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रंग

प्रीति तिवारी “नमन”
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

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लाल गुलाबी नीले पीले
बहु रुप होते हैं रंग,
सँवर है जाता जीवन इनसे,
अपने जब होते हैं संग।

धुलने ना पाएँ बारिश में,
घनी धूप में उड़े नहीं,
प्राण बिना जैसे हो जीवन,
ये जब हो जाते बेरंग।।

अलग-अलग रंगों का होता,
जीवन में स्थान अलग,
रंगों से यह प्रकृति है सुन्दर,
अनुभूति ये हो न विलग।

रंगों से खुशहाली आती,
नयनों को भाते है रंग,
दुख में फीके पड़ जाते हैं,
सुख में गहराते हैं रंग।

मुस्कानों में फूल से खिलते,
आंसू संग बह जाते रंग,
प्रेम दया भाईचारा भी,
सिखलाते जीने के ढ़ंग।

कुछ यादों, वादों भावों के,
रंग मन को भीगा कर जाते,
कुछ खट्टे कड़वे अनुभव,
अवसाद के रंग सीना भर जाते।

खाकी केसरिया है छाये,
दुश्मन से होती जब जंग,
स्वेत रंग शांति का होता,
स्मृद्धि की हरी पतंग।।

सिन्दूरी है प्रेम हमारा,
और एहसास गुलाबी है,
पीतांबर हरि को भाता है,
अम्बर नील नबाबी है।।

मिष्ठानो, पूड़ी पकवानों,
त्यौहारों के होते रंग,
कुदरत का श्र्ंगार है इनसे,
कई रुप होते हैं रंग।

जब स्वदेश का नाम हो ऊँचा,
लहराए तिरंगा रंग,
सतरंगी स्वदेश रंग छाये,
होती जब दुश्मन से जंग।

अपनेपन के रंग हैं महके,
गले लगायें मिलके अंग,
सँवर है जाता जीवन इनसे,
अपने जब होते है संग।।

परिचय :- प्रीति तिवारी “नमन”
निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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