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कागज की नाव

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)

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बारिश में पानी भरे
गड्ढों में
कागज की
नाव चलाने को
मन बहुत करता
हम बड़े जरूर हुए
ख्यालात तो
वो ही है हुजूर
रिश्तों के
पेचीदा गणित में
उलझ जाकर
पहचान भूल जाते
घर आंगन
जो बुहारे गए
धूल भरी आंधी
सूखे पत्तो संग
कागज के टुकड़ों को
बिखेर जाती
तूफानी हवा
सूने आंगन में
सोचता हूं
कागज की नाव बना लू.
गढढो में
पानी को ढूंढता हूं
किंतु
पानी तो बोतलों में बंद
बरसात की राह ताकते
नजरें थक सी गई
जल की कमी से
नाव भी अनशन पर जा बैठी
जल का महत्व
केवट और किसान
ज्यादा जानते
बचपन में
कागज की नाव चलाते
और लोग बाग
कागजों पर ही
नाव चला देते
ख़ैर, जल बचाएंगे तभी
सब की नाव
सही तरीके से चलेगी
आने वाली पीढ़ी
जल की उपलब्ता से
नाव बनाना
और चलाना
सीख ही जाएगी।

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परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच


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