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कविता

सर्दी की वो खिलखिलाती धूप
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सर्दी की वो खिलखिलाती धूप

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** निश्चिंत रहो कि बहुत जल्दी ही बहती ये सर्द हवाएँ अपना रुख बदलेंगी। और सूनी-सूनी ये फिज़ाएँ फिर रंगों को ओढ़ लेंगी। क्योंकि समय सदा एक -सा नहीं रहता, बदलता ही है। और समय के गर्द से ढँके आइनों में बीते पलों का चित्र उभरता ही हैं। जिनमें कुछ चित्र दुख देते हैं पर कुछ ऐसे सुकून देते हैं जैसे, सर्दी में खिलने वाली धूप । जिनके आते ही ये सर्द हवाएँ हो जाती हैं मन के अनुरूप। तो बस इंतजार करो उस निहाल करने वाली सर्दी की धूप का। जिसकी गरमाई जीवन को सुख से भर देती है। और कानों में हौले से कहती है कि आखिर ये सर्द हवाएँ कब तक बहेंगी। विस्मृति के दलदल में एक दिन ये भी तो ढहेंगी। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (म...
एहसास
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एहसास

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सर्दी बहुत है गर्मी का एहसास करवाइए । नफरत बहुत है मोहब्बत का एहसास करवाइए । गम बहुत है खुशियों का एहसास करवाइए। बेगानापन बहुत है अपनेपन का एहसास करवाइए। अंधेरा बहुत है रोशनी का एहसास करवाइए। शोर बहुत है शांति का अहसास करवाइए। अस्थिरता बहुत है स्थिरता का एहसास करवाइए। मिथ्या बहुत हौ सत्यता का एहसास करवाइए। दोगलापन बहुत है एकसारता का एहसास करवाइए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
दो वक्त की रोटी
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दो वक्त की रोटी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं। बालश्रम नियम सच बयां करे ऐसा ज़माने में नकीब नहीं।। मजबूरियों का मारा बदनसीब, दर-दर भटकता वह गरीब है। उम्र के हिसाब से समझाये उसे, क्या अच्छा-बुरा न कोई हबीब है। वक्त के हालात से मोड़ें ऐसा कोई कबीर नहीं। मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं।..... बालश्रम पर चर्चा रोज हम करते है। दशा उनकी देख झूठी ही आहें भरतें है। ज़माने के इस दौर में उनके जैसा कोई यतीम नहीं। मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं।...... बालपन में औरों की भांति, वह पढ़ क्यों नहीं पाया। निज स्वार्थ किस मजबूरी में, अपनों ने काम पर उसे लगाया। अमीरी-गरीबी की मध्यस्थता का उस जैसा कोई रकीब नहीं मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं।..... ये बातें...
काश! वो कह देती …
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काश! वो कह देती …

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** घर में एक बुढिया... भरा पूरा परिवार... उसके खुशियों की बगिया हैं सब अच्छा हैं.... खाना भी मिल जाता हैं पीना भी मिल जाता हैं मगर .... बहू को ये बुढिया अच्छी नहीं लगती क्योंकि बहू के आधे से अधिक काम वो बुढिया कर लेती हैं बुढिया को पता है काम करने वाले बहुत हैं मगर फिर भी उनका मन.... कहता है... शायद ! वो सुनना चाहती हैं अपने बहू के मुँह से कि माँ जी आप बैठो ये काम मैं कर दूंगी। ये समझ कर कोई न कोई काम हाथ में ले लेती हैं शनैः शनैः उम्र भी ... जवाब देने लगी हैं बुढिया बीमार थी प्यास के मारे .. कंठ सुखे जा रहा हैं पर पता है कोई नहीं कहेगा कि माँ जी पानी पीना हैं सो बुढिया स्वयं उठ अपने पैरो पर.... भरोसा कर पनघट को चली ही थी इतने में तो पैरो ने जवाब दे दिया ... वो धडा़म... से गिर पडी़ शायद ...
गज़ल, तरानों से …
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गज़ल, तरानों से …

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** १. गज़ल, तरानों से जिंदगी नहीं संभलती यारो, फिर भी ये मरहम है, दर्द ए दिल को ठीक करने के लिए। दुनिया को जीतकर कितने सिकंदर बन गए, सिकंदर तो वो हैं जो हार गए अपनों के लिए। २. गजलें, गीत, नज़्में बहुत रूहानी होते हैं, किसी का दर्द कहते हैं, किसी की कहानी होते हैं। जो लोग झोपड़ी में रहकर, महलों को मोहब्बत का पैग़ाम सुना दें, वो लोग ही अक्सर दिलों से खानदानी होते हैं। ३. जिंदगी को कभी हंसकर कभी रोकर गुजारना पड़ता है। हर जीत जरूरी नहीं जीवन के लिए, कभी अपनों के लिए हारना पड़ता है। जीवन के हार जीत दो पहलू हैं, जिसे स्वीकारना पड़ता है। मन के मानने से हर चीज़ हासिल नहीं होती, क्यूंकि कभी-कभी मन को भी मारना पड़ता है। ४. दुनिया को जीतकर सिकंदर तो बन जाओगे, लेकिन अपनों को कैसे जीत पाओगे। अपन...
अटल राष्ट्ररत्न
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अटल राष्ट्ररत्न

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** चलाकर गठबंधन का राज अटल, युग गठबंधन का दे गए अटल | राष्ट्रधर्म राष्ट्र को शिखा गए अटल, पाठ राष्ट्र नीति का शिखा गए अटल || नाम अटल उनके काम अटल, कृत कर्मों के सुपरिणाम अटल | अविरल रचते थे काव्य अटल, राष्ट्रभाषा के सम्मान अटल || दे गये स्वर्ण चतुर्भुज काम अटल, "नदी जोड़ो योजना" के परिणाम अटल | रेल मेट्रो राष्ट्र को दे गए अटल, सड़कों पर पुल भी परिणाम अटल || शिखर कवि राजनीति के अटल, इक्यावन कविताएं दे गए अटल | सक्रिय सांसद अत्यंत हमारे अटल, राष्ट्र दिशा प्रदान कर गए अटल || सांसद चार दशक से अधिक अटल, दीप निष्ठा का जगा गए अटल | गरिमा संसदीय में थे दक्ष अटल, मर्यादा सबको सिखा गए अटल || भारत रत्न और राजनीति रत्न, अटल तो मूर्धन्य कवि महान | राष्ट्र के विकास रत्न अटल, संस्कृत-मूर्धन्य, हिन्दी कवि महान || परिचय :- ...
महावीर प्रसाद द्विवेदी
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महावीर प्रसाद द्विवेदी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की पुण्य तिथि पर विशेष दौलतपुर ग्राम रायबरेली जनपद मे पाँच मई अठारह सौ चौसठ में पं. रामसहाय द्विवेदी के पुत्र रुप में महाबीर प्रसाद द्विवेदी जन्मे थे। दीनहीन थी घर की दशा समुचित शिक्षा नहीं हो सकी, संस्कृत पढ़ते रहे घर रहकर फिर रायबरेली, उन्नाव, फतेहपुर में आखिर पढ़ने जा पाये, घर की हालत के कारण पढा़ई से फिर दूर हो गये। गये पढ़ाई छोड़ बंबई बाइस रुपये मासिक पर रेलवे जीआई पी में नौकरी किए। मेहनत ईमानदारी से अपने डेढ़ सौ रु. मासिक वेतन संग हेड क्लर्क पद पर पदोन्नति पा गये। अंग्रेजी मराठी संस्कृत का नौकरी संग भरपूर ज्ञान प्राप्त किया, उर्दू और गुजराती का भी जमकर खूब अभ्यास किया। बंबई से झांसी स्थानांतरण हो गया अधिकारी से विवाद के कारण स्वाभिमान की खातिर महाबी...
अकेले हम
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अकेले हम

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नहीं समझ पाया था जन्मदात्री माँ का दर्द कर्ज में डूबे पिता प्रति एक पुत्र का अहम फर्ज़ सोचता था बस यही जन्म दिया है इन्होंने कर्तव्य तो निभाना ही था कौनसा एहसान किया है जब मैं स्वयं पिता बना और पत्नी माँ बनी बदल गई हमारी दिनचर्या सुबह से रात तक की तुम्हें कोई दर्द होने पर रातभर तीमारदारी करना और जब तुम सोते थे जल्दी से काम निपटाना हम दोनों बारी बारी से लेने लगे थे छुट्टियाँ जब तुम्हारे दाँत निकले या ठुमक के चलना सीखे तुम्हारे स्कूल की मांगें जब भारी होने लगी हमारे शौकों की फ़ेहरिस्त छोटी होने लगी थी तुम्हारी पढ़ाई व नौकरी और ब्याह की रस्मों में खाली कर दिए सब खाते हमारा अरमान जो थे तुम अचानक चल दिए तुम अपनी ऊँची उड़ान पर रह गए दोनों वैसे ही जैसे थे कभी अकेले हम परिचय : सरला मेहता निवासी : इं...
माँ
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माँ

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** घूम लो चाहे सारी दुनिया सुकून तो भी नही मिलेगा सर रख लो दो पल गोद मे माँ के आराम मिलेगा।। हर ईलाज की यहाँ दवा है जब करे ना कोई गोली असर आना माँ की गोद मे आराम मिलेगा।। जब दिखे ना कोई रास्ता उलझन में रहे मन दे ना कोई रिश्ता साथ आना माँ की गोद मे आराम मिलेगा।। छप्पन भोग खाके भी बोध नही होगा बासी रोटी मिल जाये हाथ से माँ के तो पेट मे आराम मिलेगा।। थक हार कर आया रखा जो कदम चौखट पर देखते ही माँ को सच कहता हूँ दोस्तो थकान से आराम मिलेगा।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक्षा : स्नातक भाषा : हिंदी, बुंदेली विशेष : स...
पत्नी कहती है
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पत्नी कहती है

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) अगर आपकी पत्नी कल यह सवाल करे तो परेशान न हों। क्योंकि वह कुछ भी गलत नहीं मांगती है। विचारोत्तेजक शोकाकुल उनका एक ही सवाल.... मेरा बदन हल्दी तेरे नाम की। मेरा हाथ मेहंदी तेरे नाम की। मेरी मांग सिंदूर तुम्हारे नाम का। मेरा माथा बिंदिया तुम्हारे नाम की। मेरी नाक नथनी तुम्हारे नाम की। मेरा गला मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का। मेरी कलाई (चूड़ियाँ) चूड़ा तुम्हारे नाम का। मेरे पैर पायल, बिछिया सब तुम्हारे नाम की। और हाँ बड़ों का नमन मै करू, और ...... अखंड सौभाग्यवती भव केवल आपको आशीर्वाद। वटपूर्णिमा का मेरा व्रत, आपको जीवन का उपहार। मुझे घर संभालना है, दरवाजे पर लगी नेम प्लेट आपकी है। मेरा नाम है लेकिन उससे आगे, पहचान आपकी है। बस इतना ही ... मेरा पेट मेरा खून मेरा दूध और बच्चे ? आपके...
दर्द सहकर भी
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दर्द सहकर भी

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द सहकर भी विजयपथ की तरफ बढ़ना पड़ेगा मंजिलें हैं पास फिर भी दो कदम चलना पड़ेगा हर नये संकल्प का आगाज़ साहस से करें हम तोड़कर इक दायरा अब सीढियां चढ़ना पडेगा चांद पर भी दाग़ का धब्बा दिखाई दे रहा हर तरफ आकाश ही उड़ता दिखाई दे रहा मन की ये ऊंची उड़ानें ब्योम तक पहुंचेगी कब तक इस समन्दर में ये मन घुलता दिखाई दे रहा कब तलक इन आंधियों के बीच में रहना पड़ेगा दर्द सहकर भी ...... प्यास की चिंगारियों के बीच कैसे नींद आये इस पिपासा को बुझाने का कोई रस्ता बताये धैर्य भी है चैन भी है फिर भी कुछ खलती कमी है कोई मेरे पास आकर प्रेम की लोरी सुनाये बिखरते सपनों को सिलकर चादरें बुनना पड़ेगा दर्द सहकर भी ...... जिस खुशी के वास्ते हमनें सभी संकल्प त्यागा जिसकी यादों में विलय होता रहा दिन-रात जागा उस शिखर के...
प्यार भरी चांदनी
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प्यार भरी चांदनी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार भरी चांदनी को किसी की नजर लग गई तुम किसी की हो गई मैं कहीं खो गई हो गई शाम भी धुंधली धुंधली धुंध भरी सांझ ने समेट ली हर किरण रवि की बादलों की ओट में चांद भी छुप गया आ गई समक्ष आंखों के रात की छाया एक क्षण के लिए झपक गई पलक मेरी सुगंध भरी समीर मुझको सहला गई परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
शीत का गीत
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शीत का गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सड़क किनारे बेघर निर्धन, सोते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं। नहीं पहनते ऊनी कपड़े, स्वेटर मफलर कोट नहीं हैं। किसी गर्म जैकेट जर्सी की, तन पर उनके ओट नहीं हैं। जिनके बच्चे ठिठुर-ठिठुर कर, रोते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं। नहीं भवन या हीटर कोई, जलते हैं बस कुछ अंगारे। किसी तरह उष्मा देते हैं, अपनी काया को बेचारे। बिना भित्ति की कुटिया में जो, होते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं। ठंड बहुत विचलित करती है, करवट अपनी नित्य बदलते। किसी समय लगती है झपकी, रजनी के कुछ ढलते-ढलते। अधिक समय तक अपनी निद्रा, खोते हैं वे भी मानव हैं। सर्द हवाओं से नित पीड़ित, होते हैं वे भी मानव हैं...
धन्य हमारा देश
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धन्य हमारा देश

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** धन्य हमारा देश जहां बहती है गंगा, धन्य हमारे लोग रहे मन जिनका चंगा, धन्य यहाँ की नारी जिनमें बसतिं सीता, धन्य यहाँ के पुरुष राम जिनके प्रणेता, धन्य यहाँ की हवा सुरभि से भरी हुई है, धन्य यहाँ की खेत हमेशा हरी भरी है, धन्य हमारे गीत संगीत हमारे वादन, धन्य हमारे राग हमारे पग के नर्तन, धन्य हमारी मीठी भाषा और बोलियाँ, धन्य हमारे बाग हैं जिनमें कुसुम औ कलियाँ, धन्य हमारे परवत सागर नदियाँ झीले, धन्य हमारे पशु पक्षी जन जाति भीलें, धन्य हमारे ग्रंथ ज्ञान के अतुल कलश हैं, धन्य हमारे अतीत स्वर्णाक्षर सदृश हैं, धन्य हमारे देव देवियाँ रक्षा करते, हम नतमस्तक हो कर उनको नमन हैं करते, अतुलनीय भारत है जग में सबसे न्यारा, जान लुटा देते हैँ जिसने भी ललकरा। परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी ...
शिशिर का कोहरा
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शिशिर का कोहरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ठिठुराती ठहरी ठंड में ठिठुरते हुए चलते मानव कोसों तक फैले कोहरे के माहौल में मानव लगता है दानव आती-जाती लंबा कृतियां अपने आप को अंगों को छुपाती सी लगती।। शिशिर का कोहरा कालिका के क्रोध का उफान पर लगता धुंध धुंध आसमा सुंदर धरती हरियाली की चादर ओढ़े आसमा में सूरज को तकती।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : ...
कैसा हिंदुस्तान चाहिए …
कविता

कैसा हिंदुस्तान चाहिए …

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कैसा हिंदुस्तान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं घर कैसा मेहमान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं जिसकी गलियों में नित गूंजे वेद मंत्र की पावन धुन जिसके हर घर पर अंकित हो स्वास्तिक और शुभ लाभ सगुन जिसकी नदियों के कलरव में राम कृष्ण शिव गान रहे जिसकी मस्तक पर इस जग में विश्व गुरु पहचान रहे बस ऐसी पहचान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं कैसा.... इस धरती का कण-कण ही भारत मां का यशगान करे चाहे किसी धर्म को माने पर सबका सम्मान करे आपस में सद्भाव रहे मानवता का अनुराग रहे स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठकर सब में सच्चा भाव रहे बस ऐसा इंसान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं कैसा.... राजनीति परिवारवाद निज स्वार्थ वाद से दूर रहे नेताओं में अपनी संस्कृति के प्रति सच्चा राग रहे सत्य सनातन के आदर्शों के प्रति सबकी निष्ठा हो हिंद देश हिंदी भाषा की...
बेटा-बेटी दोनों समान
कविता

बेटा-बेटी दोनों समान

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** खुदा ने तो इंसान बनाया इसमें न तुम मतभेद करो बेटा बेटी है दोनों समान इसमें न तुम भेद करो जीस राह पे रख सकते हैं बेटा अपनी पहली कदम उसी राह पर रख सकते हैं बेटियां भी दमदार कदम बेटियां है संतान खुदा की कमजोर क्यों समझते हो बेटों को तुम आजादी देते बेटियों का हक़ छिनते हो आये ना कुछ काम बेटियां यह सोच अब बदलना है मैदान ए जंग में बेटियां भी बेटों के संग अब लडता है संघर्ष के हर पथ पर देखो बेटों ने कई जख्म खाएं हैं इतिहास गवाह देता है देखो बेटियां भी तलवार उठाए है परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
माया छोड़ो मानवता जोड़ो
कविता

माया छोड़ो मानवता जोड़ो

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** देखे माया जब जग, भटके उसका पग। द्वेष दर्प अति झूमे होता मानवता पतन। होते ज्ञानी कुछ लोग, त्यागें यह माया भोग। चले मानवता पंथ इंसान को करे नमन। कुछ नर लोभी होते, सत्य धर्म सब खोते। पाने को अकूत धन करते कितने जतन। कहे ओम मानो बात, छोड़ो भेद धर्म जात। लोभ दर्प द्वेष त्यागो प्रेम से रहिए वतन।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्य...
मन के मीत
कविता

मन के मीत

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे मन के मीत मेरे मन की थी कल्पना कोई भोली-भाली अल्पना आती है मुझे बार-बार सपना बाहों में भरकर उसको अपना बना लेते हो मेरे मन के मीत मुझे तुम बहुत याद आते हो सपनों में क्यूँ सताया करते हो रोज-रोज मिलने का वादा करते हो अपना वादा रोज तोड़कर मुझे रुलाते हो मेरे मन के मीत जब तुमसे मेरा नेह हुआ है मन मेरे वश में नहीं तेरा हो गया है तुम बिन मेरी कोई खुशियां नहीं है याद आते ही मेरे आंखों में भर जाते हो मेरे मन के मीत तुम मेरे जीवन की संगिनी हो हे प्रिय मेरे नैनों में तुम समाए हो इसलिये बारम्बार मेरी नींद उड़ाते हो मन मे बसे मनमीत तुम बहुत याद आते हो परिचय :-  राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' निवासी : बागबाहरा (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बागबाहर...
रस-श्रृंगार
कविता

रस-श्रृंगार

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मदमस्त नयन के प्याले से, छलकाओ प्रेम हृदयवन में। कुंदन सम ज्योत्स्ना का भी, आलिंगन कर लो मधुबन में।। हिम स्वम् धराशायी होवे, अभिमान पूस का हुआ जिसे। ठिठुरन सलज्ज हो स्वीकारे कामिनी ने ऐंसा छुआ मुझे।। ललिता अधरों की दिखलाओ, शीतल ऋतु धराशायी होवे। मन्मथ के बाणों से छलनी, हे! स्वयं सुलोचन बलखाओ।। हो सप्तप्रभा सी नूतन तुमपर, स्वेत रंग यूँ रहा झलक। इठलाती दरिया को ओढ़े, हिम चादर देखूँ ज्यों अपलक।। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), पदस्थ - पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश शिक्षा - समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर सम्मान - जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मा...
नमन योद्धा
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नमन योद्धा

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मातृ भूमि के वीर पुत्र! आप के सम्मान में उठे हुए मस्तक प्रणाम करते हैं गर्व से तनी हुई छाती और अवरुद्ध कंठ से भी आप के गुणगान करते हैं। आप का जाना साधारण नहीं था साजिशों की बू आती है गद्दारों के मन में पनपते रंजिशों के भास आती है। योद्धा घर पर नहीं पर्यण करते वीर गति को पाते हैं दुश्मनों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु अकेले ही लड़ते हैं। नमन वीर सिपाही ! तुम्हे नमन! भारत मां महान बनाने वाले आप को नमन। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
क्षणिक अंधेरा
कविता

क्षणिक अंधेरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अंधेरों से डर लगता है उजाले कोसों दूर है कदम दर कदम बढ़ते हैं मगर मंजिल अभी दूर है गुफाओं के अंधेरे कंदराओं के अंधेरे अतीत के महलों के अंधेरे हर कदम पर अंधेरे हैं घेरे चलती हूं इसी आशा में कभी तो मंजिल मिलेगी उजाले की उम्मीद में सूरज की रोशनी मिलेगी छट जाएंगे जीवन से अंधेरे फिर नई सुबह होगी कहता है दिल मेरा मत डर इन अंधेरों से क्षण भर में मिट जावेगे अपनी रख बुलंद हौसले परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
हम पंछी कहलाते हैं
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हम पंछी कहलाते हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदू-मुस्लिम नहीं जानते, खुद को बस पंछी जानें। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा को, बस अपना ही घर मानें। मंदिर के पीपल पर बैठे, कभी चर्च गुरुद्वारे पर। मस्जिद की चोटी पर बैठे, उड़ते एक इशारे पर। पावन मनसे कलरव करते, कभी ना बंटते कौमों में। मस्जिद द्वार तबर्रुख खाते, दाने चुगते होंमों में। मंदिर की चोटी से उड़कर, फिर मस्जिद पर जाते हैं। क्या अल्ला क्या ईश्वर मिलकर, मधुर तराने गाते हैं। जाति धर्म में नहीं उलझते, गीत बतन के गाते हैं। ओ मानव तुम बतलादो क्यों, हम पंछी कहलाते हैं।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
अंधकार को चीरता सूरज
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अंधकार को चीरता सूरज

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। अंधी रातें, काली रातें सर्दी के यौवन में जमती जीवन की राहें। अंधकार ने जब अपने यौवन का जाल बिछाया ठिठुरती सर्दी ने अंधकार को दीनों-दुखियों बच्चों-बूढ़ों का कठिन काल बताया, देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। मत घबराओ, मत घबराओ पप्पू-गप्पू,चीनू-लक्की, अम्मा-बाबा, नाना-नानी, नहीं रहा सदा समय एक सा अंधकार अब हुआ है बूढ़ा, यौवन भी इसका हुआ ढला ढला सा। देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। काली रातें, बीती रातें भोर हुआ अब नभ जग थल में व्योमनाथ आए लिये रश्मियां संग में मानो प्राणी मात्र को जीवन दान मिला रश्मियों से। सात घोड़ों के रथ में होकर सवार देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। नई आशाओं का अंकुर जन्मा, समय भी फिर से अंगड़ाई लेकर नए कलेवर में आया तुमको, मुझको, हमको,...
जाड़े की धूप
कविता

जाड़े की धूप

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** माह दिसम्बर में जब सर्दी की ऋतु आती है। मोटे ऊनी कपड़े पहनते जाड़े की धूप सुहाती है। ठंडी ठंडी की सर्द हवाएं कितना सबको भाती है। लापरवाही की अगर तो खाँसी बुखार सताती है। गर्म पकोड़ी भुजिया संग घर बैठ मौज मनाते है। सुबह सवेरे धूप सेकने रोज बगीया में जाते है। छोटे होते दिन इतने की संध्या का पता न चलता है। रोजीरोटी के जुगाड़ में निर्धन को बड़ा अखरता है। गजक रेवड़ी गर्म मूंगफली खाना अच्छा लगता है। काजू बादाम गोंद पाक के लड्डू सहर्ष सबको जँचता है। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...