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एक चिकित्सक की कहानी उनकी जुबानी

माधवी तारे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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एक मामूली सा डॉक्टर हूं
बेशक कोई भगवान नही
डॉक्टर का डॉक्टर होना
मगर इतना भी आसान नहीं
इस दर्जे की खातिर
मैने बचपन खोया हैं
मैं वो हूं जो एक एक
मार्क्स को रोया हूं
सुकून की जिंदगी को
कुर्बान करता हैं डॉक्टर
कभी किताब तो कभी,
इमरजेंसी टेबल पे सोया है

जाने कब होली बीती,
जाने कब दिवाली गई
जाने कितने रक्षाबंधन,
मेरी कलाई खाली गई
परीक्षाओं की लड़ी ने,
नही छोड़ा साथ अब तक
मेरे हजारों दिन खा गई
उतनी ही राते काली गई
फिर भी तुम्हे हर वक्त
जो खुश दिखे परेशान नहीं
उस डॉक्टर का डॉक्टर
होना इतना भी आसान नहीं

मैंने क्रिकेट का बैट छोड़ा,
टीवी का रिमोट छोड़ा
सफेद एप्रन की खातिर
मैंने जैकेट कोट छोड़ा
स्कूल का टॉपर मेडिकल में
आने पर फेल होने से डरा हैं
जब भी कोई शॉर्ट नोट छोड़ा

मेरी कोई संडे नही
छुट्टी की गुजारिश नही
सर्दी का कोहरा या
पहली वाली बारिश नही
मेरा परिवार मुझसे,
बात करने को तरसता हैं
लेकिन कभी पूरी होती
उनकी ख्वाहिश नही
अपने ऊपर गर्व है मुझे
लेकिन कोई गुमान नही
डॉक्टर का डॉक्टर होना
इतना भी आसान नहीं

जाने कितने लोग हमने
’नींद‘ से जगा दिए
जाने कितने मर्ज हमने
दुनिया से भगा दिये
तुम्हारी उम्मीदों पर,
खरा उतरने की खातिर
हमने अपने जिंदगी के
तीस साल लगा दिए
फिर भी मेरे पास
आने से डरते हैं लोग,
जरा जांच लिख दू तो
शक करते हैं लोग
मेरी मेहनत को वो
पेन घिसना समझ लेते हैं
फीस के नाम से ठंडी आहे
भरते हैं लोग
तुम भी तो मेरी इस हालत से
अनजान नही
डॉक्टर का डॉक्टर होना
इतना भी आसान नहीं

संकलन (लंदन से प्रेषित हैं)

परिचय :- माधवी तारे
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)


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