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खुशी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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दिनों बाद दरवाजे पर दस्तक
हुई किसी के आने की,
देखा दरवाजे पर खुशी खड़ी है,
एक कोना पकड़े हुए,
पूछा बड़े दिन बाद आना हुआ,
क्या शहर बदल दिया या
कहीं दूर निकल गईं
मुस्कुरा कर बोली,
आती हूं पर शायद
मकान का नंबर बदल गया
बोला उस से बड़ी मगरूर रहती हो,
कुछ तो सीखो अपनी बहन से,
वो तो यूं ही चली आती है,
परेशानी बनकर रहती भी है,
रुकती भी है, साथ रहने का
वादा भी करती है जवाब मिला,
आती तो हूं मैं भी, रुकती हूं
थोड़ा ठिठकती हूं, आहट पर
कोई सुनता भी नही,
दूर निकल जाती हूं, ये सोचते हुए,
शायद तुम्हे मेरी जरूरत नहीं
मैं तो रुकती हूं बच्चों की
किलकारियों में उनके गीतों में,
कभी रुकती हूं दोस्तों की मुस्कुराहटों में
कभी बारिश की रिमझिम में,
सरसराती ठंडी हवाओं में
बांटती हूं खुद को छोटे-छोटे
पलों और एहसासों में
तुमने भी तो “परेशानी” से
गहरी मित्रता कर डाली है।
अब न कहना कहां गईं,
मिलती नहीं !!!
याद रखना मेरा पता
मेरी आने की आहट
ढूंढ लोगी आसानी से मुझे,
बस कुछ कदम यूं ही
बढ़ा लेना मेरी तरफ….

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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