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Tag: विजय गुप्ता

विश्व गुरु भारत
कविता

विश्व गुरु भारत

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आचार विचार सत्य सही और मन संकल्पित चरम। राज पथ नाम बदलकर कर्तव्य-पथ पर चलते हम। गांधी का भारत छोड़ो, नेताजी चलो दिल्ली शीघ्रम। कर्तव्य पथ वतन से ही हटाई गई मूर्ति जॉर्ज पंचम। नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे,अमर हैं वंदे मातरम। वैश्विक महामारी कोरोना में देश देखे अदभुत कदम। विकसित देशों का दुनिया ने भी टूटते देखा है भरम। गुणवत्ता प्रधान दवा समुचित सेवा सहयोग निश्चयम। अन्य राष्ट्र से पुरातन वस्तु वापसी विरासत का धरम। वंदे-भारत ट्रेन सेवा की सौगात देश को वंदे मातरम। डिजिटल क्रांति इंटरनेट डेटा जैसे कई सारे लक्षणम। आतंकवाद पत्थरबाज कश्मीर में अमन चैन शरणम। पांच सदी कानून जंग से राम मंदिर अयोध्या प्रसादम। अमृत महोत्सव वर्ष घोषित चौबीस रामलला दर्शनम। भारतमाला परियोजना से सड़क नेटवर्क वंदे मातरम। दमदार दहाड़ते देश विरोधी का अब...
नया काम नई शान
कविता

नया काम नई शान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नए काम में नई शान से, सभी उत्साह जगाते हैं अक्ल मेहनत साथ इंडिया, अच्छी दुकान चलाते हैं पर शब्दों की जादूगरी से, यश सम्मान भी पाते हैं कहीं तकदीर वश घूरे से, सोना भी उपजाते हैं हंसते खेलते जो दिखते, गलियों में चौराहों में, अंतर्मन उनका घिरा रहे, निहित अवसाद आहों में, सेवा सृजन ऊर्जा उमंग, अंतर्मन की चाहों में, हंसते हुए ही जो मिलते, अति व्यस्त ही पाते हैं पर शब्दों की जादूगरी से, यश सम्मान भी पाते हैं कहीं तकदीर वश घूरे से, सोना भी उपजाते हैं रोजी दिहाड़ी मांगते वो, सारे मजदूर परखिए अक्सर काम लगाना चाहो, रंग ढंग आप देखिए गुजरबसर के साधन सारे, ताकत में आय समझिए छोटी बड़ी अपनी जरूरत, सब पूरी कर जाते हैं पर शब्दों की जादूगरी से, यश सम्मान भी पाते हैं कहीं तकदीर वश घूरे से, सोना भी उपजाते ह...
राजनीति रोटी
कविता

राजनीति रोटी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजनीति की रोटियां, जितनी चाहो सेंक। सत्य तथ्य रखते परे, निडर मानकर फेंक।। भ्रष्ट रोटी जो मिले, मानें खुद को शूर। पर होता इंसाफ है, होकर लज्जित दूर।। मुनि संतों के देश में, शैतानों का उत्पात। वनवास काल ’राम’ ने, दी चुन चुनकर मात।। काम किसी के आ सकें, खुल जाता था द्वार। अदभुत दधीचि दान था, केवल अब कुविचार।। चलता देश विवेक से, रखें सभी अभिमान। फिर मनचाहा तो नहीं, होता है गुणगान।। मुल्क नीति अवमानना, विचलित दिखे अनेक। सिर्फ भ्रम फैला रहे, रोटी लालच एक।। देश प्राण जब एक है, भारत माता आन। समान घटना नजर से, क्यों रहते अनजान।। बोली बहुत मुखर हुई, देते बात मरोड़। ’मुन्ना’ तर्क इस राह से, निकले कोई तोड़।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज द...
हमारा भी जमाना था
कविता

हमारा भी जमाना था

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ी देखे चरम बदलाव, चिंता बिन अफसाना था। भला=बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। बिन शर्म संकोच बचपन में, पैदल साइकल जो हुआ। दूर_पास विचार नहीं संग, मां पिता गुरु ईश दुआ। चला करते पीढ़ी के रिश्ते, चाचा मामा बहन बुआ। ढपोरशंख पदवी से दूर, प्रतिशत उच्च अंक छुआ। बगैर संकोच पुस्तक शॉप, क्रय विक्रय ठिकाना था। परिवार सहयोग में कितनी, लाइन भी लग जाना था। अपनी पीढ़ी चरम बदलाव, बिन चिंता अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। प्रभु प्रलोभन मिठाई का, कम मेहनत विनय करते। पढ़ाई खर्च का बोझ वहन, कभी उजागर ना करते। सिलवटी ड्रेस सस्ते खेल से, जमकर खुशियां पा लेते। कंचा भौंरा पिट्टुल कौंडी, लूडो चेस चला करते। जरा सी पॉकेट मनी बचे, अन्य शौक भी पाना था। घर का मुरमुरा चूड़ा भेल, अपना श...
जी भर कर जीने दो
कविता

जी भर कर जीने दो

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कष्ट बेचारा सीधा सादा, उसे दुख दे लेने दो। नखरे होते खुशियों के, जी भर कर जीने दो। माना सुख-दुख दोनों, बिना तैयारी के आते दोनों को ही वहन करने, निभनेवाले हों नाते कंटकमय पथ में ही, साहस राहत खुद लाते डर के आगे जीत सूत्र, हे! मानव पनपने दो कष्ट बेचारा सीधा सादा, उसे दुख दे लेने दो। नखरे होते खुशियों के, जी भर कर जीने दो। कच्ची माटी का घड़ा, या कच्ची उमर के लोग सहन_शक्ति के बाहर, प्रबल हो जाता संयोग अंतर्मन मजबूत सदैव, पड़ता पस्त शोक रोग दुख संतप्त देखकर, कुछ को खुश हो लेने दो कष्ट बेचारा सीधा सादा, उसे दुख दे लेने दो। नखरे होते खुशियों के, जी भर कर जीने दो। सागर मंथन इतिहास, अमृत जहर बटवारा स्वजन संग लुटता सुख, बेबस दुख ही हारा पहचाने ही अनजाने से, कन्नी काटता बेचारा सुख खुशी के मार्ग कम, दुख राहें मचलने दो कष्ट ...
हमारा भी जमाना था
कविता

हमारा भी जमाना था

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीढ़ी देखे चरम बदलाव, चिंता बिन अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। बिन शर्म संकोच बचपन में, पैदल साइकल जो हुआ। दूर-पास विचार नहीं संग, मां पिता गुरु ईश दुआ। चला करते पीढ़ी के रिश्ते, चाचा मामा बहन बुआ। ढपोरशंख पदवी से दूर, प्रतिशत उच्च अंक छुआ। बिना शरम इगो पुस्तकों का, क्रय विक्रय ठिकाना था। परिवार सहयोग में कितनी, लाइन में लग जाना था। अपनी पीढ़ी चरम बदलाव, बिन चिंता अफसाना था। भला-बुरा का ज्ञान नहीं पर, हमारा भी जमाना था। प्रभु प्रलोभन मिठाई का, कम मेहनत विनय करते। पढ़ाई खर्च का बोझ वहन, कभी उजागर ना करते। सिलवटी ड्रेस सस्ते खेल से, जमकर खुशियां पा लेते। कंचा भौंरा पिट्टुल कौंडी, लूडो चेस चला करते। जरा सी पॉकेट मनी बचे, अन्य शौक भी पाना था। घर का मुरमुरा चूड़ा भेल, अपना शौक पुराना था। अपनी पी...
सूर्यवंश के हंगामी
कविता

सूर्यवंश के हंगामी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। नेक काज पर प्रोत्साहन, स्व स्फूर्त सहज ही बढ़ना कुछ कमियों की अनदेखी, तिरस्कार मार्ग से हटना लगते लोग नागवार ऐसे, भाए आंख चुराकर रहना कुछ अद्भुत उपलब्धि से, जीत की ताली ना बजना ऐसे लोग बहुत हैं जग में, खुशहाल व्यक्ति पर रोते। कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। सम्मान समय पर जो होता, वही कद्र बनती मिसाल बुद्धि घट में कई छिद्र जड़े, उन्हें पूछना सिर्फ सवाल स्वभाव ही तो पहचान बने, कर्म योग रोशन मशाल दूध पी सांप जहर उगले, चारा खा धेनु दूध कमाल। गाय प्राणदायिनी सभी को, कृष्ण गौ सेवा में खोते। कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। अ...
कोशिश हो रफ्तार की
कविता

कोशिश हो रफ्तार की

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। तानों से कुछ भटके तो, गानों से फिर महके भी शानों में कभी जो अटके, सम्मानों संग चहके भी जीवन के हैं स्वर्ण रथी, सारथी सोच परिहार की। अश्व चाल के चिन्ह मिले, जहां दिशा परिवार की उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। आधी दोस्ती मतलब ही, दुश्मनी आधी सुनते हैं। शतरंज मोहरे जैसे फिर, कदम चाल में घिरते हैं। खट्टे मीठे अनुभव पाते, ऐसी बातें कुछ यार की। कपट विश्वास का पुल, नैय्या कथा मझधार की। उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। गाड़ी जैसा होता जीवन, समतल पर रुकावट भी मिले सही डॉक्टर मिस्त्री, थोड़ी कभी बनावट भी थकावट वाले कलपुर्जे, चाहत सच्चे हथियार की।...
लेखन का दम
कविता

लेखन का दम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कवियित्री 'अनामिका अंबर’ को पढ़ने से रोक वजह से सृजित मेरी नई छंद रचना। सृजनकारों की आन-बान-शान लेखन सृजन का पुरातन इतिहास स्वाधीनता युद्ध तक और रीति भक्ति काल तक ले जाता है। आव्हान है पुराने युग के साहित्यकारों के देश में प्रखर कलम चलती रहे और देश के सही मुद्दों पर लिखती रहे। आभार सहित। हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा। तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा। आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है। कवि कवियित्री पे सीधी रोक, 'अनामिका’ बेचारी है। हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है। भक्ति रीति युग रचनाओं में, खूब निपुणता पा जाते। गंगा यमुना सरयू गाथा में, साहित्य झलक महकाते। कदंब पेड़ काव्य ’सुभद्रा’, पावन यमुना दिखलाती। विषैली यमुना नदी जल को, कालिया मर्दन कराती। पर्यावरण जो वर्तमान में, समझना कलम क...
एक राष्ट्र एक पथ
कविता

एक राष्ट्र एक पथ

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** संवेदना एक पथ, विवेचना रखो दूर स्वदेश को संभालने, कैसी है विडंबना। सांत्वना मुखर होगी, संतुलन के भार से, जरूरी है भाई साब, शीघ्र ही संवारना। सहेजकर था रखा, सराहना भाव खोया गुजरेगा वर्तमान, व्यर्थ फिर सिसकना। सरसता सरकना, सनकना पीर बना, देश मांगे सदभाव, सोचिए संभावना। सहना ही सिखा गया, संवाद फिजूल हुआ डरना स्वभाव नहीं, फिर भी डराइए। खतरों को भांपकर, कछुआ छिपाए अंग अनहोनी यादकर, हाशिये पे जाइए। तो भूलोगे पहचान, अरमान भी जलेगा दायरे में रहने का, तरीका जताइए। समय की साझेदारी, समंदर को आइना मान स्वाभिमान संग, भारत को जानिए। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्र...
काव्य व्यथा
कविता

काव्य व्यथा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता की पंक्ति एक, कवि कोई लिखता है रख जेब में पेंट की, कवि भूल जाता है। धोबी घाट गया पेंट, कविता पंक्ति पाता है वो कविता की लाइन, आगे लिख जाता है। कवि अपने पेंट को, हाथ डालता जेब में भूली पर्ची पंक्ति अब, आगे लिखा पाता है। अज्ञात कवि जिक्र को, मित्र को सुनाए कवि बढ़ी पंक्ति लिखा कौन, याद नहीं आता है। कविता तो बढ़े आगे, लेखक ही अज्ञात है रचना नई पंक्ति की, फिक्र करे कवि सदा परेशान तो मित्र भी, पंक्ति रचनाकार को जाने कब याद आए, शीघ्र बताता नहीं। पहली दूसरी पंक्ति तो, कवि पहचान लाए एक शब्द भाव पूरा, बता ऐसे जाती है। कवि नाम प्यास देखी, मित्र इंतजार करे कविता चिंता फिक्र तो, कवि को सताती है। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साह...
दिवाली वक्तव्य प्रकटीकरण
कविता

दिवाली वक्तव्य प्रकटीकरण

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। सत्ता संग खेला करते हैं नूरा कुश्ती आरोप अफवाह से भरा तमाशा है सता विपक्ष अंदर बाहर खेल कबड्डी मौका पाते ही भरपूर लगे तमाचा है काली गोरी चमड़ी सबका लोकतंत्र बेशर्म मोटी चमड़ी कुचक्र चलाती है। सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। संस्कार विकास कदमों की खातिर व्यक्तित्व प्रशिक्षण के विषय बनाए प्रभावी भाषण कला के बदले अब कुतर्क नजारा निरंतर दर्शाता जाए बड़े सफेदपोश की बोलियां सुनकर भाषण कला बेभाव जहां शर्माती है सत्ता आए जाए, क्रिया कह जाती है। संवाद ढंग से प्रतिक्रिया रह जाती है। खुद के निर्णय कथन का युग देखते सुनते ही रहिए बस आत्म प्रवंचना बड़बोले खुद अपना संसार हैं रचते श्रेष्ठतम मनवाने में वक्...
याद रखता है इंसा
कविता

याद रखता है इंसा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** स्याही और तासीर, वक्त की छाप अमिट है, मिलती रस धार जब, रंग जरूर बदलता है इंसा बधाई सोच की गली, बहुत तंग दिखती सदा, मजबूर सा वो किरदार, जुदा सा लगता है इंसा यूं तो सभी मानते, खुद को वक्त का सिकंदर, सराहे बिना और को, सिरमौर ही बनता है इंसा दुनिया एक सभी की, फिर भी कुछ अलग है, जरूरत मुताबिक ही, अब हाथ बढ़ाता है इंसा बोलने का रोग पले, और नशा ही बनता चले, वापस लौटता लफ्ज़ तो, परेशान करता है इंसा चाय चुस्की चाह सी, चहल चुहलबाज जिंदगी, ख्वाब हकीकत राह में, सुंदर पुल मांगता है इंसा खुदा की नेमत बीच, जिंदगी जायके का तड़का, तीखा कड़वा चटपटा मीठा, मर्जी चाहता है इंसा जिम्मेदारी पिंजरे से बाहर झांकने फुरसत नहीं, समझ और व्यवहार से, मुकाबला करता है इंसा लिख पढ़कर देख सुनकर कमाई जाती डिग्रियां, उम्रदराज सोच रहा, संस्क...
गांधी के तीन बंदर
दोहा

गांधी के तीन बंदर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बंदर गुण पर नजर थी, जो गिनती में तीन। गांधी अनुयायी सही, लाख बजा लो बीन।। साथ रखे वो घूमते, व्यापक था प्रभाव। एक सदी से दिख रहा, बहुत विचित्र स्वभाव।। गलत देख कर गुम हुए, पाए जो संस्कार। पट्टी आंख पर है चढ़ी, हो रहा व्यभिचार।। व्यर्थ वानर अब खड़ा, पनप रहे कुविचार। अभिभावक के सामने, बिगड़ रहा परिवार।। छठी इंद्रिय तेज है, असमंजस कपिराज। गांधी तेरे देश में, अखर रहे हैं काज।। हम कानों से क्या सुनें, सुनती जब दीवार। कर्ण कपि खुद नाच रहा, अनर्थ मय तकरार।। सुनना भी पसंद नहीं, सुंदर भी जब बोल। वानर थाम रहे तुला, कैसे खोलें पोल।। बड़बोला मानव हुआ, एक रहे नित काम। मुख पट्टी भी कपीश की, कचरा गई तमाम।। गांधी के बंदर पले, बहुत बरस की भोर। जीवनकाल खत्म हुआ, चलन दूर का शोर।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १...
गिरने की तालियां
कविता

गिरने की तालियां

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** गिरती है वस्तु कोई, आकर्षण ही खींचता न्यूटन नियम से ही, धरा पर जाती है। नेता ठेकेदार देखो, ऊंचे बड़े बोल संग गूंगा जैसा बनकर, गिरना सिखाती है। रोक टोक मन भर, डॉन सुख भोग रहे मुहर बड़े आदमी की, जलना दिखाती है संग चलो की चाहतें, सहन करो आदतें स्वार्थ रोग लग जाए, गिरना दिखाती है। नियम बना स्वार्थ का, पूछ परख खूब हो दबाव रहे गुट का, होहल्ला मचाती है। मान ज्ञान परे रख, बदले के भाव जागे दबाव की राजनीति, अति गरियाती है।। राय बहादुर राय, उपयोगी माने कोई, चलके ही खुद आए, ढंग बतलाती है। मान न ही मेहमान, तेवर नजर तान, गिरने की शान बान, तालियां बजाती है। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अ...
शिक्षक सम्मान
कविता

शिक्षक सम्मान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आजीवन ना भूलना, शिक्षक वृंद महान। शिक्षा ज्ञान सीख मिली, छात्र चढ़े परवान।। जिनका ऋण अदा नहीं, ऐसा है अवदान। गुरु दक्षिणा में मिली, राहों की पहचान।। परिपक्वता सतत बढ़े, परख और व्यवहार। जीवन पड़ाव को मिला, सुंदरतम साकार।। शिक्षकगण को मानते, मोती का ही रूप। गोता बल लगता जहां, पाए भी अनुरूप।। एक दिन का मान नहीं, जीवन भर अभिमान। गुरु बनते जो आपके, सुखद लक्ष्य का ध्यान।। गुरु ज्ञान सम तत्व का, दिल से है आभार। सत्य राह जो भी चले, शिक्षक पर उपकार।। शब्द संयोजन कम पड़े, जय गुरुवर बखान। सच्चे दिल से शब्द झरे, होगा गुरु सम्मान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा...
लगता नहीं
कविता

लगता नहीं

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आदत स्वभाव पसंद नापसंद तो बड़ा सबब है, हाले दिल बयान कहे साथ रहा हुआ लगता नहीं। हवा पानी आवेश भावमय गुजरता ये जीवन, जाने क्यूं नए दौर की धार बहा हुआ लगता नहीं। जी तोड़ कमरतोड़ संयोग बनता रहा काम का, मगर प्रेम पगा मन, प्रेम में गहा हुआ लगता नहीं। मनुज रूप जनम में अनेक कमियां होती जरूर, गुण दोष वाला जीवन दूध नहा हुआ लगता नहीं। सहनशक्ति जाने अंजाने में समझना आसां नहीं, आंच में तपा इंसान भी तो सहा हुआ लगता नहीं। हौसला भरोसा भी तो किसी चिड़िया का नाम है, चौथेपन उड़ान संग स्वभाव ढहा हुआ लगता नहीं। मानने सोचने समझने की ताकत कम हुई विजय, तरकश तीरों सा लहजा भी कहा हुआ लगता नहीं। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्...
आजादी अमृत महोत्सव
कविता

आजादी अमृत महोत्सव

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सिर्फ एक कृत्य देशभक्ति का परिचायक कैसे हो मित्र मतलब बस साथ भ्रमण का याचक कैसे हो जिन लोगों का आजादी में निज जीवन कुर्बान है सीमा रक्षा में लड़ते हर शहीद में देश का प्राण है देश संपत्ति रक्षा वाली सोच नागरिकों की शान है छात्रों और युवाओं को नैतिकता पाठ दिनमान है आजादी अमृत महोत्सव भारत का स्वाभिमान है सच्चे देशभक्तों को विभिन्न अर्थ कर्म का ज्ञान है लोकतंत्र व्यापकता में निज स्वार्थ चलन कैसे हो देशभक्त की परिभाषा सिर्फ एक शब्द में कैसे हो। मित्र मतलब बस साथ भ्रमण का याचक कैसे हो। सिर्फ एक कृत्य देशभक्ति का परिचायक कैसे हो। इतिहास गवाह है जब जब बजा तानाशाही तबला बर्बाद चकनाचूर था परिवार समाज देश का गमला एक भवन बनाने मेहनत का पर्याय बनाती कमला त्राहि त्राहि दशा में सड़क पे आ जाती नारी अबला बड़ी बीमारी से ...
आत्मीय बंधन सुख या सूख
कविता

आत्मीय बंधन सुख या सूख

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शाख का टूटा पत्ता भी सूख जाता है। रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है। मानव वनस्पति दोनों में है जान बसी बंधन ही है रिश्तों की जड़ खुशी हंसी व्यवहार प्रकृति जल हवा खाद खुशी उन कमियों ने जीवन लीला ही डसी संग होने से सोने पर सुहागा होता है। अहंकार वश में कोई अभागा रोता है। शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है। रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है। संघर्ष चुनौती सामना जीवन किस्सा निज नसीब में जितना लिखा हिस्सा पर बन जाते हैं मील के जैसे पत्थर स्मृति धरोहर भविष्य के बनते तत्पर समय समय पर दुर्भाव अखरता है तंज रंज दोनों रिश्तों को परखता है शाख का टूटा पत्ता सूख ही जाता है रिश्ता आत्मीय होने से सुख पाता है सिर्फ लालन पालन कैसा पूरा फर्ज प्यार दुलार दवा खाद सुधारता मर्ज बिन सुराख के बंसी कभी नहीं गाए पर बंसी सुर...
जाने क्या बात है
कविता

जाने क्या बात है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** हर गुफ्तगू कही अनकही में निश्चित कोई जात है, दिल बेचारा हलाकान हो सोचे, जाने क्या बात है। इर्द गिर्द चक्रव्यूह माहौल छिपी उलझन तो मात है, हर व्यूह रचना तोड़ बाहर आना, जाने क्या बात है। नेक सलाह काम परिणाम में अक्सर कोई हाथ है, खुद की दम से नेक काज सधे, जाने क्या बात है। हर वक्त जड़ तना फलती फूलती शाख की पात है, हवा खाद पानी लबालब हमेशा, जाने क्या बात है। गुजरते जीवन के धुंधलके में छिपी बैठी तो घात है, निडर एकाकी जीवन का सफर, जाने क्या बात है। दिन महीने साल गुजारते जब आया दशक सात है, पर देखी वही मशक्कत जुस्तजू, जाने क्या बात है। सुना छप्पर फाड़ धन मिले यकायक दिन या रात है, कुआं खोद प्यास बुझे चकाचक जाने क्या बात है। संघर्ष योद्धा की चुप्पी भली लगती जब मुलाकात है, चूंकि माना अपने तो अपने होते, जाने क्या बात ह...
वतन के रिश्ते
कविता

वतन के रिश्ते

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बरसात की तेज बौछारें भी दिखती चकाचक चांदी जैसी धूप भी चमके। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। छोटे बड़े रास्ते राजमार्ग पगडंडी तक कुंदरा कुटिया घर कोठी महलों तक छात्र किसान व्यापारी पंडित विद्वान सब के हृदय ज्ञान भंडार भरा महान सदा बिना भूख परोसे आतुर जमके। पेट से भूखा व्यक्ति कभी न खटके। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। अपने सर्वश्रेष्ठ दिखाने में मिले घात कोच शिक्षक प्रशिक्षु हृदय की बात हर क्षेत्र विभाग सुना ज्ञान मत बांट अति होशियारी दिखाते ही पड़े डांट कुछ प्रतिभा दिखने से पहले खिसके होनी अनहोनी के फेरों में पढ़ पढ़के। मानव स्वभाव उचित यदि दुलार में नाराजी में पूरी मानवता ही सिसके। टेलीपैथी गुण कहीं पनपता जाता जितना भी कर जाओ सब...
मोबाइल अवसाद
कविता

मोबाइल अवसाद

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मोबाइल जीवन बना, आया बहुत करीब। निज सामाजिक खुशी का, सबका छिना नसीब।। डेसमंड टुटू का कथन, मिशन करे बदलाव। जमीन बाइबल बदले, लाया था ठहराव।। प्रार्थना के नाम पर, करना पड़ा विश्वास। आदत चाय ब्रिटिश की, लक्षण थे कुछ खास।। सोशल मीडिया भी यही, लाए हमें सौगात। मुट्ठी में संसार हुआ, खोए दूर जज्बात।। महत्ता मीडिया दिवस की, हो चुकी शुरुआत। सभी कुछ मोबाइल है, सब पिता बच्चे मात।। जिम्मा समाज कुटुंब का, बहुत हुआ है लोप। चुभन कसक संबंध की, बात बात पर कोप।। उच्च मध्यम गरीब वर्ग, प्रबल हुआ जुड़ाव। रिश्ता है मोबाइल पर, मिलते बहुत सुझाव।। निज दुनिया व्यस्त सभी, दोस्त बने हजार। दो और दो भूल गए, दो दूनी हैं चार। फोटोजीवी बन चुके, दिवस रैन प्रमाण। दिल मोबाइल साथ ही, दोनों बसते प्राण।। प्रगतिपथ का मंत्र है, मत पाओ अवसाद। ...
भोला आतंकी
कविता

भोला आतंकी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता। सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता। वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है। रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है। मासूमियत ओढ़े चेहरा, भीतर बहुत दरिंदा है रखे हैं आतंकी संबंध, जांच काज पेचीदा है तार जुड़े हुए विदेशों से, फड़कता भी परिंदा है सत्ता सुरक्षा ढिलाई पाकर, सिद्धू जान गंवाता है वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है। भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता। सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नही होता। छापों का भी डर नहीं तनिक, मनुज बनता है सत्कर्मी राजनीति के दांवपेंच में, बनता धूर्त हठधर्मी माफिया गैंग के राजदार, जो हत्यारे और कुकर्मी शासन कानूनों की जकड़न, चोला बाहर आता है वो दुन...
विश्व परिवार दिवस
कविता

विश्व परिवार दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। खूब पढ़ाया संतानों को, बढ़ता क्रम भी जारी है दादा दादी नाना नानी की बढ़ती अब लाचारी है घर परिवार दायरे में रहना सबकी जिम्मेदारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है रुचि लगाव रखने में परिवारों की पूरी हिस्सेदारी है नारी सशक्तिकरण के युग में अहम भूमिका नारी है संस्कार समन्वय और मातृत्व गुण सभी पर भारी है भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है। सतर्क और संस्कार नियम से यदि बढाई यारी है गुमराह वजह कुछ लोगों की बनी चिंता हमारी है कुतर्क चलन अहम तुष्टि में कुछ की मति मारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान...
मातृ दिवस
कविता

मातृ दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मां की छवि ईश्वर सम, मत खोजो तुम तोड़। सपने सच करती चले, व्यर्थ मां से होड़।। प्रेम हिफाजत ध्यान में, गुजरे सालों साल। बाल न बांका हो सके, हरदम ठोके ताल ।। रोटी टुकड़े चार जब, खाने वाले पांच। भूख नहीं है मां कहे, चरम स्नेह की आंच।। कष्टों में मां घिरी रहे, दब जाती है हूक। मुंह खुले आशीष में, अकसर दिखती मूक।। करे बच्चों की पैरवी , बनती रहती ढाल। बरसो बरस राज रहे, ये ममता की चाल।। मातृ दिवस याद सिर्फ, चल न सके परिवार। ममत्व छांव पले सदा, जल थल नभ संसार।। जनम जनम न उतर सके, मां का ऐसा कर्ज। भाग्य यदि मां देखती, कोख पले का फर्ज।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...