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Tag: राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ‘राज’

हे नववर्ष अभिनन्दन है..
कविता

हे नववर्ष अभिनन्दन है..

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है हर्षित है जग सारा करता तुम्हारा वन्दन है सूरज की नवल किरणें करती जग वन्दन है अभिनन्दन-अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा वन्दन है फूले किंशुक पलाश फूली सरसों पीली फूले फूल तीसी नीली-नीली हुलसित पक गई खेतों में गेहूँ की सुनहरी बालियाँ कमल खिली लगी मुस्कुराने ताल हुई हर्षित बागबां महक उठे जब खिले फूल फूलन खेतों में मेड़ों में सुवासित कछारन कूलन अतृप्त मन प्यासी धड़कन मिटने लगी जलन आनन्दित होकर चुन चुन गजरा बनाई मालिन धरा ने ओढ़ ली सुनहरी चादर की किरणें मोतियों ज्यों चमकने लगी पत्तों में ओस की बूंदें लहक लहक लहकने लगी कानों के बूंदें स्मित रक्तिम अधरों पर मुस्कुराती जल बूंदें सतरंगी रंगों से रंगने लगी घर आंगन और बाग बहकने लगी आम अमरैया दहके मन की आग फूले ...
हे नववर्ष अभिनन्दन है…
कविता

हे नववर्ष अभिनन्दन है…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है हर्षित है जग सारा करता तुम्हारा वन्दन है सूरज की नवल किरणें करती जग वन्दन है अभिनन्दन-अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा वन्दन है फूले किंशुक पलाश फूली सरसों पीली फूले फूल तीसी नीली-नीली हुलसित पक गई खेतों में गेहूँ की सुनहरी बालियाँ कमल खिली लगी मुस्कुराने ताल हुई हर्षित बागबां महक उठे जब खिले फूल-फूलन खेतों में मेड़ों में सुवासित कछारन कूलन अतृप्त मन प्यासी धड़कन मिटने लगी जलन आनन्दित होकर चुन-चुन गजरा बनाई मालिन धरा ने ओढ़ ली सुनहरी चादर की किरणें मोतियों ज्यों चमकने लगी पत्तों में ओस की बूंदें लहक-लहक लहकने लगी कानों के बूंदें स्मित रक्तिम अधरों पर मुस्कुराती जल बूंदें सतरंगी रंगों से रंगने लगी घर आंगन और बाग बहकने लगी आम अमरैया दहके मन की आग फूले ...
तेरे लिए…
कविता

तेरे लिए…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** राज! कैसे उन्हें बताएं कि हमें उनसे मोहब्बत है। हमारी खामोशियाँ सिर्फ उनका इंतजार करती हैं। कभी वो हमें मिलें तो उन्हें दिल के सारे राज बताएंगे। हमारी मोहब्बतें तो सिर्फ मोहब्बत नही इबादत है। डरते हैं उनके बेदाग दामन कही रुसवा न हो जाये। इस खातिर उन्हें मन मंदिर की देवी जैसे पूजते हैं। हमारी चाहत में गर पाकीजगी है वो आएंगी जरूर। ऐ सोनू ! राज को उन खुशनुमा लम्हों का इंतजार है। हमें भी मालूम वो भी हमें दिल ही दिल मे चाहते हैं। मगर मोहब्बत कहीं बदनाम न हो जाय चुप रहते हैं। आँखें उनकी हमारी मोहब्बतें नजाकत बयाँ करती है। लगता है अपने दिल में दर्द का सैलाब छुपाए बैठे हैं। कहते हैं सच्ची मोहब्बत हमेशा ही इम्तिहान लेती हैं। उनसे मिलने की उम्मीद से ही राज की साँसे टिकी ...
हवाओं में तेरी खुशबू है….
कविता

हवाओं में तेरी खुशबू है….

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** तुम मेरे ख्वाबों में ही आती हो ख्यालों में मेरे लम्हें लम्हें को सजाती हो तेरे प्यार के एहसास से महकता रहता हूँ छूकर फूलों को तेरे डिम्पल का एहसास होता है नाजुक कलियों का स्पर्श लबों का स्पर्श लगता है धड़कते दिल में मेरे जज्बातों का सैलाब है आंखों की नमी सागर उठती गिरती लहरों सी है निगाहों से निगाहें जब भी मिलती है प्यार का उफनता सागर लहराया करता है ठहर जाओ कुछ लम्हों के लिए दे एक शाम नमकीन हवाओं की सरसराहटों से आये तेरा पैगाम छूकर लबों को उतर जाओ कभी रूह में मेरे चलते चलते कुछ अपनी कहते कुछ मेरी सुनते गीले रेत पर बने तेरे पदचिन्ह तेरे प्यार का एहसास जगाते साथ साथ जिये थे जिंदगी के कुछ लम्हों को हम हमारे प्यार से बिताए हुए ये एहसास पल मेरे उदास भरे जीवन जीने का सहारा मिल जाता आस पास ...
खट्टी मीठी यादें
कविता

खट्टी मीठी यादें

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** वर्ष बीत गया कुछ कुछ कवड़ी मगर सच्ची यादें सब के जीवन को बदला कुछ अच्छी सच्ची बातें आहिस्ता-आहिस्ता नव वर्ष आ ही गया करें स्वागत नव ऊर्जा नव उमंग नव उत्साह संग आओ करें स्वागत कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया कांप उठा इंसान सांसों ही सांसों में जहर घुल गया फंस गई थी जान डर-डरकर दूर-दूर रहकर पल-पल जीता इंसान हर पल मौत का साया मंडराता था कांपता जहान क्या होगा कैसे होगा कोई ना समंझ पाता था इंसान के समक्ष सात्विक जीवन ही आधार था मौत के खौफ से सीख लिया जीने हुनर इंसान धन, दौलत सोना चांदी सब माया है समझा इंसान कुछ ऐसा शपथ लें और पूर्ण करें हम सारे वादे जिंदगी और कुछ भी नहीं केवल खट्टी-मिठ्ठी यादे लगता था जैसे सब कुछ खो जाएगा मन बेहाल जद्दोजहद थी जीवन की उतने ही था आटा दाल सम्हलकर ...
मोहब्बत की दुनिया…
कविता

मोहब्बत की दुनिया…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू रब से मुझे कुछ भी नहीं बस तेरी मोहब्बत चाहिए मेरे बुझे हुए दिल में तुमने मोहब्बत के दीप को जलाया भावनाओं को भरकर अपनी मोहब्बत का जादू चलाया मोहब्बत में मैंने सब हारना चाहा मगर सब कुछ है पाया तुम मोहब्बत की दरिया हो मोहब्बत की प्यास बुझाओ मोहब्बत की पावन धारा बनकर मोहब्बत का आशियाँ दो निराकार ब्रह्म की जैसी रूप मोहब्बत का साकार रूप दो मोहब्बत कैसा है ये नहीं जानता मेरे जीवन की तकदीर हो मैं अनजाना सफर का राही बन जाओ तुम मेरे हमसफ़र हो नफरतों के इस जहां में बस तुम मोहब्बत की देवी हो कंटकमय जीवन के पथ में मोहब्बत के फूल बिछा दूँ जीवन से सारे दुःख हर कर लूं हमदर्द की दवा बना दूँ मोहब्बत के आकर्षण में बहोत हैं आ सच्ची मोहब्बत दूँ रंग हीन जीवन पथ में मोहब्बत की दुनिया बनाएं बिछड़े ...
मन के मीत
कविता

मन के मीत

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे मन के मीत मेरे मन की थी कल्पना कोई भोली-भाली अल्पना आती है मुझे बार-बार सपना बाहों में भरकर उसको अपना बना लेते हो मेरे मन के मीत मुझे तुम बहुत याद आते हो सपनों में क्यूँ सताया करते हो रोज-रोज मिलने का वादा करते हो अपना वादा रोज तोड़कर मुझे रुलाते हो मेरे मन के मीत जब तुमसे मेरा नेह हुआ है मन मेरे वश में नहीं तेरा हो गया है तुम बिन मेरी कोई खुशियां नहीं है याद आते ही मेरे आंखों में भर जाते हो मेरे मन के मीत तुम मेरे जीवन की संगिनी हो हे प्रिय मेरे नैनों में तुम समाए हो इसलिये बारम्बार मेरी नींद उड़ाते हो मन मे बसे मनमीत तुम बहुत याद आते हो परिचय :-  राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' निवासी : बागबाहरा (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक व...
हवा तेरे शहर की
कविता

हवा तेरे शहर की

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** तेरे शहर की हवा बड़ी सर्द थी उस पर तेरा ख़य्याल तेरे ख़य्याल से मेरा दिल बेताब सा पर कुछ मलाल तुझे सीने से लगाने का सबब उफ्फ तेरी गर्म साँसे क्या ख्वाहिशें थी कि उफ्फ रूह का खो गया होश तेरी चाहत या तेरी तलब किस्मत में ना कहीं मिली तलब बे-सबब हाथ दुआ में उठाकर सुकून ना मिली आधी रात में जो बात थी चाँद भी पूरे शबाब पर था तुझसे जुदा चैन ना मुझे ना ही चाँद दिल बेताब था उस सर्द हवाएँ सुरमई शाम की कुछ जुदा जुदा सी थी मेरे सिहरती जिस्म की सिहरन तेरे जिस्म की कसक थी छेड़ कर गुजर जाती थी वो तेरे शहर की सर्द हवाएँ ना जाने कितनी देर तक खामोशी थी दिल-ए-समंदर ऐसे सर्द फिजाओं में कोई चिराग जला ना आतिशदान तेरे इश्क़ की गर्म जर्द अगन से जिंदा रहा ऐ दिल-ए-नादान फिजाँ में हवा भी खफा खफा दिल रहा ...
एक अनजाना फरिश्ता
कविता

एक अनजाना फरिश्ता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी के किसी मोड़ में जब खुद को तराशने जी जरूरत हुई अनजाने राहों में अचानक ही एक अजनबी से मुलाकात हुई वो अपनापन का पहला एहसास आज फिर महसूस हुई और वो अजनबी अपना जाना पहचाना जरूरत बन गई कभी तन्हा का साथ था कभी कल्पना की दुनिया साकार हुई वो अजनबी वो अनजाना रिश्ता खास अजीज बन गई वो अजनबी जीवन के राह में अनजाना फरिश्ता बन गया मेरे हर अनकहे, अनजाने लब्जों को समझने लग गया हर दुःख हर सुख हर विपत्ति का सशक्त हमदर्द बन गया जीवन की अस्मिता का रक्षक बिखरते रिश्ते को संवारने लग गया गम के बहते हुए आंखों के अश्कों को शबनम की बूंदे बना गया आसमानी फरिश्तों के बारे में मैंने किताबों में पढा था जिंदगी के किसी मोड़ पे उस जमीनी फरिश्ते से मुलाकात हो गया मेरा दिल उसके मनमोहक छवि के आईने में कैद...
ये दिल कहीं लगता नहीं बिन आपके…
कविता

ये दिल कहीं लगता नहीं बिन आपके…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! तन्हाई में ये दिल अक्सर बातें करता है तेरी अपनी बातों ही बातों में उलझा करता है ये पागल हो गया है ये दिल दीवाना एक ना सुने दुनिया के रिवाज माने ना जिद करे एक ना सुने जब देखूँ आईना मैं सिर्फ अपना ही अक्स देखूं ये दिल कहीं लगता नहीं आपके बिना क्या करूँ साथ तेरा चाहे हरपल बस तुझे चाहे ये दिल लम्हा लम्हा जीना चाहे साथ तेरे चाहे ये दिल नादां दिल तेरे सिवा कोई और ना चाहे ये दिल हाथों मेरे तेरा हाथ रहे हर लम्हा साथ चाहे ये दिल ऐ साथी तेरे बिना ये अधूरा जीवन भी क्या जीवन है मैं चकोर तुम चाँद हो मेरी हम दोनों ही एक हो गए है एक अनजानी चाहत में मैं खुद को खो बैठा तुममें तुझमें अपने आप को ही पाता हूँ सुध खो बैठा तुममें रोक न सकेगा जमाना हमको हम हो गए हैं आपके सोनू! हम बताएं ये...
सलोना बचपन
कविता, बाल कविताएं

सलोना बचपन

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** याद है मुझे आज भी बचपन की वो अठखेलियाँ बारिश के पानी नाचते कूदते भीगना संग साथियाँ सबका साथ साथ रहना खाना पीना सोना बैठना दादा दादी नाना नानी से सुनते हुए हम कहानियाँ भाई बहनों और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कभी खेतों में कभी तालाब कभी जाते अमरईयाँ पेड़ों पर चढ़ करके दीवारें फांदना तोड़ने को आमियां कभी तितली के पीछे कभी पकड़ते पतंग की डोरियां पढ़ना लिखना खेलना कूदना कांटे या चुभे कंचियाँ सायकिल के टायरों को चलाते रेस लगाते साथियाँ चिल्लमचों से भरी हुई जिंदगी भी सुकून देती रुशवाईयां नीले आसमां के तले निहारते उड़ते पतंग संग पुरवइयां गांव में शादी हो व्याह हो या कोई अन्य कोई भी अठखेलियाँ सब साथी मिलकर झूमते नाचते गाते नाचे संग गवईयाँ खूब लड़ते झगड़ते हम फिर मिल जाते बिन रागियाँ ग...
काश लौट आता बचपन …
कविता

काश लौट आता बचपन …

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** याद है मुझे आज भी बचपन की वो अठखेलियाँ बारिश के पानी नाचते कूदते भीगना संग साथियाँ सबका साथ साथ रहना खाना पीना सोना बैठना दादा दादी नाना नानी से सुनते हुए हम कहानियाँ भाई बहनों और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करना कभी खेतों में कभी तालाब कभी जाते अमरईयाँ पेड़ों पर चढ़ करके दीवारें फांदना तोड़ने को आमियां कभी तितली के पीछे कभी पकड़ते पतंग की डोरियां पढ़ना लिखना खेलना कूदना कांटे या चुभे कंचियाँ सायकिल के टायरों को चलाते रेस लगाते साथियाँ चिल्लमचों से भरी हुई जिंदगी भी सुकून देती रुशवाईयां नीले आसमां के तले निहारते उड़ते पतंग संग पुरवइयां गांव में शादी हो व्याह हो या कोई अन्य कोई भी अठखेलियाँ सब साथी मिलकर झूमते नाचते गाते नाचे संग गवईयाँ खूब लड़ते झगड़ते हम फिर मिल जाते बिन रागियाँ ग...
जिंदगी को महकाना
कविता

जिंदगी को महकाना

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** त्योहारों के दिन आते ही गरीब की मुश्किलें बढ़ती जाती है अच्छे कपड़े, अच्छे भोजन नाना प्रकार के सामग्रियों की जरूरत गरीब की कमर तोड़ देती है अभावग्रस्त जीवन चूल्हे की बुझी राख भूख और बेचारगी से बिलखते बच्चे हताशा और निराशा के अंधेरे में तड़फता बिलबिलाता जीवन गरीब का मन कचोटता है उस गरीब का देखकर अपने बच्चों की हालत दूसरी तरफ विलासितापूर्ण जीवन सांस्कृतिक परम्परा आधुनिकता की बलि चढ़ रही मंहगे-महंगे तोहफ़ों का लेन देन का झूठा दिखावा आरम्भ हो जाता ये महंगे तोहफे कभी भी रिश्तों को मजबूत नही बनाते हैं रिश्ते अपने रिश्तेदारों से अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करता हुआ दिखता है रूपयों में इतनी ताकत सच्ची होती रिश्तों की सच्चाई कुछ और ही होती भावना और भावनाओं को समझने क्षमता नहीं वरना ...
खुशियों के दीपक
कविता

खुशियों के दीपक

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मिट्टी के दिये जलाना अबकी बार तुम दिवाली में! खुशियों के दीपक जलाना! आई है दीपों का त्यौहार खुशियों से झूमे नाचे गायें मिट्टी को सौंधी सौंधी खुशबू मेहनतकश कुम्हार की मेहनत बेकार ना तुम जाने देना दो जून की रोटी उन्हें खिलाना मिट्टी के दिये जलाना अबकी बार तुम दीपावली में! खुशियों के दीपक जलाना! भेद-भाव, राग-द्वेष मिटाना करना तुम छोटी सी शुरुवात ही राजा हो या रंक या मध्यम सब मिलजुल मनाना दिवाली ऊंच-नीच का भेद मिटाना प्रेम का उजियारा फैलाना मिट्टी के दिये जलाना अबकी बार तुम दीपावली में! खुशियों के दीपक जलाना! विदेशी कृत्रिम विद्युत दिए ना जला विद्युत भी बचाना है देश की पूंजी देश में रखना मिट्टी को मुहिम बनाना है मिट्टी से ही प्रेम करना है और अपना फर्ज निभाना है मिट्टी के...
ओस की बूंदे…
कविता

ओस की बूंदे…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! ...मेरी जिंदगी हो तुम वर्षों की मेरी तलाश हो तुम बारिश की बूंदों में तुम हो कुदरत की करिश्मा हो तुम खुशी की आँसू हो तुम तिनकों में चमकती ओस की बूंदे हो तुम मनकों में दमकती हीर हो तुम फूलों की परागकण हो तुम नव पल्लवित नव कोपल हो तुम आसमां से बरसती तुषार हो तुम मेरे अपने रिश्ते में तुम हो पल पल हर पल में हो तुम मेरे कल में आज में सब में हो तुम मैं सशरीर में निहित पंचतत्व हो तुम मैं जीव मेरी आत्मा हो तुम मैं आत्मा मेरी परमात्मा हो तुम मैं प्रस्तर हुँ मेरी स्वरूप हो तुम कविता की तरह सरस मधुर हो तुम रब की सबसे खूबसूरत हो तुम खूबसूरती की कयामत हो तुम सच में मेरी इनायत की इबादत हो तुम मेरे जीवन की अमूल्य अमानत हो तुम तन-मन और दिल पे करती हुकूमत हो तुम मेरे हृदय रूपी राज्य की मह...
बेटी और पिता
कविता

बेटी और पिता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** एक बेटी के लिए दुनिया उसका पिता होता है पिता के लिए बेटी उसकी पूरी कायनात होती है बेटी के लिए पिता हिम्मत और गर्व होता है पिता के लिए बेटी उसकी जिन्दगी की साँसे होती है बेटे से अधिक प्यार पिता अपने बेटी से करता है कोई गलती हो बेटी से झूठी डाँट दिखाते पिता बेटी जब कुछ मांगे तो पिता आसमां से तारे तोड़ लाये बेटी घर में जब होती है पिता को बड़ा गुरुर होता है लूट जाए धन दौलत चाहे सारा जहांन बिक जाए बेटी की आंखों में आंसू भी ना देख सके वो पिता है विदा होती है बेटी घर से पिता बड़ी पीड़ा होती पिता को आंख में आंसू छिपाकर बेटी को कमजोर नही होने देता पिता कहीं किसी कोने में फूट-फूट कर रोता है वो पिता है बेटी के विदा होने से टूट-टूटकर बिखरने लगता है पिता पिता का साया जब होता सिर पर बेटी ...
मैं नारी हुँ
कविता

मैं नारी हुँ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मैं नारी हुँ मेरे अंदर भी एक नरम दिल है एक प्यारा प्यारा सा एहसास है मैंने भी कुछ सुनहरे ख्वाब देखा है पंक्षियों की तरह आसमां में उड़ना चाहती हूँ आज समाज में नारी सम्मान विडंबना है पुरुष प्रधान समाज से नारी मन आहत है आज नारी ही नारी के कारण सबसे असुरक्षित है कारण नारी ही नारी की शत्रु बन गई है बेवजह ही नारी को आरोपित किया जाता है जबरदस्ती झूठे लांछन लगाया जाता है अपनी कोख से असह्य पीड़ा सह जन्म देती है सीने को चीरकर दुग्ध की धारा बहाती है सारा कष्ट सहनकर भी वो मरहम लगाती है नारी है तो क्या गर्त में डाल दोगे सारा समाज नारी को बोझ समझता है गर्भ में ही मारकर दुनिया में आने से रोकता है पुरुष के संरक्षण में प्रताड़ित पल्लवित होती है मंदिर में नारी शक्ति की पूजा करता है घर की नारी शक्ति को...
दीवाने देश के ….
कविता

दीवाने देश के ….

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** गर जमाने में मिलते हैं कई दीवाने मगर भगतसिंह जैसा कोई नही होगा भोग विलास में डूब मरे कई शासक तिरंगे को कफ़न बनाने वाला वीर था भगतसिंह सिंह जैसे अदम्य साहस से भरे हुए रोम रोम से भारत माता का जय गान गूंजे अंतिम सांस तक देश का गुणगान किये जिंदगी से मोक्ष की कभी लालसा नहीं थी बस तिरंगे से लिपट कर जाने का अरमान था सिर्फ और सिर्फ वतन के लिए सोचता था वो भारत माता के कदम चूमता रहा जिंदगी में देशभक्ति रस में रसमय दीवाना था वो जीता था देश के लिए मर गए वतन के लिए अंजाम की कभी फिक्र नही दीवाने को बस आगाज की बातें करता था जिन्दगी भर वतन परस्ती के मिसाल बनकर इंकलाब लाया बसंती चोला पहनकर विदा हुआ वो मस्ताना था ना तन की चिंता ना धन का परवाह लहू का एक एक कतरा वतन के लिए दिया जिंदगी में बहुत...
रब होती हैं बेटियाँ
कविता

रब होती हैं बेटियाँ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्मी, सरस्वती, सीता और दुर्गा हैं बेटियाँ रोको मत लोगों संसार में आने दो बेटियाँ माता-पिता परिवार की गर्व होती हैं बेटियाँ घर आंगन ही नही रब की रौनक होती हैं बेटियाँ नाजुक दिल, बड़ी मासूम होती हैं बेटियाँ खुशी से खुशियों में भी रो पड़ती हैं बेटियाँ पतझड़ में भी बसन्त जैसी होती हैं बेटियाँ रोम रोम रो पड़ती हैं जब दूर जाती हैं बेटियाँ तितली की तरह आकाश में उड़ती हैं बेटियाँ सुने मकान को भी मंदिर बनाती हैं बेटियाँ जीवन के हर कष्ट में सम्बल देती हैं बेटियाँ साहस की प्रचण्ड प्रतिरूप होती हैं बेटियाँ सरस्वती बन खूब पढ़ती लिखती हैं बेटियाँ दुर्गा बनकर साहस शक्ति देती है बेटियाँ लक्ष्मी बनकर वैभव प्रदान करती हैं बेटियाँ माता जैसी अंतरिक्ष में ध्वज लहराती बेटियाँ अठखेलियाँ करती मल्हार गा...
संस्कृति की शान हिंदी
कविता

संस्कृति की शान हिंदी

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिंदी, हिन्दू हिंदुस्तान है हिंदी निज गौरव का ये अभिमान हिंदी संकल्प है विश्व की भाषा बने हिंदी हम भारतीयों ये अभिलाषा हिंदी गौरव महिमा का गान बने हिंदी संसार का मान और सम्मान बने हमारे भारत की सभ्यता है हिंदी हिन्दू संस्कृति की सम्मान है हिंदी जाती धर्म से हटकर ऊपर है हिन्दी भारतीयों के शान की पहचान हिंदी है विश्व भाषा यह बने सर्वमान्य हिंदी जन जन की आशा और विश्वास है हिंदी विश्व भाषा का अनुवाद है हिंदी संवाद का अत्यंत सरल साधन हिंदी साहित्य जगत का सृजन है हिंदी सभी की सर्वमान्य भाषा बने हिंदी अपनेपन का भाव जगाए हिंदी सबका प्यारा सबका दुलारा हिंदी सब भाषा से रिश्ता रखती हिंदी समरसता का भाव जगाती हिंदी जन भाषा का संदेश बने हिंदी दृढ़ संकल्पों सभी की भाषा हिंदी विश्व पटल पे सम्मा...
आँसुओं के मोती
कविता

आँसुओं के मोती

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! तुमने जो प्यार दिया मेरे इस दिल को वो प्यार कहीं ना अब तलक मुझे मिला जिंदगी का कोई अर्थ नही था अब तक तेरे प्यार ने मुझे नई जिंदगी का अर्थ दे दिया मेरी सोनू! तूने जब से थामा है मेरा हाथ मेरा हर लम्हा-लम्हा सुलझा-सुलझा रहता है बेअदबी इल्जाम लगाया दुनिया ने मुझ पे तुम्हारे प्यार पाकर रिहा हुआ इल्जामों से अब तो तेरे प्यार पे ही भरोसा है मुझको बिना सोचे समझे एतबार किया है मुझे मैंने आँसुओं से मोती की माला पिरोया मैंने अपने गले का तुझको हार बनाया है तेरे खूबसूरती के सागर में जब से खोया फिर खुद को खुद से कभी मिल नही पाया किस्मत भी खफा हो तो कोई गम नहीं अपने प्यार से कभी भी कोई शिकवा नहीं पर सोनू तेरा हर इल्जाम का गंवारा है मुझे फिर भी मैं तूझसे ही प्यार करता रहूंगा जब-जब भी मैंने आई...
राज हंसिनी
कविता

राज हंसिनी

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! कभी आओ फुर्सत में मेरे पास मिल बैठें एक जान हम तुम कुछ तुम अपनी कहो कुछ मैं अपनी कहता हूं सुख-दुःख को साझा करते हैं मेरी खुशी तुझमें रहती है मेरे सारे गम मेरे अंदर कैद है मेरी चिन्ता तेरे अंदर सुलगती है तेरे बिन मैं मेरे बिना तुम जी ना पाएंगे हम तुम दो काया माया एक हैं हम दिल की धड़कन हैं एक दूजे के सांसों से जब सांस मिले नई साँसे उत्तपन्न होती है तुझे चोट लगती है तो दर्द मुझे होता है तेरे दर्द का सिलसिला मेरे दिल से ही गुजरता है सारा का सारा अस्तित्व मेरा आहत हो कराहता रहता है ये एहसासों का एहसास हम दोनों से जुड़कर प्यार का अहसास जगाता रहता है एक दूजे के बिन एक पल ना गुजरता है ना मैं तन्हा रह सकता हूँ ना ही तन्हा तुम एक पल गुजार सकती हो मिलकर कर जिंदगी चल सकती है जिस्म...
घरौंदा सपनों का
कविता

घरौंदा सपनों का

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! अपनी चाहत को शब्दों में कैसे बयां करूँ मेरी हर यादें तुमसे जुदा नहीं है मेरी हर बात तुमसे जुदा नहीं है तेरी यादों से तेरी बातों से कभी जुदा नहीं हूं मेरे उन एहसासों को मेरे उन जज्बातों को शब्दों पिरो सकूँ ये क्षमता नही मुझ में अपने जज्बातों को काबू कर सकूँ अपने मोहब्बत को जुबाँ से बयाँ कर सकूँ अपने एहसासों को कलम से लिख सकूँ मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं है बस जिंदगी को समझना चाहता हूं जो जिंदगी मुझे समझाना चाहती है कभी शिकवा नही कभी गीला नहीं ऐ जिंदगी तुम माध्यम हो मेरी मोहब्बत की ऐसा क्या तुम जतला गई मुझे हो गमों की बस्ती में भी खुशियां तलाश लेता हूँ जिंदगी के किसी मोड़ पर कभी मिलोगी ऐ मेरी जिंदगी तो पूछुंगा जरूर तुमसे अब और क्या सिखलाना चाहती हो तुम मुझे तेरे ह...
सोनू! जिंदगी एक परीक्षा है
कविता

सोनू! जिंदगी एक परीक्षा है

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** ये रब खुदा का बनाया हुआ एक सुलझा हुआ पाठ्यक्रम है जिंदगी एक परीक्षा है जरा भी हाल बेहाल हुआ सारा भूगोल हिल जाता है आंखों से अंतःप्रवाही नदियाँ समंदर बन बह निकलती हैं दिल की भूमि दुःखों के हल चल पड़ते हैं सारी खुशियाँ इतिहास बन जाती हैं दिल में सामाजिक अध्ययन होने लगता है समाज उथल पुथल होने लगता राजनीति का खेल आरम्भ हो जाता अल्फाजों की सरकार बनती है आंखों के आँसू और दिल के दर्द को आंखों की साजिश करार दी जाती है विपक्ष को अर्थशास्त्र का ज्ञान मिल जाता है जिंदगी की इन पहेलियों को गणित के माध्यम से सुलझाने का कार्य करते हैं फिर अर्थशास्त्र के द्वारा भौतिकशास्त्र के विकास के पुल बनाये जाते हैं मानवशास्त्र शून्य की ओर बढ़ता है मनोविज्ञान का खेल आरम्भ होता है समसामयिक समस्याएं सामने आने...
मेरी रब हो…
कविता

मेरी रब हो…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू! सोनू! सोनू! तुम हो तुम जब से तुम आई जीवन में मेरी तो जिंदगी ही बदल गई एक ख्वाब था दिल में दिमाग में उस हसीन ख्वाब की हकीकत हो तुम वीरान सी जिंदगी की हसीं बहार हो तुम ये दिल जिसे अपना मानता है वो हो तुम मेरी जिंदगी की हर सवाल का जवाब हो तुम मेरे जुबां पे आई वो हर अल्फाज हो तुम मेरे हर उन अल्फाजों की मतलब हो तुम आसमान से उतरी हुई कोई परी हो तुम मेरे सुने दिल को खुशियों से भरने वाली हो तुम मेरे हर एक सवालों की जवाब हो तुम कायनात की एक दिलकश परी हो तुम मेरे दिल को जो राहत दे सके वो सुकून हो तुम पथरीले रास्तों से निकली मीठे झरना हो तुम मेरी हर कविता की हर शब्द हो तुम उतरती हुई संध्या की मीठी मल्हार हो तुम सुनहरी सुबह की आभासिक्त किरण हो तुम सावन की रिमझिम रिमझिम बारिश हो तुम जेष...