Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: सुधीर श्रीवास्तव

खुशियाँ कहाँ है
कविता

खुशियाँ कहाँ है

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** खुशियों की कोई दुकान नहीं हैं कोई हाट बाजार नहीं हैं खुशियाँ कहाँ हैं ये हमारे देखने, समझने महसूस करने पर निर्भर है। बस नजरिए की बात है अपना नजरिया बड़ा कीजिए अपने आप में,अपने आसपास अपने परिवार, समाज में अपने माहौल में देखिये खुशियाँ हर कहीं हैं, आप देखने की कोशिश तो कीजिए अपने आंतरिक मन से बस महसूस तो कीजिए। हर ओर खुशियाँ बिखरी पड़ी हैं, जितना चाहें समेट लीजिये, अपनी सीमित खुशियों को हजार गुना कर लीजिए। कौन कहता है कि आप दुःखों से याराना करिए जब लेना ही है तो खुशियों को ही क्यों न लीजिए, दुःखों से दूरी बनाकर चलिए। बस एक बार खुशियों को देखने का नजरिया बदलिए, दु:खों को पीछे ढकेलना सीखिए, फिर कभी आपको सोचना नहीं पड़ेगा कि खुशियाँ कहाँ हैं, क्योंकि हर जगह खुशियों का बड़ा बड़ा अंबार लग...
श्राद्ध दिवस
कविता

श्राद्ध दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! फिर इस बार भी श्राद्ध दिवस की दिखावटी ही सही औपचारिकता निभाते हैं, सामाजिक प्राणी होने का कर्तव्य निभाते हैं। जीते जी जिन पूर्वजों को कभी सम्मान तक नहीं दिया बेटा, नाती, पोता होने का आभास तक महसूस न किया, अपने पद प्रतिष्ठा और सम्मान की खातिर, बिना माँ बाप के खुद के अनाथ होन का प्रचार तक कर दिया। जिनकी मौत पर मैं नहीं रोया उनकी लाश तक को अपने कँधों पर नहीं ढोया, क्रिया कर्म को भी ढकोसला और फिजूलखर्ची के सिवा कुछ भी नहीं समझा। पर आज जाने क्यों मन बड़ा उदास है, एक अजीब सी बेचैनी है जैसे पुरखों की आत्मा धिक्कार रही है, लगता है श्राद्ध का भोजन माँग रही है। आखिर श्राद्ध का भोज मैं किस-किस को और क्यों कराऊँ? जब औपचारिकता ही निभानी है तो भूखे असहायों को खिलाऊँ मेरे मन का बो...
मन से जीत का मार्ग
आलेख

मन से जीत का मार्ग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  एक कहावत है 'हौंसलों से उड़ान होती है, पँखों से नहीं'। यह महज कहावत भर नहीं है। अगर सिर्फ कहावत भर होती तो आज अरुणिमा सिन्हा, सुधा चंद्रन, दशरथ माँझी और हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ही नहीं बहुत सारे अनगिनत लोग सुर्खियों के बहुत दूर गुमनामी में खेत गये होते। मैं अपना स्वयं का उदाहरण देकर स्पष्ट कर दूँ कि जब २५.०५.२०२१ को जब मैं पक्षाघात का शिकार हुआ तब चारों ओर सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं दिखता था। शायद ही आप सभी विश्वास कर पायें। कि यें अँधेरा नर्सिंग होम पहुँचने तक ही था, लेकिन नर्सिंग होम के अंदर कदम रखते ही मुझे अपनी दशा पर हंसी इस कदर छाई, कि वहां का स्टाफ, मरीज और उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। फिर भी मुझे जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ ...
रिश्तों की डोर
लघुकथा

रिश्तों की डोर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य घटना पर आधारित लघुकथा जीवन में कुछ रिश्ते अनायास ही जुड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। समान कार्य क्षेत्र के अनेक आभासी दुनियां के लोगों से संपर्क होता रहता है। जिनमें कुछ ऐसे भी होते हैं जो वास्तविक रिश्तों के अहसास से कम नहीं है। मेरे वर्तमान जीवन में इनकी संख्या भी काफी है, जो देश के विभिन्न प्राँतों से हैं। एक दिन की बात है कि आभासी दुनिया की मेरी एक बहन का फोन आया, उसकी बातचीत में एक अजीब सी भावुकता और व्याकुलता थी। बहुत पूछने पर उसनें अपने मन की दुविधा बयान करते हुए कहा कि मैं समझती थी कि आप सिर्फ़ मेरे भैया है, मगर आप तो बहुत सारी बहनों/भाइयों के भी भैया हैं। तो मैंने कहा इसमें समस्या क्या है? उसने लगभग बीच में ही मेरी बात काटते हुए कुछ यूँ बोली, जैसे उसे डर सा महसूस हुआ कि कहीं मै न...
ईश्वर के नाम पत्र
व्यंग्य

ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट...
मुंशी प्रेमचंद
कविता

मुंशी प्रेमचंद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** लमही बनारस में ३१ जुलाई १८८० को जन्में अजायबराय, आनंदी देवी सुत प्रेम चंद। धनपतराय नाम था उनका लेखन का नाम नवाबराय। हिंदी, उर्दू, फारसी के ज्ञाता शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक कथाकार, उपन्यासकार बहुमुखी, संवेदनशील मुंशी प्रेमचंद सामाजिक कुरीतियों से चिंतित अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन लेखन को हथियार बना परिवर्तन की राह पर चले, समाज का निचला तबका हो या समाज में फैली बुराइयाँ पैनी निगाहों से देखा समझा कलम चलाई तो जैसे पात्र हो या समस्या सब जीवंत सा होता, जो भी पढ़ा उसे अपना ही किस्सा लगा, या अपने आसपास होता महसूस करता, उनका लेखन यथार्थ बोध कराता समाज को आइना दिखाता, शालीनता के साथ कचोटता चिंतन को विवश करता शब्दभावों से राह भी दिखाता। अनेकों कहानियां, उपन्यास लिखे सब में कुछ न कुछ...
देशप्रेम
कविता

देशप्रेम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज हम सब को एक साथ आना होगा मिलकर ये सौगंध सभी को लेना होगा, देशप्रेम का चढ़ रहा जो छद्म आवरण उससे हम सबको बचना बचाना होगा। ओढ़ रहे जो देश प्रेम का छद्म आवरण नोंच कर वो आवरण नंगा करना होगा, देशप्रेम के नाम पर भेड़िए जो शेर हैं ऐसे नकली शेरों को बेनकाब करना होगा। देशभक्तों पर उठ रही जो आज उँगलियाँ उन उँगलियों को नहीं वो हाथ काटना होगा, देश में गद्दार जो कुत्तों जैसे भौंकते है, ऐसे कुत्तों का देश से नाम मिटाना होगा। जी रहे आजादी से फिर भी कितने हैं डर डर का मतलब अब उन्हें समझाना होगा, देश को नीचा दिखाते आये दिन जो गधे हैं रेंकते, ऐसे गधों को अब उनकी औकात बताना होगा। उड़ा रहे संविधान का जब तब जो भी मजाक भारत के संविधान का मतलब समझाना होगा, समझ जायं तो अच्छा है देशप्रेम की बात वरना समुद्र...
पद का मद
आलेख

पद का मद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  'मद' अर्थात 'घमंड' जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं, पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे, अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं। ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि, अधिकार ,कर...
एक पल
आलेख

एक पल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में, भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी ...
जन्मदिन
हास्य

जन्मदिन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अच्छा है बुरा है फिर भी जन्मदिन तो है, मगर आप सब कहेंगे इसमें नया क्या है? जब जन्म हुआ है तो जन्मदिन होगा ही। आपका कहना सही है, बस औपचारिक चाशनी की केवल कमी है। उसे भी पूरा कर लीजिए बधाइयों, शुभकामनाओं का पूरा बगीचा सौंप दीजिये, दिल से नहीं होंगी आपकी बधाइयां, शुभकामनाएं मुझे ही नहीं आपको भी पता है, मगर इससे क्या फर्क पड़ता है? कम से कम मेरे सुंदर, सुखद जीवन और लंबी उम्र की खूबसूरत औपचारिकता तो निभा लीजिये। मेरे जीवन यात्रा में एक वर्ष और कम हो गया यारों, जन्मदिन की आड़ में मौका भी है, दस्तूर भी, जीवन के घट चुके एक और वर्ष की आड़ में मन की भड़ास निकाल लीजिए, बिना संकोच नमक मिर्च लगाकर शुभकामनाओं की चाशनी में लपेट मेरे जन्मदिन का उत्साह दुगना तिगुना तो कर ही दीजिए। कम से दुनिया को द...
वो जमाना
कविता

वो जमाना

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद मुक्त कविता आज जब अपने पिताजी की उस जमाने की बातें याद आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है। माँ बाप और अपने बड़ों से आँख मिलाने में ही डर लगता था, उनकी किसी बात को नकारने की बात सोचना भी सपना लगता था। घर में भी अपने बड़ों के बराबर बैठना सिर्फ़ सोचना भर था, अपने लिए कुछ कहना भी कहाँ हो पाता था। बस चुपके से धीरे से अपनी बात दादी, बड़ी माँ या माँ से कहकर भी खिसकना पड़ता था। रिश्तों के अनुरूप ही सबका सम्मान था, परंतु हर किसी के लिए हर किसी के मन खुद से ज्यादा प्यार था। उस समय दूश्वारियां भी आज से बहुत ज्यादा थीं, परंतु प्यार, लगाव, सबकी चिंता हर किसी के ही मन में हजार गुना ज्यादा थीं। आज भी मुझे इसका अहसास है क्योंकि मैंने भी ऐसा ही काफी कुछ देखा है, अपने बाप को बड़े ...
निर्मल साहित्य एक पहल” का कवि सम्मेलन संपन्न
साहित्य समाचार

निर्मल साहित्य एक पहल” का कवि सम्मेलन संपन्न

निर्मल साहित्य एक पहल संस्था के तत्वाधान में १६.०४.२०२१ बुधवार को द्वितीय ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया आ.ऋचा मिश्रा रोली जी के संचालन में अनेकों कवि/ कवयित्रियो के काव्य पाठ के साथ संपन्न हुआ। संस्था के संस्थापक आदरणीय निर्मलजी ने सभी कवियों /कवयित्रियों का स्वागत अभिनंदन किया। नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हुई आदरणीया वंदना खरे जी के द्वारा मां शारदे का आवाहन किया गया और इसके पश्चात आ.अशोक राय वत्स जी ने अपनी पंक्तियां पढ़ी "जब राणा की शमशीरों से समरांगण का रंग लाल हुआ, तब लगा स्वयं रणचंडी ही शत्रु खून पीने निकली, आ.प्रेम करेला जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में पढ़ा "अधरों पे वंदे मातरम वंदे मातरम का गुणगान होना चाहिए, सब कुछ बाद में सबसे पहले दिल में हिंदुस्तान होना चाहिए", आ.वंदना खरे जी ने अपनी पंक्तियां पढ़ी "चिडियों को उड़ने दो, चहकने दो चिडियों को, अभी तो घो...
झूठ का बोलबाला
कविता

झूठ का बोलबाला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** बस ये ही तो गड़बड़झाला है तुझे ये सब कहाँ समझ में आने वाला है। तुझे तो सत्यवादी बनने का भूत जो सवार है। अरे मूर्खों ! तुम सब क्यों नहीं समझते? आज के खूबसूरत परिवेश में सत्य का मुँह काला है। उसका कुर्ता मुझसे सफेद क्यों है? यार ! अब तो समझ लो ये सब झूठ का बोलबाला है। खबरदार, होशियार बहुत हो चुका झूठ की जी भरकर बेइज्जती अब और सहन नहीं करूंगा, झूठ का अपमान किया तो मानहानि का केस करूंगा। झूठ के गड़बड़झाले की तो बात भी मत करना, सत्य को तुम चाटते आ रहे हो बचपन से बुढ़ापे तक, क्या मिला तुम ही बता दो आखिर तुमको अब तक। झूठ का गुणगान किया मैने अब तक, तुम खुद ही तो कहते हो तू तो है सिंहासन वाला। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रकृति की भी अजब माया है निःस्वार्थ बाँटती है भेद नहीं करती है, बस कभी-कभी हमारी उदंडता पर क्रोधित हो जाती है। हर जीव जंतु पशु पक्षी के लिए खाने, रहने और उसकी जरूरतों का हरदम ख्याल रखती है, बिना किसी भेदभाव के यथा समय सब कुछ तो देती है, हमें प्रेरित भी करती सीख भी देती है, कितना कुछ करती है, क्या क्या सहती है परंतु आज्ञाकारी प्रकृति हमें देती ही जाती है, हम ही नासमझ बने रहें तो प्रकृति की क्या गलती है? अपनी गोद से वो हमें कब अलग-थलग करती है? हाँ हमारी नादानियों, उदंडताओं पर खीछती, अकुलाती, परेशान होती है, हमें बार-बार संकेत कर चेताती, समझाने की कोशिश करती, थक हारकर अपने क्रोध का इजहार करने को विवश हो जाती, फिर भी हम समझने को तैयार जब नहीं होते, तब वो भी बस! अपना संतुलन...
मेरे जीवन साथी
पत्र

मेरे जीवन साथी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जीवन साथी, हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सही है कि मुझे गुस्सा कुछ अधिक ही आता है, मैं समझता भी हू्ँ, पर क्या करूँ तुम साथ होती तो शायद कुछ बदलाव हो भी जाता, पर ये नापाक पाक के समझ में कहाँ आता है? पाकिस्तान सिर्फ़ हमारे मुल्क का ही नहीं कहीं न कहीं हम दोनों का भी दुश्मन है। वह तो बस जैसे इसी ताक में रहता है कि इधर हम अपनी महरानी के पास पहुंचे और वो बार्डर पर कुछ न कुछ बघेड़ा खड़ा कर दे। हमारा दुर्भाग्य देखो कि जब जब लम्बी छुट्टियां मिली भी, ये नापाक पाक कबाब में हड्डी बन ही जाता है। मगर तुम निराश मत हो, मैं भी अपनी टुकड़ी के साथ सालों की नाक में दम करता रहता हूँ।खैर...छोड़ो। मैं कह नहीं पा रहा हू्ँ फिर भी कोशिश कर रहा हू्ँ। ये अलग बात...
सेवादार बनिए
कविता

सेवादार बनिए

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए आज हम सब अपनी संस्कृति और परंपरा का एक नया अध्याय लिखें, सेवाधर्म का नया आयाम गढ़ें पुरातन व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही सही सेवाधर्म का नया पाठ पढ़ें । कोरोना महामारी की जब हर ओर दहशत है, सेवाभाव से आओ मिलकर इसका प्रतिकार करें। दो गज दूरी का संदेश फैलाएं मास्क, सेनेटाइजर कितना जरूरी है ये सबको बताएं, समझाएं,। रोजी रोजगार की समस्या बहुत कठिन है लेकिन, कोई भूखा न रहे आसपास हमारे हम सब की जिम्मेदारी है कि उसके खाने का प्रबंध कराएं। सबका टीकाकरण हो ये सुनिश्चित कराएं, कोरोना पीड़ितों का मनोबल बढ़ायें। अफवाह, भ्रम, दहशत न फैलने पाये जनमानस को इससे हम सब बचाएं। कोरोना रोग है महामारी है, हौसला रखें, डरें नहीं, इलाज कराएं ठीक हो जायेंगे विश्वास दिलाएं, ये दौर भी गुजर जायेगा सबके मन मे...
सिसकियां
कविता

सिसकियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हर ओर अफरातफरी है हर चेहरे पर खौफ है, दहशत है। घर, परिवार का ही नहीं बाहर तक फिज़ा में भी अजीब सी बेचैनी है। माना सिसकियां भी सिसकने से अब डर रहीं। आज सिसकियां भी मानव की विवशता देख सिसक रहीं। सिसकियों में भी संवेदनाओं के स्वर जैसे फूट पड़े है, मानवों के दुःख को करीब से महसूस कर रहे हैं। पर ये भी तो देखो सिसकियां भी मानवीय संवेदनाओं से जुड़ रहीं, हमें नसीहत और हौसला दोनों दे रहीं, अपनी हिचकियों के बहाने से हमें खतरे से आगाह भी कर रहीं। अक्षर ज्ञान नहीं सिसकियों को इसीलिए अपने आप में ही सिसक रहीं अपनी हिचकियों से संवेदनाओं को व्यक्त कर रहीं। सुन सको तो सुन लो, सिसकियां तुमसे क्या कह रहीं? न हार मानों तुम शत्रु से न उसे अजेय मानों। रख मन में पूरी आशा करो खुद पर भरोसा कस कर कमर अपनी प्रयास करो जोर से, दूर होगी सारी दुश्वा...
सीढ़ियां
कविता

सीढ़ियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने ख्वाब पूरे करने हों तो शाम, दाम, द़ंड, भेद के साथ हर हथकंडे भी स्थिति के अनुसार अपनाने में कोई हर्ज नहीं है, ख्वाब साकार हो रहा हो तो किसी भी हद तक गुजर जाना या यूँ भी कह लें किसी की लाश पर तम्बू लगाने में तनिक भी गुरेज नहीं है। आपकी तरह मैं बेवकूफ नहीं हूँ, अपना जमीर जिंदा है मात्र दिखाने के लिए अपनी कामयाबी को पीछे ढकेल दूँ मुझे मंजूर नहीं है। मेरे ख्वाब जितने ऊँचे मेरा जमीर उतना ही नीचे है, आप भी ये जान लें अपने ख्वाबों को मैंने खून से सींचे हैं, अपना तो जमीर जिंदा नहीं है यारों तभी तो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़कर यहां तक आखिरकार पहुंचे हैं। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर...
माँ
कविता

माँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** विश्वास नहीं होता है, चली गई यूं छोड़ हमें, सारी दुनियाँ दिखती है, पर तू दिखती नहीं हमें। अंर्तमन से चित्र एक पल, धुंधला कभी नहीं होता, एक बार आकर तू क्यों, गले लगाती नहीं हमें। अपने अंर्तमन की पीड़ा का, भंडार छिपाये रखा था, आकर क्यों पीड़ा की गठरी, खोल दिखाती नहीं हमें। नादान तेरे हैं ये बच्चे, तनिक तरस न आता क्या? सपने में ही आकर बस, ममता अपनी दिखला दे हमें। भूल तो बच्चे करते रहते, तू ये बात समझती है, ऐसी गुस्ताखी क्या कर दी, जो सजा असहय दे रही हमें। माफ करो हे माँ हमको, हम सब हँसना भूल गये, गुस्सा छोड़ अब आ जाओ, गले लगाओ जल्द हमें। या फिर ऐसा कर माते, हमें बुला ले वहीं हमें, ऐसी मजबूरी थी क्या, क्यों इतनी कठिन सजा दी हमें। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक...
परिवर्तन
कविता

परिवर्तन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** संसार में परिवर्तन अकाट्य सत्य है, जीवन है तो मृत्यु भी है निर्माण है तो विनाश भी दिन है तो रात भी राजा है तो रंक भी जो बनेगा बिगड़ेगा भी जन्मेगा तो मरेगा भी। परिवर्तन सतत चलने वाली अविचलित प्रक्रिया है, संसार के कण कण के साथ कभी न कभी परिवर्तन होगा ही। ये प्रकृति का नियम है, सजीव हो या निर्जीव यही सबके साथ है। इसमें बदलाव असंभव है चाहे तो सर्वशक्तिमान ईश्वर भी इसे बदल नहीं सकता। आज हंस रहे हैं कल को रोयेंगे भी अच्छे बुरे पल भी आते जाते रहेंगे। परिवर्तन प्रकृति का शास्वत सत्य है, ऐसा हो ही न ये तो नामुमकिन है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : सं...
मजदूर
आलेख

मजदूर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हमारे देश में मजदूरों की दशा कभी भी अच्छी नहीं रही। यह अलग बात है कि वर्तमान में सरकारों के द्वारा मजदूरों के लिए काफी कुछ किया गया। लेकिन मजदूरों की दशा में मूलभूत सुधार नहीं हो पाया। आज भी हमारे देश का मजदूर अपने मूलभूत जरूरतों के दल-दल को पार नहीं कर पाया है। मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं। परिवार स्वास्थ्य शिक्षा उनकी मूलभूत समस्याएं हैं। जिस पर कार्य किए जाने की जरूरत सभी प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि मजदूरों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएं और उसका सख्ती से पालन कराएं। सरकारों को यह भी देखना होगा कि उनके द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना धरातल पर उतर रहा है। कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हुई है, वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह काफी असहनीय और राष्ट्र समाज के शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी। ...
कोरोना का संदेश
कविता

कोरोना का संदेश

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** धरती के प्रबुद्ध प्राणियों माना कि तुम सब संसार के सबसे जहीन प्राणी हो। मगर ऐसा तुम सोचते हो, मेरी नजर में तो तुम बुद्धिहीन ही नहीं सबसे बड़े बुद्धिहीन हो। क्योंकि तुम स्वार्थी हो,निपट कलंकी हो, खुद को इंसान कहते हो, पर इंसान कहलाने के लायक नहीं हो। गलतियां करके भी औरों को दोष देना तुम्हारी फितरत है, तुम्हें तो अपने आप से भी नफरत है। तुमने तो भगवान को भी हमेशा दोषी ठहराया, अपने कर्मों में कभी खोट न नजर आया, जबसे मैं आया तुम्हारे तो भाग्य खुल गए भाया। मैं कोई रोग नहीं दहशत भर हूँ, बहुत कुछ देखने सुनने तुम्हें समझाने भी आया हूँ तुम्हारी औकात बताने आया हूँ। क्या तुमने इंसानी धर्म निभाया? अपने माँ बाप, परिवार, समाज को तुमने क्या-क्या नहीं दिखाया? लूट, हत्या, अनाचार, अत्याचार षडयंत्र, भ्रष्टाचार का नंगा नाच दिखाया। प्रकृति...
धरती की संतान
कविता

धरती की संतान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हम सब धरती की संतान हैं अच्छा है, समझ है हममें, हम है समझदार भाइयों-बहनों हमारा क्या कहना इसलिए तो भगवान ने हमें बनाया साहित्यकार धरती की भलाई करने को हम सदा है तैयार। हमें अब बहुत कुछ करने की ज़रूरत है आखिर जब धरती माँ ने अपना विशाल आँचल फैला रखा है हमें कष्ट न हो इसीलिए एक विशाल परिवार बना रखा है। हमारे खाने पीने जीने के लिए लाखों लाख जतन कर रही है। लायक बच्चों पर धरती माँ अब नाज़ कर रही है। नदी, झील, झरने, नदियां जलस्रोतों को हम बचाने का कर रहे उत्तम प्रयास इसलिए तो रचनाकार है धरती माँ के बालक खास। पेड़-पौधों से भरी रहे धरा हर तरफ हो वृक्ष हो हरा-हरा। प्राकृतिक संपदाओं का हो संरक्षण खुशहाल बने सभी का जीवन पशु-पक्षी, पेड़ पौधे, जीव जंतु सदा के लिए हो सुरक्षित। हमें अपनी धरती माँ की शान बढ़ानी है सचमुच तभी तो हम ज्ञ...
घटते पाठक, बढ़ती चिंता
आलेख

घटते पाठक, बढ़ती चिंता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************   यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि शिक्षा और साहित्य के विस्तार के बावजूद पाठक वर्ग का अभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह कैसा जूनून है कि हम लिखते जा रहे हैं, औरों से अपने सृजन को पढ़कर प्रतिक्रिया भी चाहते हैं। परंतु अफसोस कि हम औरों को पढ़ना ही नहीं चाहते। आखिर हम जो सोचते हैं, वैसा ही कुछ और लोग भी तो सोचते हैं। तभी भी रचनकार अधिक और प्रतिक्रिया देने वाले मात्र गिने चुने ही होते प्रायः दिख जाते हैं। जो हमें ही आइना दिखाते प्रतीत होते हैं। हो भी क्यों न? बढ़ते आधुनिकीकरण ने हर क्षेत्र में सकारात्मक/नकारात्मक असर डाला है। फिर भला सृजन, पाठन कैसे अछूता रह सकता है। आज जब सृजन क्षमता का विकास अत्यधिक तेजी से हो रहा है, नये सृजनकार तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष कर कोरोना काल में साहित्य के क्षेत्र मे...
दयाभाव
कविता

दयाभाव

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** चिलचिलाती धूप में राष्ट्रीय राजमार्ग पर दुर्घटना ग्रस्त बाइक सवार को देख पहले तो मैं घबड़ाया, फिर हिम्मत करके अपनी बाइक को किनारे लगाया। घायल युवक के पास गया, उसकी हालत देख मैं काँप गया, फिर वहाँ से भाग निकलने का विचार किया। परंतु दया भाव से मजबूर हो गया। अब आते-जाते लोगों से मदद की उम्मीद में सड़क पर आते-जाते लोगों से दया की भीख माँगने लगा। बमुश्किल एक अधेड़ सा व्यक्ति आखिर रुक ही गया, मेरी उम्मीदों को जैसे पंख लग गया। मैंने हाथ जोड़ मदद की गुहार की, मेरी बात उसे बड़ी नागवार लगी। उसने समझाया लफड़े में न पड़ भाया, तू बड़ा भोला दिखता है फिर लफड़े में क्यों पड़ता है? ऐसा कर तू भी जल्दी से निकल ले पुलिस के लफड़े से बच ले। ये तेरा सगेवाला नहीं है मरता है तो मरने दो दया धर्म का ठेकेदार न बन, तुम्हारे दया धर्म के चक्कर में वो मर गया...