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हास्य

एक पंथ दो काज
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एक पंथ दो काज

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** कुछ लोग बड़े सयाने बनने लगे, कट कापी पेस्ट कर ज्ञानी बनने लगे हैं। अरे इतना ही ज्ञान यदि तुममें भरा है, तो संत महात्मा या राजनेता क्यों नहीं बना है। पैसा भी मिलता और सम्मान भी पाता, इस तरह एक पंथ दो काज हो जाता। परिचय :- पवन सिंह पंवार पिता : स्व. श्री रामेश्वर पंवार कार्यक्षेत्र : सहायक संपरीक्षक, संचालनालय स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग म.प्र. जन्म स्थान : नसरूल्लागंज, जिला- सिहोर (मध्य प्रदेश)। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
सफेद बाल का साक्षात्कार
हास्य

सफेद बाल का साक्षात्कार

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक पत्रकार ने सफेद बाल से पूछा, तुम क्यों उखड़े-उख़ड़े रहते हो? काले बालों के साथ मिलकर क्यों नहीं रहते हो? उसने कहा कि आप कैसे हो पत्रकार? सही सवाल गलत जगह पर पूछ रहे सरकार!! अरे संख्या उनकी ज्यादा है। अ‍पनी तो एक सीमित-सी मर्यादा है। और हम पर आरोप है कि हम मिलकर नहीं रहते!! उन्हें घमंड है कि हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं, वो हमसे सीधे मुंह बात तक नहीं करते। ममतामयी माँ को मोम और ज़िंदे पिता को डैड बना दिया! और हमारा रंग क्या सफेद हो गया, दादा जी की जगह खुजली वाला दाद यानी दादू बना दिया? उनका कहना है कि आपको साथ में लाने की, बहुत कोशिश की रंग में रंग मिलाने की। लेकिन आप हैं कि कुछ दिनों में अपना रंग दिखाने लगते हैं, अकड़कर फिर से तूर की तरह तनकर खड़े हो जाते हैं । ...
भारत की आबादी
हास्य

भारत की आबादी

अर्चना "अनुपम क्रान्ति" जबलपुर (मध्यप्रदेश) ******************** पेट में ना हो दाना फिर भी है ईमान जियादी (विकासवादी) हम नेक काम करते हैं करके बाली उमर में शादी। बढ़ियां लगती सुकुमार सी बाला छः-छः बच्चे लादी, भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी।। हम दो और दो से चार भले फिर चार से हो गए चौदह। कुछ प्यारे बच्चे पढ़ गए अपने कुछ रह जाते बोदा, हम फैल रहे हैं ऐंसे जैंसे 'कोविड' और मियादी। भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी।। हम रख कानून को ताक पे अब नियमों को सारे तोड़ चले बस पाँच और दस सालों के भीतर चीन को पीछे छोड़ चले, चाहे ना पूजे रेडीमेड ना! गांधी जी की खादी, भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी ।। हम भले रहे भूखे-नंगे पर पक्की बात हमारी। चाहे कितनी ही बेटी हों वो लगें न हमको प्यारी, दो बेटे होना बहुत जरूरी बोलें सबकी दादी। भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी।। ...
एक वाक्या
हास्य

एक वाक्या

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गंगाराम का बुड्ढा लोगों, यकायक गया और सारे गाँव में एक ही हल्ला हुआ ऐसा कैसे गया कल तो देखा था सिपहिया के डर से लोगों ने फटाफट बाँध-बूँध के शमशान घाट लाया वहाँ एक ने पूछा अरे टोकन लिया कि नहीं जाओ पहले टोकन ले आओ यह अंतिम संस्कार का मामला है ये राशन की दुकान है या वैक्सीन के लिए जैसे लगी लाईन हैं अरे देखो ना कितनी लंबी कतार लगी है आपके नाम की पुकार होगी तो लाश को अंदर ले आना जैसे ही गंगाराम की पुकार हुई उसने लाश अंदर लाई जैसे ही लकड़ी की आँच लगी लाश उठके बैठ गई भूत-भूत कहकर जनता भाग गई किसी की चप्पल निकल गई किसी की धोती काँटों में अटक गई भूत ने है पकड़ी समझ कर वो आदमी वैसे ही गाँव की तरफ आ गया बुड्ढा भी उसके पीछे-पीछे गाँव आ गया दूर एक पेड़ के नीचे बुढिया आँसू बहा रही थी बुड्ढा उसके पास आया बोला अब...
भैया बोल कर चली गई
कविता, हास्य

भैया बोल कर चली गई

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कविता की प्रेरणा- बात उन दिनों की है, जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था। परीक्षा के दिन चल रहे थे, रात में महत्वपूर्ण प्रश्न मॉडल पेपर बांटे जाते थे। जब लड़कियों को पेपर की जरूरत होती थी, तो वह लड़कों से हंसकर बात करती थी, उन्हें बुलाती थी। लड़के समझते थे, हंसी मतलब........! बेचारे लड़कियों के पेपर के इंतजाम के चक्कर में रात भर जागते थे, पेपर पहुंचाते थे और खुद का पेपर बिगाड़ते थे। लड़कियों को प्रथम लाने में वे नींव का पत्थर बनते थे। यह क्रम आखरी पेपर तक चलता था। परीक्षा पूर्ण होने के पश्चात लड़की उन्हें घर बुलाती, नाश्ता करवाती, चाय पिलवाती और विदाई समारोह स्वरूप (फेयरवेल) अंत में धन्यवाद भैया कह कर विदा कर देती। बेचारा लड़का शब्द-विहीन, अपनी सी सूरत लेकर विदा हो जाता। उसी घटना को स्मरण कर आज यह कविता लिखने की प्रेरणा हुई। अचानक व...
प्रसाधन
हास्य

प्रसाधन

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हैरान है, परेशान है क्या करें, क्या न करें इसी ऊहापोह में कुछ सहायता मिल जाये लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। छोटे लोगो की छोटी समस्याएं लगती उन्हें पर्वत सी हो निदान शीघ्रता से इसी आशय से लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। सीमांत किसान अंत के करीब दिहाड़ी मजदूर दहाड़े मारता जिनके आँसू छुप जाते है पसीने में, मिले कुछ राहत लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। जिले से शुरू परिक्रमा राजधानी तक पोहच कर भी, अंतहीन है करने अंत उसका लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। इन्हें सुना, उन्हें सुना सुना-सुना कर काम भले ही न हुआ पर मन हल्का हो गया बताने ये बात लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। कितनी भग्यशाली व ऐश्वर्य लिए है साहब की बाथरूम जो निरंतर उन्हें सुख दे सानिध्य पाती है साहब क...
चने का झाड़
हास्य

चने का झाड़

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित-अनायास ही तनिक-अधिक उन्नति पाकर मनः स्थिति में उपजित परोक्ष निर्मूल अभिमान को।   मैं चने का झाड़ हूँ नहीं कोई ताड़ हूँ। बावजूद इसके मेरी घनघोर छाया क्योंकि फैली दुनिया में बेपनाह माया हर किसी को सुलभ कराता भरपूर 'लाड़ हूँ' मैं 'चने का झाड़' हूँ। कुछ तो उपलब्धि पाता है, यूँ ही नहीं हर कोई मुझमें बैठ अन्य को धता बताता है । "चढ़ गए चने के झाड़ में" ये तंज मुस्कुराकर झेल जाता है। मिली ज़रा सी शोहरत इज्ज़त दौलत तब उसका ना कोई अपना ना ख़ूनी ना जिगरी रिश्ता काम आता है। सिर्फ़ एक 'चने का झाड़' ही तो दुलरता है। ऐंसा मैं नहीं मानता पर दुनियां में ही तो कहा जाता है। ज़नाब, तब तो कंधे पर बैठाकर घुमाने वाले, मां-बाप भी छूट जाते हैं। (व्यंग्य का तड़का) मेरी मजबूत टहनियों में लटककर ही तो आदमी और मजबूती पाते हैं। उत्तरोत्तर उन्नति की मिसाल हूँ, ब...
ये पब्लिक हैं, सब जानती है…
हास्य

ये पब्लिक हैं, सब जानती है…

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** विशेष :- पुरानी कहावतों व गीतों का व्यंग में समावेश एक छोटे बच्चे से हमनें पूछा ? बेटा कविता आती हैं क्या ? प्रति उत्तर में इस बच्चे की प्रतिक्रिया देखे - बच्चा बोला श्रीमान जी - कविता आती नही, सविता जाती नही, सुषमा बुलाती नही। नीतू आंटी नें पापा कों बुलाया हैं, बस इतनी सी बात पर मम्मी नें मुँह फुलाया हैं, मेरे समझ में नही आता माँ मान क्यों नही जाती कुछ दिन शर्मा जी के सांथ क्यों नही बिताती इस तरहा बार बार रूठने से अच्छा हैं माँ एक बार रुठे ! साँप भी मर जायें, और लाठी भी ना टूटे... आज कल में इनकी समस्याओ का समाधान कर रहा हूँ, दिन रात इन्हें एक करने की कोशिश कर रहा हूँ मेरे लाख समझानें पर भी, इन्हें कुछ समझ नही आयें, पिताजी का तों अब भी, यही कहना हैं ! दुल्हन वहीं जो, पिया मन भाए... इनकी हर रोज़ लड़ने की आदतों से, मैं पक चुका हूँ ! समझ...