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शिव की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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आज मानव भी अपना तीसरा नेत्र तो खोलें,
अंतरघट में बसे अंतर्यामी साक्षी से तो बोलें,
वही त्रिलोचन तो ज्ञान चक्षुधारी शिव कहलाते हैं।

समाज में फैले कुरीतियों को स्व-विवेक से भगायें,
हर रोज नित नये आयाम लेकर सहजता से अपनायें।
वही हर-हर महादेव शिव सिद्धीश्वर कहलाते हैं ….

भौतिक जीवन को त्यागकर सत्य की अनुभूति करायें,
भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों के रहस्य बतायें।
वही हितकारी शिवशंभु त्रिकालदर्शी कहलाते हैं ….

बारह मासों में एक बार सावन जरूर आते हैं,
कल्याणकारी भोलेनाथ भी तो ससुराल आते हैं।
वही पूजा-पाठ घर मंदिर ही शिवालय कहलाते हैं …..

रिमझिम फुहार ही तो विवेक वैराग्य जगाते हैं,
झूठी मिथ्या कल्पनाओं को तो दूर भगाते हैं।
वही जो जटा से ज्ञान की गंगा जटाशंकर बहाते हैं ……

रजो, तमो, सतो गुणों से ही तो त्रिशूल बने हैं,
जो दैहिक, दैविक, भौतिक त्रि-संताप दूर हरे हैं।
वही जो शरीर, आत्मा, मन का संबंध त्रिपुरारि बतलाते है …

भक्ति, प्रेम और ध्यान से शिव महिमा गाते हैं,
काम, क्रोध और अंहकार का दमन कराते हैं।
वही तो असली त्रिलोकवासी त्र्यम्बक कहलाते हैं….

आओ सावन मास में शिव जी की अराधना करते हैं,
सब भक्तों के सुखमय जीवन की मंगल कामना करते हैं।
श्रवण भक्ति काव्य पर देवों के महादेव का गुणगान करवाते हैं ….

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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