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Tag: मीना भट्ट “सिद्धार्थ”

जय मध्यप्रदेश
कविता

जय मध्यप्रदेश

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की। चंदन जैसी सौंधी पावन, माटी मध्यप्रदेश की।। विक्रम नगरी यहाँ भोज की, बहे सुधा रस धार है। दुर्गावती अहिल्या की भी, फैली कीर्ति अपार है।। आल्हा ऊदल अमर कथाओं, और विजय संदेश की क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की बुन्देलों की इस धरती पर, गौरव है अभिमान है। रूपमती का मांडू सुंदर, अमर प्रेम पहिचान है।। खजुराहो, साँची स्तूप से, ख्याति बढ़े निज देश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। विंध्य सतपुड़ा पर्वत माला, जबलपुर धुँआधार है। तालों का भोपाल शहर है, कृषि उन्नत व्यापार है।। पशुपति नाथ सदा शिव शम्भू,नगरी है सोमेश की। क्षिप्रा रेवा कलकल बहती, धरा ज्ञान उपदेश की।। पुरातत्व की अमिट धरोहर, तानसेन की तान है। करता है जयगान सकल जग, अमिट निराली ...
अनुपम आभा
गीत

अनुपम आभा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। भेदभाव, झगड़े-झंझट जब, सारे मिट जाएँगे। फैलेगा नूतन प्रकाश तब, भोर नयी पाएँगे।। जब लेंगे संकल्प नए हम, होगी रात न काली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। अमन-चैन के फूल खिलेंगे, सतरंगी बगिया में। सबको रोटी-कपडे़ होंगे, अपनी इस दुनिया में।। मानवता की जोत जलेगी आएगी खुशहाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। सच्चाई की पूजा होगी, सत्कर्मों की माला। होंगे कृष्ण कर्मयोगी-से, राधा जैसी बाला।। रामराज्य होगा इस जग में, बिखरेगी सुख-लाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। नेह-प्यार के संबंधों से, महकेगा जग सारा। सींचेगी रसधार सुधा की, घर-घर भाईचारा।। देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका, पुलकित होगा माली...
जब सजन देख फिर शृंगार होगा
गीत

जब सजन देख फिर शृंगार होगा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ चाँद निकलेगा सजन जब देख फिर शृंगार होगा। व्रत रखे साजन सुहागन साथ तो भरतार होगा।। उम्र लंबी हो सजन की नित्य करती कामना है। माँगती वरदान प्रभु से वामिनी सुख साधना है।। देख करवाचौथ को पूजा करूँ मन मीत आजा। गंग सी बहती चलूँ अब संग गाती गीत राजा।। ओट चलनी देखती जिसको वही तो प्यार होगा। सात जन्मों का निराला संग अपना मान प्रियतम। है खनक चूड़ी झनक पायल सुनाती नित्य सरगम।। नाक की नथनी कहे साजन सदा ही ध्यान देगा। आज करवा चौथ को चंदा कहे प्रिय मान देगा राम सिय जोड़ी रहे सुंदर सजन संसार होगा। बन चकोरी राह तकती ये सुहागन देख तेरा। प्रीत का हिय है बसेरा चाँद सीमा पार मेरा।। अर्ध्य देती चाँद को वंदन करूँ प्रिय प्रेम पलता। चन्द्र ले जा आज पाती दिव्य दीपक प्रेम जलता।। डोर पावन प्रेम की पनप...
गहन ज्ञान का लोक प्रदाता
गीत

गहन ज्ञान का लोक प्रदाता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गहन ज्ञान का लोक प्रदाता, गुरु सर्जक कहलाता है। शत-शत वंदन हम करते हैं, शिक्षक भाग्य विधाता है।। कच्ची माटी को मथता है, शिल्पी है देख निराला । प्रतिभाओं को पंथ सुझाए, आदर्शों की है शाला।। सदाचार संयम से पावन, शिक्षा अलख जगाता है। लोक आचरण उत्तम अनुपम, शुभ मंगल भी व्यवहारी। आलोकित करता है जग को, सत्कर्मी है उपकारी।। मानवता की शिक्षा देता, सत्य पंथ ले जाता है। अनुशासन का पाठ पढ़ाता, सच्चा योगी है न्यारा। मार्ग -प्रणेता और समीक्षक, संस्कृति-पोषक भी प्यारा।। शिक्षा का उत्थान करे नित, पारस सबको भाता है। ज्ञान प्रभाकर है सुखसागर, शिक्षा में भी गहराई। दोष निवारक है शिष्यों का, विनयशील है सुखदाई।। ब्रह्म-ज्ञान का भव संवाहक, यश वैभव दिलवाता है।। शिष्यों का कल्याण करे नित, धवल लोक की अभिल...
माँ भगवती
भजन, स्तुति

माँ भगवती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मातु अम्बे शुभे चण्डिका, भगवती हैं पुकारो रमा। दिव्य रूपा धरा रक्षिका, प्रार्थना है पधारो रमा।। दैत्य रिपु घातिनी मालिनी, शक्तिशाली जगत तारिणी। मातु करुणामयी शालिनी, मातु शुभदा शुभे कारिणी।। सृष्टि पालन भवानी करें, मातु है दैत्य संहारिणी। आदि रूपा अलौकिक बड़ी, जोड़ते कर कमल धारिणी।। मातु महिमा सभी गा रहे, भाग्य सबके निखारो रमा। शाम्भवी धर्म संस्थापिका, ज्योत्सना ज्ञान की कामना। माँ सुधा प्रीत की दे पिला, धर्म अरु त्याग की भावना।। कर कृपा नंदिनी माँ सदा, हे विनय आज वरदायिनी। माँ नमन है वचन नित्य दे, पावनी मातु सुख दायिनी।। दूर कर कष्ट सुख दे जरा, भक्त टेरे सँवारों रमा। पापहंता शिवा भामिनी, शस्त्र धारण करे कालिका। सर्वभूतेषु ममतामयी, स्कंद माता जगत पालिका।। स्वर्ण आभा बिखेरे सदा, ...
अमृत कलश/पुष्पमाला छंद
छंद

अमृत कलश/पुष्पमाला छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अमृत कलश/पुष्पमाला छंद विधान : वार्णिक छंद १३ वर्ण गण संयोजन : नगण नगण रगण रगण गुरु मापनी : १११ १११ २१२ २१२ २ चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत ९,४ पर यति अतुलित सुख दें कृपा, श्याम पाउँ। गिरधर उर में बसे, नित्य ध्याऊँ।। सहज सरल श्रेष्ठ हो, नाथ आओ। अमिय कलश मोहना, आज लाओ।। विकल हृदय हैं मिलें, भी किनारे। नटवर प्रभु थाम लो, हो सहारे।। उलझन सब दूर हों, है अँधेरा। सुमन सरिस दो खिला, हो सबेरा।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूत...
सागर की उत्ताल तरंगें
कविता

सागर की उत्ताल तरंगें

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सागर की उत्ताल तरंगें हतभागी हैं तट सारे। निष्प्रभ व्यथित मनुज बौराता, अनुगामी हैं अँधियारे।। मनुज -रक्त से कूप भरे हैं, लुप्त भोर का है तारा। सम्मोहित हैं अरुण-रश्मियाँ, चादर ओढ़े उजियारा।। मधु गुंजन को उपवन तरसे, सन्नाटे से सब हारे । मौन हुईं अब साँसें-धड़कन, भंग शांति है मरघट की। दहक रहा है सूर्य आज तो, मृत्यु निकट है पनघट की।। छाई धुंध अनाचारों की खंडित हैं भोले तारे। क्रूर काल ने डाका डाला, पुष्प हीन होती डाली। जीवन की क्षण भंगुरता में, खोई ओंठों की लाली।। पीड़ित है मानवता सारी, मूक-बधिर भाई चारे। बहुत दूर है मोती घर का, छलती है ठगिनी माया। आडंबर की तूती बोले, भ्रम में मिट्टी की काया।। संकट में है मैना घर की। बने शिकारी रखवारे। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलप...
मधुवल्लरी छंद
छंद

मधुवल्लरी छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विधान : मात्रिक छंद (मापनी युक्त) २१ मात्राएँ चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत। मापनी : २२१२ २२१२ २२१२ आभास हो संसार हो मनमोहना। मस्तक मुकुट है रूप है प्रभु सोहना।। वंदन करूँ मैं साँवरे सुखधाम हो। कर जोड़ विनती मैं करूँ निष्काम हो।। सुमिरन रहे प्रभु प्रीति भी कल्याण हो। आशीष तेरी मिलती रहे उर प्राण हो। कान्हा हरो सब पीर सुख अविराम हो। आलोक फैले जग सुखद परिणाम हो।। लो थाम अब नैया भँवर है जान लो। पतवार हो कान्हा हमें पहचान लो।। आत्मा करो पावन किशन परमात्म हो। मीरा बनूँ जिह्वा सदा प्रभु नाम हो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा,...
सार्धमनोरम छंद
छंद

सार्धमनोरम छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सार्धमनोरम छंद विधान मात्रिक छंद, २१ मात्राएँ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत मापनी : २१२२ २१२२ २१२२ श्याम प्यारे हम पुकारें नाथ दाता। है विपद भारी विधाता आप त्राता।। नित गिरें चरणों मुरारी बात मानो। दास चाकर है तिहारा श्याम जानो।। साधना करते सदा ही द्वार आते। ठौर कान्हा आपके ही पास पाते।। गोप गोपी साँवरे को नित्य ध्याते। पावनी इस प्रीति के गुण नित्य गाते।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन। प्रकाशित पुस्तक :...
प्रतिमा – वार्णिक
छंद

प्रतिमा – वार्णिक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रतिमा - (वार्णिक) १४ वर्ण : चतुर्दशाक्षरावृत्ति यति - ८, ६ गण संयोजन - सभतनगग सगण भगण तगण नगण गुरु गुरु (११२-२११-२२, १-१११-२२) चार चरण, दो -दो चरण समतुकांत। ममता मूरत न्यारी, सुमिरत माता। करुणा सागर अम्बे, गुण जग गाता ।। भव तारे अवतारी, नित शुभकारी। जगदम्बे जननी हो, अतिशय प्यारी।। चरणों शीश झुकाते, मनहर रूपा। प्रिय हो वैभव शाली, नमन अनूपा।। जयकारा करते हैं, हम दिन राता। अब आशीष हमें दो, निरख सुजाता।। पथ के कंटक सारे, विपद हटादो। वसुधा आकुल माता, तिमिर मिटादो।। बलिहारी हम जाते, सुन वरदानी। महिमा भी नित गाते, जगत भवानी।। तुम अम्बे तुम काली, कर रखवाली। नवदुर्गा घर आओ, परम निराली।। सजती थाल सुहानी, कुमकुम रोली। अब तारो तुम दासी, मनहर भोली।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : ...
सनयास छंद
छंद

सनयास छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सनयास छंद विधान : वार्णिक छंद १२ वर्ण गण संयोजन : सगण नगण यगण सगण ११२ १११ १२२ ११२ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। जगपालक प्रभु स्वामी कहते। उर में रघुवर मेरे रहते।। मन मूरत बसती नाथ सुनो। नित राघव जप लो राम गुनो।। सुमिरो निशिदन तो मोक्ष मिले। मन के उपवन में पुष्प खिले।। रघुनाथ चरण में आज पड़ी। अब दो दरशन मैं द्वार खड़ी।। मनमोहक छवि प्यारी लगती। विनती सुन प्रभु रातों जगती।। तजदी अब सब माया सुन लो। हितकारक प्रभु दासी चुन लो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायु...
श्वेता छंद
छंद

श्वेता छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विधानः वार्णिक छंद दस वर्ण गण संयोजन : मगण रगण मगण गुरु २२२ २१२ २२२ २ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत अंबा दुर्गा भवानी कामाक्षी। कुष्मांडा शारदा माता साक्षी।। जो जन्मान्तरों को है जोड़े। पाखंडी दंड दे माया तोड़े।। माता पूजा करें आ स्वीकारो। द्वारे तेरे खड़े हैं माँ तारो।। श्रद्धा से माँ बुलाते आ रानी। पूरी हो प्रार्थना मेरी दानी।। त्राता सौगात दें हैं कल्याणी। देती हैं शक्ति दें मीठी वाणी।। पीड़ा सारी हरें माता जानो। अन्तर्यामी भरें झोली मानो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
कान्हा स्वामी
छंद

कान्हा स्वामी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मन्दाक्रान्ता विधान : वार्णिक छंद गण संयोजन मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु २२२ २११ १११ २२१ २२१ २२ १७ वर्ण प्रति चरण ४, ६, ७ वर्णों पर यति ४ चरण, दो दो चरण समतुकांत कान्हा स्वामी, नमन करिए, भावना नित्य बोले। वंशी देखो, बजत प्रभु की, राधिका मुग्ध डोले।। संगी ग्वाला, सुमिरत सुनो, श्याम प्यारे उबारो। राधा ध्यावे, नटवर सदा, नाम कान्हा पुकारो। राधे रानी, नित किशन का, नाम जापें विधाता। झूमें गोपी, नटवर कहें, आप हो श्याम दाता।। मीरा प्यारे, मनहर प्रभो, नाथ प्यारे नमामी। साँसो में भी, गिरधर रहो, आज आभार स्वामी।। नैया मेरी, भँवर फँसती, पार हो हे खिवैया। आई हूँ मैं, चरनन पड़ी, द्वार तेरे कन्हैया।। तारो कान्हा, प्रतिपल कहें, हो कृपा भी सहारे। कृष्णा कृष्णा, निशदिन रटूँ, हो दया क्यों बिसारे।। नैनो में हो...