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Tag: माधवी तारे

मां तुझे सलाम नमन
स्मृति

मां तुझे सलाम नमन

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके हाथों में पालने की डोरी, उसकी महिमा जगन्नाथ से भी भारी।। मातृ दिवस का मर्म इन दो पंक्तियों में समाया है। अहिल्या सीरियल दूरदर्शन पर देखते-देखते मां से जुड़ी कई यादें दिमाग में पुनः ताजा हो गई हैं। कुछ बातें आपके साथ साझा करने का प्रयास कर रही हूं। स्वानुभूति के समंदर में गोते लगाते हुए मेरी मां ने कुछ उसूलों के मोती पाए थे और उनको अपने मन मंदिर में सजाकर आज की दृष्टि से विशाल परिवार को सभ्य, सुसंस्कृत, संस्कारित, आध्यात्मिक संबल से पालने का निश्चय किया था। बात पुराने जमाने की है अर्थात ३० के दशक से शूरू होती है.... शादी के समय मेरी मां की उम्र ९-१० साल की और पिताश्री की उम्र १९-२० साल की थी। गांव के मुखिया की बेटी थीं वे। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे भव्य बाड़े, नौकर-चाकर तथा भरे-पूरे परिवार से थीं हमारी मां। मुखिया जी के घर...
मासूमियत
लघुकथा

मासूमियत

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   'वक्त की कैद में जिंदगियाँ हैं, मगर चंद घड़ियाँ हम सब सब्र करें, प्राण वायु की आपूर्ति के लिए तो कम से कम।' संपूर्ण विश्व की त्रासदी से हम सब वाकिफ हैं। एक अनाहत भय से हर शख्स परेशान सा है। बच्चें, बूढ़े एवं युवा सब-के-सब आज की स्थिति का गुनहगार स्वयं को मान रहे हैं। स्वार्थांध होकर मानव ने प्रकृति के साथ की हुई ज्यादतियां या खिलवाड़ का नतीजा वर्तमान स्थिति में कैसा भारी पड़ रहा है, सब देख रहे हैं, मान भी रहे हैं। 'वनराजी, वृक्षबेलियाँ हमारे सगे-संबंधियों जैसी है', यह हमारे देश की परंपरा युगों-युगों से चली आ रही है। ऐसे में एक घर की बुजुर्ग महिला सुबह-सुबह उठकर, नहा-धोकर, पुजा की थाल हाथ में लेकर जंगल की ओर निकल पड़ती है। दरवाजे की आहट सुनकर उसका छोटा पोता उठकर, "दादी माँ, रुको। मैं भी आपके साथ जंगल की और आता हूँ," कहकर जल्दी से ह...
एक वाक्या
हास्य

एक वाक्या

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गंगाराम का बुड्ढा लोगों, यकायक गया और सारे गाँव में एक ही हल्ला हुआ ऐसा कैसे गया कल तो देखा था सिपहिया के डर से लोगों ने फटाफट बाँध-बूँध के शमशान घाट लाया वहाँ एक ने पूछा अरे टोकन लिया कि नहीं जाओ पहले टोकन ले आओ यह अंतिम संस्कार का मामला है ये राशन की दुकान है या वैक्सीन के लिए जैसे लगी लाईन हैं अरे देखो ना कितनी लंबी कतार लगी है आपके नाम की पुकार होगी तो लाश को अंदर ले आना जैसे ही गंगाराम की पुकार हुई उसने लाश अंदर लाई जैसे ही लकड़ी की आँच लगी लाश उठके बैठ गई भूत-भूत कहकर जनता भाग गई किसी की चप्पल निकल गई किसी की धोती काँटों में अटक गई भूत ने है पकड़ी समझ कर वो आदमी वैसे ही गाँव की तरफ आ गया बुड्ढा भी उसके पीछे-पीछे गाँव आ गया दूर एक पेड़ के नीचे बुढिया आँसू बहा रही थी बुड्ढा उसके पास आया बोला अब...
संयममय जीवन
कविता

संयममय जीवन

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संयममय जीवन सुरक्षित वतन करोना तो हैं, बिन बुलाया मेहमान। बड़ा जिद्दी और जानलेवा इसका तूफान।। यमराज का कार्य हैं इसने बढ़ाया। बिन यात्रा दसवे-तेरहवे पहुंच जाता इंसान, सीधे वैकुण्ठधाम।। सम्पूर्ण जगत को चूभ रहा इसका आंतरिक शूल। अच्छे-अच्छे को चटा दी इसने प्राणांतिक धूल।। बिना ढोलबाजे डीजे और बिना पंगत। आ रही लाड़ी घर में लेकर नई रंगत।। जीवन जीने का इसने, बदल दिया दृष्टिकोण। मास्क ग्लव्ज़ सह दूर से ही करो सबका नमन।। जून का खुशनुमा पवन लॉकडाउन का थोड़ा परिवर्तन नित सेनिटाइजेशन, हस्तप्रक्षालन संयमित जीवन सुरक्षित वतन।। .परिचय :- माधवी तारे निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...