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क्यों करें हम शिकायत

अन्नू अस्थाना
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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नहीं करते तरु शिकायत
पत्तों के गिर जाने पर,
नहीं मांगते एक फूटी कौड़ी,
फल फूल के बदले में
देते रहते ये हमें
प्राणवायु की निरंतरता,
छाया देने का नहीं
मांगते एक किराया,
अंगद की तरह खड़े रहकर,
झेला करते रवि
किरणों की तीव्रता।

नहीं करती शिकायत सरिता,
पाट के कट जाने कि,
तरंगिणी कभी नहीं
करती शिकायत,
मलिन अपशिष्ट
पानी में मिल जाने कि
सागर कभी अश्रु नहीं बहाते,
अपने खारे पानी पर
पंछी, पखेरू किसके पास है
जाते लेकर अपनी शिकायत को।
ये नीड़ किसने गिरा दिया ?
तिनका-तिनका जोड़कर
जिसे बनाया था
हमने अपनी चोंच से।
प्रकृति हमें सिखा रही है,
सीखो, तुम मनुज
इनके उदाहरणों से।
आंसुओं कि धारा से नहीं
भर सकते नदी,
कुएं और तालाब।
माना कई दीप बुझ गए,
बिखर गए कई
कुटुंब और परिवार
व्रज सा प्रहार हुआ है
मनुष्य के अस्तित्व पर,
मौत कि तड़िता
का नंगा नाच हुआ,
जीवन का ह्रास हुआ।
कहां करोगे तुम शिकायत,
यहां चिताओं का अंम्बार हुआ।

जलते देखते रहना चिताओं को
यह तुम्हारी नियती नहीं
अश्रुओं को संभाल ऐ मनुज
चरक, सुश्रुत और
धनवंतरी के आशीष
को याद कर,
लगा बुद्धि घुमाओ खरल
सोचो कैसे प्रज्वल कि थी,
वह पहली मशाल आदि ने।
नहीं करते तरु शिकायत
पत्तों के गिर जाने से।।

लेखक परिचय :-  अन्नू अस्थाना
निवासी :- भोपाल, मध्य प्रदेश
कविता लिखने कि प्रेरणा :- कवि संगोष्ठीयों में भाग लेते थे एवं कवियों से प्रेरणा स्वरूप हिन्दी भाषा से स्नेह होता चला गया तथा हिन्दी में कविता लिखने का ज्ञान होता चला गया।
वर्तमान कार्य:- हिन्दी टाइपिंग कार्य एवं छायप्रति (फोटो -काॅपी) कार्य
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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