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बेटी

प्रदीप कुमार अरोरा
झाबुआ (मध्य प्रदेश)

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नयन खोल निहार रही,
आ के निर्निमेष वो,
स्वाति की धर चाहत,
ज्यों प्यासो चकोर है,
लिपट के पैरों से,
बेजान में वो फूंके प्राण,
बेटी ही है मेरी अपनी,
नहीं कोई और है।

एवरेस्ट फांदने-सी,
ताकत उसने झोंक दी,
मैंने जानबूझकर कर दी,
जब ढीली डोर है,
प्रलय की परिभाषा,
पढ़ ली मैंने उस दिन,
गुस्सा है कुट्टी भी है,
जोर-जोर से शोर है।

पकड़ के अपने कान
सॉरी-सॉरी कहा मैंने,
गलती तो मैं कर बैठा,
मन भाव विभोर है,
नहीं मानी रातभर,
मम्मा संग जा के सोई ,
सुबह सीने पे आ वो बैठी,
धन्य हुई भोर है।

परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा
निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश)
सम्प्रति : बैंक अधिकारी
प्रकाशन : देश के समाचार पत्रों में सैकड़ों पत्र, परिचर्चा, व्यंग्य लेख, कविता, लघुकथाओं का प्रकाशन , दो काव्य संग्रह(पग-पग शिखर तक और रीता प्याला) प्रकाशित।
सम्मान : अटल काव्य सम्मान, शब्द सरस्वती सम्मान,
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है


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