वासंती-बंगा
भीमराव झरबड़े 'जीवन'
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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शब्दों की धक्का-मुक्की को,
कविवर तुम दंगा मत कहना।।
मर्यादित है संज्ञा इसको,
वासंती-बंगा मत कहना।।
केवल कंकड़ ही फेंके हैं,
मैंने ही वे भी गुलेल से।
कहीं किसी को चोट न पहुँचे,
शब्द भिगोये इत्र तेल से।।
नमक डालता हूँ घावों पर
कहीं इसे पंगा मत कहना।।१
संता बंता और महंता,
मेरे सभी सहोदर भाई।
अपनी नाक दिखाने ऊँची,
इनकी लंका रोज ढहाई।।
राज घाट का पानी पी-पी,
राजा को नंगा मत कहना।।२
ज्ञान पत्रिका अर्जित करने,
भिड़ा दिये थे शब्द मवाली।
काँव-काँव के राग सियासी,
छीन गये इस मुख की लाली।।
मुख से निकल रही जो अविरल,
गाली को गंगा मत कहना।।३
परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन'
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी...