दीप-अभिवंदना
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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लघु दीपक है दिव्य आज तो, उससे अब तम हारा है।।
जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।
माटी की नन्हीं काया ने, गीत सुपावन गाया है।
उसका लड़ना तूफानों से, सबके मन को भाया है।।
कुम्हारों के कुशल सृजन पर,आज जगत सब वारा है।
जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।
घर-आँगन,हर छत-मुँडेर पर, बैठा नूर सिपाही है।
जो हरदम ही,निर्भय होकर, देता सत्य गवाही है।।
दीपक तो हर मुश्किल में भी, रहा कर्म को प्यारा है।
जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।।
अवसादों को दूर हटाया, खुशियों का दामन थामा।
आज भावना हर्षाती है, दीप बालती है वामा।।
लघु दीपों ने प्रबल वेग से, अँधियारे को मारा है।
जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।।
दीर्घ निशा निज ताप दिखाती, तिमिर बहुत गहराया है।
पर सूरज के लघु वंशज ...

