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मेरा पहला सावन

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह पिछले दो दिनों से उदास थी। माँ भी बेटी के कारण परेशान थी। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। क्यों बेटी, क्या बात है? झुमरी की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। यह आंसू खुशी के थे। वह शर्माते-शर्माते बोली, माँ उनकी बहुत याद आ रही हैं। माँ झुमरी की बात सुनकर हँसे बिना ना रह सकी। क्या सचमुच झुमरी?
झुमरी आगे कुछ ना बोल सकी। वह चुपचाप दौड़तीं हुई अपने कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। माँ बहुत हैरान थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि उसकी बेटी पागल हो गई हैं। इतने समय बाद अपने घर आई है। पर उसका मन कहीं—-। फिर वह खुद के ही माथे पर हाथ मारकर हँस पड़ी।
झुमरी शादी के बाद से बहुत खुश रहती थीं। यहाँ आने का तो नाम तक नहीं लेती थीं। ऐसा भी क्या, पति मोह! वह झुमरी के कमरे के पास जाकर खड़ी हो गई। वह उसे बुलाना चाहती थी। पर कुछ आवाजें सुनकर वह ठगी सी रह गई। वह खुद से ही बातें कर रही थी।
हाय रे सावन! तुम्हें भी इतनी जल्दी आना था। उनके बिना मैं विरह की अग्नि में जल रही हूँ। दिन-रात मेरा तन- मन तड़पता रहता है। जब भी आसमान में काली घटाएं छा जाती है, मेरा मन बहुत निराश हो जाता हैं। यह मेरे जीवन का पहला सावन हैं। पर मेरी खुशी तो ससुराल में हैं। मेरा सावन यहाँ कैसे गुजरेगा?
झुमरी-झुमरी किससे बातें कर रही हो? आजा मेरी लाडो, देख बाहर बरखा रानी बरस रही है। मौसम कितना सुहाना है।आजा तू तो कभी अपनी मैया की बात नहीं टालती थी। यह कैसा रोग लग गया हैं, तुझे? सारी लड़कियाँ सावन में अपने मायके में आकर चहक रहीं हैं। अपनी सहेलियों के साथ मीठी-मीठी बातें कर रही हैं। झुमरी अपनी आंखों को साफ करती बाहर निकल आई।
अम्मा, क्या हुआ? झुमरी की आंखों का काजल भी फैला हुआ था। उसका गोरा चेहरा भी मुरझाया हुआ था। आंखों की चमक भी फीकी पड़ रही थी। पिया मिलन की पीड़ा उसके चेहरे पर साफ दिख रही थीं। उसका शरीर भी तप रहा था। सांसे तेज तेज चल रही थी।
अम्मा बरखा रानी आज बहुत मेहरबान हो रही है। झुमरी बाहर निकलकर देख मौसम कितना मनमोहक है? पेड़-पौधे, फूलों की डालियाँ, कितनी चमक रही हैं? चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। फिर मेरा मन इतना उदास क्यों है? कह कर, वह नंगे पांव आंगन में दौड़ पड़ी। वर्षा की छोटी-छोटी बूंदे उसके बदन को छू रही थी। यह एहसास उसे अंदर तक झकझोर रहा था। बूंदों का स्पर्श उसके तन-मन को शीतल कर रहा था।
पर उसकी विरह वेदना बढ़ती जा रही थी। वह आसमान को देख रही थी। उसे काली घटाओं के पीछे से किसी के आने की आहट सुनाई दे रही थी। ठंडी-ठंडी हवाओं के झोंके उसे आज किसी के आने की आहट दे रहे थे। वह मन ही मन कह रही थी। हाय रे सावन! जाकर उन्हें मेरा संदेश दे दो। अपनी एक झलक तो दिखला जाए।
चाची ओ चाची, झुमरी कहाँ है? देख वह आंगन में खड़ी-खड़ी भीग रही है। जल्दी इधर आ देख, किसका फोन है? किसका है, मुझें कौन फोन करेगा? वह जोर से चिल्लाई, देख तो सही। उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। फोन पर उसका पति उसे देख रहा था। साथ ही कह रहा था, झुमरी बारिश में भीग रही हो। जी कहकर, उसकी आंखें भर आई। अरे क्या हुआ? अरे कुछ बोलों तो सही, कुछ नहीं। मैं तुम्हें रोज फोन करूंगा। तुम मुझसे दूर थोड़े ही हो। तुम तो मेरे दिल में रहती हो।
अब हँस भी दो! सावन के महीने में कौन उदास रहता हैं? झुमरी की आंखें एक बार फिर झलक पड़ी। पर यह खुशी के आंसू थे। आज शादी को तीस बरस हो गए हैं। आज भी झुमरी सावन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। पहले सावन की यादें, आज भी उसके जेहन में तरोताजा थीं। पति की आवाज सुनकर वह वर्तमान में लौट आई। अरे झुमरी बरखा रानी आ गई है। कपड़े समेट लो, नहीं तो भीग जाएंगे। वह दौड़ती हुई आँगन में आ गई। पति बहुत हैरान था, झुमरी आज फिर सावन में भीग रहीं थीं।
जी, कह कर वह पति से लिपट गई।

परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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