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मन से जीत का मार्ग

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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 एक कहावत है ‘हौंसलों से उड़ान होती है, पँखों से नहीं’। यह महज कहावत भर नहीं है। अगर सिर्फ कहावत भर होती तो आज अरुणिमा सिन्हा, सुधा चंद्रन, दशरथ माँझी और हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ही नहीं बहुत सारे अनगिनत लोग सुर्खियों के बहुत दूर गुमनामी में खेत गये होते।
मैं अपना स्वयं का उदाहरण देकर स्पष्ट कर दूँ कि जब २५.०५.२०२१ को जब मैं पक्षाघात का शिकार हुआ तब चारों ओर सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं दिखता था। शायद ही आप सभी विश्वास कर पायें। कि यें अँधेरा नर्सिंग होम पहुँचने तक ही था, लेकिन नर्सिंग होम के अंदर कदम रखते ही मुझे अपनी दशा पर हंसी इस कदर छाई, कि वहां का स्टाफ, मरीज और उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। फिर भी मुझे जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ रहा था। हमारी धर्मपत्नी के गुस्से का तो कहना ही क्या? चिकित्सक महोदय नें भी मेरे इस तरह हँसने का कारण पूछा- तो मैंने यही कहा कि मुझे खुद नहीं पता।
लेकिन मेरा खुद पर भरोसा मजबूत हो रहा था, जिसका परिणाम यह है कि मात्र छः दिन मैं वहां रहा और जब तक मैं वहां रहा, उस वार्ड के संबंधित स्टाफ, वार्ड में भर्ती मरीजों ओर उनके तीमारदारों के लिए चर्चा का केंद्र बना रहा, निराशा तो जैसे पूरे वार्ड से गायब ही हो गई थी। विश्वास करना कठिन है कि घर आने के एक माह में ही मैं अपने सारे काम बिना किसी के सहयोग के करने लगा। उसी दौरान २०-२२ वर्षों से कोमा में जा चुका लेखन पुनः जागृति हो गया, जिसकी बदौलत नाम, मान, सम्मान सब कुछ मिल रहा है।
आशय सिर्फ इतना है कि सारी सुख सुविधाओं के बाद नकारात्मक और हारे हुए सशंकित मन से जीत/सफलता नहीं मिल सकती। उम्मीदों की ज्योति जागृति रखिए। मन को सकारात्मकता की ओर लेकर चलते हुए आगे बढ़िए। सफलता आपका इंतजार कर रही है। किसी भी कार्य की सफलता के लिए मन में आत्मविश्वास जरूरी है, निराशा और शंका आपकी राह का सबसे बड़ा अवरोधक है। अतः मन में कभी हार की बात सोचिए मत, केवल जीत, जीत और पक्की जीत की दृढ़ता को गाँठ में बाँधकर बुलंद हौंसले से कदम बढ़ाइए, मंजिल आपकी ही राह देख रही है, तब आपकी किस्मत भी आपका साथ देने को तत्पर रहती है।
‘हारना नहीं सिर्फ़ जीतना है’ इस भाव को जागृति करते रहिए, जीत की गारंटी है। तभी ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ की कहावत का चरितार्थ स्वतः महसूस होगा।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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