी हैं एक दूसरे के सब संबल इन्हें चलाया नहिं जा सकता है सत्य के पैर नहीं होते। एवरेस्ट की चोटी, मानसरोवर गंगोत्री का नीर, जलधि की राशि देते जीवन, काल सनातन गगन से शीतलता देता शशि इन्हें हटाया नहिं जा सकता सत्य के पैर नहीं होते। आज नहीं तो कल वर्तमान न ही सही अतीत हो जाने पर सच आता है पल पल मिले चिह्न हैं, घर संभल। इन्हें दबाया न जा सकता है ईश्वर सत्य, सत्य ही ईश्वर सत्य के पैर नहीं होत...
ऐसा दुख मत देना
कविता

ऐसा दुख मत देना

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना। तुम्हें भुला करके जीना हो, ऐसा दुख मत देना।। निष्ठुर है कितना परिवर्तन, टूट रही आशाएँ! क्यों हो रहें निवेदन निष्फल, अब किसको समझाएँ! कैसे दिन अब दिखलाए हैं, 'नादाँ प्रिय का होना'! अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना।। जग की भीड़ बढ़ेगी जिस दिन, होंगी कितनी राहें। देश बदल देना मेरे सँग, छोड़ न देना बाँहें। कहा था प्रिय कि, 'खाली रखना.. मन का कोई कोना।' अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना।। हँसी अलग, बोली तेरी इक, वो तेरी मुस्कानें। कभी कहाँ आपस में सीखा, लड़ना किसी बहाने? अब तो लगता दुख है मिलना, अरु जीवन में रोना।। अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना।। फूल, बहारों और बादल सँग, स्वप्न तुम्हारे देखे। लेकिन अब हैं रूखे लगते,...
क्या पाया क्या छूट रहा
कविता

क्या पाया क्या छूट रहा

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** क्या पाया क्या छूट रहा क्या सोचा क्या बीत रहा जीवन जल घट रीत रहा ये लेखा-जोखा व्यर्थ ना कर.. तू हेतु रहित प्रार्थना कर! क्षण-क्षण खोती काया का पल-पल रीती माया का सांझ ढले की छाया का त्याग मोह विचार न कर तू हेतु रहित प्रार्थना कर! मन अभिलाषा वंचित कर झूठी लिप्सा किंचित कर सद्कर्मों को संचित कर तृष्णा का विस्तार न कर तू हेतु रहित प्रार्थना कर! जो बोया है वही आएगा तू कर्मों का फल पाएगा कुटुंब साथ नहीं जाएगा मिथ्या लोभ स्वीकार न कर तू हेतु रहित प्रार्थना कर! काल घड़ी अपमान न कर दुुरवाणी का पान न कर अहंकार अभिमान न कर हो हरि शरणं प्रतिकार न कर तू हेतु रहित प्रार्थना कर! मनचीती कुछ बातों का रत जागी उन रातों का जो बीत गई उन घातों का है सत्य यही इंकार न कर तू हेतु रहित प्रार्थना कर!! ...
वो क्यों है?
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वो क्यों है?

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जो वर्तमान है, वो क्यों है? हम बने जिम्मेदार कायरता तो जैसे हमारे ख़ून में थी और इन्तज़ार करना हमारा जीवन था। प्रार्थना पत्रों और निवेदनों की भाषा हमें घुट्टी में पिलायी गयी थी और मामूली लोगों के प्रति थोड़ी दया और कृपालुता ही हमारी प्रगतिशीलता थी। हमारी दुनियादारी को लोग भलमनसाहत समझते थे। संगदिली हमारी उतनी ही थी जितनी कि तंगदिली। अत्याचार और मूर्खता से उतने भी दूर नहीं थे हम जितना कि दिखाई देते थे और दिखलाते थे। जब ज़ुल्म की बारिश हो रही हो और कुछ भी बोलना जान जोखिम में डालना हो तो हम चालाकी से अराजनीतिक हो जाते थे या कला और सौन्दर्य के अतिशय आग्रही, या प्रेम, करुणा, अहिंसा, मानवीय पीड़ा, ख़ुद को बदलने आदि की बातें करने लगते थे। और लोग इसे हमारी सादगी और भोलापन समझते थे...
संगति भी शृंगार है
कविता

संगति भी शृंगार है

नवनीत सेमवाल सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) ******************** हूॅं तो अदृश्य मगर होती महसूस बहुत हूॅं शृंगार हूॅं मैं, संस्कार हूॅं सु-शील द्वारा आहूत हूॅं छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। हूॅं बीजांकुर, बीजाक्षर हूॅं होगी वाटिका किसी की सीरत उगने में थोड़ी होगी जटिलता उगकर तेरी खिलेगी नीयत छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। हूॅं आँचल से व्यापक मैं लीन है मुझमें सोलह संस्कार होगा प्रभाव मेरा धीरे-धीरे तुम अपनाना पहली बार छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। हूॅं अतिथि अनाहूत हूॅं मैं करना कोशिश बुलाने की प्रयासरत हूॅं तुम्हारे मन में सद्वृति की लहरें उठाने की छाप मेरी ज़ोरदार है क्योंकि सदाचरण मेरा शृंगार है।। परिचय :-  नवनीत सेमवाल निवास : सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) घोषणा पत्र ...
मावठा
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मावठा

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सर्दी की पहली बरसात उपवन में छाई महीनों के बाद बाहर। छाई हरियाली खेतों में और छिटकी सूर्य की पहली लाल किरण बागों में। दूर वनों में पसरा गहरा कोहरा और घरों में गर्माहट कर रहा काला कोयला। हिमपात हो रहा पहाड़ों पर और बह रहा शीतल स्वच्छ जल नदी नलों में। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
भोर आई अलबेली
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भोर आई अलबेली

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** रोज सुबह अलबेली भोर होती है। आधी दुनिया तब तक सोती है। ******* चिड़ियों का चहचहाना चारों तरफ मस्त हवाएं। लगता है ऐसे कि हम किसी नयी दुनियां में आये। ******* चारों तरफ शांति का वास होता है। हर व्यक्ति प्रकृति के पास होता है। ******* गुनगुनी धूप में बहुत मजा आता है और साथ में कोई हो साथी तो आनंद छा जाता है। ******** भोर में भ्रमण का अलग ही मजा है। पेड़ की टहनी पर जैसे गुलाब सजा है। ******* सुबह भोर में उठकर करें प्रतिदिन व्यायाम योग,साधना कर अपना जीवन बनाए आसान। ******** जो रोज उठकर भोर को देखता है। वह कभी जिंदगी में डॉक्टर को नहीं देखता है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौ...
धर्म को खतरा
कविता

धर्म को खतरा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। मेरे भारत में रहने वाला ....हर धर्म क्यों बात-बात पर खतरें में हो जाता है। धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। लहू का रंग जिन्हें नज़र नहीं आता है। कट्टरता के नाम पर जो कहीं गोली तो कहीं पत्थर चलवाता है। क्यों उन्हें इन्सानियत में, एक रब नहीं नज़र आता है। धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। देश-देश धर्मों की आग में जलता है। कहीं बम कही मिसाइल गिर जाता है। यह कौन से धर्म है। जो नफरतों से एक दूसरे को काट खाता है। इन्सानियत को भूल कर धर्मों में बंट जाता है। बात-बात पर मरने-मारने को तैयार हो जाता है। आज़ाद भारत में गुलाम सोच से क्यों निकल नहीं पाता है। धर्म के नाम पर... क्यों अधर्मी हो जाता है। क्यों बात-बात पर हर धर्म खतरें में हो ज...
भारत के भारतरत्न
कविता

भारत के भारतरत्न

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** हे भारत के भारतरत्न, जिनका युग स्वर्ण युग कहलाया, जिनका युग कवियुग कहलाया, जिनके जीवन में कोई मतभेद नहीं, वही व्यक्ति भारतरत्न कहलाया। हे भारत के भारतरत्न, जिनके युग मे विरोधी हुये अपने, जिनके कदमों पर सारा जग चलता था, जिनके आगे विरोधी भी पस्त हो गए वो व्यक्ति भारतरत्न कहलाया। हे भारत के भारतरत्न, जिन्होंने जीवन भर राष्ट्रधर्म अपनाया, जिन्होंने भारत का मान-सम्मान बढ़ाया, जिसने जीवन मृत्यु को सत्य माना, वही व्यक्ति भारतरत्न कहलाया। परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर, सीवान बिहार सचिव : राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्...
गगन
कविता

गगन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन भी नमन करता है उनको जो माटी से सोना उगाते हैं नमन करता है गगन उनको जो सीमा पर रक्षा करतें हैं सियाचिन का बर्फ हो या। रेगिस्तान की गर्मी का कहर दृढ़ है, डटे हैं, निर्भयता से खड़े हैं दुष्ट दलन के लियै। नमन करता है गगन ऊनको तो बोझा ढोकर गगन चुम्बी भवनों का निर्माण करतें हैं गगन भी नमन करता है उसको मानव सेवा के वृति है निस्वार्थ अनवरत लगे रहते हैं। नमन करता है गगन थरा को जो धैर्य से, अडिग खड़ी हैं खनन, उत्खनन, ज्वालामुखी का ताप सहती है। मानव समाज के लिए प्रकृति के रुप में खड़ी हे दृढ़ निश्यी होकर तभी तो, तभी तो गगन उत्सुक होता है धरा से मिलने के लिये सन्ध्या की प्रतीक्षा करता है क्षितिज पर धरा से मिलने के लिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श...
जंगल म चुनाव
आंचलिक बोली, कविता

जंगल म चुनाव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता पाँच बछर बीतगे संगवारी हो, फेर होही जंगल म चुनाव। आबेदन भराय ल चालू होगे, लिखव फारम म अपन नाँव।। बेंदरा मन बने हें कोटवार, हाथ म धरे दफड़ा ल बजाथें। ए पेड़ ले ओ पेड़ म कूदके, हाँका पार-पार के बलाथें।। काली पहाड़ी म बईठक होही, सुन सियान मन सुंतियागें। हमू बनबो सरपंच कहिके, जानवर मन जम्मों जुरियागें।। शेर कहिथे-मँय जंगल के राजा आँव, अकेल्ला होहूँ खड़ा। कोन लिही मोर से टक्कर, काखर म दम हे गोल्लर सड़वा।। हाथी कहिथे-तोर कानून नई चलय, जनता के अब राज हे। जेला चुनही जनता, जीतही चुनाव, तेखर मूड़ी म ताज हे।। लेह-देह म मानगे शेर, कोन-कोन खड़ा होहव ए बतावव। का-का करहू बिकास तुमन, अपन घोसना पत्र सुनावव।। शेर छाप म शेर खड़ा होही, कोलिहा छाप म कोलिहा ह। हाथी छाप म हाथी खड़ा होही, बिघवा छाप ...
सिर्फ मौन रह जाता है
कविता

सिर्फ मौन रह जाता है

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हृदय की पीड़ा भीतर ही दबी रह जाती है चेहरे की रेखाएं सब सच कह जाती हैं सत्य वदन कारण, रिश्ते हो जाते हैं तितर-बितर, भाव सोख लेता है हृदय, संवाद नहीं करता सिर्फ मौन रह जाता है ... भ्रांतियां-झूठ, भ्रम-भटकन, हृदय करने लगता है आत्मचिंतन भावनायें विलुप्त हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं सिसकियाँ, एक विरोध- प्रतिरोध उभरता है, स्मृतियों के पुलिंदे से, द्रवित मन सूकून ढूंढता है अकेला प्रतीक्षारत किन्तु बस केवल मौन रह जाता है ... परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "जीवदया अंत...
रेत का केक
कविता

रेत का केक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अर्द्ध छुट्टी के समय बच्चे विद्यालय के खेल मैदान में खेल रहे थे, होली की खुशियां मन में रख एक दूसरे पर धूल उड़ेल रहे थे, सभी बच्चों ने एक दूजे को निमंत्रण भिजवाया, जन्मदिन मनाने के लिए रेत का केक बनाया, बालू पर उकेर तोरण बांध रहे थे, बालमन नहीं कोई सीमा लांघ रहे थे, एक स्वर में सब कोई हैप्पी बर्थडे टू यू गा रहे थे, रेत का केक काटे जा रहे थे, केक का टुकड़ा काट-काट सबको प्यार से बांटा गया, दिख रहा था सब में नाता नया, बड़े ही चाव से सब केक खा रहे थे, खाने का अभिनय कर मुंह बजा रहे थे, सबसे मिलने के लिए बर्थडे गर्ल ने अपनी सुविधानुसार बना लिए शिफ्ट, सारे बच्चे अपनी क्षमतानुसार उन्हें थमा रहे थे फूल पत्ते से बना गिफ्ट, इस तरह से बच्चों का आज दिन बन गया, हुआ छुट्टी का सदुपयोग और मिला उन्ह...
सर्दी का मौसम
कविता

सर्दी का मौसम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** धुंध छाई, लुप्त सूरज, शीत का वातावरण, आदमी का ठंड का बदला हुआ है आचरण। बर्फ में भी खेल है, बच्चों में दिखतीं मस्तियाँ, मौसमों ने कर लिया है पर्यटन का आहरण।। बर्फ का अधिराज्य है, चाँदी का ज्यों भंडार हो, शीत ने मानो किया उन्मुक्तता अन-आवरण।। रेल धीमी, मंद जीवन, सुस्त हर इक जीव है, है ढके इंसान को ऊनी लबादा आवरण। धुंध ने कब्जा किया, सड़कों पे, नापे रास्ते, ज़िन्दगी कम्बल में लिपटी लड़खड़ाया है चरण। पास जिनके है रईसी, उनको ना कोई फिकर, जो पड़े फुटपाथ पर, उनका तो होना है मरण। जो ठिठुरते रात सारी राह देखें भोर की, बैठ सूरज धूप में गर्मी का वे करते वरण। धुंध ने मजदूरी खाली, खा लिया है चैन को, ये कहाँ से आ गया जाड़ा, करे जीवन-क्षरण। ज़िन्दगी में धुंध है, बाहर भी छाई धुंध है, ठंड बन रावण करे सुख ...
अटल जी अद्भुत सरलता
कविता

अटल जी अद्भुत सरलता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सरलता से जीना थाजीवन का सपना नितनियमधर्म का संयम पालन रखना अनुशासन सकुशलता से कार्य करना कड़वा विचार त्याग, मुस्कुराते रहना ।१। अनर्गल शब्द वाणी को विराम देते बोलने में गहरे, शब्दों में तोल देते फिजूल विषयों के उलझनों से बचते कर्मठता रखे, जंजाल में नहीं फंसते ।२। विचारों और भावनाओ को ह्रदय से खुलकर अपनी मधुरवाणी में कहते बात वही रखते जिनका मूल्यांकन सम्बोधन की भाषा में, गहरे रचते ।३। कविता की पंक्तियों को रुक रुक कर मीठे मीठे रसीले मधुरवाणी में कहते अंतहीन गहराई की कविताओं में अटल जी ह्रदय से बखूबी सटीक रचते ।४। उच्चतम विचारों में जीने की इछाओ में सीखे जीवन में उच्च कर्म करना बढ़ना अहंकार की भाषाओं में बातें न करना सदा सरलता में सीधे विचारों को रखना ।५। राजनीति जीवन में उतार चढ़ाव के मोड़ वे तनिक ...
शीशा और भविष्य
कविता

शीशा और भविष्य

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** शीशा कोई भविष्य नहीं दिखाता है। शीशा केवल हमारी सूरत दिखाता हैं। ******* हम जैसे होते है शीशा वैसा दर्शाता है। भविष्य से तो उसका दूर दूर न कोई नाता है। ****** हमारा भविष्य हमारे कार्य पर निर्भर होता है। जैसे कार्य करते है वैसा परिणाम होता है। ******* भविष्य जानने के चक्कर में अपनी जिंदगी बर्बाद न करें। जिंदगी का एक लक्ष्य बना उसपर कार्य करें। ****** यदि ज्योतिषी भविष्य जानते तो अपना क्यों नहीं देखता है। व्यर्थ की दुकानदारी चलाकर भोले लोगों को नोचते है। ****** आने वाले अच्छे कल के लिए अपना आज मत गंवाओ बिना किसी चिंता या डर के अपना वक्त बिताओ। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक...
विजय अभियान
कविता

विजय अभियान

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जागो! सफलता की राह है दुर्गम और कठिन। सुबह का सूरज शंखनाद कर रहा है प्रतिदिन।। निद्रा की देवी कोई स्वप्न दिखा रही काल्पनिक। जीवन उद्देश्य से भटका रही करके दिग्भ्रमित।। प्रेम पाश में बांध तुम्हें, मधुर प्रेम गीत गवाएगी‌। विरान बगिया में सुन्दर, सुवास फूल खिलाएगी।। निकलना होगा रहस्यमयी सपनों की दुनिया से। स्वयं की आवाज सुन, घबराओ मत दुविधा से।। विश्वास का डोर पड़कर, लक्ष्य पर्वत पर चढ़ना है। धीरे-धीरे ही होगी तैयारी, नित दिन आगे बढ़ना है।। पढ़ता चल ज्ञान ग्रंथ को, समय का थामकर हाथ। ध्यान और एकाग्रचित से स्वयं मंथन कर हर बात।। मन के घोड़े सजाकर, कर्मरथ में हो जाओ सवार। अस्त्र-शस्त्र कलम और पुस्तक, कर वार-पे-वार।। जीत मिलेगी भव्य जब समर्पण का दोगे बलिदान। ज्ञान युद्ध के लिए छेड़ तू निरंतर विजय अभियान।। पर...
गौ माता
कविता

गौ माता

पूनम ’प्रियश्री’ प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ’गौमाता’ एक प्यारा सा शब्द एक अटूट सा रिश्ता पर हो जाता व्यथित मन देख इनकी दुर्दशा । एक गहरा ज़ख्म एक रिसते घाव घूमती गली–गली होकर लाचार । देती थी जब दूध तो पाती लाड दुलार अब देखो खाती कितनों की ही मार। माना किसान का करती फसल नुकसान पर उसकी ऐसी सजा तूं जानवर है या इंसान । माना कि नहीं हैं सब एक से पर होनी चाहिए गौ रक्षा देश से । ’गाय बचाओ’ का जब गूंजेगा संदेश तभी मिटेगा गौ माता का क्लेश। परिचय :-  पूनम ’प्रियश्री’ निवासी : प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : प्रधानाध्यापिका काव्य विशेषता : काव्य में स्त्री प्रधानता और प्रेम की प्रगाढ़ता। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
सब जग शीश झुकाता है
कविता

सब जग शीश झुकाता है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** तब चूमेगी कदम सफलता, जब प्रयास होगा मन से। खुशियाँ आएंगी दामन में, दुख जाएगा जीवन से। उन्हें सफलता हरदम मिलती, जो मन से प्रयास करते। जो हर पल प्रयासरत रहते, खुशियाँ जीवन में भरते। स्वाद सफलता का चखना हो, श्रमरत भी रहना होगा। दुख हो भले पहाड़ों जैसा, उसको भी सहना होगा। उनको सदा सफलता मिलती, जो निज काम सदा करते। कर्मों के बल पर जो खुशियाँ, अपने दामन में भरते। सदा सफलता वे पाते जो, गागर में सागर भरते। उनके कदम चूमती मंजिल, जो मन से प्रयास करते। मंजिल तक तुमको जाना हो, नहीं राह में रुक जाना। नहीं आपदाओं के सम्मुख, कभी हार कर झुक जाना। श्रमरत रहने वाला मानव, जगवंदित हो जाता है। सृजनशील श्रमरत मानव को, सब जग शीश झुकाता है। कदमों में नतमस्तक होकर, सदा सफलता आएगी। कामयाब मानव ...
हमसफ़र
कविता

हमसफ़र

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी खुशियाँ हो तुम्हीं, हो मेरा उल्लास। तुमसे ही जीवन सुखद, लब पर खेले हास।। जीवन का आनंद तुम, शुभ-मंगल का गान। सच, तुमने रक्खी सदा, मेरी हरदम आन।। ऐ मेरे प्रिय हमसफ़र! तुम लगते सौगात। तुमसे दिन लगते मुझे, चोखी लगतीं रात।। हर मुश्किल में साथ तुम, लेते हो कर थाम। तुमसे ही हर पर्व है, और ललित आयाम।। संग तुम्हारा चेतना, देता मुझे विवेक। मेरे हर पल हो रहे, तुमसे प्रियवर नेक।। तुमको पाकर हो गया, मैं सचमुच बड़भाग। तुम सुर, लय तुम गीत हो, हो मेरा अनुराग।। तुम ही जीवन-सार हो, हो मेरा अहसास। और नहीं आता मुझे, किंचित भी तो रास।। तुमने आकर हे ! प्रिये, जीवन दिया सँवार। तुम तो प्रियवर, प्रियतमा, प्यार-प्यार बस प्यार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) ...
खोदिए …रुकिए मत
कविता

खोदिए …रुकिए मत

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* खोदिए! मस्जिद के नीचे खोदिए मिलेंगी मूर्तियां यक्ष, किन्नर, गंधर्व, देवों देवियों की मूर्तियां उसकी भी जिसका मंदिर ऊपर नहीं है. मूर्तियों के नीचे खोदिए मिलेंगे मिट्टी के बर्तन खिलौने उसके नीचे खोदिए पत्थर के औज़ार बर्तन और हथियार भी सिर्फ़ पत्थर के. उसके भी नीचे खोदिए अस्थियां खोपड़ी ठठरियां बचे-खुचे दांत मिलेंगे. उसके भी नीचे खोदिए रुकिए मत अभी भी आपके नीचे उतरने की ख़त्म नहीं हुई है संभावना. हालांकि ज़िंदगी की शर्त थी ऊपर उठने की कींच में धंसने की नहीं फिर भी जितना नीचे गिर सकते हैं गिरिए और खोदिए. अब मिलेंगे फ़ॉसिल्स उन पेड़-पौधों जीव-जंतुओं के जिनकी कब्र पर इस वक्त खड़े हो तुम. तुम्हारी सभ्यता तुम्हारे मंदिर-मस्जिद गिरजे ख़ानकाह सब खड़े हैं गर्व से जबकि शर...
वो थे इसलिए….
कविता

वो थे इसलिए….

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति ने पैदा किया इस धरती में जरूर, इंसान होकर भी इंसान नहीं बन पाये क्योंकि कुछ लोगों को था जाति का सुरूर, था उस सनक में इतना ज्यादा घमंड, अमानवीय अत्याचार करते थे प्रचंड, वो रहने को तो मुट्ठी भर थे, पर अपने लाभ के लिए सदा प्रखर थे, जिनके लिए जरूरी था साम, दाम, दंड, भेद, हत्या जैसे अपराध पर थे नहीं जताते खेद, था सबके लिए जरुरी उनकी हंसी, सब त्याग देते थे मन में उमड़ी खुशी, ऐसा नहीं है कि किसी ने उनकी करतूत किसी को बताया नहीं, जाल में उलझे लोगों ने जिसे समझ पाया नहीं, उनका प्रमुख काम था स्वयं पढ़ना, उलझाये रखने के लिए कथाएं गढ़ना, सब पड़े थे जैसे हो आदिमानव, मिथकों को तोड़ने आया एक महामानव, सारे विरोधों के बाद भी जिसने भरपूर पढ़ा, मानवता के लिए जिसने संविधान गढ़ा, महाग्रंथ में जिसने लिख डाले इंसा...