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Tag: विजय गुप्ता

ट्रैक्टर ट्रॉली का क्रिकेट
कविता

ट्रैक्टर ट्रॉली का क्रिकेट

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शारदा ट्रैक्टर की ट्रॉली सड़क पर चल रही, सूर्य अस्त होने को है और फ्लाई ओवर का नजारा, गाडियां तो चींटी कछुए की चाल चल रहीं पुल पर सारी गाडियां जाम में फंस रहीं। ट्रॉली के पीछे मेरी कार भी रेंगती रही, ट्रॉली में दो मजदूरों के अलावा एक सुंदर सुडौल लगभग ११ वर्षीय बालक, ट्रॉली को ही क्रिकेट का पिच बना रहा, और अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों सा बल्ला घुमा रहा। जैसे हर बाल पर छक्का चौका जड़ दिया, दोनों हाथ ऊपर हवा में लहरा रहा, मस्त उत्साह में झूम रहा। एक किसान मालिक का बेटा है वो, या ट्रैक्टर मालिक का। हो सकता है मजदूर का ही बेटा हो। जो भी हो, क्रिकेट खेल के खिलाड़ी का अरमान बहुत प्रखर है। सूर्य की बिखरती सिमटती किरणों की तरह, उस बालक का भविष्य मानो गर्त में कैद है। महान बन जाने पर, दुनिया में नाम का यशोगान हो जाने पर, शास्त्री...
स्नेह
कविता

स्नेह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाल की तरक्की होती जा रही अब जमाने में, आज तक स्नेह परखने का यंत्र तो बन नहीं सका। सुनते रहे थे सदा हम, छिपाने से छिपता नहीं, स्नेह कोई वस्तु जैसी नहीं प्रदर्शन बन नहीं सका। दिल की तिजोरी का हर कोना स्नेह से लिप्त हो जरूरत में कैद स्नेह कभी, आजाद बन नहीं सका। सात दिन चौबीस घंटे दिल कारखाने में ये बने, स्नेह गजब का डॉन, सूरत ए हाल बन नहीं सका। चार बातें चार लोग के सामने होती महफिल में, खुद के बनाए घेरे में झांकता, शख्स बन नहीं सका। सही गलत सब गेंद खेलने, माहिर हुए अब लोग, सही जगह सच रखने, फिक्रमंद भी बन नहीं सका। स्नेह सात तालों की सुरक्षा, बहुत खास है प्रसंग बहुत स्नेह रखते मात्र कहने, साहस बन नहीं सका। दूसरों की नजर में पूछ परख सम्मान मिलता रहे, सबके सामने सच रखने का, योग भी बन नहीं सका। स्नेह के ऐसे क...
हौसला पंछी का पिंजरा
कविता, छंद

हौसला पंछी का पिंजरा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छंद काव्य उमर नही होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया हैं। जब होनहार बिरवान सुना, हर पीढ़ी सुनते आए किसी का दायित्व भी बनता, खुद से वो कितना गाए तकदीर लिखाकर जो आता, खून पसीने की खाए बेगानों की बात नहीं थी, अपनों से धोखे पाए नौ मन तेल बिना ही कैसे, तिगनी नाच कराया है। दिल में नफरत दीवारें थीं, फिर भी साथ बिठाया है। उमर नहीं होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है। रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया है। धोखा विश्वास नदी पाट से, दोनों अलग किनारे हैं दोनों मिल जाए मनुष्य को, तकदीरों के मारे हैं बनती वजह लिहाज चाशनी, सदा समंदर खारे हैं स्थिर जीवन कबूल नहीं फिर, मानो बहते धारे है तिनका मोरपंख बन जाए, सिया कटार बनाया है। अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखे, अल्प धन ही कमाया है। उमर नहीं होती ...
सब गुलजार हुआ होगा
कविता, छंद

सब गुलजार हुआ होगा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ताटंक छंद त्योहार मनाने का उत्साह, इंतजार में पलता है राग द्वेष को तजते इसमें, अपनेपन से चलता है। होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। दुनिया रंगबिरंगी होती, चालों में रंग सिमटता रंगों पर हक नहीं किसी का, घटना घेरों में पलता आशा विश्वास सहयोग दया, रंगो का पहरा रहता रहमत रंग की पात्रता से, अमन चैन खजाना होगा सच्चे पक्के जब रंग समाए, दांवपेंच गुजरा होगा होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। बिना कर्म और समर्पण से, अंक गणित का शून्य है रंग तुम्हारे कितने चोखे, साहस मार्ग अनन्य है अमल खलल रूप सच्चाई से, रंग गाथा भी धन्य है जहमत रंग प्रतिपालन में, काया कल्प हुआ होगा रंग लगाकर रंग बदलना, आपा भी खोया होगा होली होली क...
प्रतिबंध लगे कई युगों से नारी पर
कविता

प्रतिबंध लगे कई युगों से नारी पर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** प्रतिबंध लगे कई युगों से नारी पर हक और खुशी की आजादी खोई। सिसक दुबककर ही किया गुजारा लालन पालन फर्जों में जीवन ढोई। आंसुओं के बहाव को यूं समझाया अपनत्व दुलार खुशी वजह से रोई। नारी सशक्तिकरण ने पाया विस्तार कर्म अधिकार रक्षण में भी न सोई। किसी से अब कमजोर नहीं महिला अब करतब से अचरज में हर कोई। हर जगह दखल नसल अकल बल अब अपनी आन बान शान में खोई। साहस समानता किस्से बढ़ चढ़कर यूक्रेन रूस युद्ध में क्या क्या ना होई। दमखम पूरा रखती नियंत्रण रक्षण में युद्धस्थल श्वेता चित्रा रोमाना हर कोई। खाकर शर्म अब आतंकी नर सुधरेंगे जिसने समझा नारी को बस एक लोई। प्रगतिशील नारी कृत्य सफलता से बेझिझक प्रेरणा पाओ सुंदर साफगोई। नारी शक्ति विजय कानून का डंडा टिक ना सकेगा कभी कहीं पर हरदोई। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्...
नवोदित सृजनकार मसीहा
कविता

नवोदित सृजनकार मसीहा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सरस्वती देवी मां कृपा, महिमा सुनी सुनाई है। कर्म-मर्म की सभी अच्छाई, समाज हित बरसाई है। परवरिश कहानी कहती है, कसर बाकी राह ना जाये अपनी कुव्वत से भी ज्यादा बच्चों को अर्पित हो जाये यह भाव समाया जब दिल में, कौन तुम्हें फिर रोकेगा बाधा विलंब तो लिखी बदी होना जो वो होवेगा। कर्मों के फल का संतोष यही, तन-मन से शक्ति पाई है कर्म मर्म की सभी अच्छाई समाज हित बरसाई है सरस्वती देवी मां कृपा, महिमा सुनी सुनाई है। कलमकारों का कलम बल ही साहित्य मिसाल बनाती समाज को दर्पण दिखलाने, जब लेखनी दम दे जाती 'माखन'' दिनकर ''सरल' 'निराला' 'पंत' 'गुप्त' पाठ पढ़ाती रचनाकारों के शब्द भाव समस्या का हल दिखलाती इतिहास गवाही देता है, लेखन बल चतुराई है कर्ममर्म की सभी अच्छाई समाज हित बरसाई है सरस्वती देवी मां कृपा महिमा सुन...
मतलब का ही रिश्ता है
कविता

मतलब का ही रिश्ता है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है। रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। घटना दुर्घटना में ईश्वर खाता बही में रहमत भी है कृपा से बचने पर कुछ बैरी जन की जहमत भी है मृत्यु अरमान जलन सोच, तन की हालत खस्ता है रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है। सहोदर भाई से सच्चे नाते भी कटुता से प्रेरित होते दोषयुक्त जहाज से चूहे सबसे पहले भाग खड़े होते अपनों के कटु निर्णय तो, स्वाभिमान को डसता है। रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है। अति मजबूरी में धन सहयोग मांग का जब प्रस्ताव भरोसा हीन जानकर लिखित दस्तावेज रूपी नाव निज सोना गिरवी रखकर वही खुशी से हंसता है। रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता...
अच्छा लगता है
कविता

अच्छा लगता है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अपने अनुभव से जो कर पाता जीवन में, देख सुन समझकर बस अच्छा लगता है। देखकर दूसरों की कुछ उपलब्धि प्रगति गूंगा ठगा सा रह जाना अच्छा लगता है। कब कहाँ किसने क्या क्यों कैसे कहा था हर वक़्त याद रख लेना अच्छा लगता है। जरूरी कार्य ताकीद के बावजूद भी देखा अनजाने की भूल कहना अच्छा लगता है। संस्था समाज का ठेकेदार बनता है मनुज, ठेकेदारी चाल बदल लेना अच्छा लगता है। कथा व्यथा लहू में समाई शक्ति कहलाती सूत्र सिद्धांत उपयोग बस अच्छा लगता है। आध्यात्म और सिद्धि साक्ष्य अदभुत मिलते आंखों देखा वृतांत सुनना अच्छा लगता है। मां बाप गुरु सम्मान है किताब व्याख्यान में, साक्षात प्रमाण दिखे कभी अच्छा लगता है। नदी सदृश्य किरदार भी बहता रहा जमीं पर, चुल्लू भर जल में श्रम गंध अच्छा लगता है। चौकीदार सी चौकस निगाहों वाली ...
कलमकार की कलम
कविता

कलमकार की कलम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है जैसी सोच हृदय मे रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। बहुतों को देखा बहुधा बिना दवा के भी काम चलाते तन को बीमारी से बचाने खुद अपनी क्षमता बढ़वाते असाध्य कष्ट हो जाने पर चिकित्सक को बतलाता है पांसा कभी सीधा होता और कभी उल्टा पड़ जाता है जैसी सोच हृदय में रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है। जीवन में देखा गधों को बाप किस तरह बनाया करते काम निकल जाने पर कितनी बुरी तरह हटाया करते बस यूं समझ लेना प्यासा ही तो कुएं के पास जाता है कई बार कुआं भी तो निज सड़ांध छिपा रख जाता है जैसी सोच हृदय में रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है। पानी में सभी उतरने वाले कभी तैराक हुआ नहीं करते पानी की दलदल गहराई पथरीला ज्ञान भी नही...
वक़्त का वक्तव्य
कविता

वक़्त का वक्तव्य

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त का वक्तव्य तो सौभाग्य से असीम अनुभव दे गया संवाद समय का समन्वय ही चुस्त बना देता बुजुर्गों को। सदा ही सुनते कि बुढापे में स्मृति व्यवधान आ जाता है हालातों से बचाव भाव ही मजबूर बनाता है बुजुर्गों को। रुचिकर ज्ञान ध्यान मान में अतीत का अनुभवी जीवन व्यथित व्यवस्था में नए ढंग उत्साहित करता बुजुर्गों को। कष्ट अनेक वृद्धावस्था में, कुछ जज़्बात भी साथ होते हैं एहसास करने का स्वभाव ही, खुशियां देता बुजुर्गों को। माना जरावस्था में सुनने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है ऊंचे स्वर बिना भी सहज संवाद सुनाई देता बुजुर्गों को। निज सेवा आदत जिनकी ना रही हो वृद्धों की जिंदगी में सिर पैर कमर में हल्का दबाव सुकून दे जाये बुज़ुर्गों को। वाह वाह, जय हो, आनंद आ गया वाली जब बोली सुनो जैसे दुखती हुई रगों में आराम पहुंचा हो अब...
सृजन फुहार
कविता

सृजन फुहार

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। अब तो टीवी चैनल सारे, दिन भर शोर मचाते हैं। ब्रेकिंग न्यूज़ देख देखकर, रक्त चाप बढ़वाते हैं। तुकांत काव्य अनुराग बहुत, नए ढंग से लाते हैं। दंगा-पंगा, रथ-पथ गाता, लठैत टिकैत छाते हैं । गिरी गाज खत्म राज विधान, समाधान तक आती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। पद पाने का लालच हरदम, इस तरह समाया रहता । टूटी फूटी नाक बचाने, तिकड़म ही लाया करता। होता जोर नहीं पैरों में, चाल बहुत तिरछी चलते। खिसियाये से नेता बनते, अहम वहम में दम रखते। नौ मन तेल बिना ही राधा, मोहन के गुण गाती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ ...
पता नहीं क्यों
कविता

पता नहीं क्यों

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कार्यक्रमों में लेटलतीफी तो सुधरती नहीं कभी, आमंत्रितों को समय कम होता, पता नहीं क्यों? कुछ कवियों को शायद श्रोता रूप कबूल नहीं अपनी सुनाकर चले जाते लोग, पता नहीं क्यों? सुंदर संदेश कथन काव्य संपदा भगवत कृपा है सुनने का रोग नहीं पालते कुछ, पता नही क्यों? वक़्त वक़्त के वक्ताओं से व्यक्तित्व छाप मिलती अनावश्यक ज्यादा बोलते कुछ, पता नहीं क्यों? जुबान में कमान और साथ साथ लगाम है जरूरी तर्क विहीन तथ्यों पर टिके रहते, पता नहीं क्यों? बड़े-बड़े वादे संकल्प तो केवल प्रदर्शन रूपी शान प्रतिबद्धता में अति गरीब रहते हैं, पता नहीं क्यों? सम्मान कोई खेतों से उगती फसल तो नहीं विजय पाने और काटने जैसा समझते रहे, पता नहीं क्यों? सामान्य व्यवहारों की कद्र कर पाना मुमकिन नहीं कुछ भला भी भुला डालते हैं लोग, पता नहीं क्यो...
नेतृत्व की फतह
कविता

नेतृत्व की फतह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह बने वजह। राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाए फतह। निःस्वार्थ समर्पित नेतृत्व, समय दान में मस्त रहे। छोटा सुंदर जीवन क्यों, बाधाओं से अभिशप्त रहे। लेकर चलने की उत्कंठा, बाधित नहीं किसी तरह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह। राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाये फतह। शब्द आंदोलन कटुता, लकीर गिराना उचित नहीं निज बल से होते सफल, नेतृत्व कमल खिले सही अपनी लकीर बढ़ाना है, छोड़ो जलन स्वार्थ कलह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह । राग द्वेष पद मोह परे, स्नेहिल सहयोग लाये फतह। अकेले बीज की ताकत से, प्रचुर मात्रा सब पा जाते साथियों की उर्वरक फसल, समाज को दिशा दिखाते भावी पीढ़ी पाए प्रेरणा, रहे विलग ही व्यर्थ जिरह समाज सेवा संदेश सदा, समन्वय राह ही बने वजह राग द...
झुकाव कलम का
कविता

झुकाव कलम का

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है। जिंदगी का हाल यही जो, मंजिल तय करवाती है। खड़ी कलम का लेखन, लिखावट बेढंगा दिखता खड़ी तीखी बोली तो, अकुलाहट ही बढ़ा सकता हालातों के चक्कर में, घबराहट बढ़ती जाती है कलम निःसंकोच लिखे, अनुकूलता बन जाती है कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है अति झुकना भी महज, कायरता युक्त निशानी यथा स्थित कलम से ही, रचनाकार रचे कहानी कुछ ज्यादा झुकने पर, कलम ताल बहकती है जीवन में यदि हरदम हो, कदम चाल खटकती है कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है कमियां, सुविधा साधन के, सब बदल गए पैमाने तकनीक ज्ञान आजादी, अब आये नवीन जमाने दूध, सूप, चाय जल भी, नमन भाव दिखाती है आदर अभिवादन नमन, पान आग्रह झुकाती है कलम चले...
आज की हिन्दी
कविता

आज की हिन्दी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा, पुल बनी राजधानी है। तब बचपन का चंदा मामा, अब चन्द्रलोक यात्रा है। शोधपरक हिन्दी वृत्तांत में, भाव शब्द की मात्रा है। आजादी रण के सहयोगी साहित्य पात्र पात्रा है। पुरातन ज्ञान सभ्यता रीति, बहुत प्रखर निशानी है। कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा, पुल बनी राजधानी है। गति प्रगति चाल सदा दिखती, वांछित जगह निराली है। अनेक राज्य संघ क्षेत्र में, हिन्दी छटा हरियाली है। अंग्रेजी वर्चस्व के साथ, हिन्दी प्रेम तो आली है। जीवन-मूल्य संस्कारों की, सच पहचान करानी है। कछुआ कदमों की चाल कथा, बचपन से ही जानी है। नए भारत की हिन्दी प्रथा पुल बनी राजधानी है। जो यौगिक मौलिक भौतिक है, सारी दुनि...
कुछ अलग सृजन प्रयास
कविता

कुछ अलग सृजन प्रयास

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कुछ अलग सृजन प्रयास बिना सहारे-१२८ शब्द (काव्य-अर्थ भी नीचे वर्णित है) ************************ गहन दमन अटक खटक, पहट फकत कदर पटल। भरत अदब नयन छलक, गज़ब सड़क महल सजल। बहस डगर तड़प सबब, रहन सहन ठसन खलल। तमस गमन हवन तहत, नज़र कसक समझ पहल। तपन पवन अमन चलन, सरस जतन कलश कमल। कथन कसर कहर कलह, महक चहक सहज सफल। वतन वचन असर सबक, तड़क कड़क परख अटल। अगर मगर गरज ललक, मनन वजह नमन सबल। हवस चरस तरस भनक, सनक धमक धधक गरल। हनन दहन खनक भड़क, अहम वहम खतम शकल। नवल धवल चपल असर, कलम समझ असल सरल। अकल फसल अमल सनम, पलक फलक लहर तरल। अलख खबर मगज पलट, समझ चमक दमक बदल। धरम करम बचत ललक, शरण तनय बहन चहल। नसल मचल छनन सनन, शहर शजर करम अचल। लगन मगन सनद अलग, दहक भभक रजत ग़ज़ल। प्रत्येक लाइनों का क्रमवार अर्...
टोक्यो ओलिम्पिक हॉकी
कविता

टोक्यो ओलिम्पिक हॉकी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** खिलाड़ी की उमर कम है, मगर इरादों में दम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है हॉकी बादशाही इतिहास, भारत बेमिसाल रहा दुनिया को हिंदुस्तानी, जज़्बों का खयाल रहा मेजर ध्यानचंद रुतबा, जग को एक सवाल रहा अस्सी दशक के बाद से, पदकों का अकाल रहा प्रशिक्षण साधन मेहनत कठोर,दूर हटाता तम है दृढ़ संकल्प बल पर, लक्ष्य प्राप्ति से बम बम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है। जयपाल से वासुदेवन, स्वर्ण पदक के आसमान बोखारी मेजर केडी किशन, चरण बलवीर शान तालिका में बारहवे क्रम से, बिगड़ी बहुत पहचान उचित पर्याप्त समय की, मेहनत से ही समाधान टोक्यो ओलिम्पिक में, कांस्य पदक से ढम ढम है लंबे अंतराल में मनप्रीत, खुशियों से आंखें नम है तारीफ करो जितनी भी, लगती फिर भी कम है। समय परीक्षा लेता खूब, पल पल का है घमासान गुजरते लम्हों की...
खुशी प्रदायिनी
कविता

खुशी प्रदायिनी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। बहुधा कविता का साथी, अलमारी का कोना है पुस्तक क्रय बात अलग,मिली भेंट क्या खोना है शिवशक्ति संगम जैसा, लेखन संदेश भी त्राण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। रुचिकर भोजन स्वभाव, पसंद का भवन लेता यारी परिवार संबंध हेतु, नाविक नैया खुद खेता पसंद नापसंद से सर्वस्व, करता मनुज निर्माण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। स्मृति पटल पे बने रहना, स्वभावों की हद बनती कविता संदर्भों की चर्चा, प्रभाव का कद गढ़ती कब कैसे कितना कथन, मानव हक परिमाण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम ब...
नेता बनाम नेतृत्व
कविता

नेता बनाम नेतृत्व

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जैसे विद्या और विद्यार्थी का सहज सरल है रास्ता, विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। शिक्षा संस्कार का प्रारंभिक दौर भ्रामकता दूर करे कथनी करनी का अंतर प्रयासों से ही पूर्ण करे वर्ष-दर-वर्ष व्यक्ति अपना व्यक्तित्व ही पालता। विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। कर्म जगत में मानव अपना करम ही तो करता है निज कृतत्वों से समाज, संस्था चिन्हित करता है कृतत्व निहित नेतृत्व कला को समाज पहचानता विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। संगठन और विधान परिभाषा बहुधा ही गुमनाम है नेतृत्व क्षमतावान और नेता कभी नहीं सह- नाव हैं नेता बनके इर्द-गिर्द बस चमचों को ही पालता, विकास कदम ही व्यक्ति और व्यक्तित्व का वास्ता। नेतृत्व गुण सिखलाये समान भाव नीतिगत निर्णय चाटुकार फ़ौज के दम से नेता निष्क्रिय...
विराम चाहिए
कविता

विराम चाहिए

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** हृदय स्पंदन ही अपवाद रहे, बाकी जगह विराम चाहिए। अंतर्मन से सृजनशील रहे, तन को कुछ विश्राम चाहिए। गुजरे वक़्त के कर्मकार में भी कर्मठता का जलवा था दायित्व बोध और मंशा को वाक्य-विन्यासों का हलवा था जीवन चक्र का मर्म यही है, अवरोध विरोध अविराम चाहिए। हृदय स्पंदन ही अपवाद रहे, बाकी जगह विराम चाहिए। संस्कार मिले सबको ऐसा ना बने कभी मुखौटा जो तन धन साथ रहे ना रहे, वाणी का ना टोटा हो। वक़्त रहते ना संभले तो, क्या पूरा कोहराम चाहिए। हृदय स्पंदन ही अपवाद रहे, बाकी जगह विराम चाहिए। पुतले भांति-भांति के जग में, हमलों के कई आकार हैं गमले अलौकिक बगिया के ग़ज़लों के कितने प्रकार हैं पुतले-हमले गमले-गज़लें बस नितांत अभिराम चाहिए हृदय स्पंदन ही अपवाद रहे, बाकी जगह विराम चाहिए। राम चलवाये बड़े ज...
मनवा काहे को घबराय
कविता

मनवा काहे को घबराय

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मनवा काहे को घबराय ये दुनिया एक सराय खुशियाँ बिखेर ले प्राणी, जहाँ आयु घटे ना आय। निज' भाव' गिराना मत, 'भाव' भाव से कहता है आप आपसे मिलकर, आप आपसे सुनता है आपाधापी साथ चलेगी, जीवन जंग तू लड़ता जाये मानव काहे को घबराय... 'ताज' साक्षी प्रेम का, 'ताज' तख़्त न भूल कभी प्रेम पेज 'दो बेर' मिले, या 'दो बेर' का संग सभी 'हार' न तू अपनी बाजी, पग पग 'हार' मिलेंगे आय मनवा काहे को घबराय.... 'मांग' भरी जब तूने, अब 'मांग' रहा ये अंश है, शह 'मात' का खेल सयाना, 'मात' पिता का वंश है 'घराना' रहता याद तभी, जब घर आना तू कहता जाय मनवा काहे को घबराय.... 'बाज' आएं उन करतूतों से, जहाँ 'बाज' झपट्टा चलता है कन्धों में दम हो तब ही कन्धों पे दुपट्टा रहता है विजय विशालतम बना रहे, विजय पताका फहराता जाय मनवा काहे को घबराय ...
कुछ हो गया
कविता

कुछ हो गया

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नयनों से निकला अंजन ध्यान नहीं, बस धीरे से लगा कुछ खो गया वाकपटुता व्यवहार से व्यतीत वर्ष बदलाव के बेगैरत बीज बो गया टीस चोट स्नेह अंतहीन विवाद भाव प्रभाव सजल नयन रो गया उत्सव भी पाये उडते पक्षी सदृश्य उत्साही हृदय-व्यथा रुदन, वो गया कल आज कल का वक़्त पुष्प देखते, सूंघते, समझते ही खो गया सोचा नहीं कभी कुछ जीवन में आहुति नीति पुरुषार्थ सब धो गया साहस मंजर कभी सैलाब सा था अंतर्मन उड़ान को रोग हो गया परस्पर भाव बोधगम्य जीवन भी यादों की ताकत देकर सो गया। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ ...
ईश्वर का संधान
कविता

ईश्वर का संधान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है रातदिन की घटना, हल करने सामर्थ्यवान होता है द्वेष भाव रखने से ही, संबंधों में व्यवधान होता है स्पष्टवादी तथ्यों से, पक्ष अपना आसान होता है बिन सटीक जवाब से, मानव का नुकसान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। पथगामी को सुख सिवाय, कष्टप्रद कमान होता है मुसीबत से बचने में, किसी वक़्त का दान होता है ईश्वर निर्मित विधान से, मानव तो नादान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। राह की अदृश्य मुश्किलें, नितांत अनजान होता है शायद इसी वजह से कभी, भाग्य वरदान होता है पुल तले शेर पसरा, ऊपर मानव महान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। हाथ पर हाथ रखे रहना, बहुत आसान होता है आसमां से गिरे बिजली, जीवन अवसान होता है कभी अन्य भाग्य...
दस्तक सुन दरवाजों में
कविता

दस्तक सुन दरवाजों में

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में। कदम रुकते थे बचपन में, बुजुर्गों की कुछबातों में गुजरी यादों के अतीत अब, कहर बने दिनरातों में बिना गुनाह के सजा पाती, ये जनता बेचारी है आस्तिक हो अथवा नास्तिक, बराबरी लाचारी है कुली दास किसान श्रमिक या, घरानों महाराजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में बेलगाम अश्व के मानिंद, भीड़ तंत्र से जो हारा मदिरा से जब सरकार चले, ठंडा होता है पारा मंथरा बुद्धि से लोग हुए, सियासत करम जारी है सकते में जब परिवार देश, गलती की बीमारी है कितने स्वजन खोये सबने, आशा जगी रिवाजों में विषय बहुत से कविहृदय में, अंतर्मन आवाजों में पीड़ा ने अपना सुर बदला, दस्तक सुन दरवाजों में बेबसी औ...
‘है’ और ‘था’ में अंतर
कविता

‘है’ और ‘था’ में अंतर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है रूह कांपती है देखदेख, कैसा बना है शेष सफर अकाल खोते देख स्वजन, जज़्बे बन गए सिफर कसूर नहीं लेशमात्र भी, कोरोना कातिल हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है बेढब चाल लापरवाही हद, खून में रचा बसा था लाख समझाइश पर भी, भूलों का नशा चढ़ा था कालाबाज़ारी चोरी भी, नकली दवा चलन हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है कवि 'प्रदीप' भजन दर्द, मुसीबतों से देश लड़ा था बात घात से देखा पतन, पर नमन वतन को था वतन सौदागरों से भारत, संकटों से घिरा हुआ है कल था साथ सभी के, आज नज़रों से दूर हुआ है देश कभी सोनचिरैया था, अब दुष्कर हाल हुआ है खैरियत हैसियत बीच, नज़रियों का...