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आल्हा/ वीर छंद

रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ
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वीर छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है, छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या लघु लघु गुरु (।।ऽ) या गुरु लघु लघु (ऽ ।।) से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है, इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं, कथ्य प्रायः ओज भरे होते हैं।

सादर समीक्षार्थ प्रस्तुत है आल्हा छंद सर्जन में मेरा प्रयास :-

भारत में व्यापार करेंगे, अंग्रेजों की थी यह चाह।
सन सोलह सौ आठ रहा जब, पहुँचे सूरत बंदरगाह।।
कूटनीति का लिया सहारा, भेद- भाव का बोया बीज।
राजाओं के राज्य छीनकर, भूले अपनी सभी तमीज।।

जुल्मों की आँधी बरपाई, करते रहते अत्याचार।
अट्ठारह सौ सन सत्तावन, गूँजी भारत में ललकार।।
खदेड़ना है फिरंगियों को, जन-जन की थी यही पुकार।
आंदोलन को तेज करेंगे, किया देश ने तुरत विचार।।

कफन बाँधकर डटे रहे सब, बच्चे बूढ़े और जवान।
चलीं मातृ पर शीश चढ़ाने, भारत की सच्ची संतान।।
फाँसी का फरमान सभी पर, जारी करते थे अंग्रेज।
सीने पर गोली खा हमने, आजादी को लिया सहेज।।

सन उन्निस सौ सैंतालिस में, पंद्रह अगस्त थी तारीख।
अंग्रेजी सेना थी हारी, माँग रही प्राणों की भीख।।
अमर सभी हैं वे बलिदानी, हुए देश हित जो कुर्बान।
रखो सहेजे थाती को अब, लायी है जो नवल विहान।।

अब भी अपने घर के भीतर, छुपे हुए हैं कुछ गद्दार।
चुपके से करते हैं अक्सर, वही पीठ पर हरदम वार।।
समझो कितना प्यारा है यह, अपना भारत देश महान।
सदा सुनहरी चिड़ियाँ गातीं, रहें हमेशा इसका गान।।

परिचय : रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
उपनाम :- ‘चंद्रिका’
पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता
माता – श्रीमती रामदुलारी गुप्ता
पति :- श्री संजय गुप्ता
जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं
शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड
व्यवसाय :- गृहणी
प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है
सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभिनंदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मंचों पर काव्य-पाठ व लघुकथा का पाठन करती रहती हूँ। सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान हेतु सम्मान-पत्र प्रदान किया गया है। विद्यालय के समय भी अनेक पुरस्कार मिले हैं।
रचना की विधा :- अधिकतर दोहा सृजन, छंदमुक्त कविताएँ, मुक्तक, दोहा, गजल, छंद, हाइकु दोहा, गीत, गीतिका, लघुकथा, संस्मरण आदि….
घोषणा पत्र :- मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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