Sunday, May 12राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

प्रेमचंद चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर  मालवा म.प्र.

*******************

उपन्यास व गद्य कथा, हिन्दी का उत्थान।
प्रेमचंद सम्राट हैं,कहत है कवि मसान।।
प्रेम रंग सेवा सदन, प्रेमाश्रम वरदान।
निर्मल काया कर्म प्रति, मंगल गबन गुदान।।

प्रेमचंद लेखक अभिनंदन।
हिन्दी विद्जन करते वंदन।।१

डाक मुंशी अजायब नामा।
जिनकी थी आनंदी वामा।।२

मास जुलाई इकतिस आई।
सन अट्ठारह अस्सी भाई।।३

उत्तर लमही सुंदर ग्रामा ।
प्रेमचंद जन्मे सुखधामा।।४

धनपतराया नाम धराये।
पीछे नवाबराय कहाये।।५

सन अंठाणु मैट्रिक पासा।
बनके शिक्षक बालक आशा।।६

इंटर की जब करी पढ़ाई।
दर्शन अरु भाषा निपुणाई।।७

सात बरस में माता छोड़ा।
चौदह पिता गये मुख मोडा।।८

दर दर की बहु ठोकर खाईं।
बाला विपदा खूब सताईं।।९

बाल ब्याह से धोखा खाया।
पीछे विधवा को अपनाया।।१०

शिवरानी को वाम बनाये।।
श्रीपत अमरत कमला पाये।।११

सन उन्निस शुभ साल कहाया।
सोजे वतन देश में छाया।।१२

साहित्य ने जब आग लगाई।
अंगरेजों की नींद उड़ाई ।।१३

गौरों ने तुमको धमकाया।
पुस्तक को भी जव्त कराया।।१४

धनपतराया नाम छुपाये।
प्रेमचंद बन हिन्दी आये।।१५

प्रथम कथा सन पंद्रह आई।
सरस्वती में सौत छपाई।।१६

हम खुरमा प्रेमा कहलाया।
उपन्यास ने अलख जगाया।।१७

पराधीनता नारी पीड़ा।
सेवा सदन सु फोटो खीचा।।१८

कृषकन पीरा आंखों देखी।
प्रेमाश्रम में तुमने लेखी।।१९

उन्निस उन्निस बी ए भाई।
शिक्षक सेअफसर हो जाई।।२०

गाधी जी से शिक्षा पाई।
छोड़ नौकरी देश भलाई।।२१

रंग भूमी सन पच्चिस आया।
सूरदास नायक कहलाया।।२२

गोदाना की अमर कहानी।
सामंत जाति पूंजीवादी।।२३

होरी धनिया बड़े दुखारे।
सारा जीवन तड़प गुजारे।।२४

कथा तीन सौ प्रेम रचाई।
नव संग्रह में देखो भाई।।२५

मानसरोवर भाग हैं आठा।
जीवन शिक्षा नैतिक पाठा।।२६

सोजे वतन व सप्त सरोजा।
समर यात्रा प्रेम ने खोजा।।२७

प्रेम प्रतिमा प्रेम पच्चिसी।
द्वादश पूर्णिमा है बीसी।। २८

मानसरोवर नवनिधि छाई।
हिन्दी गाथा जग अपनाई।।२९

दो बैलों की कथा सुनाई।
बूढ़ी काकी सद्गति पाई।।३०

पंच परमेश्वर हैं भाई।
जुम्मन अलगू ने समझाई।।३१

ईदगाह हामीद बखानी।
दादी चिमटा बाल कहानी।।३२

तीनहि नाटक कर्बल नामा।
प्रेम की वेदी औ संग्रामा।।३३

हिंदी उर्दू के अधिकारी।
गद्य विधा की दशा सुधारी।।३४

प्रेमचंद सिर हिंदी ताजा।
कथा उपन्यासों के राजा।।३५

अक्टूबरआठा छत्तिस आई।
हिन्दी सूरज डूबा भाई।।३६

मंगल सूत्र रहा अधूरा।
बेटा ने फिर कीना पूरा।।३७

प्रेमचंद घर घर में आई।
शिवरानी ने कही सुनाई।।३८

कलम सिपाही सबने जाना।
अमरतराया स्वयं बखाना।।३९

हे शारद सुत शीश नवाऊं।
शब्दों की मैं भेंट चढ़ाऊं।।४०

बेटी निर्मल कह रहि, कन्या दीजे मेल।
जीवन भर को मरण है, ब्याह होत बेमेल।।

परिचय :- डाॅ. दशरथ मसानिया
निवासी :- आगर  मालवा म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻hindi rakshak manch👈🏻 … हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *