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Tag: अन्नू अस्थाना

बरखा का स्वागत
कविता

बरखा का स्वागत

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** सांवर-सांवर रहे हैं मेघ सज धज के खड़े हैं, नव के आंगन में ढेर। समीर अब नाच रही है लेकर बयार की बारात, गली-गली थिरकने लगी, धरा के आंगन की, खड़कने लगे खिड़कियों के द्वार, कपाट। सांवर-सांवर रहे हैं मेघ... तरु इठलाने लगे, शाखाओं के झंडे लहराने लगे, सौंधी बयार के साथ। मेघ उमड़-घुमड़ रहे हैं, धरा का जल अभिषेक करने को, आंधी चल रही है जैसे अल्हड़ चंचल जवानी। तपीश अब भाग रही है, सरपट सिर पर पैर रख। नदी की लहरें अब घूंघट उठा रही हैं, इशारों इशारों में बरखा को बुला रही है। दूर क्षितिज किनारे दामिनी कर रही है तड़िता का नाच देखो प्रकृति सुंदर गीत गा रही उज्जवल सी बरखा आ गई। परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे...
याद आते हैं वो दिन
कविता

याद आते हैं वो दिन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** याद आते हैं वो दिन जब पड़ोस में भाभी से एक कटोरी शक्कर मांगना, और बातों ही बातों में कहना भाभी तनक सा दूध भी दे दीजो जे आपिस (ऑफिस) से आने वाले हैं चाह (चाय) बनानी थी भाभी फिर भाभी का स्नेह से कहना, अरि जा मैं चाय बना लाती हूं तू चीनी लेती जा बहन। "याद आते हैं वो दिन" याद आते हैं अड़ोस-पड़ोस में बतियाने वाले दिन। अड़ोस-पड़ोस कुछ नहीं होता था, बस भैया-भाभी चाचा-चाची जैसे रिश्तो का नाता था बस यूं ही पूछ लिया करते थे और भौजी कैसी हो, सब ठीक है चाचा-चाची आप कैसे हो। "याद आते हैं वो पूछ परख करने वाले दिन" हमारी सुबह की शुरुवात भाई साहब के अखबार से हुआ करती थी, एक नमस्कार सौ चमत्कार किया करते थे, रुपए, दो रुपए का अखबार हम भी खरीद सकते थे, पर पड़ोस वाले भाई साहब से स्नेह कुछ ऐसा ही...
क्यों करें हम शिकायत
कविता

क्यों करें हम शिकायत

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नहीं करते तरु शिकायत पत्तों के गिर जाने पर, नहीं मांगते एक फूटी कौड़ी, फल फूल के बदले में देते रहते ये हमें प्राणवायु की निरंतरता, छाया देने का नहीं मांगते एक किराया, अंगद की तरह खड़े रहकर, झेला करते रवि किरणों की तीव्रता। नहीं करती शिकायत सरिता, पाट के कट जाने कि, तरंगिणी कभी नहीं करती शिकायत, मलिन अपशिष्ट पानी में मिल जाने कि सागर कभी अश्रु नहीं बहाते, अपने खारे पानी पर पंछी, पखेरू किसके पास है जाते लेकर अपनी शिकायत को। ये नीड़ किसने गिरा दिया ? तिनका-तिनका जोड़कर जिसे बनाया था हमने अपनी चोंच से। प्रकृति हमें सिखा रही है, सीखो, तुम मनुज इनके उदाहरणों से। आंसुओं कि धारा से नहीं भर सकते नदी, कुएं और तालाब। माना कई दीप बुझ गए, बिखर गए कई कुटुंब और परिवार व्रज सा प्रहार...
बचपन के साथी बचपन का खेल
बाल कविताएं

बचपन के साथी बचपन का खेल

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कहां गए वो खेलने वाले साथी कहां गई वो, खिलौने वाली टोली, हम खेला करते थे एक साथ सभी साथी चिंटू, रोली, मोली, गोली। गुल्ली-डंडा, कंचे, दोड़म भाग, खींचा करते थे रस्सा-रस्सी, पुगड़ा,पुगड़ी एक साथ। खेला करते थे हम गिप्पा-गिप्पी थम्बा-थम्बी लंगड़ा-लंगडी, मारम पिट्टी और पिटडू कि होती बौछार जरूरत नहीं पड़ती थी हमें, जिम-विम जाने कि, आयाम-व्यायाम करने कि। शुद्ध हवा का संचार, सदा बना रहता आने जाने में। अंधेरा होते ही खेल लेते थे हम, छुपन-छुपाई हरदम नहीं डरते थे तब हम, क्योंकि खेल खिलौने वाली टोली बनाए रखती हड़कंम। अब छिप गए कहां, दीपू, चिंटू, गोली, रानी, टीनू तुम बाहर आ जाओ बच्चों, देखो आ गया खेल खिलौने वाला छोड़ो बच्चों बंद करो खेल मोबाइल का बाहर निकलो शुद्ध हवा का संचार करो अपने जीवन के अस्तित्व की लड़ाई में लेखक परि...
दर्द है विरह का
कविता

दर्द है विरह का

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पथराई आंखों में छलकते आंसुओं के समंदर का दर्द है विरह। किसे पता है, यह किसकी आंखें हैं, किसे पता है ये आंसू किसके हैं, कोई नहीं जानता आंसुओं के समंदर पर ये अश्रु हैं किसके। पिया मिलन की आस लिए, विरह में पथराई सजनी की आंखें अपने बच्चों से विरह हुए, मां की आंखें भी हो सकती हैं या पिता के अश्रुओ का समंदर भी हो सकता हैं विरह केवल बौझिल नहीं है, आंसुओं का समंदर भी नहीं है। जीत का मार्ग भी होता है विरह। सीता से विरह के बाद ही, लंका पर विजयश्री का मार्ग प्रशस्त किया श्रीराम ने। पत्नी रत्नावली के प्रेम से विरक्त होकर, विरह जीवन बिताकर रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बन, रचित किया श्रीरामचरितमानस ग्रंथ विरह में केवल डूबना ही नहीं होता, भवसागर भी पार हो जाता। लेखक परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश कविता...
ये जीवन
कविता

ये जीवन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये जीवन सीधा सा गुज़र जाए, ये बहुत मुश्किल होता है। दिक्कतें आती रहती हैं, पर सामना सीधे से हो जाए, ये जरा मुश्किल होता है। फूल कांटों में भी उगते हैं, कांटा चुभ न जाए यह जरा मुश्किल होता है। यह जीवन सीधा सा गुजर जाए, यह बहुत मुश्किल होता है। मौत हमेशा साथ रही है रहेगी, वो जरा टल जाए, उससे यह कहना बहुत मुश्किल होता है। उसने तो बहाने ढूंढ रखे हैं, हमें साथ ले जाने के, रुक जा जरा अभी चलता हूं, यह मैं कह दूं ऐसे में वह रुक जाए, यह बहुत मुश्किल होता है। मंजिल तक पहुंचना है मुझे, पर मंजिल बहुत दूर है। रास्ते पर चल निकला हूं, पहुंचूंगा कहां मालूम नहीं, राह दिख रही है करीब, पर मंजिल बहुत दूर है। करीब आ जाए मंजिल, ये कहना बहुत मुश्किल होता है। यह जीवन सीधा सा गुजर जाए यह बहुत मुश्किल होता है। कुम्हार की तरह मैंने चाक पर गीली मा...
विरह वेदना
कविता

विरह वेदना

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** पथराई आंखो में छलकते आंसुओं के समंदर का दर्द है विरह किसे पता है, ये किसकी आँखें है, किसे पता है किसके आंसु हैं, आंसुओं के समंदर पर ये अश्रु है किसके पिया मिलन कि आस लिए, विरह में पथराई सजनी कि आंखे अपने बच्चों से विरह हुए, माँ कि आँखें भी हो सकती है, या पिता के अश्रुओं का समंदर भी हो सकता है विरह केवल बौझिल बेदम नहीं है जीत का मार्ग भी होता है विरह। सीता से विरह के बाद ही लंका पर विजयश्री का मार्ग प्रशस्त किया, श्री राम ने पत्नी रत्नावली के प्रेम से विरक्त होकर, विरह जीवन बिताकर रामबोला से गोस्वामी तुलसीदास बन, रचित किया श्रीरामचरित्रमानस ग्रंथ विरह में केवल डूबना हि नहीं होता भव सागर भी पार हो जाता। परिचय :-  अन्नू अस्थाना निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश कविता लिखने कि प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थ...
कैसे छूएं हम गगन को
कविता

कैसे छूएं हम गगन को

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कैसे छूएं हम गगन को, रौंद तो दिये जाते है। कैसे उड़े गगन में, पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं। कहा था हमसे कभी किसी ने, तुम गुल हो चमन के, तुम शान हो वतन के, नेता तुम्ही हो कल के। पूछा था कभी हम से किसी ने, नन्हे-मन्हे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में तकदीर है हमारी, यह कहा था हमने। कैसे छूएं हम गगन को, रौंद तो दिये जाते है। कैसे उड़े गगन में, पंख तोड़ मरोड़ दिये जाते हैं। बेखौफ हमें दबोच लिया जाता, कैसे बनेगे हम राष्ट्र निर्माता। घर आंगन मे ही लगता है डर, बाहर निकलना है दुभर। भैया, काका, और चाचा इन्हीं से डर अब ज्यादा सताता। कैसे छूएं हम गगन को ......... सोच रहे थे हम सब नन्हें साथी पल-पल, इंसाफ कि डगर पर कैसे चले हर-पल। खेलने में, कुदने में, झुमने में और नाचने में, हमे मजा बहुत आता। पर ना जाने वैहषी कब झपट मार जाता, कोई समझ नही...
क्या खुब है यह सावन
कविता

क्या खुब है यह सावन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... तन, मन सब भिग जाए, हरितमा बिखर जाए चारों ओर स्वर्ग सी सुन्दरता छाए धरा पर, सब ओर क्या खुब है यह सावन भोले शंकर का अभिषेक हो जाए इन रिम-झिम फूहारों से क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... उम्मीदों कि आस लिए कृषक झुम जाएं आँखों में खुषी भर जाऐ इन रिम-झिम फूहारों से, क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... सावन में हरितमा लिए तीज आई, खुशियों के झूले संगलाई देख तीज सजनी कहती है, रहे खुष हाल मेरा साजन आबाद रहे घर, आंगन मस्त मलंन होकर मनाए हम हरियाला सावन क्या खुब है यह सावन रिम-झिम-रिम-झिम हो जाए सारा आलम ... सावन माह के शुक्ल पक्ष में आती नागपंचमी मिले आशीष नागेश्वर का हम मनाते नागपंचमी लेने आषीर्वाद नागेश्वर का, करती सब महिलएं सर्प पूजा ख...