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Tag: शिवदत्त डोंगरे

आजादी
कविता

आजादी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ख़ौफ़ से आज़ादी ही हमारी सच्ची आज़ादी है जिस पर मैं तुम्हारे लिए दावा ठोंकता हूँ मेरी मातृभूमि! पीढ़ियों के बोझ से आज़ादी अपना सिर झुका कर चलते रहना अपनी कमर की हड्डियाँ तोड़ लेना और भविष्य की पुकार पर मूंद लेना अपनी आँखों को नींद की बेड़ियों से चाहिए हमें आज़ादी. जिससे तुम रात के सन्नाटे में ख़ुद को जकड़ लेते हो और उस सितारे पर ज़ाहिर करते हो अपना अविश्वास जो सत्य की साहसिक राहों तक हमें ले जाना चाहता है आज़ादी अपनी क़िस्मत की अराजकता से. जिसकी पालें अंधी और अनिश्चित हवाओं के सामने कमजोर पड़ती जाती हैं और पतवार हमेशा चला जाता है मौत के माफ़िक कठोर और ठंडे हाथों में कठपुतलियों की इस दुनिया में रहने के अपमान से आज़ादी. जहाँ हरकतें बद-दिमाग़ तंत्रिकाओं के ज़रिए शुरू होती हैं नासमझ आ...
जीभर जीकर जाना
कविता

जीभर जीकर जाना

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* खाना-पीना सो जाना बात-बात पर रो जाना. क्या ये है कोई ज़िंदगी यूँ ही मायूस हो जाना. चार दिनों की पूँजी साँसें बेजा इन्हें मत कर जाना. अवसर यह मिला हुआ है इसको जीभर जीकर जाना. विधाता ने बड़े प्यार से धरती घूमन को भेजा है. कुँदन काया सुँदर माया देकर के तुम्हें सहेजा है. अंदर-बाहर भरा उजाला हम सबको राह सुझाते हैं. न जाने किस भरम बावले कोई राह तक न वे पाते हैं. जग जैसा है, वैसा ही है किसलिए है इससे डरना. अकारण न घटती घटना केवल कारण से है बचना. बस इतना है हाथ तुम्हारे खुद की सुधबुध है रखना. है ईश्वर तेरे ही भीतर बैठा जब जी चाहे कर मिलना. बिना विचारे अंधा हो कर काहे कदम उठावे तू प्यारे. खुली आँख से चलने वाला कभी न ठोकर खावे प्यारे. तन- जीवन- जान अभी है फिर क्यों तू घबराए जग...
बौना हुआ ईमान
कविता

बौना हुआ ईमान

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सारी दुनिया वह कहे जो सम्मत विज्ञान धरती -चपटी मानते अभी बहुत इंसान। अड़े हुए हैं झूठ पर जान -बूझ अंजान अंध-श्रद्धा के सामने बौना हुआ ईमान। इंसाँ -इंंसाँ फर्क कर मज़हब लीने मान कुछ लोगों को छोड़कर सब काफिर शैतान। काफ़िर का जायज़ क़तल क्या यही कहता ज्ञान काफ़िर का कर खात्मा हासिल करो जहान। जो धरती पैदा हुआ वो सब एक समान यहाँ सभी हकदार हैं जीव -जंतु -इंसान। प्रेम -मुहब्बत -मुरब्बत इंसानी पहचान जिस मज़हब ये न रहें वो मज़हब मुर्दा जान। कुछ लोगों को वहम का होने लगा गुमान जो जितना जाहिल दिखे वो मज़हब की शान। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्व...
संभल जा इंसान
कविता

संभल जा इंसान

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सारी दुनिया वह कहे जो सम्मत है विज्ञान धरती -चपटी मानते अभी बहुत इंसान। अड़े हुए हैं झूठ पर जान -बूझ अंजान अंध -श्रद्धा के सामने बौना हुआ ईमान। इंसाँ -इंंसाँ फर्क कर मज़हब लीने मान कुछ ही को छोड़कर सब काफिर शैतान। काफ़िर का जायज़ क़तल इनका यही कहता ज्ञान काफ़िर का कर खात्मा हासिल करो जहान। जो धरती पे पैदा हुआ वो सब ही एक समान यहाँ सभी हकदार हैं, जीव - जंतु - इंसान। प्रेम- मुहब्बत- मुरब्बत इंसान की है पहचान जिस मज़हब ये न रहें वो मज़हब मुर्दा जान। लोगों को वहम का है होने लगा गुमान जो जितना जाहिल दिखे वो ही मज़हब की शान। घटिया- सटिया माल की कुछ दिन चले दुकान बेचा सो वापस फिरे करना पड़े चुकान। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : ...
मैं पुरुष हूं
कविता

मैं पुरुष हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं पुरुष हूं मर्दानगी की सूली पर चढ़ा हूं कठोर हूं, निर्मम हूं ,निर्भय हूं इस तरह ही मैं गढ़ा गया हूं. मैं पुरुष हूं खारिज भी किया गया हूं कभी बेटा नालायक कभी पति नामर्द कभी पिता नाकाबिल बताया गया हूं. मैं पुरुष हूं मुझे यह भी बताया गया है : बस जिस्म तक सोचता हूं मैं हवस की दलदल में धंसा हवस का पुजारी कहा गया हूं. मैं पुरुष हूं दर्द से मेरा क्या रिश्ता मैं पत्थर हूं आंसुओं से मेरा क्या वास्ता मगर सच तो ये है कि मैं भी रूलाया गया हूं. जब भी किसी गलत को गलत कहता हूं अपने ही घर में जालिम करार दिया जाता हूं मैं पुरुष हूं, ऐसे ही दबा दिया जाता हूं. मैं पुरुष हूं, लेकिन~ मुझमें भी हैं परतें मुझमें भी पानी बहता है खोल सकोगे जो परतें मेरी तो देखोगे : मुझमें भी सैलाब रहता है....
आयु अपनी शेष हो गई
कविता

आयु अपनी शेष हो गई

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आयु अपनी शेष हो गई पीड़ा की पहनाई में अब भी सपने सुलग रहे देखे जो तरुणाई में काजल सी काली अंधियारी यह रात ढलेगी संभव आशाएं मुस्काए पूरब की अरुणाई में चैता की वो विरह गीतिका कब तक सिसके कभी संदेशा आने का मिल जाए पुरवाई में इन सांसों की उलझन में क्यों जीवन उलझे हरियाए उपवन भी, कलियों की अंगड़ाई में क्यों ना पाए समझ, झुकी दृष्टि की लाचारी क्यों नहीं डूबकर देखा चुप्पी की गहराई में सहमे-सहमे गलियारे हैं दरकी-दरकी दीवारें पहले कैसी चहलपहल होती थी अंगनाई में जब स्वयं को भूल गए हम, अपने ही भीतर कितना बेगानापन लगे अपनी ही परछाई में मन की सारी व्यथा लिखी, इन गीतों छंदों में पूरे सफर की कथा लिखी पांव की बिवाई में परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फ...
स्त्री
कविता

स्त्री

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* उन्हें पुकारा गया शहर या गाँव के नाम से खंडवा वाली पिपरिया वाली देवरी वाली छिंदवाड़ा वाली. कभी बच्चों के नाम से बिट्टू-छोटू की माँ मनी की माँ लकी की माँ. प्रिया रिया की मां पति के पेशे से भी हुई इनकी पहचान मास्टरनी डाक्टरनी मील वाली भट्टा वाली. तो किसी ने कहा विधवा बाँझ बदचलन बेहूदा या ख़राब औरत। औरतें जो खपती रहीं मकान को घर बनाने में जिम्मेदारियाँ निभाने में पति के नख़रे उठाने में बच्चों को लायक बनाने में ताउम्र कोई नहीं जान पाया उनका असली नाम सिवाय घर की एक दीवार के यहाँ लटकी हुई तस्वीर में वो साथ झूलता है। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्ष...
धरा भी तू ही गगन भी तू
स्तुति

धरा भी तू ही गगन भी तू

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* धरा भी तू ही गगन भी तू मरुस्थल तू मधुवन भी तू सागर भी तू है ज्वार भी तू पार भी तू ही अपार भी तू आदि भी तू अंत भी तू... शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. मान्य भी तू अमान्य भी सरल कठिन सामान्य भी अनुराग भी तू विराग भी काल तू ही विकराल भी अंत भी तू ही अनन्त भी शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. सुधा भी तू है गरल भी तू अतीत अद्य तू कल भी तू सृजन ही तू विनाश भी तू आस भी तू विश्वास भी तू दिग भी तू दिगन्त भी.... शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. सृजन भी तू सृष्टि भी तू अगोचर है तू दृष्टि भी तू विषपायी तू भुजंग भी तू हिमाद्री है तू अनंग भी तू गहन निशा तू प्रात भी तू स्नेह है तू है संघात भी तू पतझर भी तू बसंत भी.... शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० ...
तर्क
कविता

तर्क

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया के सबसे सुन्दर फूल की तरह खिलता है, एकदम मानवीय प्यार की तरह, मेहनत की ज़मीन पर उगे अनुभव के पौधे पर शोभा पाता है तर्क मेहनत करने वालों के पास। तर्क सुन्दर होता है क्योंकि वह बताता है कारण का कार्य से सम्बन्ध वह बताता है चीजों के होने के बारे में, गतियों के रहस्यों के बारे में। बताता है वह रहस्य, अन्धकार और कृत्रिमता तथा निरुपायता से मुक्ति के बारे में इसलिए ज़रूरी है तर्क करना और लोगों को बताना तर्क के बारे में। जो चाहते हैं दुनिया को चलाना ऐसे ही जैसे कि वह चल रही है वे डर जाते हैं जब हम शुरू करते हैं तर्क करना I परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इं...
बेकार लड़का
कविता

बेकार लड़का

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* बेकार लड़का माँ से नहीं डरता पिता से नहीं डरता और न ही मौत से बेकारी के दिनों में उसका सारा डर मर गया। सिगरेट के दाम से लेकर दोस्तों के चेहरों तक बहुत कुछ बदल गया दीवार से उतरे हुए पुराने कैलण्डर की तारीखें चली गईं अखबार की रद्दी के साथ थूकने के अलावा क्या बचा है बेकार लड़के के पास जबकि दिन बहुत छोटे हो गए हैं और ठंडी हवा गालों में चुभती है। बाज़ार की चिल्ल-पों धूल भरी गलियों के सूनेपन और अपनी पीठ पर टिकी कस्बे की आँखों से बचता देर रात पहुंचता है वह घर नींद में बड़बड़ाते पिता न जाने कब सुन लेते हैं किवाड़ों पर दी गई थाप पिता की दिनचर्या में शामिल हो गई है दरवाजे की हलचल सिर झुकाकर उसका सामने से गुजर जाना कुछ शब्दों के हेरफेर से जमाने का बिगड़ना और अरे मेरे भगवान कह फिर सो जाना...
वे पुरानी औरतें
कविता

वे पुरानी औरतें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जाने कहाँ मर-खप गई वे पुरानी औरतें जो छुपाए रखती थी नवजात को सवा महीने तक घर की चार दीवारी में। नहीं पड़ने देती थी परछाई किसी की रखती थी नून राई बांध कर जच्चा के सिरहाने बेल से बींधती थी चारपाई रखती थी सिरहाने पानी का लोटा सेर अनाज दरवाजे पर सुलगाती थी हारी दिन-रात। कोई मिलने भी आता तो झड़वाती थी आग पर कपड़े और बैठाती थी थोड़ा दूर जच्चा-बच्चा से फूकती थी राई, आजवाइन, गुगल सांझ होते ही नहीं निकलती देती थी घर से गैर बखत किसी को। घिसती थी जायफल हरड़ बच्चे के पेट की तासीर माप कर पिलाती थी घुट्टी और जच्चा को देती थी घी आजवाइन में गूंथ कर रोटियाँ। छ दिन तक रखती थी दादा की धोती में लपेटकर बच्चे को फिर छठी मनाती थी बनाती थी काजल बांधती थी गले में राई लाल धागे से. पहना...
आदमी वो ही हैं
कविता

आदमी वो ही हैं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आदमी वो ही हैं आदमी वो ही है जिसमें धैर्य तो हो मानव धर्म भी हो आदमी वो है करे जो सार्थक सब कर्म भी हो। आदमी वो है रहम का वास जिसके दिल में हो आदमी वो है जो सहज हर मुश्किल में हो। सच बताओ? लग रहा क्या आदमी-सा आदमी आदमी के भेष में क्यूँ ? जानवर-सा आदमी। कब घुसा इस आदमी के जिस्म में ये जानवर? आदमी हो तो तुम्हें इस जानवर की शर्म हो। आदमी का वहम हो और जानवर-पन ही रहे ये ईमाँदारी कहाँ? हम आदमी खुद को कहें। आदमी हैं जिंदगी में आदमी बनकर रहें आदमी हो तो समझ़ में तत्व का कुछ मर्म हो। आदमी गर ठान ले तो स्वर्ग सी जीवन धरा हो शुभ हुआ है आज तक भी आदमी जब शुभ करा हो। आदमी हो आदमी से जुड़ गये गर प्रेम से भाव जो गहरा हुआ तो हर हृदय में यह भरा हो। आदमी वो जो ये जाने जन्म ...
चाहना
कविता

चाहना

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* चाहना एक अभिव्यक्ति है और चाहत एक अनुभूति. चाहने में भौतिकता है और चाहत में स्वतंत्र, अद्वैत होने के बोथ. चाहना एक फूल से हो सकता है और चाहत संपूर्ण उपवन की. चाहने में लालसा और पाने की कामना उद्बबोधित है चाहत सृष्टि के स्वरुप की स्तुति हैं. इसलिए जब मैंने कहा कि तुम मेरी चाहत हो तो केवल तुम नहीं तुम से जुड़ी, बंधी वो सारी नैसर्गिकता भी है. निश्छल, पावन अक्षत एवं साश्वत काव्य संस्कृति में सौंदर्य बोध परालौकिक है. मेरा मौन रहना जिस दिन लोग समझेंगे मै उन्हें महाकाव्य लगूंगा। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्...
वो क्यों है?
कविता

वो क्यों है?

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जो वर्तमान है, वो क्यों है? हम बने जिम्मेदार कायरता तो जैसे हमारे ख़ून में थी और इन्तज़ार करना हमारा जीवन था। प्रार्थना पत्रों और निवेदनों की भाषा हमें घुट्टी में पिलायी गयी थी और मामूली लोगों के प्रति थोड़ी दया और कृपालुता ही हमारी प्रगतिशीलता थी। हमारी दुनियादारी को लोग भलमनसाहत समझते थे। संगदिली हमारी उतनी ही थी जितनी कि तंगदिली। अत्याचार और मूर्खता से उतने भी दूर नहीं थे हम जितना कि दिखाई देते थे और दिखलाते थे। जब ज़ुल्म की बारिश हो रही हो और कुछ भी बोलना जान जोखिम में डालना हो तो हम चालाकी से अराजनीतिक हो जाते थे या कला और सौन्दर्य के अतिशय आग्रही, या प्रेम, करुणा, अहिंसा, मानवीय पीड़ा, ख़ुद को बदलने आदि की बातें करने लगते थे। और लोग इसे हमारी सादगी और भोलापन समझते थे...
खोदिए …रुकिए मत
कविता

खोदिए …रुकिए मत

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* खोदिए! मस्जिद के नीचे खोदिए मिलेंगी मूर्तियां यक्ष, किन्नर, गंधर्व, देवों देवियों की मूर्तियां उसकी भी जिसका मंदिर ऊपर नहीं है. मूर्तियों के नीचे खोदिए मिलेंगे मिट्टी के बर्तन खिलौने उसके नीचे खोदिए पत्थर के औज़ार बर्तन और हथियार भी सिर्फ़ पत्थर के. उसके भी नीचे खोदिए अस्थियां खोपड़ी ठठरियां बचे-खुचे दांत मिलेंगे. उसके भी नीचे खोदिए रुकिए मत अभी भी आपके नीचे उतरने की ख़त्म नहीं हुई है संभावना. हालांकि ज़िंदगी की शर्त थी ऊपर उठने की कींच में धंसने की नहीं फिर भी जितना नीचे गिर सकते हैं गिरिए और खोदिए. अब मिलेंगे फ़ॉसिल्स उन पेड़-पौधों जीव-जंतुओं के जिनकी कब्र पर इस वक्त खड़े हो तुम. तुम्हारी सभ्यता तुम्हारे मंदिर-मस्जिद गिरजे ख़ानकाह सब खड़े हैं गर्व से जबकि शर...
ढूँढ रही हैं आँखें किस को
कविता

ढूँढ रही हैं आँखें किस को

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ढूँढ रही हैं आँखें किस को क्या खोया कुछ खबर नहीं है. भटकन-तड़पन-बेचैनी है सब है लेकिन सबर नहीं है। क्या ऐसा था गुमा दिया जो जिसको ढूँढ रही हैं आँखें ग़लत दिशा में हो बाहर की बाहर कोई डगर नहीं है। खुद में ही खुद मंजिल अपनी खुद में ही खुद रस्ता अपना जो खोया खुद में खोया है किसी शहर किसी नगर नहीं है। कैसी तुम को बेचैनी है पहले खुद में खुद पहचानों कैसी भी आफ़त हो खुद में आखिर खुद से जबर नहीं है। ग़ाफ़िल-सा दौड़े खुद में ही खुद का कोई होश नहीं है ज़रा सुकूँ भी पा नहीं पाओ जो गर खुद में ठहर नहीं है। कुछ न कुछ तो खोया लगता कुछ न कुछ असआर ग़लत हैं या तो ये फिर ग़ज़ल नहीं है या फिर इसमें बहर नहीं है। क्या चाहा क्या पा जाओगे क्या मर्ज़ी का जी जाओगे? मरे-मरे जीना पड़ता है यहाँ हौसल...
जब भावों में जीते हो
कविता

जब भावों में जीते हो

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब भावों में जीते हो तो जीवंत हो, हृदय में हो जब विचार में जीते हो मूर्छा में हो, मस्तिष्क में हो। हृदय और बुद्धि एक नही हृदय आपका स्वभाव है उसका अनुभव सत्य का अनुभव है उसकी सुनना ही वास्तविक धर्म है जब बुद्धि में जीते हो बुद्धि से निर्णय लेते हो तब अस्तित्व की अनंत संभावनाओं से चूक जाते हो बुद्धि का और प्रेम का कोई संबंध ही नहीं. बुद्धिमान, चालाक और चतुर प्रेम कर ही नही सकते वे प्रेमी हो ही नही सकते उनके लिए प्रेम व्यर्थ है वे बुद्धि के तल पे जीते हैं लाभ और हानि के गणित में पड़ते हैं और प्रेम से चूक जाते हैं उनके लिए भावजगत संवेदना का जगत निर्मूल्य है महत्वहीन है। वे एक नीरसता भरे जीवन में अकेली पड़ गई आत्माए हैं जो मृत मुर्दा वस्तुओ के लोभ से ग्रसित हैं वे मरणासन्न हैं, य...
प्रश्न घनैरे उठते भीतर
कविता

प्रश्न घनैरे उठते भीतर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रश्न घनैरे उठते भीतर और समाधान भी पाया है. पर एक प्रश्न सदा से बाकी समझ नहीं जो आया है। यक्ष-प्रश्न से होते तो मैं भी उत्तर कब के दे देता. निजी-प्रश्न मुझी से मेरा पर अपनों में कह लेता। बडा़ सहज सा प्रश्न स्वयं से अक्सर करता रहता हूँ. मै-मैं-मैं-मैं करूँ रात-दिन, हूँ भीतर कहाँ रहता हूँ? आँत-औज़ड़ी हृदय-फेफड़ें हड्डी़-पसली भरी पड़ी है. आमाशय भी भरा फेफड़ें साँस के उपर साँस खडी़ है। मकड़-जाल से जटिल-जाल सिर में सारे नसें भरी हैं. और नसों में रक्त दौड़ता ऐसे-जैसे नस नगरी है। नयनों में भी दृश्य समाये और कानों में घुस आया शोर. आधा-जीवन रात भर गई आधा ही जीवन होती भोर। बाहर तो मैं देखूँ सबको भीतर भी सब जान गया हूँ. कोई जगह नहीं खाली भीतर मैं हूँ तो फिर रहे कहाँ हूँ। इतना त...
जाने आजाद कब होंगें
कविता

जाने आजाद कब होंगें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ना जाने आजाद कब होंगें जात-पात के झगड़ों से, धर्म-धर्म के दंगों से, जहर बुझे वाणी के तीरों से, बढ़ते अपराधों से, ना जाने आजाद कब होंगें, बढ़ती बेरोजगारी से, रूठ चुके अफसानों से, भुखमरी, कालाबाजारी से, टूट रहे अरमानों से, ना जाने आजाद कब होंगें बारूद की पहरेदारी से, नफरत की चिंगारी से, घोटालों- धांधली से, भाषाओं की चार दीवारी से, ना जाने आजाद कब होंगे दहशत के अंगारों से, धर्म के ठेकेदारों से, मजहब की दीवारों से, अंग्रेजी की गुलामी से, ना जाने आजाद कब होंगे, रंग नस्ल की बोली से, रूढ़िवादी जंजीरों से, जहरीली तकरीरों से, क्षेत्रवाद की दीवारों से, ना जाने आजाद कब होगें परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (म...
हृदय की बात
कविता

हृदय की बात

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हृदय-हृदय की बात है हृदय-हृदय में रह गयी हृदय,हृदय मिला नहीं जीवन कभी खिला नहीं. हृदय को न सुना गया हृदय ने न आवाज़ की हृदय हृदय में गुम हुआ रहा अनकहा व अनसुना हृदय हृदय में ही मर गया खोपड़ी में गोबर भर गया जिंदा हैं, पर हम रहे नहीं मरते रहे कभी जीये नहीं हृदय को फ़िर भी भ्रम है ये धड़क रहा, धड़क रहा यह हृदय मेरा, हृदय तेरा ये भटक रहा, चटक रहा परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
मिलने का संयोग नहीं
कविता

मिलने का संयोग नहीं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हम-तुम एक धरा पर फिर भी मिलने का संयोग नहीं है! प्रेम गणित है ऐसा जिसमें सुख का कोई योग नहीं है!! दूरी जिससे कम हो जाए ऐसी कोई राह नहीं है! और तुम्हारे बिन मंजिल से मिलने की भी चाह नहीं है! पत्थर का सीना पिघलाए फूलों में वो आह नहीं है! आज मरें हम, कल मर जाएं, दुनिया को परवाह नहीं!! बादल से सावन, सागर से मोती, नदियों से गंगाजल, सारे जल-जीवन में केवल 'आंसू' का उपयोग नहीं है! सांसों का संगीत जिन्हें लगता है धड़कन की मजदूरी! मृग से ज्यादा प्यारी होती है जिनको कस्तूरी!! कैलेंडर बदले जाने को हैं जिनके दिन-रात ज़रूरी! रंग महज लगती है जिनको दुल्हन जैसी सांझ सिंदूरी!! उनको ही तो मुस्कानों का सारा कारोबार फलेगा, जिनकी आंखों के पानी का पीड़ा से उद्योग नहीं है! हमने खुद अपने आंचल ...
चुप्पी तोड़नी होगी
कविता

चुप्पी तोड़नी होगी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों के लिए जो हांक दिए जाते हैं सांप्रदायिकता की आग में, जिन्हें धर्म के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर कभी क्षेत्र के नाम पर लड़ाया जाता है . जो लगातार उपेक्षित हैं विकास की दौड़ में जो कैद है अंधविश्वास की जंजीरों में जिनकी आंखों में बंधी है अज्ञानता की पट्टियां जिनकी आंखों में गुम हो रहे हैं सपने जिनकी स्वपनहीन आंखों में भर दी गई है नफरतें हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन लोगों की जो दबंगों के आगे चुप है उंची नीच की दीवारों में बंद है हमें चुप्पी तोड़नी होगी उन कन्या भ्रूण के लिए जो मार दी जाती हैं गर्भ में उन बेटियों बहू और माताओं के लिए जो हो रही है मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना और अपने परायों से बलात्कार की शिकार. हमें चुप्पी तोड़नी होगी सभ्यता...
खतरा किससे है
कविता

खतरा किससे है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया को खतरा है किससे धर्म से या विज्ञान से नहीं खतरा है आदमी के भीतर बैठे शैतान से जो दूषित कर देता है हर संस्थान, हर संगठन, हर धर्म आदमी को डर है किससे दुनिया से या भगवान से नहीं वो डरता है अपने भीतर के अज्ञान से जो उसे बना देती है भीड़ जाति का, धर्म का, विचारधारा और राजनीति का जीवन को बचाना चाहिए किससे जानवर से या इंसान से नहीं बचाना चाहिए अपने भीतर के झूठे गुमान से जो बना देती है इंसान को संकीर्ण, क्रूर और मतलबी. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पू...
निशब्द
कविता

निशब्द

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसे पल हैं आते जब समझा समझा कर खुद का ही अन्तर्मन कोई समझ ना पाता और हम थक है जाते। शब्दों के कोलाहल में सब अर्थ अनर्थ हो जाते मन की व्यथा समझाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो जाते आपके हर तर्क के विरुद्ध अनेक प्रत्यर्थ हैं टकराते। तब सिर्फ एक मौन का ही सहारा समर्थ कर जाता है बिन कुछ कहे ही वो तो सारा भाव व्यक्त कर जाता है। चीखता तो घमंड है विनय तो बस मौन है हठ में तो कर्कशता है त्याग तो बस मौन है झूठ के हैं लाखों तर्क सत्य की भाषा तो मौन है। मौन है दर्पण मौन है तर्पण मौन है अर्पण मौन समर्पण मौन प्यार है मौन स्वीकार है मौन तकरार है मौन ही इकरार है। हर वाद-विवाद प्रतिवाद से मुक्त हो पाते हैं जब आपके शब्द निशब्द हो जाते हैं। जब आपके शब्द निशब्द हो जाते ...
वो एक लमहा
कविता

वो एक लमहा

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वो एक लमहा अब तक नहीं पकड़ पाया मैं जब बदल गयीं थी दिशाएँ हमारी गुज़रते वक्त से बार-बार गुज़रकर मैं अब भी ढूँढता हूँ वो पल जो ले गया तुम्हें दूर मुझसे न जाने वो क्या था जो अदृश्य सा तैरता रहा हमारे बीच और जिसके रहते तय न हो सके फासले कभी ! वक्त का एक बड़ा सा टुकडा बेरहमी से भाग रहा है हमारे बीच कहते हैं कि वक्त के साथ सब बदल जाता है मै देखना चाहता हूँ तुम्हे भी तुम्हारे बदले हुए रूप में तो क्या अब तुम नहीं पहनती वो आसमानी नीली साड़ी जिसे देखते ही मैं बन जाता था उफनता पागल सा सागर ! शायद अब तुम्हारी डायरी के पन्ने किसी और रास्ते से गुजरकर मुकम्मल होते होंगे और शायद तुमने अब मीठे की जगह नमकीन खाना भी सीख लिया होगा शायद तुम छोड़ चुके होंगे मेरे न होते हुए भी मु...