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खुशी प्रदायिनी

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है
जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है।

बहुधा कविता का साथी, अलमारी का कोना है
पुस्तक क्रय बात अलग,मिली भेंट क्या खोना है

शिवशक्ति संगम जैसा, लेखन संदेश भी त्राण है
कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है

जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है।
रुचिकर भोजन स्वभाव, पसंद का भवन लेता

यारी परिवार संबंध हेतु, नाविक नैया खुद खेता
पसंद नापसंद से सर्वस्व, करता मनुज निर्माण है

कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है
जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है।

स्मृति पटल पे बने रहना, स्वभावों की हद बनती
कविता संदर्भों की चर्चा, प्रभाव का कद गढ़ती

कब कैसे कितना कथन, मानव हक परिमाण है
कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है

जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है।
सच कितना कड़वा है, स्वाद नहीं अनजाना है

जलन स्पर्धा वजह, कुछ नूतन सृजन बेगाना है
आत्मप्रवंचना के मारे, कलम कथा तो बाण है

कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है
जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है

नदी उदगम स्थल सा, लेखन का आगाज़ बनता
शब्दभाव संयोजन सृजन, धरा पे इतिहास रचता

मां शारदे पुजारी को, अनगिनत भाव प्रयाण है
कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है

जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है।
हास्य-व्यंग्य संदेशों में, निहित संवेदना का पुट है

माटी का कर्ज चुकाने, एक टोकरी मिट्टी सप्रेवट है
पुष्प अभिलाषा भाषी, माखन का नहीं निर्वाण है

कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है
जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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