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व्यथा

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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व्यथा उन शिल्पियों की
जिनके खून पसीने से सिंचित है।
माँ भारती का कण कण
निःठुर है यह कोरोना काल।
रो रो कर बेहाल है यह लाल
छोटे छोटे बच्चे अबला नारी।
निकल रहे है टोली में
करवा बनता जा रहा है।
रास्तो पर दम तोड़ते भी
जा रहे है घटनाओ,दुर्घटनाओं में।
न पॉकेट में है पैसा न खाने को कुछ है।
अब रो रहा है यह कलम का सिपाही भी ।
हाय यह कैसी विवस्ता है
दुखो की अंत हीन दास्ता है।
यह हमारी व्यवस्थाओं पर
एक भयानक प्रहार है।
समझना होगा उन नियंताओ को
जो सत्ता के शिखर पर है।
अपने प्रदेश के मृत उद्योगों को
पुनरः जीवित करना होगा।
माँ भारती के इस लाल के पलायन को
अब रोकना होगा।
एक नया रोजगार
परक नियम बनाना होगा।
उधोग धंधो का जाल फैलाना होगा।

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परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान


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