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झुकाव कलम का

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है।
जिंदगी का हाल यही जो, मंजिल तय करवाती है।

खड़ी कलम का लेखन, लिखावट बेढंगा दिखता
खड़ी तीखी बोली तो, अकुलाहट ही बढ़ा सकता
हालातों के चक्कर में, घबराहट बढ़ती जाती है
कलम निःसंकोच लिखे, अनुकूलता बन जाती है
कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है
जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है

अति झुकना भी महज, कायरता युक्त निशानी
यथा स्थित कलम से ही, रचनाकार रचे कहानी
कुछ ज्यादा झुकने पर, कलम ताल बहकती है
जीवन में यदि हरदम हो, कदम चाल खटकती है
कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है
जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है

कमियां, सुविधा साधन के, सब बदल गए पैमाने
तकनीक ज्ञान आजादी, अब आये नवीन जमाने
दूध, सूप, चाय जल भी, नमन भाव दिखाती है
आदर अभिवादन नमन, पान आग्रह झुकाती है
कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है
जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है

नयनपलक भी सदा से, बतलाते हैं सच्चा पैगाम
रब द्वार का याचक और, सदा झुके पूरा आवाम
दौड़ती बाइक रुककर, देखो झुकाव सिखाती है
कथानक कविता कलम, कशिश बोध कराती है
कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है
जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है

समझौतों से सुधार समग्र, वतन विकास बढ़ाता है
मौखिक लिखित इकरार, ‘विजय’ राह बनवाता है
निहित विनय स्वभाव तो, प्रत्येक क्षेत्र की थाती है
शिक्षा क्रीड़ा कोच दबाव, पदक पदवी दिलाती है
कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है
जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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