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अंधा बाँट रहा गर सिन्नी

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’
जौनपुर (उ.प्र.)

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अंधा बाँट रहा गर सिन्नी घरे घराना खाएँगे
जूठ काट जो बच गया उसको चिमचे पाएँगे

स्वार्थ में अंधा हो जाते हैं जब भी ऐसे लोग
कदम कदम पर हैंकड़ी उल्लू सदा बनाएँगे

घुटने पर चलने को अक्सर करता है मजबूर
दुश्मन मित्र नज़र आते हैं मित्र शत्रु बन जाएँगे

बाहर से तो संत दीखता अंदर अहंकार भारी
तजिए ऐसा साथ अन्यथा पिछलग्गू कहलाएँगे

मतलब की बातें करता है धर के रूप प्रच्छन्न
बचना है मारीचि से तो सोच के कदम बढ़ाएँगे

अपना घर तो करेगा रोशन दूजे के घर अंधेरा
अपनी धपली अपनी राग़ गाथा निजी सुनाएँगें

थोथा थोथा जेब में अपने पइया ग़ैरों के हक़ में
स्वाँग भरेंगे हर पल लेकिन साहिल सा दर्शाएँगे

परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’
निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश
सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य संग्रह सम्पादित, अध्यक्ष साहित्यिक संस्था जौनपुर उत्तर प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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