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जुड़े गाँठ पड़ जाती

अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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दोनों तरफ खिचाव बहुत है,
इसीलिए रस्सी टूटे।
जीवन की आपाधापी में,
खून मयी रिश्ते छूटे।

है जीवन संग्राम जटिल अति,
सब अपने में मगन हुए।
धरती को धरती पर छोड़ा,
समझ रहे वह गगन छुए।

जड़ के बिना कोई भी पौधा,
नहीं फूल फल सकता।
रहे प्यार से जो अपनों सँग,
कभी नहीं है थकता।

खींचतान आपस में कर के,
चले तोड़ने रिश्ते।
जो अपनों को पीड़ा देते,
खुद पीड़ा में पिसते।

स्वार्थ हो गया सब पर भारी,
टूटी सबसे यारी।
कहीं खून के रिश्ते टूटे,
टूटी रिश्तेदारी।

रस्सा कस्सी की रज्जू ज्यों,
अतिबल से टूटी है।
उसको तोड़ रहे हैं वे,
जिनकी किस्मत फूटी है।

गर हिल मिल कर रहें साथ में,
ताकत बढ़ जाती है।
एक साथ जब चलती चींटी,
पर्वत चढ़ जाती है।

रिश्तों की रज्जू नाजुक है,
बहुत अधिक ना खींचें।
अपनेपन, स्नेह- प्यार से,
हर रिश्ते को सींचें।

रस्सी टूट ना पाए यह,
हमको प्रयास करना है।
कर जी तोड़ परिश्रम खुशियाँ,
रिश्तों में भरना है।

छोटी-छोटी भूलें मिलकर,
बात बहुत बढ़ जाती।
टूटी रस्सी कभी जुड़े ना,
जुड़े गाँठ पड़ जाती।

रस्सी है बेजान मगर,
हम सब को समझाती है।
खुशियों से परिवार भरा,
इस जीवन की थाती है।

परिचय :अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवासी : निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त
सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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