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माँ बहन या बेटी

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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विगत दिनों आभासी दुनिया से जुड़ी मुंहबोली बहन की जिद पर पहली बार उसके निर्माणाधीन मकान पर जाना हुआ। जहां उसके चेहरे पर सचमुच की छोटी बहन जैसी खुशी देख मन गदगद हो गया। क्योंकि वह पहले ही बेटे और मजदूरों से इस बात की चर्चा कर चुकी थी कि बड़े भैया आ रहे हैं।
वापसी की बात पर और वो जिद कर घर चलने का अनुरोध करने लगी, मना करने पर उसकी आंखों में आसूं भर आये, शायद ये भी सोचती रही होगी कि उसका अपना भाई भी क्या यूं ही मना कर देता? उसकी भावुकता ने मुझे हिला दिया और उसकी भावनाओं को सम्मान देते हुए मैंने स्वीकृत क्या दिया, वो कितनी खुश हो गई, ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन मुझे भी संतोष तो हुआ ही कि मेरे किसी कदम ने एक शख्स को खुश होने का अवसर तो दिया।
वहां से निकलते हुए ही काफी विलंब हो चुका था। विद्यालय और मकान की व्यस्तता के बीच उसके पास ढंग से सांस लेने तक की फुर्सत न थी। उसने बेटी को फोन पर मेरे भी आने की सूचना देकर मेरे मना करने की गुंजाइश भी समाप्त कर दी।
खैर! रात करीब ९.३० बजे बहन और उसके बेटे के साथ हम घर पहुंचे। उसके घर की अस्त व्यस्त हालत उसकी व्यस्तता की सारी कहानी बयां कर रहे थे।
फिर भी उसकी खुशी देख लगा कि उसे भाई के आगमन की खुशी ने कुछ न सोचने की हिदायत ने उसे सब कुछ भूल जाने की प्रेरणा दे दी थी।
मैंनें महसूस किया कि बहन भाई के रिश्तों में औपचारिकताओं के लिए जगह ही नहीं है।
बहन छोटी हो या बड़ी, उसके मन में भाइयों के लिए मातृत्व भाव उमड़ ही आता है। मुझे भी उसके व्यवहार में कुछ ऐसा ही भाव लगा।
सहसा यह विश्वास करना कठिन हो रहा था उसके स्नेह, दुलार, और अधिकार जताने के तरीके को मैं किस तरह परिभाषित करूं। मां की ममता या बहन बेटी के दुलार के रूप में।
हम चारों ने साथ-साथ भोजन किया। दिन भर की थकान उसके चेहरे भर झलक रही थी। फिर भी बहुत देर तक निश्छल भाव से बातें करती रही। जैसे उसे भाई के फिर से बिछड़ जाने का डर हो रहा हो। जिस विश्वास और निश्चितता के साथ वो बातें कर रही थी, एक पल के लिए भी नहीं महसूस हुआ कि वह बड़े भाई से बात नहीं कर रही।
चंद घंटों के साथ में मेरे मन में उसके लिए श्रद्धा के साथ उसके लिए अमिट दुलार का भाव पैदा हो गया।
आज भी हम इस भावानात्मक रिश्ते को निभाते आ रहे हैं। जिसमें खून के रिश्तों की सी मजबूती बनी हुई है।
साथ ही बड़ा होने के कारण मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास भी।
आज भी अपनी हर छोटी बड़ी बातों, समस्याओं से वह मुझे अवगत कराती है। समय समय पर छोटी बहन की तरह जिद और गुस्सा दिखाकर अपने अधिकारों का प्रयोग करने में भी पीछे नहीं रहती।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि पूर्व जन्म का कोई रिश्ता फिर से जीवंत हो गया है। तब शायद वो मेरी मां रही होगी या फिर बहन या बेटी।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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