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Tag: राजेन्द्र लाहिरी

सर्वश्रेष्ठता
कविता

सर्वश्रेष्ठता

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** चल उतर कर देख एक बार सीवर में, या फिर गंदे नाले में, फिर कितने दिन पी पाओगे चाय स्वच्छ प्याले में, लेकर स्वच्छ हाथ, तब सोच पाओगे कितना मुश्किल है बनना, रहना बनकर छोटी जात, बिना शारिरिक श्रम, पाया हुआ मुफ्त का धन, मजे और धनवीर बन कर खुद को कहना सर्वोच्च, कर नहीं पा रहे हो उच्चता का उन्मोच्य, कभी कर के दिखा दो खेतों में पूरा दिन भर परिश्रम, फिर न कहना कि टूट गया तन-मन, छोड़कर मिथ्यात्मक कहानियां सुनाना, कितना कठिन है मड़े से नए जूते बनाना, परलोक ले जाने का तरीका खुलकर बताओ वैज्ञानिकों को, यदि सचमुच में वजूद उन स्थानों का, तो खोज लेंगे वे उन स्थानों को, जैसे ढूंढ ले रहे हैं खरबों मील दूर रहने वाले नायाब ग्रह, वे साबित भी करते हैं और नहीं भरमाते आपकी तरह झूठ को सच कह कह, आओ श्रीमान ...
थोड़ा तरस खाओ
कविता

थोड़ा तरस खाओ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** निरीह प्राणी शिक्षक को न समझा जाये भगवान, सत्ता वालों की नजर में नौकर है अपनी दुर्गति से वो नहीं अनजान, हमने देखा है शौच करने वालों की निगरानी उनको करना पड़ा, उसने तो ड्यूटी कह मान लिया जग ने देखा व्यवस्था है पूरा सड़ा, आफत के समय शिक्षक ही थे जां लगा दांव ड्यूटी थे किये, संग पुलिस वालों ने राहगीरों से भर भर पैसे खुलेआम लिये, अब वक्त है उनसे ट्रैफिक ड्यूटी कराने का, उन्हें उनकी औकात बताने का, कल को नाली साफ करने कहा गया तो बेझिझक करेंगे, उन्हें सरकारों का खौफ है बुरी तरह से डरेंगे, ऐसा कोई काम नहीं जिससे शिक्षक डरते हैं, वो शिक्षा पर ही जीते हैं और शिक्षा पर ही मरते हैं, सियासतदानों अपनी हरकतों से बाज आओ, अपनी लिखी किताबों के भगवान रूपी शिक्षक पात्रों पर तो थोड़ा तरस खाओ। ...
शब्द
कविता

शब्द

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो शब्द ही है जो जोड़ता है दिलों को और एक झटके में किसी को भी करा देता निःशब्द, नन्हे बच्चों को शब्दों का ज्ञान कराते हैं, जब वह बोलने लगता है जबरन चुप कराते हैं, शब्द हृदयस्पर्शी भी हो सकता है और शूलों से भरा भी हो सकता है, यदि संभाल कर न उपयोग किया जाए सारे किये कराये को धो सकता है, किसी के व्यक्तिगत व्यवहार को उनके प्रयुक्त किये गए शब्दों से आंकते हैं, इसी से उनके हृदय की गहराई नापते हैं, यही है जो देश दुनिया से रूबरू कराता है, वैश्विक परिदृश्य बेझिझक बताता है, शब्दों के आदान प्रदान से नये नये भौगोलिक रिश्तों का प्रवाह आया है, रिश्तों का बराबर निबाह आया है, कोई चालाक मीठे बोल प्रधान बनते हैं, नासमझी में उलझे भीड़ के हुक्मरान बनते हैं, सबको पता है इस जहां में आना और जाना है, ...
मूर्ख और धूर्त
कविता

मूर्ख और धूर्त

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखो-देखो न गौर से आंखें उनकी सुर्ख है, एक मूर्ख, मूर्ख है और दो मूर्ख भी मूर्ख है, हालात में न आये सुधार, आ जाये जब मूर्खों की बाढ़, इधर भी मूर्ख उधर भी मूर्ख, कई राजनीति के युवा तुर्क, देशद्रोही सिखाए देशप्रेम, मवाली, गुंडों की चिंता में रहते पूछते ये कुशलक्षेम, तनाव खूब बढ़ाते हैं, भोला खुद को बताते हैं, भावनाओं से खेलना खेल नहीं, दंगे फसाद के खेलों में न समझो रखते तालमेल नहीं, जनता पीछे-पीछे फिर भागेगी, न जागा कभी न जागेगी, आस्था को भड़कायेंगे, जलती जनता को ये जलाएंगे, है जमी हुई जो भाईचारा, उकसाकर उसे पिघलायेंगे, नफरतों का फिर आएगा बाढ़, गुस्से से होगा फिर ताड़मताड़, न मानो इन्हें सीधा साधा नहीं मानोगे ये तो धूर्त है, एक मूर्ख, मूर्ख है और दो मूर्ख भी मूर्ख है। परिचय :- ...
फुर्सत और वादा
कविता

फुर्सत और वादा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वादा था सात जन्मों तक साथ निभाने का, बिना बताए साथ छोड़ नहीं जाने का सोती पत्नी को देख बूढ़ा डर गया, सांस चेक करने से पहले सिहर गया, मगर बुढ़िया जीवित व सजान थी, पति के लिए मंत्र व अजान थी, बूढ़ा बोला तेरे सिवा दुनिया में मेरा कौन है, हमें भुला सारा रिश्ता मौन है, बेटे-बहू को कमाने से फुर्सत नहीं, मोबाईल वाले पोते पोतियों को अपने दादा दादी की जरूरत नहीं, बुढ़िया बोली बुढ़ऊ तुझे छोडूंगी नहीं, तुझसे कभी मुंह मोडूंगी नहीं, मगर अगले दिन बुढ़ऊ जगाता रह गया, बुढ़िया को आवाज लगाता रह गया, मगर बुढ़िया जा चुकी थी बहुत दूर, साथ लेती गयी साथ न छोड़ने का फितूर, वादा भी टूटा,फुरसतियों का साथ भी टूटा, अपनों के साथ छाया भी रूठा, उस बूढ़े का शक्ल मुझे याद आ रहा है, शायद मेरी कहानी को समय आज पहले दिखा रहा है। ...
आएंगे जरूर अच्छे लोग
कविता

आएंगे जरूर अच्छे लोग

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** संभावित निश्चित हार को जानते हुए भी हर हालात मुश्किलात में भी सीना तानकर खड़े हो जाना रही है मेरी फितरत, न लालच, न झोल, न कोई गंदी हरकत, सालों साल से लड़ता आया हूं, न समझना कि फितूर बन छाया हूं, जातिय अन्याय और अत्याचार बर्दाश्त नहीं, दिन अभी चढ़ रहा है हो रहा सूर्यास्त नहीं, मंगल अमंगल की बातें मैं नहीं सोचता, समझता हूं मानव को मानव नहीं उसे नोचता, है ताकत जिनके पास शांति उन्हें स्वीकार नहीं, दूध जब गरम न हो कैसे बन पाएगा दही, प्यार व मोहब्बत उन्हें यदि अंगीकार नहीं, खोखले वादे क्यों सुनें हमें भी स्वीकार नहीं, पीठ पर चलाते गोली सीना क्यों न दागते, संविधान के अनुच्छेदों से दूर क्यों हो भागते, सामने खड़ा मिलूंगा हर युग हर काल, उड़ा देंगे धज्जियां सब लेंगे हम संभाल, लोकतांत्रिक देश मे...
देर भी अंधेर भी
कविता

देर भी अंधेर भी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** झूठे दिलासों में जीने वालों इस जिंदगी में देर भी होता है, और अंधेर भी होता है, बस आश्वासन थोक में मिलता है, हर गली हर चौक में मिलता है, नेता ने दिया अधिकारी ने दिया, निजी ने दिया सरकारी ने दिया, मगर हकीकत कुछ और है, क्यों बदलता नहीं कोई दौर है, पुलिस वालों की जरूरत हो तो देर, डॉक्टर की जरूरत हो तो देर, मौक़ा देख मरीज निकल लेता है देर सबेर, परिजन झुंझलाहट में ऊपर देखते हैं, और कहते हैं उनकी यहीं मर्जी थी, लेकिन लोगों की आस फर्जी थी, यहां कोई किसी की आस पूरा करने वाला नहीं है, अंधेरे में खुद जलाना पड़ता है दीप खुद से बेवक्त होता उजाला नहीं है, प्रकृति का सब ताना बाना है जिसका कोई चितेर नहीं है, कभी धोखे में रह मत कहना कि यहां देर है अंधेर नहीं है, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहोगे त...
लड़ना भी जरूरी है
कविता

लड़ना भी जरूरी है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां लड़ाकू हूं, लड़ते आया हूं अभी तक, बिल्कुल नहीं हूं कमजोर क्योंकि, प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है कमजोरों को, किया जाता है प्रयास उन्हें देने के लिए मेडल सत्य और नैतिकता की, जबकि जीत का निर्णय करता है केवल और केवल ताक़त, जिसके विरुद्ध नहीं करता कोई हिमाकत, लड़ना अहम अंग है जिंदगी का, जो लड़ने से कतराता है, गायब हो जाते हैं पल भर में उनकी सुख-सुविधा, उनके हक अधिकार, सबसे ताकतवर लड़ाई है विचारों की, इस माटी के कण-कण के हिस्सेदारों की, बैठे बैठे कौन किसका हक़ खा रहा है, ध्यान किसी का इस ओर नहीं जा रहा है, भूखों को सुनाया जाता है धर्म की बातें, भूलाकर उनके द्रवित मर्म की बातें, जिस दिन कर गया घर, दिमाग में भरा हुआ डर, उस दिन से हो जाता है चेतना शून्य बड़ा से बड़ा लड़ाका, और बलवान...
खुशी-खुशी कह दो
कविता

खुशी-खुशी कह दो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां सोच समझकर होशो हवास में रह कर रहा हूं गलती, मैं नहीं कहूंगा कि नादान हूं, मुंह बांये खड़ी परिस्थितियों से हद दर्जे तक परेशान हूं, ये मेरा नाकारापन ही है जो कुछ भी नहीं दे पाया खुशियों के नाम पर, सोचने का समय नहीं मिला हो सकने वाले अंजाम पर, मगर खुशकिस्मत हूं सबका भरपूर साथ मिला, मानता हूं सबके त्याग को जो चाहकर भी नहीं किये गिला, मगर क्या करूं मजबूर हूं, परिवार को दे सकने वाले खुशियों से महरूम हूं, शायद मैं अभागा नहीं हूं, कसम से जिम्मेदारियों से भागा नहीं हूं, लेकिन वक्त को व्यवस्थित कर नहीं पा रहा हूं, कब कौन निकल जाए इस जहां से बात दिमाग में धर नहीं पा रहा हूं, मैं करता नहीं अत्यधिक आत्मविश्वास, मुझे भी नहीं है लंबे जीवन की आस, गलतियां सुधारने के लिए, नाकामी स्वीकारने के लिए, हू...
ज्यादा शरीफ बनने का नइ
कविता

ज्यादा शरीफ बनने का नइ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अपने रस्ते पे आने का, अपने रस्ते पे जाने का, मन किया तो कभी कभी शान पट्टी भी दिखाने का, इस दुनिया में शरीफों का जीना अक्सर होता रहता है मुहाल, आजू बाजू खड़ी रहती है बिना बुलाया हुआ जंजाल, अक्खा दुनिया में पड़े हुए हैं कई लुक्खे उनसे भी यारी दोस्ती निभाने का, मन किया तो कभी कभी शान पट्टी भी दिखाने का, अफसर भी अब खुद को समझने लगा है खुदा, काम नहीं है नेताओं के कामों से ज्यादा जुदा, ये होते ही नहीं कभी अपने बाप के, गुनाहगार साबित कर देते हैं औरों को खुद के किये हुए बड़े से बड़े पाप के, रिश्वत लेंगे भी अपने ओहदे की नाप के, कभी नहीं गिरेंगे इनके आंखों से आंसू दो बूंद भी सच्चे पश्चाताप के, तो क्या सोच रहा है भई, अपुन की बात मान ज्यादा शरीफ बनने का नइ। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिर...
नहीं किसी को छलेंगे
कविता

नहीं किसी को छलेंगे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिनको जो कहना है कहने दीजिये, उन्हें अपनी घमंड में रहने दीजिए, अपनी राहों में कैसे चलना है हम जानते हैं, बेफिक्री वाली मजबूत कदमों के शौकीन हैं हीरों से जड़ित खड़ाऊ कोई पहना दे तो भी किसी का आदेश हम नहीं मानते हैं, ऊंची नीची पहाड़ी में ऊंट न चलाओ, हुनर देखना है तो रेत में दौड़ाओ, कांच में भागने का दम सांप कहां से लाए, खेत की मेढ़ में कोई न छेड़ पाए, जगह परिस्थिति अनुसार सबका महत्व है, किसी का हुनर उनका अपना ही स्वत्व है, केकड़े हैं जो पत्थर की ओर मुड़ जाएंगे, जागरूकता की राह में सदा हमें पाओगे, सफल हुए तो अपना नीला आकाश होगा, मंजिल ले जाने को आदर्शों का प्रकाश होगा, वे अपनी चाल चले हम अपनी चाल चलेंगे, वो डूब सकता है डगर की चकाचौंध में मंजिल दिखलाने वाले नहीं किसी को छलेंगे। परिचय :-  रा...
कर्तव्य बोध
कविता

कर्तव्य बोध

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिसने कभी किया ही नहीं जीवन की तमाम परिस्थितियों पर शोध, उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके अंदर होगा कर्तव्य बोध, इसके लिए दिमाग के साथ दिल भी चाहिए, सुस्पष्ट सोच और लक्षित मंजिल भी चाहिए, हमारे देश के कर्णधारों में, कुंठित सिपहलसारों में, यदि कर्तव्य बोध होता, तो देश की उन्नति की राह में कोई भी लोकसेवक कांटें क्यों बोता, इस देश में हुए हैं ऐसे भी लोग महान, जिनका दर्जा होना था भगवान, उन सबके योगदान और स्मृतियों को बहुतों ने मिटाना चाहा, कुढ़ता में आ उन सबको भुलाना चाहा, होता कर्म के प्रति लगाव तो भ्रष्टाचार मुंह बांये न खड़ा होता, धन कुबेर और अपराधी नेताओं के दांये बांये न खड़ा होता, कुछ लोगों के खून में बस चुका है देश के साथ भयंकर गद्दारी, प्रगति की राह में जो पड़ रहा भारी, पता ...
ये कलम वाले
कविता

ये कलम वाले

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये कलम वाले दो धारी तलवार लिए फिरते हैं, शरीर तो शरीर अंतस पर वार किये फिरते हैं, इनका नजरिया नजरानों के अनुसार होता है, पराए दुखी तो खुश और अपने दुखी तो जार जार रोता है, समाज से प्रताड़ित को प्रताड़ित करना अपना धर्म समझते हैं, समाज के प्रतिष्ठित की चापलूसी करना परम कर्म समझते हैं, कोई वंचित गुनाह करे तो उनकी जाति बता हर पल चिल्लायेंगे, कोई इनके लोग गुनाह करे तो उन्हें दबंग या बाहुबली बताएंगे, किसी अन्य धर्म वाले की गलती पर आतंकवाद वाला एंगल निकालेंगे, अपनों के देशद्रोह पर भी सामान्य घटना बता पर्दा डालेंगे, किसी गैर जरूरी बातों पर दिन भर ध्यान भटका भौंकते जाएंगे, जनता जो जानने चाहिए उन मुद्दों को बिल्कुल ही नहीं बताएंगे, कुछ खतरनाक किस्म के बढ़िया पत्तलकार दिखे हैं, आम चूसते हैं ...
खुद से रूठा बैठा हूं
कविता

खुद से रूठा बैठा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खुद ही खुद से रूठा बैठा हूं, जाने क्यों इस कदर ऐंठा हूं, जिंदगी में कभी निखर नहीं पाया, सौंपा गया कार्य कर नहीं पाया, सामान्य तालीम मिली थी तलवे चाटने वाली, इंसानों को इंसानों से बांटने वाली, खुराफाती सोहबत में रहकर भी, मानसिक गुलामी वाली परिस्थितियां सहकर भी, उगा था मन में एक कोमल फूल, उठा लूं मैं भी सामाजिकता का धूल, चल पड़ा था उस कठिन राह में, डूबकर रहना था समाज के पनाह में, यह राह जितना समझता था था नहीं उतना आसान, जनजागृति पर रखा पूरा ध्यान, लोग मिलते गए हृदय में समाते गए, अपने कार्य से मनमस्तिष्क में छाते गए, पर देख न पाया कइयों का दूसरा रूप, विद्रोह हो रहा था समाज से खामोशी से रह चुप, एक से एक नई खेप मिशनरियों के आ रहे थे, कुछ सच्चे चुपचाप लगे तो काम में तो कुछ धुर विरोधियों में गोद ...
चक्रव्यूह
कविता

चक्रव्यूह

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जागृत है सारे सहोदर, दिमाग में भरा है पूरा गोबर, रहते रचते रात दिन वक्रव्यूह, बड़े शान से कह रहे उसे चक्रव्यूह, माना कि चक्रव्यूह भेदना सबके बस की बात नहीं, पर कैसे कहें कि रचने वाला खुद भी है पूरा सही सही, करना नवनिर्माण जायज है, पर विध्वंसक रचना नाजायज है, खुद का बनाया हथियार हो सकता है खुद के लिए घातक, असलहा धरे रह जाते हैं जब सामने आती दिमागी ताकत, दिमाग होता झुंड बराबर नहीं अकेली टूटती लकड़ी, अपने बनाये शानदार जाल में फंस मर जाती है एक दिन मकड़ी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
चल फिर मिलते हैं
कविता

चल फिर मिलते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दो दोस्त, एक साथ पढ़ाई, एक साथ शैक्षणिक प्रगति, एक सामान्य, एक में महत्वाकांक्षा अति, हुई पढ़ाई पूरी, पर जिंदगी की असल परीक्षा अधूरी, एक जल्द कुछ करना चाहता था, एक सोच समझ आगे बढ़ना चाहता था, पहले ने किसी और की दरी उठाना शुरू किया, कालांतर में बड़े नेता का महत्वपूर्ण पद हासिल किया, दूसरे ने रात दिन अलख जगाना शुरू किया, खुद को समाज और मिशन को सौंप दिया, पहले वाले की एक आवाज पर सैंकड़ों लोग इकट्ठे होते थे, जिनके सपने उनके पीछे पूरे होते थे, दूसरा इकट्ठा होने का आह्वान कभी नहीं करते थे, जागृति फैला दूसरों को जगाते और खुद भी संवरते थे, जब दोनों मिलने पहुंचे तो दृश्य अद्भुत था, पहला बेरोकटोक कहीं भी जाता था, दूसरा समस्या देख उसे दूर करने रुक जाता था, आप ही बताओ कौन कामयाब है, एक सत्ता...
गिनते रहिये दिन
कविता

गिनते रहिये दिन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है जब कुछ कुछ खालीपन महसूस होता है, दिल गुजरे जमाने को याद कर रोता है, जो सिर्फ यादों में ही रहेगा, दुबारा आ जाऊं वक्त नहीं कहेगा, इधर समय गुजरता जाएगा, आयु साल दर साल घट जाएगा, कम होता जाता है दबदबा, कोई बचता नहीं मुंहलगा, आपको आपसे ही कोई नहीं मिलायेगा, गुजरा पल-पल पल तड़पायेगा, रहने लगेंगे सिर्फ यादों के सहारे, एक छोर में खुद तो दूसरे छोर में बाकी सारे, समझना न समझना खुद के ऊपर होगा क्योंकि बतियाएंगे रोज नदी के धारे, यदि किया है कुछ ऐसा काम, जो रख दे बरसों तक नाम, तो सफल रहेगा किसी का भी जीना, कब भागना पड़े सब छोड़ तब तक गिनते रहिये दिन, साल, महीना। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
मुक्त होने का समय
कविता

मुक्त होने का समय

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब किस बात का इंतजार है, क्या आपका दिल नहीं बेकरार है, हजारों वर्षों तक दबे कुचले हो जीने से घुटन महसूस नहीं हो रही, आधी आबादी क्यों चिरनिद्रा सो रही, अब और कितने समय तक खुद से जोर नहीं लगाओगे, हाथ जोड़े-घूंघट काढ़े कब तक चुप रह पाओगे, प्रभात आपके लिए भी हो गया है, देखी भाली हो इस दुनिया को आपके लिए कुछ भी नहीं नया है, लूटा गया मान सम्मान, हक़ अधिकार, देखो आज भी यहीं है, बदले स्वरूप सारी देनदारियां एक-एक कर गिनने का समय है, एकपक्षीय सोच वालों से सब कुछ छीनने का समय है, इतनी बदल चुकी दुनिया क्या आज से स्वयं जुड़ने का मन नहीं करता, उड़ रही है नारियां अन्य देशों की क्या आपका मन उड़ने को नहीं करता, साम, दाम, दंड, भेद से है जो बिछाया गया जाल उसे आगे आ खुद से काटो, ड्योढ़ी लांघने का ये अच्छा समय है ...
अहसानफरामोश
कविता

अहसानफरामोश

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हक अधिकार मिला? हां मिला। किसकी बदौलत? पता नहीं। आरक्षण से नौकरी मिला? हां मिला। किसकी बदौलत? पता नहीं। और इस तरह से महामानवों को लोग भुला देते हैं, उनके योगदानों को भुलाकर समाज को पे बैक करने के जगह पत्थरों पर रकम लुटा देते हैं, और घूमते रहते हैं इस स्थान से उस स्थान, इस पहाड़ से उस पहाड़, देखते ही नहीं न गर्मी न बरसात न जाडा, वह महसूस करने लगता है कि नौकरी मैंने मेहनत से पाया, जिसके लिए भरपूर समय लुटाया, वो भूल जाता है उनका होना न ऊपर वाले को पसंद है और न ही नीचे वाले को, पग पग पीना पड़ता है विष के प्याले को, बंदा पद के नशे में मदहोश है, तभी तो समाज के प्रति अहसानफरामोश है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ...
जब कुछ लिख कहेंगी
कविता

जब कुछ लिख कहेंगी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कहां गया नारी सम्मान के लिए कुछ दिन पहले तुम्हारा किया गया संकल्प, या निकाल चुके हो अपने दिल से इस बात का विकल्प, वैसे भी इतिहास गवाह है कि तुमने अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचा है, जब,जहां,जैसे पाये नारियों के हक़ अधिकार को जब तब नोचा है, आज फिर अपनी मनमानी दोहराओगे, धूमधाम से नारी को जलाओगे, दिन भर हुड़दंग करोगे रंग गुलाल उड़ाओगे, मुझे यकीन नहीं है तुम्हारी लिखी कहानी कथाओं पर, आधी आबादी को हासिये पर धकेल कुछ नहीं दिये हो प्रथाओं पर, हां जितना जलाना है जला लो आज जमाना तुम्हारा है, मुझे इंतजार उस दिन का रहेगा जब नारियां तुम्हें जलायेगी कुछ लिख और कहेंगी अब सारा जमाना हमारा है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
गड़बड़ हे भई
आंचलिक बोली, कविता

गड़बड़ हे भई

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) छाता ओढ़ के सुरुज ल ढांकय देखव ए अत्याचारी मन, जोर जुलुम के बेवस्था ल पकड़े हावय देखव समाजिक बीमारी मन, हजारों साल के धत धतंगा करके नई अघाए हें, संकट खतरा कहि कहि के गरीब गुरबा ल सताये हें, नाक कटाय के डर नई हे कोनो नाक इंखर तो पइसा हावय, अकेल्ला रहिथंव मोर कोनो नई हे सुखाय नहीं जऊन भंइसा हावय, कुकुर बिलाई छेरी बछरू कतको के नजर म देवता आये, शरम बेच लोटा धर मांगय बइठे ठाले तीन तेलइ के खाये, हांसी आथे पढ़े लिखे मन उपर तर्क वितर्क ले दुच्छा हावय, गहना धर के मुड़ी ल अपन अनपढ़ जोगी जगा हाथ देखावय, मया पिरित नही हे देस से जेला ओहर का सियानी करही, ए डारा ले ओ डारा तक बेंदरा कस धतंग धियानी धरही, कांदी खाये पेट के भरभर पगुरा के वोला पचाही जी, चिंता फिकर का करना हे चारा दूसर लाही जी। ...
गंभीर और सुलझे जन
कविता

गंभीर और सुलझे जन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखो कैसा मुमालिक ये, फर्ज को भुला बैठा है बन बैठा जज या पीठाधीश, काम क्या खुद का भूल गया कहते जो खुद को खबरनवीस, दो गुटों में बैठे हैं, एक दूजे से ऐंठे हैं, आधा सच बताता वो, आधा सच बताता ये, आधा झूठ परोसता वो, आधा झूठ परोसता ये, बैठे गोद धनकुबेरों के जन मन गन को लूट खसोटता ये, भ्रामकता में गूंगे बहरे जन, नहीं सच को खोजे इनका मन, तवायफों के दीदार को बैठे मुजरे में सब उलझे हैं, कुछ मत कहना इनको यारों जन गंभीर बहुत और सुलझे हैं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
खुशबू बन बिखरना है
कविता

खुशबू बन बिखरना है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मर जाने के डर से नहीं मरना चाहते हो, तो आज ही मर जाओ, बड़ी जिंदगी चाहते हो तो अभी सुधर जाओ, सुधर कर भी गर मुर्दे ही रह गए, बिना प्रतिरोध सैलाब के धारे में बह मर गए, तो बता जी रहे थे वो कौन सी जिंदगी थी, न प्रतिकार न प्रतिशोध बकवास जीवन अब तक क्यों और किसके लिए सह गए, खंजर को हमारी जरूरत कभी नहीं होती, अगर लगाव होता तो वार करता ही क्यों? हल्के वार से भी शरीर नहीं रह पाता ज्यों का त्यों, मैं सुधर चुका हूं, अपनी जागृति वाली खुशबू संग कोने कोने में बिखर चुका हूं, कभी न कभी लोग साथ आएंगे, महक खोजते खोजते जब अपना भूत खोजेंगे तो निश्चित ही खुद खुशबू बिखरायेंगे, जिन्हें औरों की ड्योढ़ी पर निश दिन नाक रगड़नी है रगड़े, ऐसों को छोड़ो उनके हाल पर हर हाल में आगे बढ़ना है उनका जाल काटते बिना क...
रणनीति
कविता

रणनीति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** चुनाव में खड़े थे प्रत्याशी चार, जीतना है सबको नहीं चाहिए हार, चूंकि प्रतिद्वंद्वी थे तो मिलकर नहीं किये विचार, करना था एक दूजे पर प्रहार, पहले ने समर्थक वोटरों को गिना, कम पड़ रहे थे समर्थक तो कैसे जाएगा जीत छीना, योजना के तहत जाल बिछाया गया, फ्रेम में पांचवा प्रत्याशी लाया गया, जिसने द्वितीय उम्मीदवार के समर्थकों में अच्छा खासा पैसा बांट डाला, उनकी हिम्मत को काट डाला, दूसरे को पता नहीं कि रणनीति के तहत फोड़ा गया है बम, उसके सारे मतदाता खा पी नाच रहे झमाझम, पहले का अपना वोटर बच गया, दूसरे का वोटर पांचवे द्वारा कट गया, रणनीतियां ही करती है काम ईमानदार हो चाहे मूर्ख, हमेशा सफल रहते हैं चालबाज धूर्त। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा प...
देखो चुनाव हो रहा है
कविता

देखो चुनाव हो रहा है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब लड़ रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं, लड़ रहा है भाई-भाई, बहू संग सासू माई, एक नहीं हो रहे, नेक नहीं हो रहे, मतैक्य नहीं हो रहे, दबंग भी लड़ रहा, मलंग भी लड़ रहा, भुजंग भी लड़ रहा, चुनावी ताप बढ़ रहा, मिठाई की भरमार है, धन बल बेशुमार है, मतदाताओं में चुप्पी है, प्रत्याशी बेकरार है, बेवड़ों में छलका जाम है, हर दिन सुबह और शाम है, मुराद पूरी न हुए तो धमकी देना आम है, पीना खाना ही इनका काम है, प्रजातंत्र रो रहा है, जिम्मेदार सो रहा है, धर्म की ललक है जागी इतनी इंसानियत बिलख के रो रहा है, हो रहा है हो रहा है, चुनाव देखो हो रहा है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...