Tag: दीपक्रांति पांडेय

  • बहन की डायरी

    बहन की डायरी

    दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** कैसे हो भैया ! मैं तुम्हारी छोटी सी, मोटी सी और शरारती बहन क्रांति, पहचानते हो ना मुझे? मैं वही क्रांति हूं जो आज से १४ वर्ष पूर्व तुम से लड़ती, झगड़ाती थी, तुम्हारे मजबूत कंधों में झूलती थी। आह! कितना मनोरम दृश्य था वह एक कंधे में मैं,…

  • ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती

    ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती

    दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** १) आंधियों को चीरकर बढ़ना है तुझको। नित नया इतिहास फिर गढ़ना है तुझको।। आग के दरिया को कब किसने रोका है। पाषाण हैं रहें कठिन चढ़ना है तुझको।। २) ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती। ना हीं कोई में विश्व का, विधान जानती।। माता-पिता हीं ऐसे हैं,…

  • राष्ट्र हित में

    राष्ट्र हित में

    दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** चंद पंक्तियाँ राष्ट्र हित में, उन समस्त दंगाइयों के नाम एक संदेश, जो राष्ट्र में दंगे करवाते हैं, चाहे वह महिला हों या पुरुष। हर वादे पूरे करते हैं, बातों के बिल्कुल सच्चे हैं। मूर्ख समझते हैं हमको, अफसोस अभी तक बच्चे हैं।। झूठ अभी तक फितरत में, वो…

  • पीकर आंसुओं को

    पीकर आंसुओं को

    दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** जो पीकर आंसुओं को भी, स्वयं हीं मुस्कुराती हैं। करें बलिदान इच्छा सब, न जाने सुख, क्या पाती है।। हर एक चौखट की मर्यादा है,जिनके अपने हाथों में। वो रणचंडी, भवानी हीं, यहां नारी कहाती हैं।। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। २) समरसता का भाव लिए,…

  • बना के ग़ज़ल तुझको

    बना के ग़ज़ल तुझको

    दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** इक बना के ग़ज़ल तुझको हम गाएंगे। छोंड़ करके शहर तेरा हम जाएंगे।। कर ले दो चार प्यारी मधुर कोई बात। फिर ना आऐगी ऐसी सुहानी सी रात।। दूर रह के भी नज़दीक हम पाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। प्यार मे यूँ बिछड़ना ज़रूरी भी है।…

  • घर की बिटिया …

    घर की बिटिया …

    दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** घर की बिटिया, रही सिसकती, हैं मंत्री, नेता मस्त यहां। नोच रहे हैं जिस्म भेड़िए, सब के सब हैं व्यस्त यहां।। आन बचा ना सके, जो घर की, लंबे भाषण झोंक रहें। बनकर दर्शक, तुम, ना मर्दों ! सुनकर ताली ठोक रहे।। क्या बची ना ताकत संविधान में, घर…

  • फिर आओ राम…

    फिर आओ राम…

    ********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ज्ञान का ध्वज फहराओ राम, ले अवतार पुनः इस जग में, धर्म पाठ सिखलाओ राम, धरा पाप में डूबी जाए, ज्ञान, दीप, बुझता जाए, चारों दिशा पाप मंडराए, कलह बसा, सभी के मन में, मग्न हुए सब डीजे धुन में, सत्य मार्ग दिखलाओ राम, प्रेम राग सिखलाओ राम, ज्ञान का…

  • तू जब शहर में होता है

    तू जब शहर में होता है

    ********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। झूठे तेरे वादे झूठे, फिर भी तू सच्चा लगता है। करूंँ ठिठोली संग तेरे मैं, यह मन बच्चा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है जब दूर तू मुझसे होता…

  • उपजती है सदा कविता

    उपजती है सदा कविता

    ********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) रहूँ मैं भीड़ में चाहे, रहूँ हर दम हीं मैं खाली उमड़ती है हृदय पथ पर,विचारों पूर्ण दिवाली, मेरा हिय है अति चंचल,विचारों पूर्ण है हलचल, खनक उठती है शब्दों की, है अर्थोपूर्ण रसवाली, मैं अंकुर हूँ विचारों की,मेरी कविता है एक डाली, है गुंजित स्वर तरंगों के,ज्यो कूहुके,कोयल…

  • याद आती है बहुत आपकी

    याद आती है बहुत आपकी

    ********* दीपक्रांति पांडेय याद आती है बहुत मुझे आज कल आपकी, आप भी तो कभी मुझे याद कर लिया करो, . मजबूरियों ने थामा है मेरा दामन जाने कब से, ज़रा कभी आप भी मजबूरियाँ समझा करो, . फोन करूं जब भी,बात मुझसे करो ना करो, अपने होने का एहसास तो करा दिया करो, .…

  • हर बातों को टाल रही हूं!

    हर बातों को टाल रही हूं!

    ********* रचयिता : दीपक्रांति पांडेय यह जो तस्वीरें मैं यादों के रूप में, हर पल दिल से संभालती रही हूं। . जख्मों को मैं मिटाती नहीं कभी, नासूर बन्ने तक पालती रही हूं। . बेशक मुझे पता है हर पल, आज मेरा वक्त खराब चल रहा है साहेब। . अपने हर अच्छे वक्त के इंतजा़र…

  • गुरु की महिमा अगर ना होती

    गुरु की महिमा अगर ना होती

    ********* रचयिता : दीपक्रांति पांडेय मेरा मार्ग था कांटों पूर्ण, जीवन मेरा था अपूर्ण, मार्ग था मेरा कितना छोटा मैं यों थी ज्यों सिक्का खोटा। राहों में भटक सी जाती, मेरी कीमत कुछ ना होती। मिलता ना सानिध्य आपका, दुनियां बस ताने देती। गुरुवर आपको करूं प्रणाम, मिला मुझे जो भी सम्मान, तुच्छ था मेरा…

  • मैं मंजिल हूँ तुम्हारी

    मैं मंजिल हूँ तुम्हारी

    ========================== रचयिता : दीपक्रांति पांडेय मैं मंजिल हूँ तुम्हारी, ये सच है, इसे तुम मान लो, मैं पहली और आखरी ख्वाइश हूँ, तुम्हारी, जान लो, मैं तुम्हारी ताकत हूँ, ताकत और हौंसला भी, किसी भी कसौटी में परख कर, इसे मान लो, नाराजगी, झगड़े, और दूरियाँ ना टिकेंगी हमारे बीच, अधूरे हो मेरे बिन तुम,…